Skip to main content

BAATON BAATON MEIN -15: INTERVIEW OF MUSIC DIRECTOR/SINGER SOHAIL SEN

बातों बातों में - 15

संगीतकार और पर्श्वगायक सोहेल सेन से बातचीत 


"आज के म्युज़िक की स्थिति काफ़ी मज़बूत है और दुनिया भर में हमारा संगीत फल-फूल रहा है। "  




नमस्कार दोस्तो। हम रोज़ फ़िल्म के परदे पर नायक-नायिकाओं को देखते हैं, रेडियो-टेलीविज़न पर गीतकारों के लिखे गीत गायक-गायिकाओं की आवाज़ों में सुनते हैं, संगीतकारों की रचनाओं का आनन्द उठाते हैं। इनमें से कुछ कलाकारों के हम फ़ैन बन जाते हैं और मन में इच्छा जागृत होती है कि काश, इन चहेते कलाकारों को थोड़ा क़रीब से जान पाते, काश; इनके कलात्मक जीवन के बारे में कुछ जानकारी हो जाती, काश, इनके फ़िल्मी सफ़र की दास्ताँ के हम भी हमसफ़र हो जाते। ऐसी ही इच्छाओं को पूरा करने के लिए 'रेडियो प्लेबैक इण्डिया' ने फ़िल्मी कलाकारों से साक्षात्कार करने का बीड़ा उठाया है। । फ़िल्म जगत के अभिनेताओं, गीतकारों, संगीतकारों और गायकों के साक्षात्कारों पर आधारित यह श्रृंखला है 'बातों बातों में', जो प्रस्तुत होता है हर महीने के चौथे शनिवार को। आज जनवरी 2016 का चौथा शनिवार है। आज इस स्तंभ में हम आपके लिए लेकर आए हैं इस दौर के जाने-माने संगीतकार और पर्श्वगायक सोहेल सेन से की हुई दीर्घ बातचीत के सम्पादित अंश। सोहेल सेन ’Whats your Raashee', 'गुंडे’, ’मेरे ब्रदर की दुल्हन’, और ’एक था टैगर’ जैसी फ़िल्मों में सफल संगीत दे चुके हैं। आइए मिलते हैं उनसे।

    


सोहेल, नमस्कार, और बहुत बहुत स्वागत है आपका ’रेडियो प्लेबैक इण्डिया’ पर!


नमस्कार, और शुक्रिया आपका मुझे याद करने के लिए।

आपका परिवार कई पीढ़ियों से संगीत की सेवा में लगा हुआ है; जमाल सेन, शम्भु सेन, दिलीप सेन - समीर सेन, और अब इस पीढ़ी में आप। बहुत ख़ुशी हो रही है आपसे बातचीत करने का मौक़ा पाकर।

धन्यवाद!

सोहेल, सबसे पहले तो हम जानना चाहेंगे आपके पारिवरिक उपाधि ’सेन’ के बारे में। जहाँ तक मैं जानता हूँ, यह उपाधि बंगाली समुदाय के लोगों में होती है। तो क्या आपका मूल परिवार बंगाल से था?

जी बिल्कुल नहीं, हम राजस्थान से ताल्लुक रखते हैं। चुरु ज़िले में सुजानगढ़ का नाम आपने सुना होगा...

जी बिल्कुल सुना है

हम वहीं के हैं, हमारे पुर्वज वहीं के हैं।

तो फिर यह "सेन" कहाँ से, मेरा मतलब है....

इसके पीछे भी एक रोचक कहानी है। हमारा जो ख़ानदान है, वह तानसेन के ज़माने से चला आ रहा है।

तानसेन यानी कि संगीत सम्राट तानसेन??

जी हाँ, 16-वीं शताब्दी में हमारे ख़ानदान में एक हमारे पुर्वज थे जिनका नाम था केसरजी। उन्हें संगीत में गहरी रुचि थी और वो तानसेन के शिष्य बन गए थे। वो संगीत सम्राट तानसेन के ऐसे परम भक्त बन गए, उनके ऐसे उपासक बन गए कि उन्होंने अपने नाम के आगे "सेन" लगाना शुरू कर दिया। इस तरह से हमारे परिवार को "सेन" की उपाधि मिली तानसेन से।

क्या बात है! यह तो बड़ा ही रोमांचक तथ्य है, आज से करीब 500 साल पहले की बात।

जी बिल्कुल! और केसर सेन के बाद भी हम पीढ़ी में संगीत की धारा बहती चली आई, जो अब तक कायम है।

वाक़ई एक महान परिवार है आपका। अच्छा यह बताइए कि केसर सेन के बाद और किन पुर्वजों ने संगीत में योगदान दिया है, उसका इतिहास कुछ बता सकते हैं?

केसर सेन के बाद एक के बाद एक बहुत सी पीढ़ियाँ आईं, उनका लेखा-जोखा तो नहीं है, मुझे पिछली पाँच पीढ़ियों के बारे में पता है। मेरे परददादा के पिता, यानी कि मेरे Great Great Grandfather, उनका नाम था जीवन सेन। उस समय देश स्वाधीन नहीं हुआ था, और राजाओं का शासन चलता था कुछ राज्यों में। तो जीवन सेन राजदरबारी संगीतज्ञ हुआ करते थे जिसे हम Court Musician कहते हैं। आगे चलकर जब थिएटर की परम्परा शुरू हुई, उस समय पारसी थिएटर का काफ़ी प्रचलन हुआ। तो जीवन सेन ने पारसी थिएटर में भी संगीत दिया है।

जीवन सेन के बाद अगली पीढ़ी में कौन आए?


Jamal Sen
जीवन सेन के पुत्र थे जमाल सेन। उन्हें संगीत और नृत्य, दोनों से लगाव था और दोनों में पारंगत थे। कथक नृत्य में वो पारदर्शी थे। उस समय ब्रिटिश राज जारी था, और ऐसे में "वन्देमातरम" गाने का क्या नतीजा हो सकता है इसका अंदाज़ा आप लगा सकते हैं।

जी जी।

तो उन्होंने "वन्देमातरम" गाया और ब्रिटिश सरकार के Most Wanted Rebels में उनका नाम दर्ज हो गया। जब रेडियो शुरू हुआ तो वो रेडियो के नामी आर्टिस्ट बने और 1935 के आसपास मास्टर ग़ुलाम हैदर को बम्बई स्थानान्तरित करवाने में उनका महत्वपूर्ण योगदान रहा।

जमाल सेन जी, जैसा कि आप बता रहे हैं "वन्देमातरम" गा कर ब्रिटिश सरकार के चक्षुशूल बन गए तो क्या स्वदेशी नेताओं के साथ भी उनका मेल-जोल था?

जी हाँ, जमाल सेन जी उस समय के तमाम शीर्ष के नेताओं, जैसे कि नेताजी सुभाष चन्द्र बोस, श्री लाल बहादुर शास्त्री, राष्ट्रपिता महात्मा गांधी और पंडित जवाहरलाल नेहरु, के सम्पर्क में रहे। ग़ुलाम हैदर के वो सहायक रहे और ’ख़ज़ान्ची’ फ़िल्म के गीतों में उन्होंने तबला और ढोलक बजाया। देश स्वाधीन होने के बाद वो एक स्वतन्त्र संगीतकार बने और कई फ़िल्मों में संगीत निर्देशन किया, जैसे कि ’शोख़ियाँ’, ’रंगीला’, ’अमर शहीद’, ’दाएरा’, ’पतित पावन’, ’मनचली’, ’धरमपत्नी’, ’बग़दाद’, कस्तूरी’ आदि।

इन फ़िल्मों में से कोई गीत आपको पसन्द है?

फ़िल्म ’शोख़ियाँ’ का लता जी का गाया गीत "सपना बन साजन आए, हम देख देख मुस्काए..." मेरे पसन्दीदा गीतों में से एक है, और आपको बता दूँ कि एक लम्बे अरसे तक यह गीत मेरे मोबाइल का रिंग् टोन भी रहा है।

वाह, क्या बात है! अच्छा, जीवन सेन और जमाल सेन के बाद अगली पीढ़ी में कौन आए?


Shambhu Sen & Jamal Sen
जमाल सेन के पुत्र शम्भु सेन। अपने पिता की तरह संगीत और नृत्य, दोनों में पारंगत शम्भु सेन जी शीर्ष के नृत्य निर्देशक बने और हेमा मालिनी, योगिता बाली, सारिका, लक्ष्मी छाया, मनीषा और सुजाता जैसी अभिनेत्रियों को नृत्य सिखाया। फ़िल्म संगीतकार के रूप में उन्होंने बस एक ही फ़िल्म ’मृगतृष्णा’ में संगीत दिया था जो 1975 की फ़िल्म थी। रफ़ी साहब की आवाज़ में इस फ़िल्म का "नवकल्पना नवरूप से रचना रची जब नार की" बहुत हिट हुआ था। लता जी के गाए इस फ़िल्म के "सुन मन के मीत मेरे प्रेम गीत आजा रे..." की भी क्या बात है!

वाक़ई, यह अफ़सोसजनक बात ही है कि उन्होंने आगे किसी फ़िल्म में संगीत नहीं दिया। ख़ैर, हम तीन पीढ़ियों की बात कर चुके, चौथी पीढ़ी में कौन आए?

तीसरी पीढ़ी की बात अभी ख़त्म नहीं हुई है, जमाल सेन के दूसरे बेटे थे दिलीप सेन। पर उन्होंने चौथी पीढ़ी के समीर सेन के साथ जोड़ी बनाई।

ये समीर सेन किनके पुत्र हैं?

समीर सेन शम्भु सेन के पुत्र हैं।

अच्छा-अच्छा, इसका मतलब चाचा-भतीजे की जोड़ी है दिलीप सेन-समीर सेन की जोड़ी? तीसरी और चौथी पीढ़ी का संगम एक तरह से कह सकते हैं।


Dilip Sen - Sameer Sen
बिल्कुल ठीक! दिलीप सेन - समीर सेन ने लम्बी पारी खेली है फ़िल्म जगत में और उनके बहुत से गाने सुपरहिट हुए हैं। ’आइना’, ’ये दिल्लगी’, ’मुक़ाबला’, ’मेहरबान’,  ’हक़ीक़त’, ’इतिहास’, ’रघुवीर’, ’ज़िद्दी’, ’अफ़लातून’, ’सलाखें’, ’तू चोर मैं सिपाही’, 'अर्जुन पण्डित’, ’ज़ुल्मी’ आदि फ़िल्मों के गानें ख़ूब चले थे।

वाक़ई एक लम्बी लिस्ट है दिलीप-सेन - समीर सेन के हिट गीतों की। इस लम्बी लिस्ट को एक तरफ़ रखते हुए अगर मैं आपसे पूछूँ कि इनमें आपका पसन्दीदा वह एक गाना कौन सा है, तो?

वह गीत है फ़िल्म ’मेहरबान’ का, "अगर आसमाँ तक मेरे हाथ जाते, तो क़दमों में तेरे सितारे बिछाते..."। सोनू निगम का गाया हुआ यह गीत है।

बहुत अच्छा गीत है। कोई ख़ास याद जुड़ी है इस गीत के साथ?

यह गीत मुझे इसलिए इतना पसन्द है क्योंकि इसी गीत को मैं पियानो पर बजाया करता था जब मैं पियानो सीख रहा था। यह गीत सुनते ही आज भी मुझे वो पियानो सीखने के बचपन के दिन याद आ जाते हैं।

अच्छा सोहेल जी, समीर सेन हो गए चौथी पीढ़ी के। अब बढ़ना चाहेंगे अगली पीढ़ी की ओर।

अगली पीढ़ी, यानी पाँचवीं पीढ़ी, यानी कि मैं। मैं समीर सेन का बेटा हूँ और हमारे परिवार के संगीत की परम्परा को आगे बढ़ाने की कोशिश कर रहा हूँ।

बहुत अच्छा लगा आपके परिवार और पिछली पीढ़ियों के बारे में जान कर। अब आप से बातचीत को आगे बढ़ाते हैं। तो बताइए अपने बचपन के बारे में, कैसे थे वो दिन?


आप समझ सकते हैं कि ऐसे गहन संगीतमय पारिवारिक पार्श्व से सम्बन्ध रखने की वजह से मेरी जो शुरुआती स्मृतियाँ हैं, वो पूर्णत: संगीत में ही डूबी हुई हैं। सुबह रियाज़ सुन कर जागा करता, ख़ुद भी रियाज़ करता। 6 बरस की उम्र से ही मैं तबला और अलग अलग आघात-वाद्ययन्त्र (percussion instruments) सीखने लगा था। पियानो भी लगभग उसी समय सीखना शुरू किया। दादाजी, यानी कि शम्भु सेन जी से मैं शास्त्रीय संगीत सीखा।

उनसे नृत्य नहीं सीखा?

जी नहीं, मैं एक गायक और एक संगीतकार हूँ।

अपने स्कूल और दोस्तों के बारे में कुछ बताइए?

जहाँ तक स्कूल की बात है, मैंने ख़ूब आन्न्द लिया स्कूल का, मेरे बहुत से दोस्त हुए। मैं खेलकूद में काफ़ी अच्छा था, मैं एक बहुत अच्छा एथलीट था। मुझे खेलों से बहुत लगाव रहा है। मुझे 100 मीटर स्प्रिण्ट दौड़ने का बहुत शौक़ था और मैंने अपने स्कूल में सातवीं कक्षा तक स्वर्णपदक विजेता रहा, फिर उसके बाद संगीत खेल पर हावी होने लगा। अगर संगीत के क्षेत्र में नहीं आता तो यकीनन मैं खेल के मैदान में रहा होता।

आपके शारीरिक गठन को देख कर इसमें कोई संदेह नहीं है कि खेलकूद में भी आप अपने परिवार का नाम रोशन करते! अच्छा यह बताइए कि आपने प्रोफ़ेशनली किस उम्र में संगीत के क्षेत्र में आए?


मैं उस समय 13 साल का था जब मुझे मेरा पहला ब्रेक मिला। वह एक टेलीफ़िल्म थी ’रोशनी’ शीर्षक से जिसमें कविता कृष्णमूर्ति ने मेरे कम्पोज़ किए हुए गीत गाए।

बहुत ही कम उम्र थी उस वक़्त आपकी। फिर इसके बाद कौन से मौक़े आए संगीत देने की?

फिर इसके बाद करीब-करीब 9 साल मैंने दिलीप सेन - समीर सेन जी के सहायक के रूप में काम किया और फ़िल्म संगीत की तमाम बारीक़ियाँ सीखी। इनमें बालाजी प्रोडक्शन्स के तमाम टीवी सीरियल्स के टाइटल ट्रैक्स शामिल हैं। और उनमें से क‍इयों में तो आप मेरी आवाज़ भी सुन सकते हैं।

अच्छा, बालाजी के सीरियल्स में काम करने के बाद फिर आगे क्या हुआ?

उस वक़्त मैं कोई 22-23 साल का था जब मुझे कुछ फ़िल्में मिली, जैसे कि ’सिर्फ़’ ’The Murderer' वगेरह, जो नहीं चली। ’सिर्फ़’ में शिबानी कश्यप भी संगीतकार थीं मेरे साथ।

2008 में ’सिर्फ़’ आई थी जिसमें आपने तनन्नुम मलिक के साथ एक गीत भी गाया था "तुझपे फ़िदा है मेरा दिल दीवाना" जो चर्चित रहा। और इसी फ़िल्म का एक अन्य गीत "ज़िन्दगी की कहानी यही है, हार में ही तो जीत छुपी है" भी सुन्दर रचना है। और जैसा कि आप कह रहे थे कि ये फ़िल्में नहीं चली तो इस गीत के बोलों के मुताबिक़ हार में ही तो जीत छुपी है, जो आगे चलकर आपके क़दम चूमी। फिर उसके बाद कौन सी फ़िल्म आई?

फिर आई ’Whats Your Raashee?'

और इस फ़िल्म ने रातों रात आपको सबकी नज़र में ला खड़ा किया। आशुतोष गोवारिकर की यह फ़िल्म कैसे मिली आपको? आशुतोष जी उससे पहले ए. आर. रहमान जैसे बड़े संगीतकार के साथ काम करते थे, तो आप जैसे नवान्तुक को लेने का फ़ैसला क्यों लिया?


उस समय, मुझे पता है, ए. आर. रहमान सर उपलब्ध नहीं थे क्योंकि वो ’Slumdog Millionaire’ को लेकर काफ़ी व्यस्त थे। उन्ही दिनों मेरे पिता ने आशुतोष जी से सम्पर्क किया और मेरे काम और कम्पोज़िशन्स के बारे में उन्हें बताया। और मेरे साथ उनकी एक मीटिंग् फ़िक्स करवा दी। मैं आशुतोष जी से मिलने गया, उन्हें मेरे कम्पोज़ की हुई धुनें सुनाई जो उन्हें बहुत अच्छी लगी। उसके बाद फिर पीछे मुड़ कर नहीं देखा। उस फ़िल्म में कुल 13 अलग अल्ग क़िस्म के गीतों की ज़रूरत थी, जिनमें 12 गीत तो बारह राशिओं से सम्बंधित थे। मुझे लगता है कि मैंने हर गीत के साथ पूरा-पूरा न्याय किया। फ़िल्म को बनने में डेढ़ साल लगे।

फ़िल्म तो ज़्यादा चली नहीं, पर इसके गाने हिट ज़रूर हुए थे। क्या इन गीतों की धुनें आपके बैंक में पहले से ही मौजूद थी?

जी नहीं, इस फ़िल्म की सभी धुनें ताज़े कम्पोज़ किए मैंने स्क्रिप्ट के अनुसार। यह सच है कि मेरे बैंक में सौ से अधिक धुनें मौजूद हैं पर मैं निर्देशक के बताए हुए सितुएशन के मुताबिक नई धुनें कम्पोज़ करने में विश्वास रखता हूँ।

एक तरफ़ आशुतोष गोवारिकर, दूसरी तरफ़ जावेद अख़्तर, कैसा लगा इतने बड़े बड़े नामों के साथ करने में?

जैसे सपना सच हो गया। जावेद साहब ख़ुद एक लीजेन्ड हैं और उनके साथ काम करने का सौभाग्य मुझे मिला, और क्या कह सकता हूँ!

इन गीतों के बोल जावेद साहब ने पहले लिखे थे या धुनें पहले बनी थीं?

धुनें पहले बनी थीं।

जब वरिष्ठ कलाकारों के साथ कोई नवोदित कलाकार काम करता है तो उसके काम में काफ़ी हस्तक्षेप होता है। क्या आपके साथ इस फ़िल्म में यही हुआ?


आप यह कह लीजिए कि अच्छे के लिए कीमती सलाह मुझे मिली आशुतोष सर से क्योंकि वो ख़ुद एक संगीत के अच्छे जानकार हैं। उनके सुझावों पर ग़ौर करने से मेरा काम और निखर के आया है इसमें कोई संदेह नहीं। ऐसा करते हुए मुझे बहुत मज़ा आया।

इस फ़िल्म के कुल 13 गीतों में से 7 में आपकी आवाज़ भी शामिल है। संगीतकार होने के साथ-साथ एक अच्छे गायक के रूप में भी आप उभर रहे हैं। दोनों में से कौन सी विधा आपको ज़्यादा पसन्द है?

मुझे दोनों ही बहुत ज़्यादा पसन्द है।

’Whats Your Raashee?' के बाद कौन सी फ़िल्म आई आपकी?

’खेलें हम जी जान से’। यह भी आशुतोष सर की निर्देशित फ़िल्म थी और जावेद साहब गीतकार थे।

जी हाँ, मुझे याद है, यह फ़िल्म Chittagong Uprising की घटना पर आधारित थी, इसमें भी आपने बड़ा अनूठा संगीत दिया, बंगाल के लोक संगीत के अनुसार?

जी हाँ, एक गीत था पामेला जैन और रंजिनी जोसे का गाया हुआ जो बंगाल के लोक धुन पर आधारित था।

जिस तरह से रहमान ने ’स्वदेस’ में "ये जो देस है तेरा" गाया था, इस फ़िल्म में आपने "ये देस है मेरा" गाया बहुत ख़ूबसूरती से।

धन्यवाद! इस फ़िल्म में रोमान्टिक गाना था "सपने सलौने" जिसे मैंने और पामेला जैन ने गाया था। फिर "वन्देमातरम" का जो संस्करण इस फ़िल्म के लिए हमने बनाया था, उसकी भी चर्चा हुई थी। इसे Cine Singers Association Chorus Group के कलाकारों ने गाया, और फ़िल्म का शीर्षक गीत गाया था सुरेश वाडकर जी की संगीत संस्था के कलाकारों ने।

फिर अगली फ़िल्म कौन सी थी?

’मेरे ब्रदर की दुल्हन’। यह ’यश राज’ की फ़िल्म थी जिसमें इमरान ख़ान, अली ज़फ़र, कटरीना कैफ़ आदि थे। इस फ़िल्म में "धुनकी" गीत बहुत हिट हुआ था।

जी जी, नेहा भसीन का गाया यह गीत ख़ूब चला था। इस फ़िल्म के तमाम गीतों में भी आपने नए नए प्रयोग किए थे।

’मेरे ब्रदर की दुल्हन’ (MBKD) की पूरी टीम को "कैसा यह इश्क़ है..." गीत पहले दिन से ही बहुत पसन्द आया; और एक दिन मैंने आदि सर (आदित्य चोपड़ा) से पूछा कि उनका पसन्दीदा गीत इस फ़िल्म का कौन सा है, तो उनका जवाब था कि यूं तो सभी गीत मुझे अच्छे लगे, पर "धुनकि" ज़बरदस्त हिट होने वाला है। और जब ऐल्बम रिलीज़ हुई तो वही हुआ जो आदि सर ने कहा था।

’यशराज’ की फ़िल्म MBKD में संगीत देने का अनुभव कैसा रहा?

बहुत ही मज़ेदार अनुभव रहा क्योंकि फ़िल्म की पूरी कास्ट और क्रू युवा थी और बड़े दोस्ताना माहौल में काम होता था। MBKD का संगीत तैयार करते हुए वाक़ई हमने बहुत मज़े किए, हंगामे किए।

MBKD के बाद ही शायद आपको सलमान ख़ान की फ़िल्म ’एक था टाइगर’ का प्रस्ताव मिला था?

नहीं, ’एक था टाइगर’ से पहले एक और फ़िल्म मिली थी ’From Sydney with Love'। लेकिन यह फ़िल्म चल नहीं पाई, इसलिए इसके गाने भी लोगों ने सुने नहीं।

जी जी, याद आया, यह मशहूर फ़िल्मकार प्रमोद चक्रवर्ती की फ़िल्म थी जो ’प्रमोद फ़िल्म्स’ के स्वर्णजयन्ती के उपलक्ष्य पर बनी थी। ’ज़िद्दी’, ’लव इन टोकियो’, ’नास्तिक’, ’दीदार’, ’बारूद’ जैसी न जाने कितनी सफल फ़िल्में इस बैनर की रही है।

हाँ, और इस वजह से मुझे भी इस फ़िल्म से काफ़ी सारी उम्मीदें थीं।

पर आपका संगीत इस फ़िल्म में ताज़ी हवा के झोंकों की तरह सुनाई दिया, ख़ास कर "प्यारी प्यारी..." और "नैनो रे..." गीत तो बहुत अच्छे रहे।

शुक्रिया!

अच्छा अब आते हैं अगली फ़िल्म ’एक था टाइगर’ पर। सलमान ख़ान की फ़िल्म के लिए संगीत देना अपने आप में बड़ी बात है क्योंकि सलमान ख़ान गीत-संगीत पर बहुत ध्यान देते हैं। तो किस तरह से मिला आपको ’एक था टाइगर’?

हुआ यूं कि उस समय ’धूम 3' और ’एक था टाइगर’, दोनों यशराज की फ़िल्में थीं, इन दोनों के लिए प्रीतम जी को संगीतकार लिया गया था। पर क्योंकि दोनों फ़िल्मों का संगीत एक ही समय में पूरा करना था, इसलिए प्रीतम जी के लिए दोनों पर काम करना मुश्किल हो रहा था। प्रीतम जी की व्यस्तता को देखते हुए आदि सर ने उन्हें एक फ़िल्म से मुक्त करने का निर्णय लिया। क्योंकि प्रीतम जी पहले से ’धूम’ से जुड़े हुए थे, इसलिए ’एक था टाइगर’ से उन्हें मुक्त कर दिया गया। उन्हीं दिनों ’मेरे ब्रदर की दुल्हन’ फ़िल्म के संगीत से आदि सर मुझसे काफ़ी ख़ुश थे, इसलिए ’एक था टाइगर’ के लिए उन्होंने मुझे चुन लिया।

इससे आपके और प्रीतम जी के बीच में कोई अनबन तो नहीं हुई?

बिल्कुल नहीं, बल्कि प्रीतम जी बहुत ख़ुश हुए यह सुन कर कि मैं ’एक था टाइगर’ कर रहा हूँ। उन्होंने कहा कि उन्हें मेरा संगीत बहुत अच्छा लगता है और ’एक था टाइगर’ के लिए मुझे शुभकामनाएँ भी दी उन्होंने।

इस फ़िल्म में आपके कुल तीन गीत थे "लापता", "बंजारा" और "सं‍इयारा"। एक गीत साजिद-वाजिद का भी था जो सलमान ख़ान के पसन्दीदा संगीतकारों में से हैं। लेकिन लोगों ने जब इसके गाने सुने तो सभी ने स्वीकारा कि सलमान की हाल की फ़िल्मों, ’दबंग’, ’वान्टेड’, ’बॉडीगार्ड’ और ’रेडी’, से बेहतर और स्तरीय है ’एक था टाइगर’ का संगीत।

इसके लिए मुझे "BIG Star Most Entertaining Music of the Year" का पुरस्कार मिला था।

और अब बात करते हैं ’गुंडे’ की। लोकप्रियता और सफलता के पैमाने पर अगर मापा जाए तो ’गुंडे’ आपकी अब तक की सबसे सफल फ़िल्म है। इस फ़िल्म के बारे में बताइए?
with 'Gunday' team

शुरू से ही अली अब्बास ज़फ़र ने यह साफ़ कर दिया था कि उन्हें इस फ़िल्म का संगीत समकालीन चाहिए और जो इस धरती से जुड़ा हुआ हो।

वैसे भी आपने जब भी किसी फ़िल्म में संगीत दिया है, आपका हर गीत अपने आप में अनूठा रहा है। क्या तरीक़ा अपनाते हैं आप?

किसी फ़िल्म के लिए जब संगीत देना हो तो कुछ बातों पर ध्यान रखना पड़ता है, जैसे कि कहानी, काल (पीरियड), चरित्रों की भाषा/बोली, और सबसे ज़रूरी बात है निर्देशक की दृष्टि।

’गुंडे’ 70 के दशक के कोलकाता के पार्श्व पर बनी है। इस वजह से इसके संगीत के लिए आपने किन किन बातों पर ग़ौर किया?

’गुंडे’ 70-80 के दशक के समय की कहानी पर बनी फ़िल्म है, उस समय तरह तरह के साज़ जैसे कि ड्रम, गिटार, सरोद, संतूर, सितार आदि प्रयोग में लाये जाते थे, इसलिए हमने भी इस फ़िल्म के गीतों में उन्हें शामिल करने की कोशिश की है। इनके साथ-साथ बंगाल के लोक-संगीत (बाउल संगीत) को भी ध्यान में रखा है।

इस फ़िल्म के तमाम गीतों के बारे में बताइए?

फ़िल्म की जो सर्वाधिक लोकप्रिय गीत है, वह है "तूने मारी एन्ट्रियाँ..."। इस गीत के लिए हमें काफ़ी मेहनत करनी पड़ी क्योंकि यह फ़िल्म का एकमात्र ऐसा गीत है जिसमें तीनों मुख्य कलाकार (अर्जुन, रणवीर और प्रियंका) शामिल हैं, नृत्य कर रहे हैं, मज़े ले रहे हैं। सिचुएशन के हिसाब से एक ऐसा गीत चाहिए था जो गाने में आसान हो और साथ ही मस्ती-भरा हो। इस गीत के लिए हमने शिवमणि को भी बुलाया था ड्रम्स और परक्युशन के लिए। कुल मिलाकर इस गीत को बनाते समय हमें बहुत मज़ा आया।

आपको जितना मज़ा इस गीत को बनाते हुए आया, उतना ही मज़ा इसे सुनते हुए श्रोताओं को आता है। अच्छा, आपका फ़ेवरीट गीत कौन सा है इस फ़िल्म का?

मेरा फ़ेवरीट है "जिया" जिसे अरिजीत सिंह ने गाया था। यह इस ऐल्बम का एकमात्र प्रेम गीत है। इसकी जो धुन है, उसकी रचना मैंने आठ साल पहले की थी और आठ साल के बाद जाकर यह अपने अंजाम तक पहुँचा है, इसलिए यह मेरे लिए बहुत ख़ास है। उस दिन अरिजीत की तबीयत ठीक नहीं थी, फिर भी वो आए और जैसे ही गीत सुना, उन्होंने इसे उसी वक़्त गाने का निर्णय लिया। "जिया" की जो सबसे अच्छी बात है, वह है इसके इन्टरल्यूड की जो बहती हुई धारा है, उसे कम्पोज़ करते हुए मुझे बहुत अच्छा लगा।

’गुन्डे’ के बाक़ी गीतों के बारे में भी बताइए?
with Ali Abbas Zafar & Bappi Lahiri

इस फ़िल्म का जो सबसे पहला गीत हमने रेकॉर्ड किया था, वह था "जश्न-ए-इश्क़ा..."। उस समय मैं ’एक था टाइगर’ रेकॉर्ड कर रहा था। पैक-अप के बाद मैं अली से मिला यशराज स्टुडियो के कैन्टीन में। यूं तो हमने पूरे प्रोजेक्ट की चर्चा की, पर ख़ास तौर से इस गीत के बारे में विस्तृत चर्चा की। इस गीत में बहुत से इलेक्ट्रिक गिटार और सात-आठ ड्रम्स का प्रयोग किया। ’रिदम ऑफ़ जश्न-ए-इश्क़ा’ इसी गीत का विस्तार है जिसके लिए हमने तौफ़िक़ अंकल (तौफ़िक़ कुरेशी) और उनके ग्रूप को आमन्त्रित किया था सारे परक्युशन्स को बजाने के लिए। फिर "असलाम-ए-इश्क़ुम..." भी एक मुश्किल ट्रैक था क्योंकि अली इस फ़िल्म में एक कैबरे नंबर माँग रहे थे और उसमें भी 70 के दशक की फ़ील चाहिए थी। साथ ही आज के दौर के लोगों के दिलों को भी छूना था। इसलिए हमने इस गीत के लिए बप्पी दा को प्रस्ताव दिया और उनके सुझाये बारीकियों को इस गीत में शामिल किया। "स‍इयाँ" में समकालीन दृष्टिकोण की आवश्यक्ता थी ताकि यह एक महज आम दर्द भरा गीत ना लगे। हमने पूरे गीत में बस एक ढोलक का प्रयोग किया। साथ में कुछ ड्रम्स और रॉक गिटार का भी प्रयोग किया इसे एक यूनिक फ़ील देने के लिए। "मन लुन्तो मौला" एक सूफ़ी क़व्वाली है जिसे पारम्परिक रूप देने का फ़ैसला लिया गया, जैसे कि नुसरत फ़तेह अली ख़ान की क़व्वालियों में होती है। यह क़व्वाली मेरे लिए बहुत ख़ास है क्योंकि इसमें मेरे पिताजी (समीर सेन) ने पूरा रिदम अरेंजमेण्ट किया है क्लासिकल वर्ज़न के लिए। 

और इस फ़िल्म का जो शीर्षक गीत है, उसे आपने ही गाया था एक लम्बे अरसे के बाद। इस गीत के बारे में बताइए?

इस गीत के लिए मुझे अली अब्बास ज़फ़र ने पूरी छूट दे रखी रखी थी कि इसमें मैं कुछ भी कर सकता हूँ। इसलिए मैंने इसमें रैप और डब स्टेप भी डाला। और हाँ, तीन साल के बाद फिर से माइक के सामने आकर मुझे एक सुखद अनुभूति हुई।

आजकल आप किन फ़िल्मों पर काम कर रहे हैं?

मैं आनन्द एल. राय की कुछ फ़िल्मों के लिए काम कर रहा हूँ; फिर प्रकाश झा साहब की एक फ़िल्म है उस पर काम कर रहा हूँ। ’हाउसफ़ुल-3’ का भी मैं संगीत तैयार करने जा रहा हूँ जिसके निर्माता हैं साजिद नडियाडवाला।

वाह! यानी आप कई बड़े निर्माताओं के साथ काम करने जा रहे हैं, आपको बहुत सारी शुभकामनाएँ।

धन्यवाद।

आज जिस तरह का संगीत बाज़ार में चल रहा है या जिस तरह के संगीत का निर्माण हो रहा है, उसके बारे में क्या विचार हैं आपके?

मैं आशावादी हूँ, और यही मानता हूँ कि आज के म्युज़िक इन्डस्ट्री की जो स्थिति है, वह काफ़ी माज़बूत है और दुनिया भर में हमारा संगीत फल-फूल रहा है। बाहर के लोग भारतीय संगीत से प्यार कर रहे हैं और उसकी सराहना भी हो रही है पूरे विश्व में।

आपके कौन कौन से पसन्दीदा कलाकार हैं?

मैं जॉन विलिअम्स का बहुत बड़ा फ़ैन हूँ जिन्होंने ’Jaws’, ’Star Wars’, ’Superman', 'E.T', 'Jurassic Park', 'Saving Private Ryan' जैसी फ़िल्मों में संगीत दिया था। मैं यह मानता हूँ कि उनके संगीत ने सुपरमैन के करेक्टर में जान डाल दी है। मुझे जेम्स होर्नर का संगीत भी बेहद पसन्द है। और जहाँ तक बॉलीवूड संगीत की बात है, मुझे आर. डी. बर्मन जी, लक्ष्मीकान्त-प्यारेलाल जी, शंकर-जयकिशन जी का संगीत पसन्द है, और सबसे ज़्यादा पसन्द है मदन मोहन जी के कम्पोज़िशन्स। मदन मोहन जी और लता जी का जो कम्बिनेशन है, इनकी जो ग़ज़लें हैं, वो बस पर्फ़ेक्ट हैं। फिर मेरे दादाजी शम्भु सेन जी भी मेरे फ़ेवरीट म्युज़िक डिरेक्टर हैं।

लता जी के ज़िक्र से ध्यान आया कि जमाल सेन, शम्भु सेन, दिलीप सेन - समीर सेन, इन सभी के लिए लता जी ने गाया है। क्या आपको नहीं लगता कि अगर आपका कोई कम्पोज़िशन लता जी गा देती हैं तो यह अपने आप में एक रेकॉर्ड बन जाएगी एक ही परिवार की चार पीढ़ियों के संगीतकारों के लिए लता जी के गायन की?

यह तो किसी सपने के सच होने वाली बात होगी, लता जी के साथ काम करना! काश आपकी यह बात सच हो!

सोहेल, आप फ़ोटोजेनिक हैं, शारीरिक गठन, उच्चता, दर्शन, सभी बहुत अच्छा है। क्या आपने कभी अभिनय के क्षेत्र में क़दम रखने के बारे में नहीं सोचा?

धन्यवाद आपका इस प्रशंसा के लिए! यह सच है कि एक समय ऐसा भी था जब मेरे पिता बड़े ज़ोर-शोर से मुझे अभिनय जगत में उतारने की तैयारी कर रहे थे। मेरे कुछ फ़ोटो-शूट्स भी हुए थे। पर अन्तत: मैंने अपने आप को संगीत जगत में भी स्थित किया और उसमें डूबता चला गया। और मुझे ऐसा लगता है कि संगीत ही वह क्षेत्र है जिसमें मैं अपना श्रेष्ठ दे सकता हूँ। यह मुझे चुबौतीपूर्ण लगता है और यही मेरा आवेग भी है, और वासना भी।

जब आप संगीत नहीं दे रहे होते या गाना नहीं गा रहे होते तो क्या करते हैं? मतलब कि ख़ाली वक़्त में क्या करते हैं?

मैं घंटों टीवी देख सकता हूँ, PS4 खेलने का बहुत शौक़ है। मुझे Formula 1 भी बहुत पसन्द है। मुझे तरह तरह के गैजेट इकट्ठा करने और उनसे खेलने का बहुत शौक़ है। 

सोहेल, बहुत बहुत शुक्रिया आपका, आपने इतना लम्बा समय हमें दिया, अपने बारे में, अपने गीतों के बारे में इतनी अनूठी जानकारियाँ दी, आपको आपके उज्ज्वल भविष्य के लिए हम ढेरों शुभकामनाएँ देते हैं।

बहुत बहुत धन्यवाद! मुझे भी बहुत अच्छा लगा आप से बात करते हुए।



आपको हमारी यह प्रस्तुति कैसी लगी, हमे अवश्य बताइएगा। आप अपने सुझाव और फरमाइशें ई-मेल आईडी soojoi_india@yahoo.co.in पर भेज सकते है। अगले माह के चौथे शनिवार को हम एक ऐसे ही चर्चित अथवा भूले-विसरे फिल्म कलाकार के साक्षात्कार के साथ उपस्थित होंगे। अब हमें आज्ञा दीजिए। 



प्रस्तुति : सुजॉय चटर्जी 





Comments

Popular posts from this blog

सुर संगम में आज -भारतीय संगीताकाश का एक जगमगाता नक्षत्र अस्त हुआ -पंडित भीमसेन जोशी को आवाज़ की श्रद्धांजली

सुर संगम - 05 भारतीय संगीत की विविध विधाओं - ध्रुवपद, ख़याल, तराना, भजन, अभंग आदि प्रस्तुतियों के माध्यम से सात दशकों तक उन्होंने संगीत प्रेमियों को स्वर-सम्मोहन में बाँधे रखा. भीमसेन जोशी की खरज भरी आवाज का वैशिष्ट्य जादुई रहा है। बन्दिश को वे जिस माधुर्य के साथ बदल देते थे, वह अनुभव करने की चीज है। 'तान' को वे अपनी चेरी बनाकर अपने कंठ में नचाते रहे। भा रतीय संगीत-नभ के जगमगाते नक्षत्र, नादब्रह्म के अनन्य उपासक पण्डित भीमसेन गुरुराज जोशी का पार्थिव शरीर पञ्चतत्त्व में विलीन हो गया. अब उन्हें प्रत्यक्ष तो सुना नहीं जा सकता, हाँ, उनके स्वर सदियों तक अन्तरिक्ष में गूँजते रहेंगे. जिन्होंने पण्डित जी को प्रत्यक्ष सुना, उन्हें नादब्रह्म के प्रभाव का दिव्य अनुभव हुआ. भारतीय संगीत की विविध विधाओं - ध्रुवपद, ख़याल, तराना, भजन, अभंग आदि प्रस्तुतियों के माध्यम से सात दशकों तक उन्होंने संगीत प्रेमियों को स्वर-सम्मोहन में बाँधे रखा. भीमसेन जोशी की खरज भरी आवाज का वैशिष्ट्य जादुई रहा है। बन्दिश को वे जिस माधुर्य के साथ बदल देते थे, वह अनुभव करने की चीज है। 'तान' को वे अपनी चे

‘बरसन लागी बदरिया रूमझूम के...’ : SWARGOSHTHI – 180 : KAJARI

स्वरगोष्ठी – 180 में आज वर्षा ऋतु के राग और रंग – 6 : कजरी गीतों का उपशास्त्रीय रूप   उपशास्त्रीय रंग में रँगी कजरी - ‘घिर आई है कारी बदरिया, राधे बिन लागे न मोरा जिया...’ ‘रेडियो प्लेबैक इण्डिया’ के साप्ताहिक स्तम्भ ‘स्वरगोष्ठी’ के मंच पर जारी लघु श्रृंखला ‘वर्षा ऋतु के राग और रंग’ की छठी कड़ी में मैं कृष्णमोहन मिश्र एक बार पुनः आप सभी संगीतानुरागियों का हार्दिक स्वागत और अभिनन्दन करता हूँ। इस श्रृंखला के अन्तर्गत हम वर्षा ऋतु के राग, रस और गन्ध से पगे गीत-संगीत का आनन्द प्राप्त कर रहे हैं। हम आपसे वर्षा ऋतु में गाये-बजाए जाने वाले गीत, संगीत, रागों और उनमें निबद्ध कुछ चुनी हुई रचनाओं का रसास्वादन कर रहे हैं। इसके साथ ही सम्बन्धित राग और धुन के आधार पर रचे गए फिल्मी गीत भी सुन रहे हैं। पावस ऋतु के परिवेश की सार्थक अनुभूति कराने में जहाँ मल्हार अंग के राग समर्थ हैं, वहीं लोक संगीत की रसपूर्ण विधा कजरी अथवा कजली भी पूर्ण समर्थ होती है। इस श्रृंखला की पिछली कड़ियों में हम आपसे मल्हार अंग के कुछ रागों पर चर्चा कर चुके हैं। आज के अंक से हम वर्षा ऋतु की

काफी थाट के राग : SWARGOSHTHI – 220 : KAFI THAAT

स्वरगोष्ठी – 220 में आज दस थाट, दस राग और दस गीत – 7 : काफी थाट राग काफी में ‘बाँवरे गम दे गयो री...’  और  बागेश्री में ‘कैसे कटे रजनी अब सजनी...’ ‘रेडियो प्लेबैक इण्डिया’ के साप्ताहिक स्तम्भ ‘स्वरगोष्ठी’ के मंच पर जारी नई लघु श्रृंखला ‘दस थाट, दस राग और दस गीत’ की सातवीं कड़ी में मैं कृष्णमोहन मिश्र, आप सब संगीत-प्रेमियों का हार्दिक अभिनन्दन करता हूँ। इस लघु श्रृंखला में हम आपसे भारतीय संगीत के रागों का वर्गीकरण करने में समर्थ मेल अथवा थाट व्यवस्था पर चर्चा कर रहे हैं। भारतीय संगीत में सात शुद्ध, चार कोमल और एक तीव्र, अर्थात कुल 12 स्वरों का प्रयोग किया जाता है। एक राग की रचना के लिए उपरोक्त 12 में से कम से कम पाँच स्वरों की उपस्थिति आवश्यक होती है। भारतीय संगीत में ‘थाट’, रागों के वर्गीकरण करने की एक व्यवस्था है। सप्तक के 12 स्वरों में से क्रमानुसार सात मुख्य स्वरों के समुदाय को थाट कहते है। थाट को मेल भी कहा जाता है। दक्षिण भारतीय संगीत पद्धति में 72 मेल का प्रचलन है, जबकि उत्तर भारतीय संगीत में दस थाट का प्रयोग किया जाता है। इन दस थाट