स्वरगोष्ठी – 186 में आज
फिल्मों के आँगन में ठुमकती पारम्परिक ठुमरी – 5 : ठुमरी भैरवी
लता जी को जन्मदिन के उपलक्ष्य में समर्पित है उन्हीं की गायी श्रृंगार रस से अभिसिंचित ठुमरी- ‘बाजूबन्द खुल खुल जाय...’
जन्मदिन पर शताधिक शुभकामना |
ठुमरी भारतीय संगीत की वह रसपूर्ण शैली है, जिसमें स्वर और साहित्य का समान महत्त्व होता है। यह भावप्रधान और चपल चाल वाला गीत है। मुख्यतः यह श्रृंगार प्रधान गीत होता है; जिसमें लौकिक और आध्यात्मिक दोनों प्रकार का श्रृंगार उपस्थित होता है। इसीलिए ठुमरी में लोकगीत जैसी कोमल शब्दावली और अपेक्षाकृत हलके रागों का ही प्रयोग होता है। अधिकतर ठुमरियों के बोल अवधी, भोजपुरी अथवा ब्रजभाषा में होते हैं। कथक नृत्य में प्रयोग की जाने वाली अधिकतर ठुमरियाँ कृष्णलीला प्रधान होती हैं। शान्त, गम्भीर अथवा वैराग्य भावों की सृष्टि करने वाले रागों के बजाय चंचल रागों; जैसे पीलू, काफी, जोगिया, खमाज, भैरवी, तिलक कामोद, गारा, पहाड़ी, तिलंग आदि में ठुमरी गीतों को निबद्ध किया जाता है। ठुमरी गायन में त्रिताल, चाँचर, दीपचन्दी, जत, दादरा, कहरवा आदि तालों का प्रयोग होता है। आज के अंक में प्रस्तुत की जाने वाली भैरवी की श्रृंगार रस प्रधान ठुमरी है, जिसके बोल हैं- ‘साँवरिया ने जादू डारा, बाजूबन्द खुल खुल जाय...’। इस ठुमरी के बोल लोक साहित्य से प्रेरित है। अन्तरे की पंक्तियाँ हैं- ‘जादू की पुड़िया भर भर मारे, का करेगा वैद्य बेचारा...’। इस ठुमरी को अनेक गायक-गायिकाओं ने अपने स्वरों से सँवारा है। आज के अंक में हम आपको सबसे पहले यह ठुमरी उस्ताद बड़े गुलाम अली खाँ की आवाज़ में सुनवाएँगे। पटियाला कसूर घराने के सिरमौर, उस्ताद बड़े गुलाम अली खाँ पिछली शताब्दी के बेमिसाल गायक थे। अपनी बुलन्द गायकी के बल पर संगीत के मंचों पर लगभग आधी शताब्दी तक उन्होने अपनी बादशाहत को कायम रखा। पंजाब अंग की ठुमरियों के वे अप्रतिम गायक और सर्जक थे। लीजिए सुनिए, उनके स्वरों में प्रस्तुत श्रृंगार रस में डूबी यह ठुमरी।
ठुमरी भैरवी : ‘बाजूबन्द खुल खुल जाय...’ : उस्ताद बड़े गुलाम अली खाँ
इस श्रृंगार रस प्रधान ठुमरी में लोकतत्व प्रमुख रूप से उभरता है। नायिका पर साँवरिया का ऐसा जादू सवार है कि वह अपना सुध-बुध खो बैठी है। हर समय नायक की चिन्ता में डूबी रहने वाली नायिका का शरीर इतना दुबला हो गया है कि उसके तमाम आभूषणों में से एक बाजूबन्द बार-बार स्वतः खुल कर गिर पड़ता है। साँवरिया के इस जादुई प्रभाव से नायिका को मुक्त कराने में वैद्य अर्थात चिकित्सक भी समर्थ नही है। ठुमरी के इस अनूठे भाव को एकदम अनूठे ढंग की गायकी से परिभाषित किया है, पण्डित भीमसेन जोशी ने। भारतीय संगीत की विविध विधाओं ध्रुवपद, खयाल, ख़याल, तराना, भजन, अभंग आदि शैलियों के माध्यम से सात दशकों तक पण्डित भीमसेन जोशी ने संगीत प्रेमियों को अपने स्वर के सम्मोहन में बाँधे रखा था। पण्डित जी की खरज भरी आवाज का वैशिष्ट्य जादुई रहा है। बन्दिश को वे जिस माधुर्य के साथ रूपान्तरित कर देते थे, वह अनुभव करने की चीज है। 'तान' को वे अपनी चेरी बनाकर अपने कण्ठ में नचाते रहे। उन्हें खयाल गायन के साथ-साथ ठुमरी, भजन और अभंग गायन में भी महारथ हासिल थी। आइए उनके कण्ठ-स्वर में सुनते हैं यही ठुमरी- ‘साँवरिया ने जादू डारा, बाजूबन्द खुल खुल जाय...’।
ठुमरी भैरवी : ‘बाजूबन्द खुल खुल जाय...’ : पण्डित भीमसेन जोशी
आज हम जिस गायन शैली को ठुमरी गीत के रूप में जानते हैं, उसे एक शैली के रूप में पहचान मिली, अवध के नवाबी दरबार में। उन्नीसवीं शताब्दी के पूर्वार्द्ध में अवध के नवाब वाजिद अली शाह के दरबार में ठुमरी को नई पहचान तो मिली किन्तु इसका विकास बनारस के समृद्ध सांगीतिक परिवेश में हुआ। आज की ठुमरी ‘बाजूबन्द खुल खुल जाय...’ का उपयोग 1954 में ‘बाजूबन्द’ नाम से ही प्रदर्शित फिल्म में किया गया था। इस फिल्म के संगीतकार मोहम्मद शफ़ी थे। फिल्म के एक नृत्य प्रसंग में इस ठुमरी का प्रयोग किया गया था। रामानन्द सागर निर्देशित फिल्म ‘बाजूबन्द’ में एक कम चर्चित संगीतकार मोहम्मद शफ़ी ने भैरवी की इस ठुमरी को लता मंगेशकर से गवाया था। आप लता मंगेशकर जी को उनके जन्मदिन की बधाई देते हुए उन्हीं के मधुर स्वरों में यह ठुमरी सुनिए।
ठुमरी भैरवी : ‘बाजूबन्द खुल खुल जाय...’ : फिल्म बाजूबन्द : लता मंगेशकर : संगीत - मोहम्मद शफ़ी
अब हम आज के इस आलेख और गीतों के समन्वित रूप को श्रव्य माध्यम में प्रस्तुत कर रहे हैं, जिसे ‘रेडियो प्लेबैक इण्डिया’ परिवार की सक्रिय सदस्य संज्ञा टण्डन ने अपनी असरदार आवाज़ से सुसज्जित किया है। आप इस प्रस्तुति का रसास्वादन कीजिए और हमे आज के इस अंक को यहीं विराम देने की अनुमति दीजिए।
ठुमरी भैरवी : ‘बाजूबन्द खुल खुल जाय...’ : फिल्मों के आँगन में ठुमकती पारम्परिक ठुमरी – 5 : वाचक स्वर – संज्ञा टण्डन
आज की पहेली
‘स्वरगोष्ठी’ के 186वें अंक की पहेली में आज हम आपको एक बेहद मशहूर ठुमरी के अन्तरा का अंश सुनवा रहे हैं। इसे सुन कर आपको निम्नलिखित दो प्रश्नों के उत्तर देने हैं। 190वें अंक की पहेली के सम्पन्न होने तक जिस प्रतिभागी के सर्वाधिक अंक होंगे, उन्हें इस श्रृंखला (सेगमेंट) का विजेता घोषित किया जाएगा।
1 – यह ठुमरी किस राग में निबद्ध है?
2 – ठुमरी के अन्तरा का यह अंश सुन कर इस प्रसिद्ध ठुमरी के स्थायी की पंक्ति बताइए।
आप अपने उत्तर केवल swargoshthi@gmail.com या radioplaybackindia@live.com पर ही शनिवार मध्यरात्रि से पूर्व तक भेजें। comments में दिये गए उत्तर मान्य नहीं होंगे। विजेता का नाम हम ‘स्वरगोष्ठी’ के 188वें अंक में प्रकाशित करेंगे। इस अंक में प्रस्तुत गीत-संगीत, राग अथवा कलासाधक के बारे में यदि आप कोई जानकारी या अपने किसी अनुभव को हम सबके बीच बाँटना चाहते हैं तो हम आपका इस संगोष्ठी में स्वागत करते हैं। आप पृष्ठ के नीचे दिये गए comments के माध्यम से तथा swargoshthi@gmail.com अथवा radioplaybackindia@live.com पर अपनी प्रतिक्रिया भी व्यक्त कर सकते हैं।
पिछली पहेली के विजेता
‘स्वरगोष्ठी’ की 184वीं कड़ी की पहेली में हमने आपको विदुषी परवीन सुलताना की आवाज़ में राग पहाड़ी की ठुमरी का एक अंश सुनवा कर आपसे दो प्रश्न पूछे थे। पहले प्रश्न का सही उत्तर है- राग पहाड़ी तथा पहेली के दूसरे प्रश्न का सही उत्तर है- गायिका परवीन सुलताना। परवीन जी ने फिल्म ‘पाकीजा’ के लिए यह ठुमरी राग पहाड़ी के स्वरों में गाया है, जबकि विदुषी (डॉ.) प्रभा अत्रे सहित अन्य कलाकारों ने इसे पारम्परिक रूप से खमाज या मिश्र खमाज में गाया है। पहेली की हमारी नियमित प्रतिभागी हैदराबाद की डी. हरिणा माधवी ने इसी भ्रम के कारण इस बार केवल दूसरे प्रश्न का उत्तर ही सही दिया है। दोनों प्रश्नों के सही उत्तर पेंसिलवानिया, अमेरिका से विजया राजकोटिया, जबलपुर से क्षिति तिवारी और मिन्नेसोटा, अमेरिका से दिनेश कृष्णजोइस ने दिया है। चारो प्रतिभागियों को ‘रेडियो प्लेबैक इण्डिया’ की ओर से हार्दिक बधाई।
कुछ अपनी कुछ आपकी
मित्रों, ‘रेडियो प्लेबैक इण्डिया’ के साप्ताहिक स्तम्भ ‘स्वरगोष्ठी’ के मंच पर जारी है हमारी लघु श्रृंखला ‘फिल्मों के आँगन में ठुमकती पारम्परिक ठुमरी’। इस श्रृंखला में हमने एक नया प्रयोग किया है। ‘स्वरगोष्ठी’ के परम्परागत आलेख, चित्र और गीत-संगीत के आडियो रूप के साथ-साथ सम्पूर्ण आलेख, गीतों के साथ श्रव्य माध्यम से भी प्रस्तुत किया जा रहा है। आपको हमारा यह प्रयोग कैसा लगा? हमें अपनी प्रतिक्रिया अवश्य लिखिएगा। 7 सितम्बर को प्रकाशित / प्रसारित ‘स्वरगोष्ठी’ के 183वें अंक के बारे में हमारे कई पाठकों / श्रोताओं ने कुछ सार्थक टिप्पणियाँ की है-
Sunil Bajpai – मोरे राजा ~ फुलवन गेंद से ~ ना मारो ~ लगत करेजवा में चोट ~ ~ फुल गेंदवा ना मारो ~ लगत करेजवा में चोट ~
Vijaya Rajkotia - Rasoolan bai is well known for Thumri singing. Thanks for posting.
Abhijeet Kondekar - Sheer delight to listen to this version, thanks for the post!
Ananth Rao - Phul gendavan na maro.....a lovely tumri. Thanks for sharing.
आप
भी इस अंक पर अपनी प्रतिक्रिया व्यक्त कर सकते हैं। आप अपनी पसन्द के विषय
और गीत-संगीत की फरमाइश अथवा अगली श्रृंखलाओं के लिए आप किसी नए विषय का
सुझाव भी दे सकते हैं। अगले रविवार को प्रातः 9 बजे ‘स्वरगोष्ठी’ के इसी
मंच पर सभी संगीतानुरागियों की हम प्रतीक्षा करेंगे।
वाचक स्वर : संज्ञा टण्डन
आलेख व प्रस्तुति : कृष्णमोहन मिश्र
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