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बातों बातों में - INTERVIEW OF ACTOR, MODEL & FORMER CRICKETER SAJIL KHANDELWAL

 बातों बातों में - 03

फिल्म अभिनेता व पूर्व-क्रिकेटर सजिल खण्डेलवाल से सुजॉय चटर्जी की बातचीत

" मेहनत ज़रूर रंग लाती है..." 






नमस्कार दोस्तों। हम रोज़ फ़िल्म के परदे पर नायक-नायिकाओं को देखते हैं, रेडियो-टेलीविज़न पर गीतकारों के लिखे गीत गायक-गायिकाओं की आवाज़ों में सुनते हैं, संगीतकारों की रचनाओं का आनन्द उठाते हैं। इनमें से कुछ कलाकारों के हम फ़ैन बन जाते हैं और मन में इच्छा जागृत होती है कि काश, इन चहेते कलाकारों को थोड़ा क़रीब से जान पाते। काश, परदे से इतर इनके जीवन के बारे में कुछ मालूमात हो जाती, काश, इनके फ़िल्मी सफ़र की दास्ताँ के हम भी हमसफ़र हो जाते। ऐसी ही इच्छाओं को पूरा करने के लिए 'रेडियो प्लेबैक इण्डिया' ने बीड़ा उठाया है फ़िल्मी कलाकारों से साक्षात्कार करने का। फ़िल्मी अभिनेताओं, गीतकारों, संगीतकारों और गायकों के साक्षात्कारों पर आधारित यह श्रृंखला है 'बातों बातों में', जो प्रस्तुत होता है हर महीने के चौथे शनिवार के दिन। आज दिसम्बर, 2014 के चौथे शनिवार के दिन प्रस्तुत है अभिनेता, मॉडल और पूर्व-क्रिकेटर सजिल खण्डेलवाल से सुजॉय चटर्जी की लम्बी बातचीत के सम्पादित अंश। सजिल खण्डेलवाल अपने क्रिकेट करीयर में रणजी ट्रॉफ़ी खेल चुके हैं, और अब फ़िल्म जगत में उनका पदार्पण होने वाला है फ़िल्म 'Confessions of a Rapist' से जिसमें वो नायक की भूमिका में नज़र आयेंगे। तो आइए स्वागत करते हैं सजिल खण्डेलवाल का। 




सजिल, 'रेडियो प्लेबैक इण्डिया' के मंच पर आपका हार्दिक स्वागत है, और आपका बहुत-बहुत धन्यवाद हमारे इस निमंत्रण को स्वीकार करने के लिए।

धन्यवाद!

आपकी पहली फ़िल्म और वह भी नायक की भूमिका में जल्द ही प्रदर्शित होने जा रही है - Confessions of a Rapist' । इस फ़िल्म के लिए आप हमारी अग्रिम शुभकामनाएँ स्वीकार करें।

बहुत बहुत धन्यवाद!

हम आपकी इस फ़िल्म की विस्तृत चर्चा इस साक्षात्कार में आगे चलकर करेंगे, लेकिन शुरूआत हम शुरू से करना चाहते हैं। तो बताइए अपने जन्म और बचपन के बारे में। कैसे थे बचपन के वो दिन?

मेरी पैदाइश लखनऊ, उत्तर प्रदेश की है। एक बड़े ही इज़्ज़तदार घराने में मेरा जन्म हुआ। शुरू से ही मेरा स्वभाव सरल सहज रहा; मैं चालाक नहीं था पर हर चीज़ का ज्ञान था। कभी कभार शरारतें भी करता था जब दूसरे दोस्त शरारत करते। बचपन के वो दिन भी क्या दिन थे। सबसे पहली बात तो यह कि मैं कभी भी स्कूल ठीक समय पर नहीं पहुँच पाता था, हमेशा लेट। और इसलिए पनिशमेण्ट भी ख़ूब मिलता था मुझे। ट्यूशन में भी वही हाल था। कई बार ऐसा हुआ कि मेरे मम्मी-डैडी को मेरी शिकायत आ जाया करती, और फिर डैडी से मुझे डाँट पड़ती। जैसे जैसे उम्र बढ़ती गई, मैं और ज़्यादा शरारती और होशियार होता चला गया। मेरे टीचर्स हमेशा मेरे मम्मी-डैडी को कहते कि आपका बेटा होशियार और तेज़ है, पर शरारती बहुत है। और यह भी कहते कि अगर सही दिशा मिले तो आपका बेटा कमाल कर सकता है।

अच्छा अपने बचपन के दोस्तों के बारे में भी बताइए?

मेरे बहुत ही कम दोस्त हुआ करते थे, दो या तीन। हम एक साथ पढ़ाई करते, एक साथ खेलते-कूदते, एक साथ क्लास बंक करते, आपस में अपने-अपने मसले भी सुलझाते। मतलब हमने साथ में हर एक पल का भरपूर आनन्द लिया।

आपने बताया कि आप शरारती बहुत थे; तो क्या अपनी शरारत भरी कोई घटना याद है?

जी हाँ, शायद 15 साल पहले की बात होगी। मैंने सीढ़ियों में तेल डाल दिया था ताकि मेरा क्लास टीचर जैसे ही सीढ़ियों से उतरने लगे तो वो गिर पड़े, क्योंकि मुझे वो बिल्कुल भी पसन्द नहीं थीं। पर अफ़सोस (हँसते हुए) कि वो नहीं गिरीं।

अच्छा सजिल, ये तो थी आपके बिल्कुल बचपन के दिनों का हाल, यह बताइए कि आपने क्रिकेट खेलना, मेरा मतलब है, गम्भीरता से क्रिकेट खेलना कब शुरू किया?

गम्भीरता से क्रिकेट खेलना मैंने 8 वर्ष की आयु से शुरू किया था। मेरे डैडी हमेशा यह चाहते थे कि मैं एक क्रिकेटर बनूँ और उसमें बहुत दूर तक जाऊँ। मैं स्कूल में क्रिकेट खेलता था, घर के आस-पड़ोस में दोस्तों के साथ खेलता था, और मैं काफ़ी अच्छा खेल लेता था शुरू से ही। मुझे आउट करना मुश्किल होता था। क्रिकेट को लेकर मेरे अन्दर एक दॄढ़ संकल्प था शुरू से ही। धीरे धीरे मेरे दोस्तों और आस-पड़ोस के लोगों को यह आभास हो गया कि मैं वाक़ई अच्छा खेलता हूँ और उन सब ने मुझसे कहा कि मुझे क्रिकेट को गम्भीरता से लेनी चाहिए। सबने यह भी सुझाव दिया कि मुझे किसी क्रिकेट अकादमी में एक अच्छे कोच से इसकी तालीम लेनी चाहिए। जब मैंने यह बात अपने मम्मी-डैडी को बताई तो मेरे डैडी मुझे के. डी. सिंह बाबू  स्टेडियम ले गए जहाँ मुझे श्री संजीव पन्त और श्री शशिकान्त सिंह जैसे गुरु मिले। और वहीं से शुरू हुआ क्रिकेट का औपचारिक सफ़र।

वाह! उस वक़्त आपके फ़ेवरीट प्लेअर कौन होते थे?

ऑस्ट्रेलिआ के मार्क वा।

सजिल, क्रिकेटर बनने का आपका औपचारिक सफ़र शुरू हो गया। लेकिन एक सफल क्रिकेटर बनने और रणजी ट्रॉफ़ी में जगह बनाने के लिए किस तरह का संघर्ष आपको करना पड़ा, यह हम जानना चाहेंगे।

क्रिकेटर बनने की राह पर चलना आसान नहीं रहा। कड़ी मेहनत करनी पड़ी। सुबह बहुत जल्दी उठ कर दौड़ना पड़ता था अपने आप को फ़िज़िकली फ़िट रखने के लिए। उस वक़्त मैं स्कूल में था। तो वापस लौट कर स्कूल के लिए तैयार होकर जाना पड़ता था। स्कूल के बाद प्रैक्टिस सेशन में जाता; वहाँ से लौट कर पढ़ाई, और फिर आठ घंटे की नींद। यह मेरी दिनचर्या हुआ करती थी। जैसा कि कहा जाता है कि मेहनत रंग ज़रूर लाती है, मेरे साथ भी यही हुआ। मैं कानपुर गया जहाँ उत्तर प्रदेश क्रिकेट ऐसोसिएशन का मुख्य कार्यालय स्थित है। हर साल वहाँ ट्रायल होता है, यानी कि नए खिलाड़ियों की खोज। मुझे भी वहाँ 'Under 12 Trial' में जाने का मौका मिला। मैं बहुत घबराया हुआ था क्योंकि मेरी उम्र उस वक़्त सिर्फ़ दस साल थी। मैं ख़ुशनसीब था जो मुझे एक बहुत ही अच्छा कोच मिला जिन्होंने मुझे हर वक़्त उत्साह दिया और मेरी मदद की। मुझे याद है कि उस वक़्त कानपुर में मैं रो रहा था क्योंकि सीटें बहुत कम थीं और 500 से 1000 खिलाड़ी आए हुए थे। पर मैंने अपने आप को सम्भाला, आत्मविश्वास को वापस लाया और खेल के मैदान में उतर गया। करीब 1000 खिलाड़ियों में 40 का सीलेक्शन हुआ, और मैं उनमें से एक था। उस कैम्प का नाम था  'Uttar Pradesh Under 12 Top 40'। कैम्प चार दिनों का था। फिर मैं 12 खिलाड़ियों के टीम में चुन लिया गया। उन शुरुआती मैचों में मैंने 51 और 70 रन बनाए, यानी कि मेरा प्रदर्शन सराहनीय रहा। फिर मेरा सफ़र शुरू हुआ Under 14, 16, 19, 22 से होते हुए रणजी तक का। मैंने कुछ चार या पाँच मैच खेले, मेरा प्रदर्शन ठीक-ठाक था, बहुत अच्छा भी नहीं और बहुत ख़राब भी नहीं। मैं अपनी बल्लेबाज़ी की शुरुआत ऑफ़-ब्रेक से किया करता था। रणजी ट्रॉफ़ी की टीम में शामिल होने के लिए किसी भी खिलाड़ी को शारीरिक और मानसिक रूप से फ़िट होना पड़ता है, और मैं हमेशा इस तरफ़ ध्यान देता था। और मैंने अपने स्टेट लेवेल 'Under 16' और 'Under 19' के मैचों में क्रम से 56, 78, 43 और 65 स्कोर किया था। मेरे अन्दर हमेशा अच्छी नेट्रुत्व-क्षमता थी, तो ये सब तमाम चीज़ें काम आयी रणजी टीम में शामिल होने में।

बहुत ख़ूब! आपकी बातों से ऐसा लग रहा है कि आप एक अच्छा क्रिकेटर बनने की क्षमता रखते थे। फिर ऐसा क्या हुआ कि आपने क्रिकेट को अलविदा कह दिया और मॉडेलिंग की दुनिया में आ गए?

मैं कभी अपना प्रोफ़ेशन बदलना नहीं चाहता था, मैं एक क्रिकेटर ही रहना चाहता था, पर वह कहते हैं ना कि नसीब में जो रहता है वही होता है। सबसे बड़ी बात जो मेरे साथ हुई वह यह कि मैंने अपने पीक टाइम में अपने डैडी को हमेशा के लिए खो दिया। और इससे क्रिकेट खेलने की जो प्रेरणा मुझे उनसे मिलती थी, वह ख़तम हो गई, और मेरा इन्टरेस्ट भी ख़तम हो गया।

बहुत ही अफ़सोस की बात है! क्या उम्र रही होगी आपकी उस वक़्त?

मैं उस वक़्त 19 साल का था।

बहुत ही कठिन समय रहा होगा यकीनन। फिर मॉडेलिंग और फ़ैशन जगत में क़दम रखने के लिए आपने अपने आप को किस तरह से तैयार किया?

मैं यह मानता हूँ कि किसी भी प्रोफ़ेशन में सफलता प्राप्त करने के लिए कड़ी मेहनत और लगन ज़रूरी होता है। अगर आप फ़ैशन जगत में एन्टर कर रहे हो तो आपका चेहरा, शारीरिक गठन, बॉडी लैंगुएज, कम्युनिकेशन स्किल्स बहुत ज़रूरी होता है। और अपने आप पर भरोसा होना भी बेहद ज़रूरी है; मन में यह विश्वास बनाए रखना कि चाहे कोई भी रोल हो, उसे आप निभा सकते हो। यह ज़रूर है कि एक नवागन्तुक होने की वजह से आप अपने काम और किरदार ख़ुद चुन नहीं सकते, पर आपको अपने आप को हर किरदार और हर काम के लिए तैयार रहना है। मैं हमेशा आइने के सामने घंटों खड़े हो कर प्रैक्टिस किया करता था।

क्रिकेटर बनने का स्ट्रगल तो आपने बताया था, मॉडल बनने के लिए भी ज़रूर एक बार फिर से स्ट्रगल करना पड़ा होगा?

पहली बात तो यह कि मैं बेशक़ मॉडेलिंग की दुनिया में आया, पर मेरा मक़सद एक मॉडल बनना नहीं था। मैं शुरू से ही एक अभिनेता बनना चाहता था। मैंने 21 वर्ष की आयु में अपनी ग्रैजुएशन की पढ़ाई पूरी करने के बाद ही मॉडेलिंग्‍ शुरू की। मैं अक्सर मॉडल कोर्डिनेटर्स के पीछे भागता रहता, उन्हें अपनी तस्वीरें दिखाता, और फ़ॉलो-अप करता रहता। यह एक 24-घंटों का प्रोफ़ेशन है। इसमें आपका शारीरिक गठन, उच्चता, चेहरे की बनावट, फ़ोटोजेनिक होना, ये सब चीज़ें ज़रूरी होती हैं।

कहते हैं कि ग्लैमर की दुनिया के इन चकाचौंध के पीछे का जो अन्धेरा है वह लोगों को दिखाई नहीं देता। मेरा मतलब है कि इस लाइन में सुनने में आता है कि नवागन्तुक युवाओं का शोषण और उत्पीड़न होता है। आपके क्या विचार हैं इस बारे में?

मैं बस इतना कहना चाहता हूँ कि यह डीपेन्ड करता है कि इस तरह की चीज़ों को कोई कितनी समझदारी और होशियारी से हैन्डल कर सकता है। यह सच है कि लोग इस प्रोफ़ेशन के बारे में बहुत सी बातें करते हैं, पर मैं यही कहना चाहता हूँ कि हमें प्रैक्टिकल होना चाहिए और सिर्फ़ अपनी मेहनत पर भरोसा रखना चाहिए, बस! किसी से कुछ पाने की उम्मीद नहीं रखनी चाहिए; अगर आपमें वह बात है, अगर आपकी मेहनत में सच्चाई है तो काम ज़रूर मिलेगा। वैसे इस प्रोफ़ेशन में उतार-चढ़ाव बहुत हैं। बहुत से लड़के लड़कियों को समझौता करने को कहा जाता है। बहुत धोखेबाज़ लोग भी भर गए हैं इस लाइन में जो युवा लड़कों और लड़कियों को अपना शिकार बनाते हैं। ऐसे बहुत सी घटनाएँ हैं जो यहाँ कहना मुमकिन नहीं।

जी, मैं समझ सकता हूँ। आपकी इन बातों से युवा-वर्ग को जो सन्देश मिलना था, वह मिल चुका होगा। अच्छा अब यह बताइए कि आपने अपना पहला रैम्प शो किस तरह से हासिल किया? इसके बारे में कुछ बताइए?

वह मेरे कॉलेज का ही शो था जहाँ मुझे Mr. Prince का ख़िताब दिया गया। फिर उसके बाद मेरा पहला डिज़ाइनर शो था मुम्बई में उमैर ज़फ़र का।

दिल की क्या हालत रही होगी उस पहले पहले शो को करते हुए?

मुझे घबराहट नहीं हुई, पर मैं उत्तेजित ज़रूर था। मैंने रिहर्सल्स ठीक तरह से किए और स्टेज को हिट करने के लिए तैयार हो गया। (हँसते हुए)

यानी वही आत्मविशास एक बार फिर नज़र आया, जो क्रिकेट के मैदान में दिखता था। फिर किन किन डिज़ाइनर्स और ब्रैण्ड्स के फ़ैशन शोज़ आपने किए?

उमैर ज़फ़र के साथ
उमैर ज़फ़र के शोज़ मैं नियमित रूप से करता हूँ। मुम्बई के ही डिज़ाइनर ख़ुशीज़ के शोज़ मैंने किए। लखनऊ के डिज़ाइनर अभिजीत साईप्रेम के लिए रैम्प शोज़ मैंने किए। दिल्ली के डिज़ाइनर सदन पाण्डे के फ़ैशन शो में भी जल्दी ही काम करने जा रहा हूँ। इस तरह से जब जो शोज़ आ रहे हैं मैं करता चला जा रहा हूँ।

प्रिन्ट मीडिया में आपका पहला विज्ञापन कौन सा था?

मेरा पहला प्रिन्ट-शूट 'मदर्स डे प्रोमो शूट' था ब्लैकबेरी फ़ोन के लिए। वह एक बहुत बड़ा शूट था जिसके लिए 117 लड़के ऑडिशन के लिए आए हुए थे। सभी की टेस्ट ली गई और उनमें से मैं सीलेक्ट हुआ। मुझे अपने आप पर बहुत गर्व महसूस हुआ, और मेहनताना भी बहुत अच्छा मिला मुझे। उस ऐड को करते हुए मुझे बहुत मज़ा आया पर मैं घबराया हुआ था। पर यह ज़िन्दगी की सच्चाई ही है कि जब आप अपना 100% देते हो, तभी उसका परिणाम भी उतना ही अच्छा होता है।

और कौन कौन से विज्ञापन में आप नज़र आए हैं?

टेलीविज़न पर जो ऐड्स आते हैं, उनमें से 99% स्थापित फ़िल्म कलाकारों द्वारा किए जाते हैं, या फिर सीनियर टीवी कलाकार उन्हें करते हैं। मैंने प्रिन्ट शूट्स किए हैं लेनिन, ग्रासिम सूटिंग्स, वेडिंग टाइम्स मैगज़ीन, ब्लैकबेरी जैसे ब्राण्ड्स के लिए। फ़ैशन मैगज़ीन के कवर पेज पर भी मैं आ चुका हूँ। कैटलॉग शूट्स भी किए हैं। अब तक मुझे अच्छा रेस्पॉन्स मिला है। अगले साल जनवरी-फ़रवरी में कुछ अच्छे काम मुझे मिल रहे हैं।

एक मॉडल के लिए एक नियमित दिनचर्या का होना बहुत आवश्यक होता है शारीरिक रूप से स्वस्थ रहने के लिए। आप किस तरह से इस बात को ध्यान में रखते हैं?

दिनचर्या... मेरा दिन शुरू होता है सुबह 9 या कभी कभी 10 बजे से। मैं हेवी ब्रेकफ़ास्ट करता हूँ और फिर छोटे-छोटे मील्स लेता हूँ लंच, मिड-मील, डिनर के साथ साथ। मैं एक फ़िटनेस-फ़्रीक हूँ, ईश्वर का मुझ पर आशीर्वाद ही रहा है कि मुझे एक अच्छा शरीर मिला है। और यह शूट पर भी डीपेन्ड करता है। और एक बात यह भी है कि आजकल सिर्फ़ इस प्रोफ़ेशन के लिए ही फ़िट रहना ज़रूरी नहीं बल्कि आजकल की ज़िन्दगी में हर किसी को फ़िट रहना चाहिए। जब मैं जिम जाता हूँ तो 40 मिनट वेट ट्रेनिंग करता हूँ और 20 मिनट कार्डियो और रनिंग करता हूँ।

आपने अपने फ़ूड-हैबिट की बात की; इसके बारे में और ज़रा सा विस्तार से बताइए?

मैं बहुत ही पौष्टिक आहार लेता हूँ। ब्रेकफ़ास्ट में एक सेब, दो केले, दो अन्डे का सफ़ेद हिस्सा और एक प्रोटीन शेक विथ मल्टिविटामिन लेता हूँ। लंच में एक कटोरी दाल, तीन रोटियाँ, हरी सब्ज़ियाँ, दही और चावल। जिम से निकल कर दूध और अन्डे लेता हूँ। डिनर में दो रोटियाँ और सब्ज़ियाँ लेता हूँ। दिन में तीन लिटर पानी पीता हूँ और आठ घंटे सोता ज़रूर हूँ जो एक स्वस्थ जीवन के लिए बहुत ज़रूरी होता है।

मॉडल से एक अभिनेता कैसे बने आप? क्या पहले भी कभी आपने कहीं अभिनय किया था? 'Confessions...' फ़िल्म का रोल आपको कैसे मिला?

मेरे हिसाब से हर किसी के अन्दर एक अभिनेता छुपा हुआ है। आपको बस इसका अहसास होना चाहिए, यही मेरे लिए अभिनय है। मैंने इससे पहले कभी कहीं अभिनय नहीं किया था। जैसे ही इस फ़िल्म की और इस रोल की ख़बर सुनी मुझे ऐसा लगा कि यह रोल सिर्फ़ और सिर्फ़ मेरे लिए है और मैं यह रोल किसी भी अन्य नए अभिनेता से बेहतर निभा सकता हूँ। यह रोल बोल्ड था और उतना ही चुनौतीपूर्ण भी। मैंने ’लूक टेस्ट’ दिया, फिर मुझे ऑडिशन का बुलावा आया। दस ऑडिशन देने के बाद आख़िरकार इस ऑडिशन में मैं चुन लिया गया। प्रोडक्शन टीम ने मुझे सुबह सवा दस बजे फ़ोन किया और उनके दफ़्तर में जाकर उनसे मिलने को कहा। मैं वहाँ पहुँचा तो निर्देशक महोदय ने कहा कि सजिल, बधाई हो, आप फ़िल्म में नायक के रोल के लिए चुन लिए गए हो। मुझे जैसे एक झटका लगा, कुछ देर के लिए मैं बिल्कुल ख़ामोश सा हो गया और सोचने लगा कि कहीं मैं सपना तो नहीं देख रहा। फिर मुझे यकीन हुआ कि अपने जीवन के अब तक का सबसे बड़ा मुहुर्त मैं अनुभव कर रहा था। मुझे इतनी ख़ुशी हुई कि क्या बताऊँ। मैंने तुरन्त अपनी मम्मी को फ़ोन किया और उन्हें यह ख़ुशख़बरी दी।

वाह! वाक़ई बड़ा ही सुखद अनुभव रहा होगा। अच्छा सजिल, अब आप इस फ़िल्म के बारे में ज़रा विस्तार में बताइए कि फ़िल्म की विषयवस्तु क्या है?

जैसा कि फ़िल्म के शीर्षक से ही प्रतीत होता है कि फ़िल्म की कहानी बलात्कार पर केन्द्रित है। मैं इस फ़िल्म में एक दोहरा-किरदार निभा रहा हूँ। पहले किरदार में मेरी थोड़ी सी दाढ़ी है, एक पोनी टेल है, और पतला शरीर है। और दूसरे किरदार में मैं क्लीन शेव और सामान्य छोटे बालों वाला हूँ। फ़िल्म की शूटिंग् दिल्ली, गोरखपुर और कानपुर में हुई है। यह फ़िल्म समाज को एक सशक्त सन्देश देगा बलात्कार विरोधी अभियान के बारे में, जो आज के भारतीय समाज के सबसे जघन्य अपराधों में से एक है। साथ ही नारी सुरक्षा का भी सन्देश है इस फ़िल्म में। मैं इससे ज़्यादा इस वक़्त नहीं बता सकता फ़िल्म के बारे में। बस इतना कहूँगा कि फ़िल्म में दो लड़कियाँ हैं जो मुख्य किरदारों में हैं, एक जो मेरी बहन का रोल निभा रही है और दूसरी जो एक रिपोर्टर है। मेरी ही तरह इस फ़िल्म के निर्देशक भी फ़िल्म जगत में अपना पहला क़दम रख रहे हैं। He is a chilled out guy and also very young. उन्हें भी इस फ़िल्म से बहुत सारी उम्मीदें हैं और उनका यह मानना है कि यह फ़िल्म हर किसी को पसन्द आएगी।

फ़िल्म के सह-कलाकारों और ख़ास कर निर्देशक के साथ आपकी ट्युनिंग् कैसी रही? पहली फ़िल्म होने की वजह से आपको बहुत कुछ सीखने को भी मिला होगा न?

मुझे पूरी टीम यूनिट के साथ काम करते हुए बहुत ही मज़ा आया, ख़ूब मस्ती की। साथी कलाकारों और निर्देशक साहब के साथ काम करके बहुत अच्छा लगा। इस यूनिट के साथ जुड़ने का जो मौका मुझे मिला, इसे मैं अपनी ख़ुशक़िस्मती समझता हूँ। भविष्य में फिर कभी मौका मिले तो इस यूनिट का दोबारा हिस्सा बनना चाहूँगा। हम जैसे एक ही परिवार के सदस्य बन गए थे। इस फ़िल्म को करते हुए मुझे बहुत ही ख़ूबसूरत तजुर्बे हुए, पर मैं यह भी कहना चाहता हूँ कि एक अभिनेता बनने के लिए प्रतिबद्धता के साथ-साथ भाग्य भी साथ में होना चाहिए। जब बात ना बन रही हो और टेक के बाद टेक हो रहे हों तो आदमी झल्ला जाता है। और कभी-कभी ऐसा वक़्त भी आता है कि आपको लगता है कि सबसे उपर हो। शूटिंग के दौरान पूरे यूनिट की निगाह आप पर होती है। तो कभी कोई शॉट इतना बेकार होता है कि आप झल्ला जाते हो। फिर यह भी कहा गया है कि practice makes a man perfect। मुम्बई में हर रोज़ लाखों लोग क़दम रखते हैं फ़िल्म जगत में अपने सपनों को पूरा करने के लिए। पर बहुत कम लोग ही कुछ कर पाते हैं। मैं ख़ुशनसीब हूँ कि मुझे यह मौका मिला और भविष्य में भी मैं अच्छे प्रोजेक्ट्स में काम कर सकूँ, उसकी कोशिश मैं करता रहूँगा। अभी तो करीअर की बस शुरूआत ही है।

और हम आपको इसके लिए ढेरों शुभकामनाएँ देते हैं।

धन्यवाद!

अच्छा सजिल, इस फ़िल्म की पृष्ठभूमि से तो आपने हमें अवगत करवाया, लेकिन हमने ऐसा सुना है कि फ़िल्म को लेकर कोई विवाद चल रहा है और इसके रिलीज़ की भी तारीख़ अभी निर्धारित नहीं हो पायी है, क्या यह सही है?

जी हाँ, फ़िल्म की रिलीज़ डेट अभी तय नहीं हो पायी है। फ़िल्म विवादित है, पर मेरा इसके बारे में कुछ कहना ठीक नहीं रहेगा। बस इतना कहूँगा कि कि बलात्कार जैसे सेन्सिटिव विषय पर होने की वजह से सेन्सर बोर्ड ने अभी तक अनुमति नहीं दी है। पर जल्दी ही मामला निपट जाएगा और उसके बाद ही रिलीज़ डेट तय की जाएगी।

क्या आपको यह लगता है कि यह विवाद आपके मात्र शुरू हुए करीअर पर बुरा असर कर सकता है? या फिर इस विवाद से फ़िल्म को पब्लिसिटी मिलने की उम्मीद दिखाई देती है?

कोई भी विवाद किसी कलाकार को चोट नहीं पहुँचा सकता। कलाकार का विवाद से क्या लेना देना? कलाकार विवाद के लिए ज़िम्मेदार नहीं होता। और रही पब्लिसिटी स्टण्ट की बात, तो इसका भी कोई मतलब नहीं बनता क्योंकि इस फ़िल्म से कई लोगों का करीअर शुरू होने जा रहा है। मैं बस इतना कहना चाहता हूँ कि हर किसी को पता है कि क्लास स्थायी होता है, मुझे ऑफ़र्स मिल रहे हैं। मेरी इच्छा है कि भविष्य में मुझे अच्छे-अच्छे निर्देशकों के साथ काम करने का मौका मिले। फ़िलहाल तो जैसे ही सेन्सर बोर्ड का यह मामला सुलझ जाता है, हम फ़िल्म का प्रोमोशन शुरू करेंगे और इसकी रिलीज़ के लिए जुट जायेंगे।

जी बिल्कुल! जैसा कि आपने बताया कि फ़िल्म का विषय बोल्ड है, तो क्या अपनी पहली फ़िल्म के लिए ऐसे बोल्ड सब्जेक्ट पर काम करने से आपको डर नहीं लगा? एक पल के लिए भी आपने यह नहीं सोचा कि यह आपके हित में नहीं भी हो सकता है?

यह सच है कि मैंने एक बोल्ड करैक्टर निभाया है इस फ़िल्म में और बहुत चुनौतीपूर्ण भी रहा। पर कोई भी अभिनेता ऐसे रोल करने से डरेगा क्यों भला? अगर आपको एक सफल अभिनेता बनना है तो हर तरह के किरदार आपको निभाने पड़ेंगे। और यह रोल तो आज के समाज को एक बहुत ही ज्वलन्त मुद्दे को लेकर एक बड़ा सन्देश दे रहा है। हाल ही में दिल्ली में हमने एक भयानक बलात्कार का हादसा देखा जिसने पूरे देश को ही नहीं बल्कि पूरी दुनिया को हिला कर रख दिया। उसके बाद भी बलात्कार के मामले कम नहीं हुए हैं। हमारा देश, हमारी सरकार क्या क़दम उठा रही है इस तरफ़, यही सब कुछ हमने इस फ़िल्म में कैप्चर किया है। फ़िल्म के क्लाइमैक्स सीन में हम एक सशक्त सन्देश देने जा रहे हैं। मैं इस फ़िल्म से बहुत ख़ुश हूँ और हम सभी का यह मानना है कि देशवासियों को यह फ़िल्म पसन्द आएगी, ना कि वो इस फ़िल्म को नकारात्मक्ता से देखेगी।

चलिए इस फ़िल्म के बारे में तो हमने जाना, अब यह बताइए कि आप एक अभिनेता के रूप में किस तरह से पनपना चाहते हैं? आपकी किस तरह की उम्मीदें हैं इस फ़िल्म इंडस्ट्री से?

यहाँ पर पनपने का जो सबसे उत्तम तरीका है, वह है कड़ी मेहनत और अपने आप पर भरोसा। मुझे बहुत कुछ करना है आगे, मैं बहुत तरह के किरदार निभाना चाहता हूँ, सिर्फ़ नायक की भूमिका में ही नहीं बल्कि खलनायक और हास्य अभिनेता के रूप में भी अपनी पहचान बनाना चाहता हूँ। मैं मधुर भण्डारकर जी के साथ काम करना चाहता हूँ क्योंकि वो मेरे सबसे पसन्दीदा निदेशक रहे हैं। और मेरे आइडॉल हैं शाहरुख़ ख़ान। वो मेरे सब कुछ हैं।

सजिल, यह बताइए कि पहले क्रिकेट, फिर मॉडलिंग्, उसके बाद फ़िल्म अभिनेता, अब इसके बाद क्या??

कुछ भी नहीं (हँसते हुए), मैं ख़ुशनसीब हूँ कि क़िस्मत ने मुझे इतना कुछ करने का मौका दिया है। पर इस वक़्त मैं सिर्फ़ और सिर्फ़ अभिनय को लेकर सीरियस हूँ और इसे ही अपना करीअर मानता हूँ और इसी पर अपना पूरा ध्यान लगा रहा हूँ।

आप एक युवा क्रिकेटर, मॉडल और अभिनेता हैं, और निश्चित रूप से युवाओं के लिए एक लाइट-हाउस की तरह भी हैं। क्या सन्देश देना चाहेंगे आप उन युवाओं को जो आप ही की तरह एक क्रिकेटर या अभिनेता/मॉडल बनना चाहते हैं?

मैं सिर्फ़ इतना कहना चाहता हूँ कि किसी भी शॉर्ट-कट में विश्वास नहीं करनी चाहिए और ना ही किसी से कोई भी उम्मीद रखनी चाहिए। अपने जीवन में आप जो भी करना चाहें, उस तक पहुँचने के लिए कड़ी मेहनत कीजिए और अपना पूरा ध्यान उस पर लगाए रखिए। ईश्वर पर भरोसा कीजिए, वो आपको फल ज़रूर देगा। हमेशा ख़ुश रहिए और चीज़ों को हल्के अंदाज़ में ग्रहण कीजिए। कोई भी प्रोफ़ेशन आप चुनिए, क्रिकेट, मॉडलिंग् या ऐक्टिंग्, सभी में आपको कड़ी मेहनत करनी होगी। सफलता अगर पाना है तो कोई भी शॉर्ट-कट नहीं चलेगा, there is no shortcut to success, मैं ऐसा मानता हूँ।

बहुत अच्छी बात बताई आपने और यह बिल्कुल सही भी है। और सजिल, अन्त में हम यह जानना चाहेंगे कि सजिल उस वक़्त क्या कर रहे होते हैं जब वो ना तो अभिनय कर रहे होते हैं, ना ही मॉडलिंग और ना ही जिम में वर्क आउट?

मुझे बहुत सी चीज़ों का शौक है, जैसे कि मैं क्रिकेट खेलता हूँ अपने निकट के दोस्तों के साथ जब भी मुझे समय मिलता है। बान्द्रा में या फिर जब मैं लखनऊ में होता हूँ तो दोस्तों के साथ हैंग-आउट करता हूँ। मैं अपने प्ले-स्टेशन में भी ख़ूब गेम्स खेलता हूँ। मुझे गाड़ियाँ चलाने का भी बड़ा शौक है। और अपने परिवार के साथ ढेर सारा समय बिताना मुझे बेहद अच्छा लगता है।

बहुत बहुत शुक्रिया सजिल जो आपने हमें अपना कीमती समय दिया और अपने बारे में, और अपनी आने वाली फ़िल्म के बारे में इतना कूछ बताया। आपको फ़िल्म की कामयाबी के लिए ढेरों शुभकामनाएँ देते हुए आपसे विदा लेते हैं, नमस्कार!

आपको बहुत बहुत धन्यवाद, ढेर सारा प्यार, नमस्कार।


आपको हमारी यह प्रस्तुति कैसी लगी, हमे अवश्य बताइएगा। आप अपने सुझाव और फरमाइशें ई-मेल आईडी cine.paheli@yahoo.com पर भेज सकते है। अगले माह के चौथे शनिवार को हम एक ऐसे ही भूले-विसरे फिल्म कलाकार के साक्षात्कार के साथ उपस्थित होंगे। अब हमें आज्ञा दीजिए।  



प्रस्तुति : सुजॉय चटर्जी 



Comments

Neeraj Razdan said…
Aapse jude hone par humein garv hai. Aap saphal ho bhagyashali ho surprasiddh ho vijayi ho yahi shubhkaamnaaein hain.
Unknown said…
Congrat,,, i luv it so much,,, looking GREAT!!!
Anonymous said…
awesome... good job. great story covered.. cheers!
Unknown said…
Superb bro.....

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सुर संगम - 05 भारतीय संगीत की विविध विधाओं - ध्रुवपद, ख़याल, तराना, भजन, अभंग आदि प्रस्तुतियों के माध्यम से सात दशकों तक उन्होंने संगीत प्रेमियों को स्वर-सम्मोहन में बाँधे रखा. भीमसेन जोशी की खरज भरी आवाज का वैशिष्ट्य जादुई रहा है। बन्दिश को वे जिस माधुर्य के साथ बदल देते थे, वह अनुभव करने की चीज है। 'तान' को वे अपनी चेरी बनाकर अपने कंठ में नचाते रहे। भा रतीय संगीत-नभ के जगमगाते नक्षत्र, नादब्रह्म के अनन्य उपासक पण्डित भीमसेन गुरुराज जोशी का पार्थिव शरीर पञ्चतत्त्व में विलीन हो गया. अब उन्हें प्रत्यक्ष तो सुना नहीं जा सकता, हाँ, उनके स्वर सदियों तक अन्तरिक्ष में गूँजते रहेंगे. जिन्होंने पण्डित जी को प्रत्यक्ष सुना, उन्हें नादब्रह्म के प्रभाव का दिव्य अनुभव हुआ. भारतीय संगीत की विविध विधाओं - ध्रुवपद, ख़याल, तराना, भजन, अभंग आदि प्रस्तुतियों के माध्यम से सात दशकों तक उन्होंने संगीत प्रेमियों को स्वर-सम्मोहन में बाँधे रखा. भीमसेन जोशी की खरज भरी आवाज का वैशिष्ट्य जादुई रहा है। बन्दिश को वे जिस माधुर्य के साथ बदल देते थे, वह अनुभव करने की चीज है। 'तान' को वे अपनी चे

‘बरसन लागी बदरिया रूमझूम के...’ : SWARGOSHTHI – 180 : KAJARI

स्वरगोष्ठी – 180 में आज वर्षा ऋतु के राग और रंग – 6 : कजरी गीतों का उपशास्त्रीय रूप   उपशास्त्रीय रंग में रँगी कजरी - ‘घिर आई है कारी बदरिया, राधे बिन लागे न मोरा जिया...’ ‘रेडियो प्लेबैक इण्डिया’ के साप्ताहिक स्तम्भ ‘स्वरगोष्ठी’ के मंच पर जारी लघु श्रृंखला ‘वर्षा ऋतु के राग और रंग’ की छठी कड़ी में मैं कृष्णमोहन मिश्र एक बार पुनः आप सभी संगीतानुरागियों का हार्दिक स्वागत और अभिनन्दन करता हूँ। इस श्रृंखला के अन्तर्गत हम वर्षा ऋतु के राग, रस और गन्ध से पगे गीत-संगीत का आनन्द प्राप्त कर रहे हैं। हम आपसे वर्षा ऋतु में गाये-बजाए जाने वाले गीत, संगीत, रागों और उनमें निबद्ध कुछ चुनी हुई रचनाओं का रसास्वादन कर रहे हैं। इसके साथ ही सम्बन्धित राग और धुन के आधार पर रचे गए फिल्मी गीत भी सुन रहे हैं। पावस ऋतु के परिवेश की सार्थक अनुभूति कराने में जहाँ मल्हार अंग के राग समर्थ हैं, वहीं लोक संगीत की रसपूर्ण विधा कजरी अथवा कजली भी पूर्ण समर्थ होती है। इस श्रृंखला की पिछली कड़ियों में हम आपसे मल्हार अंग के कुछ रागों पर चर्चा कर चुके हैं। आज के अंक से हम वर्षा ऋतु की

काफी थाट के राग : SWARGOSHTHI – 220 : KAFI THAAT

स्वरगोष्ठी – 220 में आज दस थाट, दस राग और दस गीत – 7 : काफी थाट राग काफी में ‘बाँवरे गम दे गयो री...’  और  बागेश्री में ‘कैसे कटे रजनी अब सजनी...’ ‘रेडियो प्लेबैक इण्डिया’ के साप्ताहिक स्तम्भ ‘स्वरगोष्ठी’ के मंच पर जारी नई लघु श्रृंखला ‘दस थाट, दस राग और दस गीत’ की सातवीं कड़ी में मैं कृष्णमोहन मिश्र, आप सब संगीत-प्रेमियों का हार्दिक अभिनन्दन करता हूँ। इस लघु श्रृंखला में हम आपसे भारतीय संगीत के रागों का वर्गीकरण करने में समर्थ मेल अथवा थाट व्यवस्था पर चर्चा कर रहे हैं। भारतीय संगीत में सात शुद्ध, चार कोमल और एक तीव्र, अर्थात कुल 12 स्वरों का प्रयोग किया जाता है। एक राग की रचना के लिए उपरोक्त 12 में से कम से कम पाँच स्वरों की उपस्थिति आवश्यक होती है। भारतीय संगीत में ‘थाट’, रागों के वर्गीकरण करने की एक व्यवस्था है। सप्तक के 12 स्वरों में से क्रमानुसार सात मुख्य स्वरों के समुदाय को थाट कहते है। थाट को मेल भी कहा जाता है। दक्षिण भारतीय संगीत पद्धति में 72 मेल का प्रचलन है, जबकि उत्तर भारतीय संगीत में दस थाट का प्रयोग किया जाता है। इन दस थाट