स्वरगोष्ठी – 187 में आज
फिल्मों के आँगन में ठुमकती पारम्परिक ठुमरी – 6 : ठुमरी भैरवी, खमाज और अड़ाना
लता जी के जन्मदिन पर शुभकामनाओं सहित समर्पित है उन्हीं की गायी ठुमरी
‘जा मैं तोसे नाहीं बोलूँ...’
‘जा मैं तोसे नाहीं बोलूँ...’
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रोशनआरा बेगम |
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रसूलन बाई |
ठुमरी गायन के दो प्रकार हैं, पहला है बन्दिश अथवा बोल-बाँट की ठुमरी और दूसरा प्रकार है, बोल-बनाव की ठुमरी। 1856 में अंग्रेजों द्वारा नवाब वाजिद अली शाह को कलकत्ते के मटियाबुर्ज नामक स्थान पर नज़रबन्द कर दिये जाने के बाद ठुमरी का केन्द्र लखनऊ से स्थानान्तरित होकर बनारस हो गया था। बोल-बनाव की ठुमरियों का विकास बनारस के संगीत परिवेश में हुआ। इस प्रकार की ठुमरियों में शब्द बहुत कम होते हैं और यह विलम्बित लय से शुरू होती हैं। इनमें स्वरों के प्रसार की बहुत गुंजाइश होती है। छोटी-छोटी मुरकियाँ, खटके, मींड आदि का प्रयोग ठुमरी की गुणबत्ता को बढाता है। कुशल गायक ठुमरी के शब्दों से अभिनय कराते हैं। गायक कलाकार ठुमरी के कुछ शब्दों को लेकर अलग-अलग भावपूर्ण अन्दाज़ में प्रस्तुत करते हैं और अन्त में कहरवा ताल की लग्गी के साथ ठुमरी समाप्त होती है। ठुमरी के इस भाग में तबला संगतिकार को अपनी प्रतिभा दिखाने का भरपूर मौका मिलता है। बात जब बोल-बनाव ठुमरी की हो तो रसूलन बाई का ज़िक्र आवश्यक है। आज की यह ठुमरी हम उन्हीं की आवाज़ में प्रस्तुत कर रहे हैं। उन्होने यह ठुमरी राग भैरवी में प्रस्तुत की है।
ठुमरी भैरवी : ‘जा मैं तोसे नाहीं बोलूँ...’ : स्वर - रसूलन बाई
इसी ठुमरी को जानी-मानी गायिका रोशनआरा बेगम ने भी अपना स्वर दिया है, किन्तु उन्होने इसे राग खमाज के स्वरों में गाया है। रोशनआरा बेगम, किराना घराने के शीर्षस्थ गायक उस्ताद अब्दुल करीम खाँ की भतीजी थीं। आज की ठुमरी ‘जा मैं तोसे नाहीं बोलूँ साँवरिया...’, रोशनआरा बेगम के स्वरों में भी अत्यन्त लोकप्रिय हुई थी, परन्तु उन्होने इसे राग खमाज के स्वरों में गाया था। लीजिए उनकी गायी यह ठुमरी आप भी सुनिए।
ठुमरी खमाज : ‘जा मैं तोसे नाहीं बोलूँ...’ : स्वर - रोशनआरा बेगम
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इसी ठुमरी का प्रयोग संगीतकार अनिल विश्वास ने 1962 में प्रदर्शित फिल्म ‘सौतेला भाई’ में किया था। महेश कौल द्वारा निर्देशित इस फिल्म के नायक गुरुदत्त थे। अनिल विश्वास ने इस ठुमरी को फिल्म के एक ऐसे प्रसंग के लिए तैयार किया था, जब नायक का सौतेला छोटा भाई अपने कुछ बिगड़ैल दोस्तों के साथ तवायफ के कोठे पर पहुँचता है। कोठे पर दो नर्तकियाँ मुजरे के रूप में इस ठुमरी पर नृत्य करती है। अनिल विश्वास ने ठुमरी का स्थायी तो परम्परागत रूप में ही रखा, किन्तु अन्तरे की कुछ पंक्तियों को गीतकार शैलेन्द्र से लिखवाया था। उन्होने मूल भैरवी की ठुमरी के स्वरों में भी परिवर्तन किया और बेहद चंचल प्रवृत्ति के राग अड़ाना के स्वरों में और एक ताल में बाँधा। फिल्म ‘सौतेला भाई’ में प्रयुक्त इस ठुमरी को स्वर-साम्राज्ञी लता मंगेशकर ने अपने आकर्षक स्वरों से सजाया है। इस गीत में विशेष उल्लेखनीय यह है कि फिल्म के दृश्य में दोनो नर्तकियाँ बारी-बारी से गीत गाती हैं किन्तु दोनों के लिए स्वर लता जी का ही है। लीजिए, लता मंगेशकर से सुनिए फिल्म ‘सौतेला भाई’ की यह ठुमरी।
राग अड़ाना : ‘जा मैं तोसे नाहीं बोलूँ...’ : स्वर - लता मंगेशकर : फिल्म – सौतेला भाई
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ठुमरी भैरवी, खमाज और अड़ाना : ‘जा मैं तोसे नाहीं बोलूँ...’ : फिल्मों के
आँगन में ठुमकती पारम्परिक ठुमरी – 6 : वाचक स्वर – संज्ञा टण्डन
आज की पहेली
लता मंगेशकर के जन्मदिवस पर ‘स्वरगोष्ठी’ के 187वें अंक की विशेष पहेली में
आज हम आपको एक अत्यन्त प्रचलित खयाल रचना का अंश सुनवा रहे हैं। इसे सुन
कर आपको निम्नलिखित दो प्रश्नों के उत्तर देने हैं। 190वें अंक की पहेली के
सम्पन्न होने तक जिस प्रतिभागी के सर्वाधिक अंक होंगे, उन्हें इस श्रृंखला
(सेगमेंट) का विजेता घोषित किया जाएगा।
1 – यह छोटा खयाल किस राग में निबद्ध है?
2 – यह रचना किस गायिका की आवाज़ में है?
1 – यह छोटा खयाल किस राग में निबद्ध है?
2 – यह रचना किस गायिका की आवाज़ में है?
आप अपने उत्तर केवल swargoshthi@gmail.com या radioplaybackindia@live.com पर ही शनिवार मध्यरात्रि से पूर्व तक भेजें। comments में दिये गए उत्तर मान्य नहीं होंगे। विजेता का नाम हम ‘स्वरगोष्ठी’ के अगले अंक में प्रकाशित करेंगे। इस अंक में प्रस्तुत गीत-संगीत, राग अथवा कलासाधक के बारे में यदि आप कोई जानकारी या अपने किसी अनुभव को हम सबके बीच बाँटना चाहते हैं तो हम आपका इस संगोष्ठी में स्वागत करते हैं। आप पृष्ठ के नीचे दिये गए comments के माध्यम से तथा swargoshthi@gmail.com अथवा radioplaybackindia@live.com पर अपनी प्रतिक्रिया भी व्यक्त कर सकते हैं।
पिछली पहेली के विजेता
‘स्वरगोष्ठी’ की 185वें अंक की संगीत पहेली में हमने आपको सुप्रसिद्ध गायक उस्ताद बड़े गुलाम अली खाँ की आवाज़ में एक पारम्परिक ठुमरी का अंश सुनवा कर आपसे दो प्रश्न पूछे थे। पहले प्रश्न का सही उत्तर है- राग भैरवी और पहेली के दूसरे प्रश्न का सही उत्तर है- गायक उस्ताद बड़े गुलाम अली खाँ। इस अंक की पहेली के दोनों प्रश्नो के सही उत्तर जबलपुर से क्षिति तिवारी, पेंसिलवानिया, अमेरिका से विजया राजकोटिया, चण्डीगढ़ के हरकीरत सिंह, और हैदराबाद की डी. हरिणा माधवी ने दिया है। चारो प्रतिभागियों को ‘रेडियो प्लेबैक इण्डिया’ की ओर से हार्दिक बधाई।
कुछ अपनी कुछ आपकी
मित्रों, ‘रेडियो प्लेबैक इण्डिया’ के साप्ताहिक स्तम्भ ‘स्वरगोष्ठी’ के मंच पर इन दिनों हम पारम्परिक ठुमरी और उसके फिल्मी प्रयोग पर चर्चा कर रहे हैं। इस लघु श्रृंखला में हम एक नया प्रयोग भी कर रहे हैं। आपको ‘स्वरगोष्ठी’ का यह स्वरूप कैसा लगा? हमें अवश्य बताइएगा। ‘स्वरगोष्ठी’ के 185वें अंक टिप्पणी करते हुए हमारे एक पाठक / श्रोता सुनील बाजपेयी ने लिखा है-
Sunil Bajpai : वाह!...अतिमन !... सुन्दर, मस्तिष्क व शरीर को ‘ठुमका’ देने वाली इन भाव एवं रस से परिपूर्ण शास्त्रीय रचनाओं का प्रसंशनीय प्रस्तुतीकरण है ये!!... ‘स्वरगोष्ठी’ की संकल्पना कर उसे ऐसा स्वरूप देने और उसमें योगदान करने वाले सभी संस्कृतिनिष्ठ विद्वतजन को अनेकानेक आभार और साधुवाद!!!...
आप भी यदि भारतीय संगीत के किसी विषय में कोई जानकारी हमारे बीच बाँटना चाहें तो अपना आलेख अपने संक्षिप्त परिचय के साथ ‘स्वरगोष्ठी’ के ई-मेल पर भेज दें। अपने पाठको / श्रोताओं की प्रेषित सामग्री प्रकाशित / प्रसारित करने में हमें हर्ष होगा। आगामी श्रृंखलाओं के लिए आप अपनी पसन्द के कलासाधकों, रागों या रचनाओं की फरमाइश भी कर सकते हैं। हम आपके सुझावों और फरमाइशों का स्वागत करेंगे। अगले अंक में रविवार को प्रातः 9 बजे ‘स्वरगोष्ठी’ के इस मंच पर आप सभी संगीत-प्रेमियों की हमें प्रतीक्षा रहेगी।
वाचक स्वर : संज्ञा टण्डन
आलेख व प्रस्तुति : कृष्णमोहन मिश्र
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