चित्रशाला - 06
फ़िल्मों में महात्मा गांधी
महात्मा गांधी जी पर बनने वाली फ़िल्मों की चर्चा शुरू करने से पहले एक रोचक तथ्य बताना चाहता हूँ। साल 1934 में पुणे की ’प्रभात फ़िल्म कंपनी’ ने ’अमृत मंथन’ फ़िल्म की अपार सफलता के बाद संत एकनाथ पर एक फ़िल्म बनाना चाहा था। शुरुआत में इस फ़िल्म का सीर्षक ‘महात्मा’ रखा गया था, पर ब्रिटिश राज की आपत्ति को ध्यान में रखते हुए सेन्सर बोर्ड ने इस शीर्षक की अनुमति नहीं दी, और अंत में फ़िल्म का नाम रखा गया ‘धर्मात्मा’। इसी से पता चलता है कि ब्रिटिश शासन को महात्मा गांधी के चरित्र से कितना डर था। ख़ैर, शोध करते हुए पता चला कि गांधी जी पर बनने वाली सबसे पुरानी फ़िल्म है ’Mahatma Gandhi, 20th Century Prophet’। यह 1941 की एक वृत्तचित्र है जिसका निर्माण भ्रमण-लेखक व पत्रकार ए. के. चेट्टिआर ने किया था। इस फ़िल्म में गांधी जी द्वारा एक विदेशी पत्रकार को दिए साक्षात्कार का विडियो फ़ूटेज भी दिखाया गया है। 1941 में बनने के बावजूद अंग्रेज़ों के डर से इस फ़िल्म का प्रदर्शन स्वाधीनता तक नहीं हो सकी। ’नैशनल गांधी म्युज़िअ’म’ के निर्देशक ए. अन्नामलाई के अनुसार इस फ़िल्म को पहली बार 15 अगस्त 1947 को दिखाया गया था, पर उसके बाद यह फ़िल्म 1959 तक कहीं खो गई थी। इस फ़िल्म को अंग्रेज़ी में डब करके 1953 में अमरीका के सैन फ़्रान्सिस्को में 10 फ़रवरी के दिन दिखाया गया था।
साल 1963 में महात्मा गांधी पर जो फ़िल्म बनी, वह थी ’Nine Hours to Rama'। यह फ़िल्म हॉली वूड के निर्देशक मार्क रॉबसन ने बनाई थी। फ़िल्म में गांधी जी की हत्या से पहले नाथुराम गोडसे ने जो नौ घण्टे बिताये थे, उसके बारे में दिखाया गया था। फ़िल्म की कहानी लिखी थी नेल्सन गिदिंग् जो आधारित थी स्टैन्ली वोल्पर्ट के इसी शीर्षक के किताब पर। फ़िल्म में गांधी जी का रोल निभाया था अभिनेता जे. एस. कश्यप ने और नाथुराम गोडसे का रोल निभाया था Horst Buchholz ने। इसके बाद 1968 में गांधी जी पर एक वृत्तचित्र बनी थी। फ़िल्म का नाम था ’Mahatma - Life of Gandhi (1869 - 1948)'। इस फ़िल्म में गांधी जी के जीवन की कहानी और उनकी अनवरत सत्य की खोज को दिखाया गया है। अंग्रेज़ी में बनी इस श्याम-श्वेत फ़िल्म में गांधी जी की कही बातों का वाचन किया गया था। फ़िल्म की पटकथा, वाचन और निर्देशन किया था विट्ठलभाई ज़वेरी ने। 33 रील की फ़िल्म की लम्बाई थी पाँच घण्टे नौ मिनट। फ़िल्म को ’गांधी नैशनल मेमोरियल फ़ण्” ने ’फ़िल्म्स डिविज़न ऑफ़ इण्डिय” के सहयोग से बनाया था।
1982 में अब तक की सर्वाधिक चर्चित फ़िल्म बनी जिसका नाम था ’गांधी’। रिचर्ड ऐटेन्बोरो की इस फ़िल्म में गांधी की भूमिका निभाई थी बेन किन्सले ने। फ़िल्म गांधी जी के जीवन के विभिन्न संस्मरणों पर आधारित थी। इस फ़िल्म में गांधी जी के जीवन की अलग अलग घटनाओँ को दर्शाया गया। इसके बाद सन् 1993 में एक फ़िल्म आई केतन मेहता की ’सरदार’। फ़िल्म की कहानी सरदार पटेल के जीवन पर आधारित थी। फ़िल्म सरदार पटेल और महात्मा गांधी के आज़ादी के लिए किए गए संघर्ष को दर्शाती है। इसमें दिखाया गया कि शुरुआत में सरदार आज़ादी के लिए गांधी जी की बनाई नीतियों का विरोध किया करते थे, पर गांधी जी के एक भाषण को सुनने के बाद उनकी सोच बदल गई। फ़िल्म में सरदार की भूमिका निभाई थी परेश रावल ने और गांधी जी की भूमिका को निभाने का सौभाग्य मिला था अभिनेता अन्नु कपूर को। इस फ़िल्म में नेहरु का रोल किया था बेंजमिन गिलानी ने।
1996 में फ़िल्मकार श्याम बेनेगल ने भी महात्मा गांधी पर फ़िल्म बनाई ’The Making of Mahatma', फ़िल्म की कहानी फ़ातिमा मीर की लिखी किताब ’The Apprenticeship of Mahatma' पर आधारित थी। फ़िल्म में गांधी जी के साथ दक्षिण अफ़्रीका में बिताए गए समय के बारे में बताया गया है। फ़िल्म में युवा गांधी का रोल किया था अभिनेता रजत कपूर ने। 2000 में जब्बर पटेल निर्मित फ़िल्म ’डॉ. बाबासाहेब अम्बेडकर’ में महात्मा गांधी की भूमिका निभाई अभिनेता मोहन गोखले ने। इस किरदार के लिए मोहन गोखले को काफ़ी वाह-वाही मिली थी। 2000 में ही कमल हासन ने फ़िल्म बनाई ’हे राम’, इस फ़िल्म में भी नाथुराम गोडसे द्वारा महात्मा गांधी की हत्या के बारे में दिखाया गया था। फ़िल्म में गांधी जी की भूमिका निभाई नसीरुद्दीन शाह ने जबकि यह भूमिका सबसे पहले मोहन गोखले और अन्नु कपूर को ऑफ़र की गई थी लेकिन उन दोनो ने इनकार कर दिया था। फ़िल्म में कमल ने साकेत राम की भूमिका निभाई थी जो गांधी जी को मारना चाहता था लेकिन बाद में जिसका मानसिक परिवर्तन हो जाता है।
सन् 2005 में अनुपम खेर ने एक फ़िल्म बनाई ’मैंने गांधी को नहीं मारा’, जिसमें उन्होंने सेवा-निवृत्त हिन्दी प्रोफ़ेसर उत्तम चौधरी का रोल निभाया था जो डीमेन्शिया नामक बीमारी से पीड़ित था और गांधी जी की हत्या के लिए ख़ुद को ज़िम्मेदार समझता था। यहाँ पर यह याद दिलाना ज़रूरी है कि श्याम बेनेगल की चर्चित टीवी धारावाहिक ’भारत एक खोज’ में महात्मा गांधी की भूमिका को अनुपम खेर ने ही निभाया था जो आज तक लोगों को याद है। साल 2006 में विधु विनोद चोपड़ा की फ़िल्म ’लगे रहो मुन्नाभाई’ में भी गांधी जी को एक अलग ढंग से दिखाया गया। इसमें गांधी जी की भूमिका निभाई दिलीप प्रभावलकर ने। 2007 में फिर एक बार गांधी जी पर फ़िल्म बनी ’Gandhi - My Father'। इस फ़िल्म का निर्माण अनिल कपूर ने किया था। फ़िल्म गांधी जी और उनके बेटे हरिलाल के रिश्ते पर आधारित थी। इसमें गांधी जी की भूमिका निभाई थी दर्शन जरीवाला ने और उनके बेटे का रोल किया था अक्षय खन्ना ने। साल 2009 में तेलुगू में ’महात्मा’ नाम से फ़िल्म बनी थी जिसमें श्रीकान्त ने महात्मा का रोल निभाया था। जब भी फ़िल्मों में गांधी जी को कम अवधि वाले रोल में दिखाया गया तो अभिनेता सुरेन्द्र रंजन को उन रोलों के लिए चुना गया। वीर सावरकर, शहीद भगत सिंह, नेताजी सुभाष चन्द्र बोस जैसे महानेताओं पर बनने वाली फ़िल्मों में हमने कई बार सुरेन्द्र रंजन को गांधी जी के किरदार में देखा।
तो यह था जनवरी माह के पाँचवें और अन्तिम शनिवार को प्रस्तुत किया जाने वाला हमारा विशेषांक - 'चित्रशाला'। आज के इस अंक में हमने महात्मा गाँधी के बलिदान दिवस पर उनके किरदारों से सजी फिल्मों की चर्चा। आपको हमारी यह प्रस्तुति कैसी लगी, हमें अवश्य लिखिएगा।
प्रस्तुति : सुजॉय चटर्जी
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