Skip to main content

सुर संगम में आज - सगीत शिरोमणि कुमार गन्धर्व

सुर संगम - 30 - पंडित कुमार गंधर्व

वे अपने गायन में छोटे-छोटे व सशक्त टुकड़ों व तानों के प्रयोग के लिए जाने जाते थे परंतु कैंसर से जूझने के कारण उनकी गायकी में काफ़ी प्रभाव पड़ा

"मोतिया गुलाबे मरवो... आँगना में आछो सोहायो
गेरा गेराई चमेली... फुलाई सुगंधा मोहायो..."


उपरोक्त पंक्तियाँ हैं एक महान शास्त्रीय गायक की रचना के| एक ऐसा नाम जिसे शास्त्रीय भजन गायन में सर्वोत्तम माना गया है, कुछ लोगों का मानना है कि वे लोक संगीत व भजन के सर्वोत्तम गायक थे तो कुछ का मानना है कि उनकी सबसे बहतरीन रचनाएँ हैं उनके द्वारा रचित राग जिन्हें वे ६ से भी अधिक प्रकार के ले व तानों को मिश्रित कर प्रस्तुत करते थे| मैं बात करा रहा हूँ महान शास्त्रीय संगीतज्ञ पंडित कुमार गंधर्व की जिन्हें इस अंक के माध्यम से सुर-संगम दे रहा है श्रद्धांजलि|

कुमार गंधर्व का जन्म बेलगाम, कर्नाटक के पास 'सुलेभवि' नामक स्थान में ८ अप्रैल १९२४ को हुआ, माता-पिता ने नाम रखा ' शिवपुत्र सिद्दरामय्या कोमकलीमठ'| उन्होंने संगीत की शिक्षा उन दिनों जाने-माने संगीताचार्य प्रो. बी. आर. देवधर से ली| बाल्यकाल से ही संगीत में असाधारण प्रतिभा दिखाने के कारण उन्हें 'कुमार गंधर्व' शीर्षक दिया गया - भारतीय पुराणों में गंधर्व को संगीत का देवता माना गया है| उन्होंने १९४७ में भानुमति कांस से विवाह किया तथा देवास, मध्य प्रदेश चले गये| कुछ समय पश्चात वे बीमार रहने लगे तथा टीबी की चिकित्सा शुरू की गयी| चिकित्सा का कोई असर न होने पर उन्हें पुनः जाँचा गया और उनमें फेफड़े का कैंसर पाया गया| कुमार अपने परिवार के अनुनय पर सर्जरी के लिए मान गये जबकि उन्हें भली-भाँति बता दिया गया था की संभवत: सर्जरी के बाद वे कभी न गा सकेंगे| सर्जरी के बाद उनके एक प्रशंसक उनसे मिलने आए जो एक चिकित्सक भी थे| जाँचने पर उन्होंने पाया कि कुमार के सर्जरी के घाव भर चुके हैं तथा उन्हें गायन प्रारंभ करने की सलाह दी| प्रशंसक डाक्टर की चिकित्सा व आश्वासन तथा पत्नी भानुमति की सेवा से पंडित गंधर्व स्वस्थ हो उठे तथा उन्होंने गायन पुनः प्रारंभ किया| तो ये थी बातें पंडित गंधर्व के व्यक्तिगत जीवन की, उनके बारे में और जानने से पहले लीजिए आपको सुनाते हैं उनके द्वारा प्रस्तुत राग नंद में यह सुंदर बंदिश|

राजन अब तो आजा रे - बंदिश(राग नंद)


स्वस्थ होने के पश्चात कुमारजी ने अपनी पहली प्रस्तुति दी वर्ष १९५३ में| इससे पहले वे अपने गायन में छोटे-छोटे व सशक्त टुकड़ों व तानों के प्रयोग के लिए जाने जाते थे परंतु कैंसर से जूझने के कारण उनकी गायकी में काफ़ी प्रभाव पड़ा, वे उस समय के दिग्गज जैसे पं. भिमसेन जोशी की भाँति उन ऊँचाईयो को तो न छू सके परंतु अपने लिए एक अलग स्थान अवश्य बना पाए| शास्त्रीय गायन के साथ-साथ उन्होंने कई और भी प्रकार के संगीत जैसे निर्गुणी भजन तथा लोक गीतों में अपना कौशल दिखाया जिनमें वे अलग अलग रागों की मिश्रित कर, कभी धीमी तो कभी तीव्र तानों का प्रयोग कर एक अद्भुत सुंदरता ले आते थे| आइए सुनें उनके द्वारा प्रस्तुत ऐसे ही एक निर्गुणी भजन को जिसे उन्होंने गाया है राग भैरवी पर, भजन के बोल हैं - "भोला मन जाने अमर मेरी काया..."|

भोला मन जाने अमर मेरी काया - भजन (राग भैरवी)


पंडित गंधर्व का गायन विवादास्पद भी रहा| विशेष रूप से उनकी विलंबित गायकी की कई दिग्गजों ने, जिनमें उनके गुरु प्रो. देवधर भे शामिल थे, ने निंदा की| १९६१ में उनकी पत्नी भानुमति का निधन हो गया, उनसे कुमार को एक पुत्र हुआ| इसके पश्चात उन्होंने देवधर की ही एक और छात्रा वसुंधरा श्रीखंडे के साथ विवाह किया जिनके साथ आयेज चलकर उन्होंने भजन जोड़ी बनाई| कुमारजी को वर्ष १९९० में पद्म-भूषण पुरस्कार से सम्मानित किया गया| दुर्भाग्यपूर्ण, १२ जनवरी ११९२ को ६७ वर्ष की आयु में उनका देहांत हो गया परंतु पंडित जी अपने पीछे छोड़ गये अपनी रचनाओं की एक बहुमूल्य विरासत| आइए उन्हें नमन करते हुए तथा इस अंक को यहीं विराम देते हुए सुने उनके द्वारा गाए इस वर्षा गीत को इस वीडियो के माध्यम से|
वर्षा गीत


और अब बारी है इस कड़ी की पहेली की जिसका आपको देना होगा उत्तर तीन दिनों के अंदर इसी प्रस्तुति की टिप्पणी में। प्रत्येक सही उत्तर के आपको मिलेंगे ५ अंक। 'सुर-संगम' की ५०-वीं कड़ी तक जिस श्रोता-पाठक के हो जायेंगे सब से अधिक अंक, उन्हें मिलेगा एक ख़ास सम्मान हमारी ओर से।

पहेली: यह पारंपरिक लोक संगीत शैली उत्तर-प्रदेश में वर्षा ऋतु के समय गायी जाती है|

पिछ्ली पहेली का परिणाम: अमित जी को बधाई| क्षिति जी कहाँ ग़ायब हैं???

अब समय आ चला है आज के 'सुर-संगम' के अंक को यहीं पर विराम देने का। आशा है आपको यह प्रस्तुति पसन्द आई होगी। हमें बताइये कि किस प्रकार हम इस स्तंभ को और रोचक बना सकते हैं!आप अपने विचार व सुझाव हमें लिख भेजिए oig@hindyugm.com के ई-मेल पते पर। शाम ६:३० बजे कृष्णमोहन जी के साथ 'ओल्ड इज़ गोल्ड' की महफ़िल में पधारना न भूलिएगा, नमस्कार!

प्रस्तुति - सुमित चक्रवर्ती


आवाज़ की कोशिश है कि हम इस माध्यम से न सिर्फ नए कलाकारों को एक विश्वव्यापी मंच प्रदान करें बल्कि संगीत की हर विधा पर जानकारियों को समेटें और सहेजें ताकि आज की पीढ़ी और आने वाली पीढ़ी हमारे संगीत धरोहरों के बारे में अधिक जान पायें. "ओल्ड इस गोल्ड" के जरिये फिल्म संगीत और "महफ़िल-ए-ग़ज़ल" के माध्यम से गैर फ़िल्मी संगीत की दुनिया से जानकारियाँ बटोरने के बाद अब शास्त्रीय संगीत के कुछ सूक्ष्म पक्षों को एक तार में पिरोने की एक कोशिश है शृंखला "सुर संगम". होस्ट हैं एक बार फिर आपके प्रिय सुजॉय जी.

Comments

This post has been removed by the author.
ऑडियो के दोनों लिंक क्लिक करने पर "बेक़रार दिल..." गीत बज रहा है। कृपया देखकर ठीक कर दीजिये।
sayad kal wali link galti se copy ho gayi hai
पण्डित कुमार गन्धर्व ने 29 वर्ष की आयु से मात्र एक फेफड़े के बल पर चार दशकों तक अद्भुत गायकी का परिचय दिया था। सब जानते हैं कि गायन में साँसों की कितनी उपयोगिता है। अपनी शारीरिक अपंगता के विकल्प में पण्डित जी ने गायन की अपनी अलग शैली विकसित की थी। आज यह शैली उन्ही के नाम से पहचानी जाती है। ऐसे में यदि कुछ लोग उनकी विलम्बित खयाल गायकी की आलोचना करते हों तो क्या कहा जाए? पण्डित कुमार गन्धर्व ने अपनी विशिष्ट शैली में न केवल परम्परागत शास्त्रीय संगीत को समृद्ध किया बल्कि कबीर साहित्य को संगीतबद्ध कर एक नया आयाम दिया। उनकी स्मृतियों को शत-शत नमन।
sorry for the late audio uploading, corrected now

Popular posts from this blog

सुर संगम में आज -भारतीय संगीताकाश का एक जगमगाता नक्षत्र अस्त हुआ -पंडित भीमसेन जोशी को आवाज़ की श्रद्धांजली

सुर संगम - 05 भारतीय संगीत की विविध विधाओं - ध्रुवपद, ख़याल, तराना, भजन, अभंग आदि प्रस्तुतियों के माध्यम से सात दशकों तक उन्होंने संगीत प्रेमियों को स्वर-सम्मोहन में बाँधे रखा. भीमसेन जोशी की खरज भरी आवाज का वैशिष्ट्य जादुई रहा है। बन्दिश को वे जिस माधुर्य के साथ बदल देते थे, वह अनुभव करने की चीज है। 'तान' को वे अपनी चेरी बनाकर अपने कंठ में नचाते रहे। भा रतीय संगीत-नभ के जगमगाते नक्षत्र, नादब्रह्म के अनन्य उपासक पण्डित भीमसेन गुरुराज जोशी का पार्थिव शरीर पञ्चतत्त्व में विलीन हो गया. अब उन्हें प्रत्यक्ष तो सुना नहीं जा सकता, हाँ, उनके स्वर सदियों तक अन्तरिक्ष में गूँजते रहेंगे. जिन्होंने पण्डित जी को प्रत्यक्ष सुना, उन्हें नादब्रह्म के प्रभाव का दिव्य अनुभव हुआ. भारतीय संगीत की विविध विधाओं - ध्रुवपद, ख़याल, तराना, भजन, अभंग आदि प्रस्तुतियों के माध्यम से सात दशकों तक उन्होंने संगीत प्रेमियों को स्वर-सम्मोहन में बाँधे रखा. भीमसेन जोशी की खरज भरी आवाज का वैशिष्ट्य जादुई रहा है। बन्दिश को वे जिस माधुर्य के साथ बदल देते थे, वह अनुभव करने की चीज है। 'तान' को वे अपनी चे...

‘बरसन लागी बदरिया रूमझूम के...’ : SWARGOSHTHI – 180 : KAJARI

स्वरगोष्ठी – 180 में आज वर्षा ऋतु के राग और रंग – 6 : कजरी गीतों का उपशास्त्रीय रूप   उपशास्त्रीय रंग में रँगी कजरी - ‘घिर आई है कारी बदरिया, राधे बिन लागे न मोरा जिया...’ ‘रेडियो प्लेबैक इण्डिया’ के साप्ताहिक स्तम्भ ‘स्वरगोष्ठी’ के मंच पर जारी लघु श्रृंखला ‘वर्षा ऋतु के राग और रंग’ की छठी कड़ी में मैं कृष्णमोहन मिश्र एक बार पुनः आप सभी संगीतानुरागियों का हार्दिक स्वागत और अभिनन्दन करता हूँ। इस श्रृंखला के अन्तर्गत हम वर्षा ऋतु के राग, रस और गन्ध से पगे गीत-संगीत का आनन्द प्राप्त कर रहे हैं। हम आपसे वर्षा ऋतु में गाये-बजाए जाने वाले गीत, संगीत, रागों और उनमें निबद्ध कुछ चुनी हुई रचनाओं का रसास्वादन कर रहे हैं। इसके साथ ही सम्बन्धित राग और धुन के आधार पर रचे गए फिल्मी गीत भी सुन रहे हैं। पावस ऋतु के परिवेश की सार्थक अनुभूति कराने में जहाँ मल्हार अंग के राग समर्थ हैं, वहीं लोक संगीत की रसपूर्ण विधा कजरी अथवा कजली भी पूर्ण समर्थ होती है। इस श्रृंखला की पिछली कड़ियों में हम आपसे मल्हार अंग के कुछ रागों पर चर्चा कर चुके हैं। आज के अंक से हम वर्षा ऋतु...

काफी थाट के राग : SWARGOSHTHI – 220 : KAFI THAAT

स्वरगोष्ठी – 220 में आज दस थाट, दस राग और दस गीत – 7 : काफी थाट राग काफी में ‘बाँवरे गम दे गयो री...’  और  बागेश्री में ‘कैसे कटे रजनी अब सजनी...’ ‘रेडियो प्लेबैक इण्डिया’ के साप्ताहिक स्तम्भ ‘स्वरगोष्ठी’ के मंच पर जारी नई लघु श्रृंखला ‘दस थाट, दस राग और दस गीत’ की सातवीं कड़ी में मैं कृष्णमोहन मिश्र, आप सब संगीत-प्रेमियों का हार्दिक अभिनन्दन करता हूँ। इस लघु श्रृंखला में हम आपसे भारतीय संगीत के रागों का वर्गीकरण करने में समर्थ मेल अथवा थाट व्यवस्था पर चर्चा कर रहे हैं। भारतीय संगीत में सात शुद्ध, चार कोमल और एक तीव्र, अर्थात कुल 12 स्वरों का प्रयोग किया जाता है। एक राग की रचना के लिए उपरोक्त 12 में से कम से कम पाँच स्वरों की उपस्थिति आवश्यक होती है। भारतीय संगीत में ‘थाट’, रागों के वर्गीकरण करने की एक व्यवस्था है। सप्तक के 12 स्वरों में से क्रमानुसार सात मुख्य स्वरों के समुदाय को थाट कहते है। थाट को मेल भी कहा जाता है। दक्षिण भारतीय संगीत पद्धति में 72 मेल का प्रचलन है, जबकि उत्तर भारतीय संगीत में दस थाट का प्रयोग किया जाता है। इन...