स्मृतियों के स्वर - 13
गायिका अनुराधा पौडवाल के बचपन और शुरुआती दौर की स्मृतियाँ
सूत्र: 'सरगम के सितारे', विविध भारती
प्रसारण तिथि: 18 अगस्त 2007
सबसे पहले तो हम यह जानना चाहते हैं कि अनुराधा जी को कब पता चला कि वो इतना सुन्दर गाती हैं। परिवार में गाने का माहौल था? कैसे इतना सुरीला गला आपने पाया?
मुझे गाने का तो बचपन से ही शौक रहा है, और बहुत ही छुटपन से, मतलब, मुझे याद भी नहीं है कि किस उम्र से मुझे गाना अच्छा लगने लगा, लेकिन हमेशा से मुझे, मतलब, म्युज़िक की मुझे, बहुत पसन्द था और विशेष रूप से मेरी माताजी जो हैं, मिसेस नादकर्नी, तो वो हमेशा से उनको गाने का बहुत शौक था और वो ओमकारनाथ जी की शिष्या थीं। लेकिन जैसा कि आप जानते हैं कि उन दिनों में वो म्युज़िक करीयर को परस्यू नहीं कर पायीं, तो जब उन्होंने देखा कि मुझे बहुत शौक है गाने का तो उनकी बहुत तमन्ना थी कि मैं सिंगर बनूँ। वो कोशिश करके कहीं मुझे प्रोग्राम में ले जाना, तो उनकी हमेशा तमन्ना यही रही कि मैं एक सिंगर बनूँ। और क्योंकि जिस फ़ैमिली को मैं बिलांग करती हूँ, मतलब, मेरे फ़ादर के साइड से, मतलब, उन्हें किसी को गाने का शौक नहीं था। उनका बहुत ज़्यादा ध्यान एजुकेशन का था, वो हमेशा कहते थे कि ठीक है, एक शौकिया गाने तक ठीक है, लेकिन मेन एडुकेशन होना चाहिये। लेकिन जहाँ-जहाँ पे मौके मिलते थे, वहाँ-वहाँ पे मैं स्टेज प्रोग्राम्स करती थी।
तो पहले आपने स्कूल में गाया?
नहीं, पहली बार जो मैंने गाया, मतलब, महिला-मंडल होती है न, तो मेरी मासी, वो एक मेम्बर थीं महिला-मंडल की, तो जब मैं पाँच साल की थी तो पहला परफ़ॉर्मैन्स वहाँ किया था। फिर जैसे गणपति उत्सव जैसे होते हैं, उस तरह के प्रोग्राम्स मैंने काफ़ी किये।
अच्छा आपको वह गीत याद होगा जो पाँच साल की उम्र में आपने गाया था महिला-मंडल के उस शो में?
एक मराठी गीत था, "आलो शरण तुला भगवन्ता घेइ कुशित तुऴ्या भगवन्ता..."
अच्छा जब इतनी प्रशंसा मिली होगी, आप इतनी छोटी थीं कि आपको तो पता नहीं होगा कि माँ ने कहा कि गाना गाओ तो गा दिया होगा, लेकिन कभी दिल में यह नहीं आया होगा कि आगे मैं यही बनूंगी, यानी गायिका?
जी, वही मैं कहने जा रही थी, कि वैसे तो हमने, मतलब मैंने कभी मन में ऐसा नहीं सोचा था कि मुझे सिंगर ही बनना है क्योंकि आज आप देखेंगे कि, almost if not all, हर दूसरे घर का कोई न कोई फ़िल्म से या टेलीविज़न से या रेडियो से जुड़ा हुआ है, नहीं तो DJ है या कम्पेयरर है, किसी न किसी रूप में है। तो उस वक़्त ऐसा नहीं था। तो हमेशा हम लोगों को ऐसा लगता कि अच्छे घर के लोग फ़िल्म इंडस्ट्री में नहीं जाते हैं वगेरह। शादी तक तो सवाल ही नहीं उठता कि इस बारे में सोचूँ लेकिन जब मेरी शादी अरुण पौडवाल जी से हुई और वो इसी इंडस्ट्री के थे और he was a musician, music director भी थे, तो उसके बाद फिर भी नैचरली और बिल्कुल बाइ चान्स मैं इस इंडस्ट्री में आयी हूँ। उनको पसन्द तो था लेकिन उन्होंने भी ऐसे नहीं सोचा था कि पत्नी कोई प्लेबैक सिंगर बने। लेकिन उनके पिताजी जो थे, यानी मेरे ससुर जी, उनको बहुत ज़्यादा शौक था। मैं तो यह कहूंगी कि उनको शौक क्या, उनका तो सपना था कि मैं प्लेबैक सिंगर बनूँ। और यह बड़ी रेयर चीज़ है क्योंकि माता-पिता के तो बहुत ज़्यादा सपने होते हैं कि उनकी बेटी कुछ बने लेकिन यह बहुत रेअर केस होती है कि सास-ससुर इनको यह तमन्ना हो कि मेरी बहु एक दिन एक सिंगर बने।
जो कि बहुत सौभाग्य की बात है!
बिल्कुल बिल्कुल! और मुझे लगता है कि आज जो भी कुछ मैं हूँ तो मेरी माँ की तो ब्लेसिंग्स है ही, लेकिन साथ-साथ मेरे ससुर जी, सासु माँ, मेरे गुरु, उनकी जो तमन्ना थी उसकी वजह से यह सच हुआ है।
बड़ों का आशिर्वाद तो हमेशा साथ देता है!
बिल्कुल बिल्कुल!
अनुराधा जी, यह पूछना चाहूंगी कि आपने सीखना कब शुरू किया शास्त्रीय संगीत?
बचपन से जेनरली महाराष्ट्रियन घरों में आपने तो देखा होगा कि संगीत सिखाते हैं, तो इससे मुझे लगता है कि शायद 6-7 साल की थी, तब से मैंने गाना सीखना शुरु किया, सीखना मतलब क्या, वह क्लास में जाते थे और उस तरह का। ऐसे कि गुरु करके, ऐसा तो था नहीं, ऐट नो स्टेज।
ऐसा कहा जाता है कि हमने कई लोगों से बात भी की है जो गायक हैं, कि वो कहते हैं कि पूरी तरह ध्यान लगाते हैं, जो गायक होते हैं, गायिका होते हैं, सब कुछ भूल के अपने गुरु के साथ संगीत, और आपके साथ ऐसा नहीं हुआ?
ऐसा ऐक्चुअली होना चाहिये, लेकिन मेरे साथ ऐसा संभव इसलिए नहीं हुआ क्योंकि मैं हमेशा, मतलब पहले मैं फ़मिली में आयी, मेरी अपनी फ़ैमिली, मेरे बच्चे, पति, हमारी जॉयन्ट फ़ैमिली थी, तो उस वजह से थोड़ा जितना मैं रियाज़ कर सकती थी, उतना मैंने किया। लेकिन यह देखते हुए मुझे लगता है कि ईश्वर ने मुझे संगीत से नवाज़ा है और मुझे अपने आप को बहुत लकी समझती हूँ कि बहुत बड़ी कृपा है परमात्मा की। as a house wife, as a daughter, as a mother, मेरी responsibilities बहुत ज़्यादा हैं। पर जैसे जैसे गाने मिलते गये, मैं गाती गयी, लेकिन I was lucky enough कि गाने मिलते भी गये। अच्छा एक बात और! आजकल जो लोग करीयर को प्रायरिटी देते हैं, इसमें डेफ़िनिटली यह बात है लेकिन इतना मैं इतना ज़रूर कहना चाहूंगी इसमें कि पर्सनली, यह पर्सनली as a working woman मुझे लगता है कि profession important है लेकिन family is more important।
यह बहुत अच्छी बात कही आपने क्योंकि प्रेफ़ेशन की भी अपनी एक सीमा होती है।
जी, प्रोफ़ेशन, मैं उन लोगों के लिए यह नहीं बोलती हूँ जिनके लिए प्रोफ़ेशन एक ज़रूरत है, जैसे कि आप देखते हैं कि जिनके लिए यह रोज़ी-रोटी का ज़रिया है, you have no option, अगर रोटी का सवाल नहीं है then I think we should keep the family at first।
कैसी थीं अनुराधा पौडवाल जब वो छोटी थीं? बहुत शैतान थीं? पडः़आई में मन लगता था या गाने गुनगुनाती हुई इधर उधर लगी रहती थीं?
पढ़ाई का exactly शौक तो मैं नहीं खऊंगी लेकिन ऐसा भी नहीं था कि पढ़ाई को अन्देखा करती थी, normal, natural जैसे होता है, more inclined towards artistic, जैसे कि कोई artistic चीज़ें बनाना, जैसे crafts है या संगीत है। कला के तरफ़ झुकाव था।
शैतानी नहीं करती थीं?
नहीं (हँसते हुए)।
पढ़ाई में आप, क्योंकि मुंबई में ही आप रहती थीं, तो आपको गाने का मौका आपको और अच्छा मिला, क्योंकि बहुत छोटी-छोटी जगहों पर लोग रहते हैं, उस समय मुंबई में रहने से और संगीत जानने से आपको कितना फ़ायदा मिला, आपको यहाँ मौके कितने मिले?
उस वक़्त मैंने, शादी के बाद सबसे पहले फ़िल्म 'अभिमान' के लिए गाया। उसके बाद फिर, लेकिन उससे पहले एक वाक्या आपको बता देना चाहती हूँ कि आज जब हम यहाँ AIR पे हैं, और एक तरीके से मेरा जो करीयर है वह रेडियो से शुरु हुआ, वह किस तरह से मैं बताती हूँ आपको। 'युवा-वाणी' करके एक प्रोग्राम आता था, जो बहुत ज़्यादा पॉपुलर था और उसके बाद एक और मराठी 'आपली आवड' करके एक प्रोग्राम होता था, which was very popular। तो मैंने 'युवा-वाणी' में एक गीत गाया जो उन्होंने 'युवा-वाणी' और 'आपली आवड' के बिल्कुल जंक्शन पे रखा था। 10 को 5 मिनट कम तो मेरा गाना, उन्होंने प्ले किया था जो मैंने रेडियो के लिए गाया था, और उस गीत को काफ़ी सारे म्युज़िक डिरेक्टर्स ने, जैसे लक्ष्मीकान्त प्यारेलाल हैं, हृदयनाथ मंगेशकर जी हैं, फिर और काफ़ी सारे लोगों ने, बप्पी लाहिड़ी जी हैं, तो उन्होंने वह गीत सुना और उन्होंने मुझे फ़ोन करके बुलाया लेकिन मैं उस वक़्त प्रोफ़ेशनली नहीं गाती थी। तन उन्होंने मुझे कहा कि जिस वक़्त आप प्रोफ़ेशनली शुरु करो तो आप बताइये, we would like to record you।
अच्छा तो फिर यह प्रोफ़ेशनली आप कैसे आयीं? पहला मौका किसने दिया?
पहला मौका मुझे इस तरह मिला कि अरुण जी, मेरे पति म्युज़िक डिरेक्टर थे और वो एस. डी. बर्मन के लिए असिस्टैण्ट भी थे। उन्हें बहुत शौक था कि वो जब भी कुछ कम्पोज़ करते थे, पहले मेरी आवाज़ में वो घर के टेप-रेकॉर्डर पे वो टेप करते थे कि कैसा लगता है। उन दिनों में 'अभिमान' फ़िल्म का बैकग्राउण्ड चल रहा था। इसके लिए बर्मन दादा ने इनको कुछ कम्पोज़ करने के लिए बोला था। एक शिव जी की स्तुति थी जो उन्हें रेकॉर्ड करनी थी। शिव जी की स्तुति उन्होंने रेकॉर्ड की उनके टेप-रेकॉर्डर पे, जिस वक़्त उन्होंने बर्मन दादा को सुनाया, तो बर्मन दादा ने कहा कि तुमने इसके पहले क्यों नहीं बताया कि तुम्हारी बीवी गाती है? तो उसी की आवाज़ में हम इसको रेकॉर्ड करते हैं, और इस तरह से हृषी दा की फ़िल्म 'अभिमान; में मैंने वह शोल्क गाया।
ज़रा गा कर सुनायेंगी वह श्लोक?
(गाती हुईं) "ओम्कारम् बिन्दु संयुक्तम् नित्यम् ध्यायन्ती योगिन:, कामनदम् मोक्षदम् कैव ओम्काराय नमो नम:"। तो इसको सुन के उस वक़्त फ़िल्म इंडस्ट्री छोटी थी, दो तीन ही स्टुडियोस थे, 'फ़ेमस', 'फ़िल्म सेन्टर', तो जयदेव जी को पता चला, उन्होंने बुलाया। केवल तीन दिन बाद ही जयदेव जी ने मुझे बुलाया और मुझे एक पूरा गाना गाने का मौका दिया। वह मेरा पहला फ़िल्मी गीत था और वह भी महान गायक मुकेश जी के साथ। मुकेश जी ने मेरा हौसला बढ़ाया और उनके साथ मेरा पहला गाना रेकॉर्ड हुआ।
कॉपीराइट: विविध भारती
प्रसारण तिथि: 18 अगस्त 2007
सबसे पहले तो हम यह जानना चाहते हैं कि अनुराधा जी को कब पता चला कि वो इतना सुन्दर गाती हैं। परिवार में गाने का माहौल था? कैसे इतना सुरीला गला आपने पाया?
मुझे गाने का तो बचपन से ही शौक रहा है, और बहुत ही छुटपन से, मतलब, मुझे याद भी नहीं है कि किस उम्र से मुझे गाना अच्छा लगने लगा, लेकिन हमेशा से मुझे, मतलब, म्युज़िक की मुझे, बहुत पसन्द था और विशेष रूप से मेरी माताजी जो हैं, मिसेस नादकर्नी, तो वो हमेशा से उनको गाने का बहुत शौक था और वो ओमकारनाथ जी की शिष्या थीं। लेकिन जैसा कि आप जानते हैं कि उन दिनों में वो म्युज़िक करीयर को परस्यू नहीं कर पायीं, तो जब उन्होंने देखा कि मुझे बहुत शौक है गाने का तो उनकी बहुत तमन्ना थी कि मैं सिंगर बनूँ। वो कोशिश करके कहीं मुझे प्रोग्राम में ले जाना, तो उनकी हमेशा तमन्ना यही रही कि मैं एक सिंगर बनूँ। और क्योंकि जिस फ़ैमिली को मैं बिलांग करती हूँ, मतलब, मेरे फ़ादर के साइड से, मतलब, उन्हें किसी को गाने का शौक नहीं था। उनका बहुत ज़्यादा ध्यान एजुकेशन का था, वो हमेशा कहते थे कि ठीक है, एक शौकिया गाने तक ठीक है, लेकिन मेन एडुकेशन होना चाहिये। लेकिन जहाँ-जहाँ पे मौके मिलते थे, वहाँ-वहाँ पे मैं स्टेज प्रोग्राम्स करती थी।
तो पहले आपने स्कूल में गाया?
नहीं, पहली बार जो मैंने गाया, मतलब, महिला-मंडल होती है न, तो मेरी मासी, वो एक मेम्बर थीं महिला-मंडल की, तो जब मैं पाँच साल की थी तो पहला परफ़ॉर्मैन्स वहाँ किया था। फिर जैसे गणपति उत्सव जैसे होते हैं, उस तरह के प्रोग्राम्स मैंने काफ़ी किये।
अच्छा आपको वह गीत याद होगा जो पाँच साल की उम्र में आपने गाया था महिला-मंडल के उस शो में?
एक मराठी गीत था, "आलो शरण तुला भगवन्ता घेइ कुशित तुऴ्या भगवन्ता..."
अच्छा जब इतनी प्रशंसा मिली होगी, आप इतनी छोटी थीं कि आपको तो पता नहीं होगा कि माँ ने कहा कि गाना गाओ तो गा दिया होगा, लेकिन कभी दिल में यह नहीं आया होगा कि आगे मैं यही बनूंगी, यानी गायिका?
जी, वही मैं कहने जा रही थी, कि वैसे तो हमने, मतलब मैंने कभी मन में ऐसा नहीं सोचा था कि मुझे सिंगर ही बनना है क्योंकि आज आप देखेंगे कि, almost if not all, हर दूसरे घर का कोई न कोई फ़िल्म से या टेलीविज़न से या रेडियो से जुड़ा हुआ है, नहीं तो DJ है या कम्पेयरर है, किसी न किसी रूप में है। तो उस वक़्त ऐसा नहीं था। तो हमेशा हम लोगों को ऐसा लगता कि अच्छे घर के लोग फ़िल्म इंडस्ट्री में नहीं जाते हैं वगेरह। शादी तक तो सवाल ही नहीं उठता कि इस बारे में सोचूँ लेकिन जब मेरी शादी अरुण पौडवाल जी से हुई और वो इसी इंडस्ट्री के थे और he was a musician, music director भी थे, तो उसके बाद फिर भी नैचरली और बिल्कुल बाइ चान्स मैं इस इंडस्ट्री में आयी हूँ। उनको पसन्द तो था लेकिन उन्होंने भी ऐसे नहीं सोचा था कि पत्नी कोई प्लेबैक सिंगर बने। लेकिन उनके पिताजी जो थे, यानी मेरे ससुर जी, उनको बहुत ज़्यादा शौक था। मैं तो यह कहूंगी कि उनको शौक क्या, उनका तो सपना था कि मैं प्लेबैक सिंगर बनूँ। और यह बड़ी रेयर चीज़ है क्योंकि माता-पिता के तो बहुत ज़्यादा सपने होते हैं कि उनकी बेटी कुछ बने लेकिन यह बहुत रेअर केस होती है कि सास-ससुर इनको यह तमन्ना हो कि मेरी बहु एक दिन एक सिंगर बने।
जो कि बहुत सौभाग्य की बात है!
बिल्कुल बिल्कुल! और मुझे लगता है कि आज जो भी कुछ मैं हूँ तो मेरी माँ की तो ब्लेसिंग्स है ही, लेकिन साथ-साथ मेरे ससुर जी, सासु माँ, मेरे गुरु, उनकी जो तमन्ना थी उसकी वजह से यह सच हुआ है।
बड़ों का आशिर्वाद तो हमेशा साथ देता है!
बिल्कुल बिल्कुल!
अनुराधा जी, यह पूछना चाहूंगी कि आपने सीखना कब शुरू किया शास्त्रीय संगीत?
बचपन से जेनरली महाराष्ट्रियन घरों में आपने तो देखा होगा कि संगीत सिखाते हैं, तो इससे मुझे लगता है कि शायद 6-7 साल की थी, तब से मैंने गाना सीखना शुरु किया, सीखना मतलब क्या, वह क्लास में जाते थे और उस तरह का। ऐसे कि गुरु करके, ऐसा तो था नहीं, ऐट नो स्टेज।
ऐसा कहा जाता है कि हमने कई लोगों से बात भी की है जो गायक हैं, कि वो कहते हैं कि पूरी तरह ध्यान लगाते हैं, जो गायक होते हैं, गायिका होते हैं, सब कुछ भूल के अपने गुरु के साथ संगीत, और आपके साथ ऐसा नहीं हुआ?
ऐसा ऐक्चुअली होना चाहिये, लेकिन मेरे साथ ऐसा संभव इसलिए नहीं हुआ क्योंकि मैं हमेशा, मतलब पहले मैं फ़मिली में आयी, मेरी अपनी फ़ैमिली, मेरे बच्चे, पति, हमारी जॉयन्ट फ़ैमिली थी, तो उस वजह से थोड़ा जितना मैं रियाज़ कर सकती थी, उतना मैंने किया। लेकिन यह देखते हुए मुझे लगता है कि ईश्वर ने मुझे संगीत से नवाज़ा है और मुझे अपने आप को बहुत लकी समझती हूँ कि बहुत बड़ी कृपा है परमात्मा की। as a house wife, as a daughter, as a mother, मेरी responsibilities बहुत ज़्यादा हैं। पर जैसे जैसे गाने मिलते गये, मैं गाती गयी, लेकिन I was lucky enough कि गाने मिलते भी गये। अच्छा एक बात और! आजकल जो लोग करीयर को प्रायरिटी देते हैं, इसमें डेफ़िनिटली यह बात है लेकिन इतना मैं इतना ज़रूर कहना चाहूंगी इसमें कि पर्सनली, यह पर्सनली as a working woman मुझे लगता है कि profession important है लेकिन family is more important।
यह बहुत अच्छी बात कही आपने क्योंकि प्रेफ़ेशन की भी अपनी एक सीमा होती है।
जी, प्रोफ़ेशन, मैं उन लोगों के लिए यह नहीं बोलती हूँ जिनके लिए प्रोफ़ेशन एक ज़रूरत है, जैसे कि आप देखते हैं कि जिनके लिए यह रोज़ी-रोटी का ज़रिया है, you have no option, अगर रोटी का सवाल नहीं है then I think we should keep the family at first।
कैसी थीं अनुराधा पौडवाल जब वो छोटी थीं? बहुत शैतान थीं? पडः़आई में मन लगता था या गाने गुनगुनाती हुई इधर उधर लगी रहती थीं?
पढ़ाई का exactly शौक तो मैं नहीं खऊंगी लेकिन ऐसा भी नहीं था कि पढ़ाई को अन्देखा करती थी, normal, natural जैसे होता है, more inclined towards artistic, जैसे कि कोई artistic चीज़ें बनाना, जैसे crafts है या संगीत है। कला के तरफ़ झुकाव था।
शैतानी नहीं करती थीं?
नहीं (हँसते हुए)।
पढ़ाई में आप, क्योंकि मुंबई में ही आप रहती थीं, तो आपको गाने का मौका आपको और अच्छा मिला, क्योंकि बहुत छोटी-छोटी जगहों पर लोग रहते हैं, उस समय मुंबई में रहने से और संगीत जानने से आपको कितना फ़ायदा मिला, आपको यहाँ मौके कितने मिले?
उस वक़्त मैंने, शादी के बाद सबसे पहले फ़िल्म 'अभिमान' के लिए गाया। उसके बाद फिर, लेकिन उससे पहले एक वाक्या आपको बता देना चाहती हूँ कि आज जब हम यहाँ AIR पे हैं, और एक तरीके से मेरा जो करीयर है वह रेडियो से शुरु हुआ, वह किस तरह से मैं बताती हूँ आपको। 'युवा-वाणी' करके एक प्रोग्राम आता था, जो बहुत ज़्यादा पॉपुलर था और उसके बाद एक और मराठी 'आपली आवड' करके एक प्रोग्राम होता था, which was very popular। तो मैंने 'युवा-वाणी' में एक गीत गाया जो उन्होंने 'युवा-वाणी' और 'आपली आवड' के बिल्कुल जंक्शन पे रखा था। 10 को 5 मिनट कम तो मेरा गाना, उन्होंने प्ले किया था जो मैंने रेडियो के लिए गाया था, और उस गीत को काफ़ी सारे म्युज़िक डिरेक्टर्स ने, जैसे लक्ष्मीकान्त प्यारेलाल हैं, हृदयनाथ मंगेशकर जी हैं, फिर और काफ़ी सारे लोगों ने, बप्पी लाहिड़ी जी हैं, तो उन्होंने वह गीत सुना और उन्होंने मुझे फ़ोन करके बुलाया लेकिन मैं उस वक़्त प्रोफ़ेशनली नहीं गाती थी। तन उन्होंने मुझे कहा कि जिस वक़्त आप प्रोफ़ेशनली शुरु करो तो आप बताइये, we would like to record you।
अच्छा तो फिर यह प्रोफ़ेशनली आप कैसे आयीं? पहला मौका किसने दिया?
पहला मौका मुझे इस तरह मिला कि अरुण जी, मेरे पति म्युज़िक डिरेक्टर थे और वो एस. डी. बर्मन के लिए असिस्टैण्ट भी थे। उन्हें बहुत शौक था कि वो जब भी कुछ कम्पोज़ करते थे, पहले मेरी आवाज़ में वो घर के टेप-रेकॉर्डर पे वो टेप करते थे कि कैसा लगता है। उन दिनों में 'अभिमान' फ़िल्म का बैकग्राउण्ड चल रहा था। इसके लिए बर्मन दादा ने इनको कुछ कम्पोज़ करने के लिए बोला था। एक शिव जी की स्तुति थी जो उन्हें रेकॉर्ड करनी थी। शिव जी की स्तुति उन्होंने रेकॉर्ड की उनके टेप-रेकॉर्डर पे, जिस वक़्त उन्होंने बर्मन दादा को सुनाया, तो बर्मन दादा ने कहा कि तुमने इसके पहले क्यों नहीं बताया कि तुम्हारी बीवी गाती है? तो उसी की आवाज़ में हम इसको रेकॉर्ड करते हैं, और इस तरह से हृषी दा की फ़िल्म 'अभिमान; में मैंने वह शोल्क गाया।
ज़रा गा कर सुनायेंगी वह श्लोक?
(गाती हुईं) "ओम्कारम् बिन्दु संयुक्तम् नित्यम् ध्यायन्ती योगिन:, कामनदम् मोक्षदम् कैव ओम्काराय नमो नम:"। तो इसको सुन के उस वक़्त फ़िल्म इंडस्ट्री छोटी थी, दो तीन ही स्टुडियोस थे, 'फ़ेमस', 'फ़िल्म सेन्टर', तो जयदेव जी को पता चला, उन्होंने बुलाया। केवल तीन दिन बाद ही जयदेव जी ने मुझे बुलाया और मुझे एक पूरा गाना गाने का मौका दिया। वह मेरा पहला फ़िल्मी गीत था और वह भी महान गायक मुकेश जी के साथ। मुकेश जी ने मेरा हौसला बढ़ाया और उनके साथ मेरा पहला गाना रेकॉर्ड हुआ।
कॉपीराइट: विविध भारती
तो दोस्तों, आज बस इतना ही। आशा है आपको यह प्रस्तुति पसन्द आयी होगी। अगली बार ऐसे ही किसी स्मृतियों की गलियारों से आपको लिए चलेंगे उस स्वर्णिम युग में। तब तक के लिए अपने इस दोस्त, सुजॉय चटर्जी को अनुमति दीजिये, नमस्कार! इस स्तम्भ के लिए आप अपने विचार और प्रतिक्रिया नीचे टिप्पणी में व्यक्त कर सकते हैं, हमें अत्यन्त ख़ुशी होगी।
प्रस्तुति : सुजॉय चटर्जी
Comments
Ek chhoti magar kafi gambheer tippadi karne ki cheshtha karne jaa raha hooon, umeed hai aap sab isey ek positive way mein sweekar karenge. Kyonki mai ise ek shodh ka naya vishay samajh raha hoon. Anuradha ji ke shabdon mein-
"केवल तीन दिन बाद ही जयदेव जी ने मुझे बुलाया और मुझे एक पूरा गाना गाने का मौका दिया। वह मेरा पहला फ़िल्मी गीत था और वह भी महान गायक मुकेश जी के साथ। मुकेश जी ने मेरा हौसला बढ़ाया और उनके साथ मेरा पहला गाना रेकॉर्ड हुआ।"
magar meri jaankaari mein mukesh ji ne jaidev ke composition mein anuradha ji ke sath koi bhi gana nahin gaya hai. Nishchay hi, mukesh ji ne jaidev ji ke sangeet mein kul 7 gane gaye, jaise-
1. JAB GHAMEN ISQ SATATA HAI -KINARE KINARE-1963
2. APNE WATAN MEIN AAJ-DO BOOND PANI -1971
3. MAIN KISE APNA KAHUN-EK THI REETA-1971
4. PHIR MILEGI KAHAN-BHAAVNA -1972
5. LE CHALO,LE CHALO AB KAHIN LE -MAAN JAIYE-1972
6. TUM HI NE DIL KO DIL SAMJHA NAHI-CHAND GRAHAN-1969
7. TUJH KO YUN DEKHA HAI-CHAND GRAHAN-1969
Chunki fim ABHIMAAN 1973 mein release hui aur film "Chand grahan ki recording 1969 mein hui thi, aur chand grahan ka vedio jo ab jaakar release hui hai (haal hi ke kuchh salon pahale-1997), to ek sambhavna ban sakata hai ki mukesh ji ne anuradha ji ke sath ho na ho isi film ke liye gaya ho.
Ab rahi baat Mukesh ji ka Anuradha paudwal ji ke sath yugal geeton ka to ab tak kul 3 geet hi gyaat huwe hain, jo is prakaar hai-
1. CHANDNI RAAT O HANSI CHITUDU-DAKU RANI GANGA-1976,LYRICS-VENIBHAI PUROHIT, MUSIC-DILIP DHOLAKIYA-A GUJRATI SONG.RECORD NO.7EPE 10053.
2. RAMAYAN AUR GEETA...CAHE DEKHO JAL MEIN TITLE SONG-BHAGWAN SAMAYE SANSAR MEIN-1976, LYRICS-B.D. MISHRA, MUSIC-ANIL-ARUN.RECORD NO.7EPE 7277.(MUKESH VOICE RECORDED FOR BOLLYWOOD NARAD-ACTOR JEEVAN FIRST AND LAST TIME).
3. RAKHE RAM SALAMAT EK HAL-DAAKU AUR JAWAN-(MUKESH WITH ANURADHA PAUDWAL,MOHD.RAFI,CHORUS)-1978, LYRICS-ANAND BAKSHI, MUSIC-LAXMIKANT PYARELAL. RECORD NO. 7EPE 7478.
Ab kahane ka tatparya ye hai ki na hum सुजॉय चटर्जी ji ko, na vivid bhartee ko aur na hi anuradha ji ko is truti ke liye jimmedaar thaharate hain. haan itna jaroor umeed karta hoon ki is UNSUNE-ANJAANE GEET, JISKI ANURADHA JI NE CHARCHA KEE, KI GUTTHI SULJHANE MEIN IN TEENON KA EK MAHATWAPOOORN BHOOMIKA HO SAKATI HAI. ye hum sab ke liye kisi uplabdhi se kam na hogi.
Agar kuchh der ke liye hum ye maan le ki meri pichhale tippadi ke teeno log sahi hai, masalan vivd bhartee aur anuradha ji to film chand grahan ka mukesh ji ke ye gana jiska link maine neche shajha kiya hai, ko poori tarah sunanne ke baad ek shanshay jaroor hota hai ki gaane ke aakhir mein (4:20 min par), ye humming aur aalaap mudra mein gaya mahila aawaaz kiski hai ? kahin ye anuradha ji ka to nahin hai ? agar haan to itna sab kuchh hone ke baad unko is geet ke liye credit kyun nahin mili ? jahan tak is gaane ke vedio ka sawal hai to ye gana tab aata hai jab nayika hospital mein chot ke wajah se admit hui hoti hai aur isi beech koi ward boy radio lagata hai, jismein mashhoor shayar apni aawaaz mein gazal gate hai- aur fir ye gana suru hota hai, nayika is g aawaaz ko sun kar flash-back mein kho jati hai.
TUMHINE DIL KO DIL SAMJHA NAHIN
https://www.youtube.com/watch?v=_JszaO2SqMY
According to my knowledge, its ANIL-ARUN not Amar mohile.