नववर्ष पर सभी पाठकों और श्रोताओं को हार्दिक शुभकामना
स्वरगोष्ठी – 251 में आज
मंगलध्वनि और चौथे महाविजेता की प्रस्तुति
राग भैरवी में शहनाई और राग धानी में सितार वादन से नववर्ष का अभिनन्दन
‘रेडियो
प्लेबैक इण्डिया’ के साप्ताहिक स्तम्भ ‘स्वरगोष्ठी’ के मंच पर सभी
संगीत-प्रेमियों का नए वर्ष के पहले अंक में हार्दिक अभिनन्दन है। इसी अंक
से आपका प्रिय स्तम्भ ‘स्वरगोष्ठी’ छठें वर्ष में प्रवेश कर रहा है। विगत
पाँच वर्षों से हमें असंख्य पाठकों, श्रोताओं, संगीत शिक्षकों और वरिष्ठ
संगीतज्ञों का प्यार, दुलार और मार्गदर्शन इस स्तम्भ को मिलता रहा है।
इन्टरनेट पर शास्त्रीय, उपशास्त्रीय, लोक, सुगम और फिल्म संगीत विषयक चर्चा
का सम्भवतः यह एकमात्र नियमित साप्ताहिक स्तम्भ है, जो विगत पाँच वर्षों
से निरन्तरता बनाए हुए है। इस पुनीत अवसर पर मैं कृष्णमोहन मिश्र, ‘रेडियो
प्लेबैक इण्डिया’ के संचालक मण्डल के सभी सदस्यों- सजीव सारथी, सुजॉय
चटर्जी, अमित तिवारी, अनुराग शर्मा, विश्वदीपक और संज्ञा टण्डन के साथ अपने
सभी पाठकों और श्रोताओं प्रति आभार प्रकट करता हूँ। आज छठें वर्ष के इस
प्रवेशांक से हम ‘स्वरगोष्ठी’ की पहेली के महाविजेताओं की प्रस्तुतियों का
रसास्वादन कराएँगे। इसके अलावा नववर्ष के इस प्रवेशांक में शास्त्रीय मंचों पर और मांगलिक अवसरों
पर परम्परागत रूप से सुशोभित होने वाले मंगलवाद्य शहनाई का वादन भी प्रस्तुत
करेंगे। वादक हैं, भारतरत्न के सर्वोच्च अलंकरण से विभूषित उस्ताद
बिस्मिल्लाह खाँ और राग है सर्वप्रिय भैरवी।
‘स्वरगोष्ठी’
का शुभारम्भ ठीक पाँच वर्ष पूर्व ‘रेडियो प्लेबैक इण्डिया’ संचालक मण्डल
के प्रमुख सदस्य सुजॉय चटर्जी ने रविवार, 2 जनवरी 2011 को किया था। आरम्भ
में यह ‘हिन्दयुग्म’ के ‘आवाज़’ मंच पर हमारे अन्य नियमित स्तम्भों के साथ
प्रकाशित हुआ करता था। उन दिनों इस स्तम्भ का शीर्षक ‘सुर संगम’ था।
दिसम्बर 2011 से हमने ‘रेडियो प्लेबैक इण्डिया’ नाम से एक नया सामूहिक मंच
बनाया और पाठकों के अनुरोध पर जनवरी 2012 से इस स्तम्भ का शीर्षक
‘स्वरगोष्ठी’ कर दिया गया। तब से हम आपसे निरन्तर यहीं मिलते हैं। समय-समय
पर आपसे मिले सुझावों के आधार पर हम अपने सभी स्तम्भों के साथ ‘स्वरगोष्ठी’
में भी संशोधन करते रहते हैं। इस स्तम्भ के प्रवेशांक में सुजॉय जी ने
इसके उद्देश्यों पर प्रकाश डाला था। उन्होने लिखा था-
“नये
साल के इस पहले रविवार की सुहानी सुबह में मैं, सुजॊय चटर्जी, आप सभी का
'आवाज़' पर स्वागत करता हूँ। यूँ तो हमारी मुलाक़ात नियमित रूप से 'ओल्ड
इज़ गोल्ड' पर होती रहती है, लेकिन अब से मैं 'ओल्ड इज़ गोल्ड' के अलावा हर
रविवार की सुबह भी आपसे मुख़ातिब रहूँगा इस नये स्तम्भ में जिसकी हम आज से
शुरुआत कर रहे हैं। दोस्तों, प्राचीनतम संगीत की अगर हम बात करें तो वो है
हमारा शास्त्रीय संगीत, जिसका उल्लेख हमें वेदों में मिलता है। चार वेदों
में सामवेद में संगीत का व्यापक वर्णन मिलता है। इन वैदिक ऋचाओं को सामगान
के रूप में गाया जाता था। फिर उससे 'जाति' बनी और फिर आगे चलकर 'राग' बनें।
ऐसी मान्यता है कि ये अलग-अलग राग हमारे अलग-अलग 'चक्र' (ऊर्जा विन्दु) को
प्रभावित करते हैं। ये अलग-अलग राग आधार बनें शास्त्रीय संगीत का और
युगों-युगों से इस देश के सुरसाधक इस परम्परा को निरन्तर आगे बढ़ाते चले जा
रहे हैं, हमारी संस्कृति को सहेजते हुए बढ़े जा रहे हैं। संगीत की तमाम
धाराओं में सब से महत्वपूर्ण धारा है शास्त्रीय अर्थात रागदारी संगीत। बाकी
जितनी तरह का संगीत है, उन सबसे उच्च स्थान पर है अपना रागदारी संगीत। तभी
तो संगीत की शिक्षा का अर्थ ही है शास्त्रीय संगीत की शिक्षा। अक्सर
साक्षात्कारों में कलाकार इस बात का ज़िक्र करते हैं कि एक अच्छा गायक या
संगीतकार बनने के लिए शास्त्रीय संगीत का सीखना बेहद ज़रूरी है। तो
दोस्तों, आज से 'आवाज़' पर पहली बार एक ऐसा साप्ताहिक स्तम्भ शुरु हो रहा
है जो समर्पित है, भारतीय परम्परागत शास्त्रीय संगीत को। गायन और वादन,
यानी साज़ और आवाज़, दोनों को ही बारी-बारी से इसमें शामिल किया जाएगा।
भारतीय संगीत से इस स्तम्भ की हम शुरुआत कर रहे हैं, लेकिन आगे चलकर अन्य
संगीत शैलियों को भी शामिल करने की उम्मीद रखते हैं...”
तो
यह सन्देश हमारे इस स्तम्भ के प्रवेशांक का था। ‘स्वरगोष्ठी’ की कुछ और
पुरानी यादों को ताज़ा करने से पहले आज का का चुना हुआ संगीत सुनते हैं। आज
‘स्वरगोष्ठी’ छठें वर्ष में प्रवेश कर रहा है। इस पावन अवसर पर मंगलवाद्य
शहनाई का वादन प्रस्तुत कर रहे हैं। इस अंक में हम देश के सर्वोच्च नागरिक
सम्मान ‘भारतरत्न’ से अलंकृत उस्ताद बिस्मिल्लाह खाँ की शहनाई पर बजाया राग
भैरवी प्रस्तुत कर रहे हैं।
मंगलध्वनि : राग भैरवी : शहनाई वादन : उस्ताद बिस्मिल्लाह खाँ
हमारे
दल के सर्वाधिक कर्मठ साथी सुजोय चटर्जी ने ‘स्वरगोष्ठी’ स्तम्भ की नीव
रखी थी। उद्देश्य था- शास्त्रीय और उपशास्त्रीय संगीत-प्रेमियों को एक ऐसा
मंच देना जहाँ किसी कलासाधक, प्रस्तुति अथवा किसी संगीत-विधा पर हम आपसे
संवाद कायम कर सकें और आपसे विचारों का आदान-प्रदान कर सकें। आज के 251वें
अंक के माध्यम से हम कुछ पुरानी स्मृतियों को ताज़ा कर रहे हैं। जैसा कि
पहले ही उल्लेख किया गया है कि इस स्तम्भ की बुनियाद सुजॉय चटर्जी ने रखी
थी और आठवें अंक तक अपने आलेखों के माध्यम से अनेक संगीतज्ञों की कृतियों
से हमें रससिक्त किया था। नौवें अंक से हमारे एक नये साथी सुमित चक्रवर्ती
हमसे जुड़े और आपके अनुरोध पर उन्होने शास्त्रीय, उपशास्त्रीय संगीत के साथ
लोक संगीत को भी ‘सुर संगम’ से जोड़ा। सुमित जी ने इस स्तम्भ के 30वें अंक
तक आपके लिए बहुविध सामग्री प्रस्तुत की, जिसे आप सब पाठकों-श्रोताओं ने
सराहा। इसी बीच मुझ अकिंचन को भी कई विशेष अवसरों पर कुछ अंक प्रस्तुत करने
का अवसर मिला। सुमित जी की पारिवारिक और व्यावसायिक व्यस्तता के कारण
31वें अंक से ‘सुर संगम’ का पूर्ण दायित्व मेरे साथियों ने मुझे सौंपा। मुझ
पर विश्वास करने के लिए अपने साथियों का मैं आभारी हूँ। साथ ही अपने
पाठकों-श्रोताओं का अनमोल प्रोत्साहन भी मुझे मिला, जो आज भी जारी है।
पिछले
250 अंकों में ‘स्वरगोष्ठी’ से असंख्य पाठक, श्रोता, समालोचक और संगीतकार
जुड़े। हमें उनका प्यार, दुलार और मार्गदर्शन मिला। उन सभी का नामोल्लेख कर
पाना सम्भव नहीं है। ‘स्वरगोष्ठी’ का सबसे रोचक भाग प्रत्येक अंक में
प्रकाशित होने वाली ‘संगीत पहेली’ है। इस पहेली में गत वर्ष के दौरान अनेक
संगीत-प्रेमियों ने सहभागिता की। इन सभी उत्तरदाताओं को उनके सही जवाब पर
प्रति सप्ताह अंक दिये गए। वर्ष के अन्त में सभी प्राप्तांकों की गणना की
जाती है। 249वें अंक तक की गणना की जा चुकी है। इनमें से सर्वाधिक अंक
प्राप्त करने वाले चार महाविजेताओं का चयन कर लिया गया है। प्रथम और
द्वितीय महाविजेता के बीच काँटे की टक्कर है। 250वें अंक की पहेली का
परिणाम इन दो महाविजेताओं का निर्धारण कर सकेगा। परन्तु तीसरे और चौथे
महाविजेता का निर्धारण हो चुका है। आज के इस अंक में हम आपका परिचय पहेली
के चौथे महाविजेता से करा रहे हैं। पहले तीन महाविजेताओ की घोषणा और उनकी
प्रस्तुतियों का रसास्वादन हम अगले अंक में कराएँगे।
डॉ. किरीट छाया |
‘स्वरगोष्ठी’
की संगीत पहेली 2015 के चौथे महाविजेता हैं; वोरहीज, न्यूजर्सी से डॉ.
किरीट छाया। किरीट जी पेशे से चिकित्सक हैं और 1971 से अमेरिका में निवास
कर रहे हैं। मुम्बई से चिकित्सा विज्ञान से एम.डी. करने के बाद आप सपत्नीक
अमेरिका चले गए। बचपन से ही किरीट जी के कानों में संगीत के स्वर
स्पर्श करने लगे थे। उनकी बाल्यावस्था और शिक्षा-दीक्षा, संगीतप्रेमी और
पारखी मामा-मामी के संरक्षण में बीता। बचपन से ही सुने गए भारतीय शास्त्रीय
संगीत के स्वरो के प्रभाव के कारण किरीट जी आज भी संगीत से अनुराग रखते
हैं। किरीट जी न तो स्वयं गाते हैं और न बजाते हैं, परन्तु संगीत सुनने के
दीवाने हैं। वह इसे अपना सौभाग्य मानते हैं कि उनकी पत्नी को भी संगीत के
प्रति लगाव है। नब्बे के दशक के मध्य में किरीट जी ने अमेरिका में रह रहे
कुछ संगीत-प्रेमी परिवारों के सहयोग से “रागिनी म्यूजिक सर्कल” नामक संगीत
संस्था का गठन किया है। इस संस्था की ओर से समय-समय पर संगीत अनुष्ठानों और
संगोष्ठियों का आयोजन किया जाता है। अब तक उस्ताद विलायत खाँ, उस्ताद अमजद
अली खाँ, पण्डित अजय चक्रवर्ती, पण्डित मणिलाल नाग, पण्डित बुद्धादित्य
मुखर्जी आदि की संगीत सभाओं का आयोजन यह संस्था कर चुकी है। पिछले दिनों
विदुषी कौशिकी चक्रवर्ती की संगीत सभा का फिलेडेल्फिया नामक स्थान पर
सफलतापूर्वक आयोजन किया गया था। किरीट जी गैस्ट्रोएंटरोंलोजी चिकित्सक के
रूप में विगत 40 वर्षों तक लोगों की सेवा करने के बाद पिछले जुलाई में
सेवानिवृत्त हुए हैं। सेवानिवृत्ति के बाद किरीट जी अब अपना अधिकांश समय
शास्त्रीय संगीत और अपनी अन्य अभिरुचि, फोटोग्राफी और 1950 से 1970 के बीच
के हिन्दी फिल्म संगीत को दे रहे हैं।
‘स्वरगोष्ठी’
मंच से डॉ. किरीट छाया का सम्पर्क हमारी एक अन्य नियमित प्रतिभागी विजया
राजकोटिया के माध्यम से हुआ है। किरीट जी ने संगीत पहेली में 219वें अंक से
भाग लेना आरम्भ किया था। तब से वह निरन्तर हमारे सहभागी हैं और अपने
संगीत-प्रेम और स्वरों की समझ के बल पर वर्ष 2015 की संगीत पहेली में चौथे
महाविजेता बने हैं। उन्होने इस प्रतियोगिता में 56 अंक अर्जित कर यह सम्मान
प्राप्त किया है। रेडियो प्लेबैक इण्डिया परिवार ‘स्वरगोष्ठी’ का आज का यह
विशेष अंक उन्हीं के सम्मान में अर्पित करता है। हमारी परम्परा है कि हम
जिन्हें सम्मानित करते हैं उनकी कला अथवा उनकी पसन्द का संगीत सुनवाते हैं।
लीजिए, अब हम डॉ. किरीट छाया की पसन्द का एक वीडियो प्रस्तुत कर रहे हैं।
यूट्यूब के सौजन्य से अब आप इस वीडियो के माध्यम से उस्ताद शाहिद परवेज़ का
सितार पर बजाया राग धानी सुनिए और मुझे आज के इस विशेष अंक को यहीं विराम
देने की अनुमति दीजिए। अगले विशेष अंक में हम पहेली प्रतियोगिता के प्रथम
तीन महाविजेताओं को सम्मानित करेंगे।
राग धानी : आलाप और तीनताल की गत : उस्ताद शाहिद परवेज़
संगीत पहेली
‘स्वरगोष्ठी’
के 251 और 252वें अंक में हम वर्ष 2015 की पहेली के महाविजेताओं को
सम्मानित कर रहे हैं, अतः इस अंक में हम आपको कोई संगीत पहेली नहीं दे रहे
हैं। अगले अंक में हम पुनः एक नई पहेली के साथ उपस्थित होंगे।
इस
अंक में प्रस्तुत किये गए गीत-संगीत, राग अथवा कलासाधक के बारे में यदि आप
कोई जानकारी या अपने किसी अनुभव को हम सबके बीच बाँटना चाहते हैं तो हम
आपका इस मंच पर स्वागत करते हैं। आप पृष्ठ के नीचे दिये गए COMMENTS के
माध्यम से तथा swargoshthi@gmail.com अथवा radioplaybackindia@live.com पर भी अपनी प्रतिक्रिया व्यक्त कर सकते हैं।
पिछली पहेली के विजेता
‘स्वरगोष्ठी’
के 249वें अंक की संगीत पहेली में हमने आपको विदुषी परवीन सुलताना की आवाज़
में राग पहाड़ी की ठुमरी गायन का एक अंश सुनवाया था और आपसे तीन में से
किन्हीं दो प्रश्न का उत्तर पूछा था। पहले प्रश्न का सही उत्तर है- राग –
पहाड़ी, दूसरे प्रश्न का सही उत्तर है- ताल – कहरवा या जत और तीसरे प्रश्न
का सही उत्तर है- गायिका बेगम परवीन सुलताना।
इस
बार की पहेली के सही उत्तर देने वाले प्रतिभागी
हैं, जबलपुर, मध्यप्रदेश से क्षिति
तिवारी, पेंसिलवेनिया, अमेरिका से विजया राजकोटिया, वोरहीज, न्यूजर्सी से
डॉ. किरीट छाया, चेरीहिल (एन.जे.) से प्रफुल्ल पटेल और हैदराबाद से डी.
हरिणा माधवी। उपरोक्त सभी पाँच प्रतिभागियों को ‘रेडियो प्लेबैक इण्डिया’
की ओर से हार्दिक बधाई।
अपनी बात
मित्रो,
‘रेडियो प्लेबैक इण्डिया’ के साप्ताहिक स्तम्भ ‘स्वरगोष्ठी’ के मंच पर आज
का यह अंक नववर्ष 2016 का पहला अंक था। इस अंक में हमने आपको संगीत पहेली
के चौथे महाविजेता से परिचय कराया। अगले अंक में हम आपका परिचय पहेली के
प्रथम तीन महाविजेताओं से कराएँगे। वर्ष 2015 की प्रस्तुतियों को
हमारे अनेक पाठकों ने पसन्द किया है। हम उन सबके प्रति आभार व्यक्त करते
हैं। ‘स्वरगोष्ठी’ के विभिन्न अंकों के बारे में हमें पाठकों, श्रोताओं और
पहेली के प्रतिभागियों की अनेक प्रतिक्रियाएँ और सुझाव मिलते हैं। प्राप्त
सुझाव और फरमार्इशों के अनुसार ही हम अपनी आगामी प्रस्तुतियों का निर्धारण
करते हैं। आप भी यदि कोई सुझाव देना चाहते हैं तो आपका स्वागत है। अगले
रविवार को प्रातः 9 बजे ‘स्वरगोष्ठी’ के नये अंक के साथ हम उपस्थित होंगे।
हमें आपकी प्रतीक्षा रहेगी।
प्रस्तुति : कृष्णमोहन मिश्र
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