स्मृतियों के स्वर - 10
महेन्द्र कपूर की पुण्यतिथि पर बेटे रोहन कपूर से सुजॉय चटर्जी की एक छोटी सी मुलाक़ात
यह साक्षात्कार वर्ष 2011 में लिया गया था
सुजॉय - रोहन जी, जब हर साल 26 जनवरी और 15 अगस्त के दिन पूरा राष्ट्र "मेरे देश की धरती" और "है प्रीत जहाँ की रीत सदा" जैसे गीतों पर डोलती है, और आप ख़ुद भी इन गीतों को इन राष्ट्रीय पर्वों पर अपने आसपास के हर जगह से सुनते हैं, तो किस तरह के भाव, कैसे विचार आपके मन में उत्पन्न होते हैं?
रोहन - उनकी आवाज़ को सुनना तो हमेशा ही एक थ्रिलिंग् एक्स्पीरिएन्स रहता है, लेकिन ये दो दिन मेरे लिये बचपन से ही बहुत ख़ास दिन रहे हैं। उनकी जोशिली और बुलंद आवाज़ उनकी मातृभूमि के लिये उनके दिल में अगाध प्रेम और देशभक्ति की भावनाओं को उजागर करते हैं। और उनकी इसी ख़ासियत ने उन्हें 'वॉयस ऑफ़ इण्डिया' का ख़िताब दिलवाया था। वो एक सच्चे देशभक्त थे और मुझे नहीं लगता कि उनमें जितनी देशभक्ति की भावना थी, वो किसी और लीडर में होगी।
सुजॉय - महेन्द्र कपूर जी एक बहुत ही मृदुभाषी और मितभाषी व्यक्ति थे, बिल्कुल अपने गुरु रफ़ी साहब की तरह। आप ने एक पिता के रूप में उन्हें कैसा पाया? किस तरह के सम्बन्ध थे आप दोनों में? मित्र जैसी या थोड़ी औपचारिक्ता भी थी उस रिश्ते में?
रोहन - 'He was a human par excellence'। अगर मैं यह कहूँ कि वो मेरे सब से निकट के दोस्त थे तो ग़लत ना होगा। I was more a friend to him than anybody on planet earth। हम दुनिया भर में साथ साथ शोज़ करने जाया करते थे और मेरे ख़याल से हमने एक साथ हज़ारों की संख्या में शोज़ किये होंगे। वो बहुत ही मिलनसार और इमानदार इंसान थे, जिनकी झलक उनके सभी रिश्तों में साफ़ मिलती थी।
सुजॉय - क्या कभी उन्होंने आपके बचपन में आपको डाँटा हो या मारा हो जैसे बच्चों को उनके माता-पिता कभी कभार मार भी देते हैं? या कोई ऐसी घटना कि जब उन्होंने आपकी बहुत सराहना की हो?
रोहन - सराहना भी बहुत की और उतनी ही संख्या है उनकी नाराज़गी भी की। वो ख़ुद भी बहुत अनुशासित थे और हम सब से भी हमारी आदतों और पढ़ाई में उसी अनुशासन की उम्मीद रखते थे। लेकिन इसके बाहर वो बहुत ही मज़ाकिया और हँसमुख और मिलनसार इंसान थे। वो कभी शब्दों का इस्तेमाल नहीं करते थे डाँटने के लिए, उनका चेहरा ही काफ़ी होता था मुझे और मेरी बहनों को सतर्क करने के लिए।
सुजॉय - जब आप छोटे थे, या जब बड़े हो रहे थे, क्या वो चाहते थे कि आप भी उनकी तरह एक गायक बनें?
रोहन - Probably in my subconscience …yes, but never dared to tell him that I wanted to... बल्कि जब मैं नौ साल का था, तब उन्होंने ही मुझे गाने के लिए प्रोत्साहित किया और मैं उनके साथ साउथ अफ़्रीका में स्टेज पर गाने लगा।
सुजॉय - आप अपने पिता पर गर्व करते होंगे, और गर्व होनी ही चाहिए। लेकिन क्या आपको वाकई लगता है कि इस इण्ड्रस्ट्री ने उन्हें वो सब कुछ दिया है जिसके वो सही मायनो में हकदार थे?
रोहन - वो हमेशा यही मानते थे कि किसी को जीवन में जो कुछ भी मिलना है, वो सब उपरवाला निर्धारित करता है, और हम कोई नहीं होते उसकी इच्छा को चैलेंज करने वाले। इसलिए यह सवाल ही अर्थहीन है कि वो क्या चाहते थे या उन्हे क्या मिला या नहीं मिला।
सुजॉय - महेन्द्र कपूर जी से जुड़ी कोई ख़ास घटना याद आती है आपको जो आप हमारे पाठकों के साथ बाँटना चाहें?
रोहन - मैं हमेशा उनके साथ उनकी रेकॊर्डिंग्स पर जाया करता था बचपन से ही। ऐसी ही एक रेकॊर्डिंग् की बात बताता हूँ। संगीतकार जोड़ी लक्ष्मीकांत-प्यारेलाल के लिए रेकॊर्डिंग् थी, फ़िल्म 'क्रान्ति' का गीत "दुर्गा है मेरी माँ, अम्बे है मेरी माँ"। महबूब स्टुडिओज़ में रेकॊर्डिंग् हो रही थी। यह एक मुश्किल गाना था जिसे बहुत ऊँचे पट्टे पर गाना था और ऒर्केस्ट्रा भी काफ़ी भारी भरकम था। जब रेकॊर्डिंग् OK हो गई, और वो बाहर निकले तो लक्ष्मी-प्यारे जी और मनोज कुमार जी, सबके मुख से उनके लिए तारीफ़ों के पुल बांधे नहीं बंध रहे थे। वो लगातार उनकी तारीफ़ें करते गये और पिता जी एम्बैरेस होते रहे। जैसे ही हम कार में बैठे वापस घर जाने के लिए, वो कार को सीधे हनुमान जी के मंदिर में लेके गये और ईश्वर को धन्यवाद दिया। वो हमेशा कहा करते थे कि यह ईश्वर की शक्ति या कृपा ही है जो हमें हमारे काम को अच्छा बनाने में मदद करता है। It’s the Devine Grace which gives you excellence in your work.
सुजॉय - रोहन जी, बस आख़िरी सवाल। वह कौन सा एक गीत है महेन्द्र कपूर जी का गाया हुआ जो आपको सब से ज़्यादा पसंद है? या जिसे आप सब से ज़्यादा गुनगुनाया करते हैं?
रोहन - किसी एक गीत का नाम लेना तो असम्भव है, लेकिन हाँ, कुछ गीत जो मुझे बेहद पसंद है, उनके नाम गिनाता हूँ। "चलो एक बार फिर से अजनबी बन जाएँ हम दोनों", "अंधेरे में जो बैठे हैं, नज़र उन पर भी कुछ डालो, अरे ओ रोशनी वालों", लता जी के साथ उनका गाया "आकाश पे दो तारे", आशा जी के साथ "रफ़्ता रफ़्ता आप मेरे दिल के महमाँ हो गये", और यकीनन "मेरे देश की धरती"।
सुजॉय - रोहन जी, बहुत अच्छा लगा, आपने अपने पिता और महान गायक महेन्द्र कपूर जी की शख्सियत के बारे में हमें बताया, बहुत बहुत धन्यवाद आपका। फिर किसी दिन आपसे और भी बातें हम करना चाहेंगे। मैं अपनी तरफ़ से, और हमारे तमाम पाठकों व श्रोताओं की तरफ़ से आपका आभार व्यक्त करता हूँ, नमस्कार।
रोहन - बहुत बहुत शुक्रिया आपका।
सुजॉय - रोहन जी, जब हर साल 26 जनवरी और 15 अगस्त के दिन पूरा राष्ट्र "मेरे देश की धरती" और "है प्रीत जहाँ की रीत सदा" जैसे गीतों पर डोलती है, और आप ख़ुद भी इन गीतों को इन राष्ट्रीय पर्वों पर अपने आसपास के हर जगह से सुनते हैं, तो किस तरह के भाव, कैसे विचार आपके मन में उत्पन्न होते हैं?
रोहन - उनकी आवाज़ को सुनना तो हमेशा ही एक थ्रिलिंग् एक्स्पीरिएन्स रहता है, लेकिन ये दो दिन मेरे लिये बचपन से ही बहुत ख़ास दिन रहे हैं। उनकी जोशिली और बुलंद आवाज़ उनकी मातृभूमि के लिये उनके दिल में अगाध प्रेम और देशभक्ति की भावनाओं को उजागर करते हैं। और उनकी इसी ख़ासियत ने उन्हें 'वॉयस ऑफ़ इण्डिया' का ख़िताब दिलवाया था। वो एक सच्चे देशभक्त थे और मुझे नहीं लगता कि उनमें जितनी देशभक्ति की भावना थी, वो किसी और लीडर में होगी।
सुजॉय - महेन्द्र कपूर जी एक बहुत ही मृदुभाषी और मितभाषी व्यक्ति थे, बिल्कुल अपने गुरु रफ़ी साहब की तरह। आप ने एक पिता के रूप में उन्हें कैसा पाया? किस तरह के सम्बन्ध थे आप दोनों में? मित्र जैसी या थोड़ी औपचारिक्ता भी थी उस रिश्ते में?
रोहन - 'He was a human par excellence'। अगर मैं यह कहूँ कि वो मेरे सब से निकट के दोस्त थे तो ग़लत ना होगा। I was more a friend to him than anybody on planet earth। हम दुनिया भर में साथ साथ शोज़ करने जाया करते थे और मेरे ख़याल से हमने एक साथ हज़ारों की संख्या में शोज़ किये होंगे। वो बहुत ही मिलनसार और इमानदार इंसान थे, जिनकी झलक उनके सभी रिश्तों में साफ़ मिलती थी।
सुजॉय - क्या कभी उन्होंने आपके बचपन में आपको डाँटा हो या मारा हो जैसे बच्चों को उनके माता-पिता कभी कभार मार भी देते हैं? या कोई ऐसी घटना कि जब उन्होंने आपकी बहुत सराहना की हो?
रोहन - सराहना भी बहुत की और उतनी ही संख्या है उनकी नाराज़गी भी की। वो ख़ुद भी बहुत अनुशासित थे और हम सब से भी हमारी आदतों और पढ़ाई में उसी अनुशासन की उम्मीद रखते थे। लेकिन इसके बाहर वो बहुत ही मज़ाकिया और हँसमुख और मिलनसार इंसान थे। वो कभी शब्दों का इस्तेमाल नहीं करते थे डाँटने के लिए, उनका चेहरा ही काफ़ी होता था मुझे और मेरी बहनों को सतर्क करने के लिए।
सुजॉय - जब आप छोटे थे, या जब बड़े हो रहे थे, क्या वो चाहते थे कि आप भी उनकी तरह एक गायक बनें?
रोहन - Probably in my subconscience …yes, but never dared to tell him that I wanted to... बल्कि जब मैं नौ साल का था, तब उन्होंने ही मुझे गाने के लिए प्रोत्साहित किया और मैं उनके साथ साउथ अफ़्रीका में स्टेज पर गाने लगा।
सुजॉय - आप अपने पिता पर गर्व करते होंगे, और गर्व होनी ही चाहिए। लेकिन क्या आपको वाकई लगता है कि इस इण्ड्रस्ट्री ने उन्हें वो सब कुछ दिया है जिसके वो सही मायनो में हकदार थे?
रोहन - वो हमेशा यही मानते थे कि किसी को जीवन में जो कुछ भी मिलना है, वो सब उपरवाला निर्धारित करता है, और हम कोई नहीं होते उसकी इच्छा को चैलेंज करने वाले। इसलिए यह सवाल ही अर्थहीन है कि वो क्या चाहते थे या उन्हे क्या मिला या नहीं मिला।
सुजॉय - महेन्द्र कपूर जी से जुड़ी कोई ख़ास घटना याद आती है आपको जो आप हमारे पाठकों के साथ बाँटना चाहें?
रोहन - मैं हमेशा उनके साथ उनकी रेकॊर्डिंग्स पर जाया करता था बचपन से ही। ऐसी ही एक रेकॊर्डिंग् की बात बताता हूँ। संगीतकार जोड़ी लक्ष्मीकांत-प्यारेलाल के लिए रेकॊर्डिंग् थी, फ़िल्म 'क्रान्ति' का गीत "दुर्गा है मेरी माँ, अम्बे है मेरी माँ"। महबूब स्टुडिओज़ में रेकॊर्डिंग् हो रही थी। यह एक मुश्किल गाना था जिसे बहुत ऊँचे पट्टे पर गाना था और ऒर्केस्ट्रा भी काफ़ी भारी भरकम था। जब रेकॊर्डिंग् OK हो गई, और वो बाहर निकले तो लक्ष्मी-प्यारे जी और मनोज कुमार जी, सबके मुख से उनके लिए तारीफ़ों के पुल बांधे नहीं बंध रहे थे। वो लगातार उनकी तारीफ़ें करते गये और पिता जी एम्बैरेस होते रहे। जैसे ही हम कार में बैठे वापस घर जाने के लिए, वो कार को सीधे हनुमान जी के मंदिर में लेके गये और ईश्वर को धन्यवाद दिया। वो हमेशा कहा करते थे कि यह ईश्वर की शक्ति या कृपा ही है जो हमें हमारे काम को अच्छा बनाने में मदद करता है। It’s the Devine Grace which gives you excellence in your work.
सुजॉय - रोहन जी, बस आख़िरी सवाल। वह कौन सा एक गीत है महेन्द्र कपूर जी का गाया हुआ जो आपको सब से ज़्यादा पसंद है? या जिसे आप सब से ज़्यादा गुनगुनाया करते हैं?
रोहन - किसी एक गीत का नाम लेना तो असम्भव है, लेकिन हाँ, कुछ गीत जो मुझे बेहद पसंद है, उनके नाम गिनाता हूँ। "चलो एक बार फिर से अजनबी बन जाएँ हम दोनों", "अंधेरे में जो बैठे हैं, नज़र उन पर भी कुछ डालो, अरे ओ रोशनी वालों", लता जी के साथ उनका गाया "आकाश पे दो तारे", आशा जी के साथ "रफ़्ता रफ़्ता आप मेरे दिल के महमाँ हो गये", और यकीनन "मेरे देश की धरती"।
सुजॉय - रोहन जी, बहुत अच्छा लगा, आपने अपने पिता और महान गायक महेन्द्र कपूर जी की शख्सियत के बारे में हमें बताया, बहुत बहुत धन्यवाद आपका। फिर किसी दिन आपसे और भी बातें हम करना चाहेंगे। मैं अपनी तरफ़ से, और हमारे तमाम पाठकों व श्रोताओं की तरफ़ से आपका आभार व्यक्त करता हूँ, नमस्कार।
रोहन - बहुत बहुत शुक्रिया आपका।
तो दोस्तों, आज बस इतना ही। आशा है आपको यह प्रस्तुति पसन्द आयी होगी। अगली बार ऐसे ही किसी स्मृतियों की गलियारों से आपको लिए चलेंगे उस स्वर्णिम युग में। तब तक के लिए अपने इस दोस्त, सुजॉय चटर्जी को अनुमति दीजिये, नमस्कार! इस स्तम्भ के लिए आप अपने विचार और प्रतिक्रिया नीचे टिप्पणी में व्यक्त कर सकते हैं, हमें अत्यन्त ख़ुशी होगी।
प्रस्तुति : सुजॉय चटर्जी
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