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ऐ आँख अब ना रोना, रोना तो उम्रभर है...कितना दर्दीला है ये युगल गीत लता चितलकर का गाया

ओल्ड इस गोल्ड शृंखला # 565/2010/265

सी. रामचन्द्र के स्वरबद्ध किए और उन्हीं के गाये हुए गीतों से सजी 'ओल्ड इज़ गोल्ड' की लघु शृंखला 'कितना हसीं है मौसम' की पाँचवीं कड़ी में आप सभी का स्वागत है। दोस्तों, अब तक इस शृंखला में हमने चितलकर की आवाज़ में दो एकल गीत सुनें और बाक़ी के दो गीत उन्होंने लता जी के साथ गाया था। आइए आज एक बार फिर एक मशहूर लता-चितलकर डुएट सुना जाये। यह गीत है १९४९ की फ़िल्म 'सिपहिया' का, जिसके बोल हैं "ऐ आँख अब ना रोना, रोना तो उम्रभर है, पी जाएँ आँसूओं को, बस वो जिगर जिगर है"। गीतकार हैं राम चतुरवेदी। आइए आज अपको एक फ़ेहरिस्त दी जाये लता-चितलकर डुएट्स की।

अलबेला (१९५१) - भोली सूरत दिल के खोटे, महफ़िल में मेरी कौन ये दीवाना आया, मेरे दिल की घड़ी करे टिक टिक टिक, शाम ढले खिड़की तले, शोला जो भड़के दिल मेरा धड़के।
आज़ाद (१८५४) - कितना हसीं है मौसम।
बारिश (१९५७) - कहते हैं प्यार किस को पंछी, फिर वही चाँद वही हम वही तन्हाई।
भेदी बंगला (१९४९) - आँसू ना बहाना कांटों भरी राह से।
हंगामा (१९५२) - झूम झूम झूम राही प्यार की दुनिया, उल्फ़त की ज़िंदगी के साल हो हज़ार।
झमेला (१९५३) - देखो जी हमारा दिल लेके दग़ा नहीं, सुनोजी सुनो तुम से हुई है मुलाक़ात, बलखाती इठलाती आई है जो।
ख़ज़ाना (१९५१) - बाबडी-बूबडी जल गई दुनिया मिल गये, दो दिलवालों का अफ़साना ऐ चाँद किसी।
नदिया के पार (१९४९) - ओ गोरी ओ छोरी कहाँ चली कहाँ।
नास्तिक (१९५४) - ज़ोर लगाले ज़माने कितना ज़ोर लगाले, झुकती है दुनिया झुकानेवाला चाहिए।
संगीता (१९५०) - गिरगिट की तरह हैं रंग बदलते।
सरगम (१९५०) - बुड्ढ़ा है घोड़ा लाल है लगाम, वो हमसे चुप हैं, मौसम-ए-बहार आये दिल में, मैं हूँ अलादीन मेरे पास चराग़ तीन, मोमबासा रात मिलन की, भैया सब से भला रुपैया।
शगुफ़ा (१९५३) - तुम मेरी ज़िंदगी में तूफ़ान बनके।
शिनशिना की बबला बू (१९५२) - कौन है ऐसा महफ़िल में जो ना तेरा, शिन शिना की बबला बू, ये हँसी बाबा ये ख़ुशी बाबा, ये सिमटी कली कोई ले रस की कली ले।
सिपहिया (१९४९) - ऐ आँख अब ना रोना, लगा है कुछ ऐसा निशाना।
उस्ताद पेड्रो - तेरे दिल पे जादू कर गया।

दोस्तों, इस फ़हरिस्त को पढ़कर आपने ग़ौर किया होगा कि रोमांटिक गीतों के साथ साथ बहुत से गानें हास्य और मस्ती भरे छेड़ छाड़ वाले अंदाज़ के भी हैं और उस ज़माने में सी. रामचन्द्र इस तरह के गीतों के लिए जाने जाते थे। फ़िल्म 'सिपहिया' की बात करें तो मधुबाला और याकूब अभिनीत इस फ़िल्म में लता जी की गाई रचनाओं में शामिल हैं दर्द भरी धुन में कम्पोज़ की हुई "दर्द लगा के ठेस लगा के चले गये" और "आराम के ये साथी क्या-क्या", लेकिन इन गीतों की तज़ें कुछ ख़ास मुकाम हासिल ना कर सकी, पर फ़िल्म का सबसे मशहूर गीत "ऐ आँख अब ना रोना" और गज़ल शैली में गाई हुई "हँसी हँसी न रही और ख़ुशी ख़ुशी ना रही" में सी. रामचन्द्र फिर अपने उसी कामयाबी भरे मधुर अंदाज़ में लौटते हैं। लता, चितलकर के स्वर में "लगा है कुछ ऐसा निशाना" में सी. रामचन्द्र ने दादरा ताल पर कव्वाली के ठेके देकर अभिनव प्रयोग दर्शाया है। तो आइए लता मंगेशकर और चितलकर की इस जोड़ी के नाम आज का यह अंक करें और सुनें यह मीठा दर्द भरा गीत। फिर से वही बात दोहराता हूँ कि न जाने क्यों दर्दीले गीत ज़्यादा मीठे लगते हैं।



क्या आप जानते हैं...
कि 'अनारकली' के संगीत-निर्माण के दौरान सी. रामचन्द्र अपनी फ़िल्म 'झांझर' का भी निर्माण कर रहे थे। 'अनारकली' के निर्माता ने उन पर आरोप लगाया कि 'झांझर' की वजह से सी. रामचन्द्र 'अनारकली' के साथ अन्याय कर रहे हैं। लेकिन जब दोनों फ़िल्में रिलीज़ हुईं, तो 'अनारकली' के गीतों ने इतिहास रचा जबकि 'झांझर' पिट गई।

दोस्तों अब पहेली है आपके संगीत ज्ञान की कड़ी परीक्षा, आपने करना ये है कि नीचे दी गयी धुन को सुनना है और अंदाज़ा लगाना है उस अगले गीत का. गीत पहचान लेंगें तो आपके लिए नीचे दिए सवाल भी कुछ मुश्किल नहीं रहेंगें. नियम वही हैं कि एक आई डी से आप केवल एक प्रश्न का ही जवाब दे पायेंगें. हर १० अंकों की शृंखला का एक विजेता होगा, और जो १००० वें एपिसोड तक सबसे अधिक श्रृंखलाओं में विजय हासिल करेगा वो ही अंतिम महा विजेता माना जायेगा. और हाँ इस बार इस महाविजेता का पुरस्कार नकद राशि में होगा ....कितने ?....इसे रहस्य रहने दीजिए अभी के लिए :)

पहेली 06/शृंखला 07
गीत का ये हिस्सा सुनें-


अतिरिक्त सूत्र -इतना सुनने के बाद गीत पहचानना मुश्किल नहीं.

सवाल १ - गीतकार बताएं - १ अंक
सवाल २ - फिल्म का नाम बताएं - १ अंक
सवाल ३ - इस गीत में शहनाई किस अन्य संगीतकार ने बजायी है - २ अंक

पिछली पहेली का परिणाम -
एक बार फिर बहुत बढ़िया शरद जी...अमित जी और दीपा जी को भी बधाई

खोज व आलेख- सुजॉय चटर्जी


इन्टरनेट पर अब तक की सबसे लंबी और सबसे सफल ये शृंखला पार कर चुकी है ५०० एपिसोडों लंबा सफर. इस सफर के कुछ यादगार पड़ावों को जानिये इस फ्लेशबैक एपिसोड में. हम ओल्ड इस गोल्ड के इस अनुभव को प्रिंट और ऑडियो फॉर्मेट में बदलकर अधिक से अधिक श्रोताओं तक पहुंचाना चाहते हैं. इस अभियान में आप रचनात्मक और आर्थिक सहयोग देकर हमारी मदद कर सकते हैं. पुराने, सुमधुर, गोल्ड गीतों के वो साथी जो इस मुहीम में हमारा साथ देना चाहें हमें oig@hindyugm.com पर संपर्क कर सकते हैं या कॉल करें 09871123997 (सजीव सारथी) या 09878034427 (सुजॉय चटर्जी) को

Comments

दीपा said…
गीतकार - भरत व्यास
सवाल ३ - इस गीत में शहनाई किस अन्य संगीतकार ने बजायी है - रामलाल चौधरी
हिन्दुस्तानी said…
फिल्म का नाम है: नवरंग
आज कहीं जाना पड गया लौट कर आया तो उत्तर आ ही चुके थे । चलिए मैं गीत के बोल बता देता हूँ : कारी कारी कारी अंधियारी थी रात ...
AVADH said…
रामलाल जी ने कितना मधुर संगीत दिया था फिल्म सेहरा में. खासतौर से गीत 'पंख होते तो उड़ जाती रे ' और 'तकदीर का फ़साना जा कर किसे सुनाएँ' बेहद मकबूल हुए थे.
अवध लाल
गुड्डोदादी said…
गीत सुन कर
एक पुरानी गीत ने ना चाहते हुए भी आंसू
आ गए अथाह गहराइयों की सोच
सेहरा मेरी देखि हुई है उसके गाने बहुत अच्छे है.पंख होती तो उड़ आती' में संध्या जी का शरीर को थरथराना कमाल का था जैसे कोई कबूतर अपने शरीर को हल्की सी जुम्बिश दे के ठहर जाए.
'तकदीर का फ़साना जा कर किसे सुनाये'के एक एक शब्द में जैसे दर्द का समंदर भर दिया हो.मतवाले चाँद सूरज तेरा उठाये डोला,तुझको खुशी की परियां घर तेरे ले के जाए इस दिल में जल रही है अरमान की चिताये....पूरा ..पूरा गाना ..कमाल.मेल फिमेल दोनों की आवाज में है ये.रामलाल जी का म्युज़िक था.मुझे नही मालूम था.एक मधुर और अम्र गीत का रचियता ....गुमनाम.दुर्भाग्य.

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