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भूली बिसरी एक कहानी....इच्छाधारी नागिन का बदला भी बना संगीत से सना

ओल्ड इस गोल्ड शृंखला # 580/2010/280

मस्कार! दोस्तों, आज हम आ पहुँचे हैं 'ओल्ड इज़ गोल्ड' की इन दिनों चल रही लघु शृंखला 'मानो या ना मानो' की अंतिम कड़ी पर। अब तक इस शृंखला में हमने भूत-प्रेत, आत्मा और पुनर्जनम की बातें की, जो थोड़े सीरियस भी थे, थोड़े मज़ाकिया भी, थोड़े वैज्ञानिक भी थे, और थोड़े बकवास भी। आज का अंक हम समर्पित करते हैं एक और रहस्यमय विषय पर, जिसे विज्ञान में 'Cryptozoology' कहा जाता है, यानी कि ऐसा जीव विज्ञान जो ऐसे जीवों पर शोध करता है जिनके वजूद को लेकर भी संशय है। 'क्रिप्टिड' उस जीव को कहते हैं जिसका अस्तित्व अभी प्रमाणित नहीं हुआ है। सदियों से बहुत सारे क्रिप्टिड्स के देखे जाने की कहानियाँ मशहूर है, जिनकी अभी तक वैज्ञानिक प्रामाणिकता नहीं मिल पायी है। तीन जो सब से प्रचलित क्रिप्टिड्स हैं, उनके नाम हैं बिगफ़ूट (Bigfoot), लोचनेस मॊन्स्टर (Lochness Monster), और वीयरवूल्व्स (Werewolves)। बिगफ़ूट को पहली बार १९-वीं शताब्दी में देखे जाने की बात सुनी जाती है। इस जीव की उच्चता और चौड़ाई ८ फ़ीट की होती है और पूरे शरीर पर मिट्टी के रंग वाले बाल होते हैं। इसे पैसिफ़िक उत्तर-पश्चिमी अमेरिका में देखे जाने की बात कही जाती है। बिगफ़ूट को लेकर कई धारणाएँ प्रचलित है, जिनमें से एक धारणा यह मानती है कि बिगफ़ूट एक जानवर और नीयण्डर्थल युग के मानव के बीच यौन संबंध से पैदा हुआ है आज से करीब २८००० साल पहले। बहुत से शोधार्थी अपनी पूरी पूरी ज़िंदगी लगा देते हैं बिगफ़ूट की खोज में। संसार के रहस्यों में बिगफ़ूट एक महत्वपूर्ण रहस्य है आज भी। लोचनेस मॊन्स्टर भी एक मशहूर क्रिप्टिड है जिसे पहली बार १९३० के दशक में स्कॊटलैण्ड में देखे जाने की बात कही जाती है। इसे नेसी भी कहते हैं जिसका शरीर पतला, रबर की तरह है, चमड़े का रंग काले और ग्रे के बीच का है, लम्बाई करीब २० फ़ीट की है। नेसी का शरीर सर्पीला है, एक सामुद्रिक दैत्य की तरह, और जिसका सर घोड़े के सर की तरह है। नेसी का स्कॊटलैण्ड के ताज़े-पानी के झीलों में पाये जाने की बात कही जाती है। नेसी के अस्तित्व को लेकर अभी विवाद है, लेकिन क्रिप्टोज़ूलोगिस्ट्स इसकी खोज में अब भी उतने ही उत्सुक रहते हैं जितने आज से ९० साल पहले रहते थे। वीयरवूल्व्स एक तरह का भेड़िया है जो आदमी से परिवर्तित होकर बना है। दूसरे शब्दों में, वीयरवूल्व्स वो इंसान हैं जिनमें शक्ति होती है अपने आप को भेड़िये में बदल डालने की। हालाँकि इस तरह की बातें पौराणिक कहानियों को ही शोभा देती है, लेकिन यह भी सच है कि वीयरवूल्व्स क्रिप्टोज़ूलोजी का एक महत्वपूर्ण अध्याय रहा है लम्बे अरसे से।

जहाँ तक भारत और क्रिप्टोपिड्स का सम्बम्ध है, हिमालय की बर्फ़ीली पहाड़ियों में येती नामक जानवर के देखे जाने की बात सुनी जाती है। यह एक विशालकाय जीव है सफ़ेद रंग और बालों वाला, जिसकी उच्चता ६ फ़ीट के आसपास बतायी जाती है। कई पर्बत आरोही येती को देखने का दावा भी करते हैं, लेकिन वैज्ञानिकों का यह मानना है कि बर्फ़ीली पहाड़ियों में सूरज की रोशनी से इतनी चमक पैदा होती है कि कभी कभी आँखें भी धोखा खा जाती है। बर्फ़ से पहाड़ों पर ऐसी आकृतियाँ बन जाती हैं जो किसी विशालकाय दैत्य का आभास कराती हैं। अर्थात! येती बस इंसानी दिमाग का भ्रम है और कुछ नहीं। एक और देसी क्रिप्टिड है इच्छाधारी नागिन, जिसको लेकर हमारे देश में कहानियों की कोई कमी नहीं है। सदियों से इच्छाधारी नाग नागिनों की कथाएँ प्रचलित हैं जो हमारी फ़िल्मों में भी प्रवेश कर चुका है बहुत पहले से ही। सांपों पर बहुत सारे फ़िल्म बने हैं, जिनमें से कुछ इच्छाधारी नागिन के भी हैं। रीना रॊय - जीतेन्द्र अभिनीत मल्टिस्टरर फ़िल्म 'नागिन' तो आपको याद ही होगी जिसमें मशहूर गाना था "तेरे संग प्यार मैं नहीं तोड़ना"। ८० के दशक में श्रीदेवी - ऋषी कपूर अभिनीत फ़िल्म 'नगीना' तो जैसे एक ट्रेण्डसेटर फ़िल्म साबित हुई थी। इस फ़िल्म ने पहले के सभी सांपों पर बनने वाली फ़िल्मों का रेकॊर्ड तोड़ दिया था। इसलिए आज के इस अंक को हम समर्पित करते हैं इच्छाधारी नागिन के नाम, और सुनवाते हैं अनुराधा पौडवाल की आवाज़ में आनंद बक्शी का लिखा और लक्ष्मीकांत-प्यारेलाल का स्वरबद्ध किया गीत "भूली बिसरी एक कहानी, फिर आयी एक याद पुरानी"। और इसी के साथ हमें इजाज़त दीजिए 'मानो या ना मानो' लघु शृंखला को समाप्त करने की। चलते चलते बस इतना ही कहेंगे कि आप किसी भी बात पर यकीन तो कीजिए, लेकिन अपनी बुद्धि और विज्ञान से पूरी तरह विवेचना करने के बाद ही। इस शृंखला के बारे में अपने विचार oig@hindyugm.com के पते पर हमें अवश्य लिख भेजिएगा, हम आपके ईमेल को 'ईमेल के बहाने यादों के ख़ज़ाने' में शामिल करने की कोशिश करेंगे। तो बस अब इजाज़त दीजिए, मिलते हैं शनिवार की शाम 'ईमेल के बहाने यादों के ख़ज़ाने' में, नमस्कार!



क्या आप जानते हैं...
कि फ़िल्म 'नगीना' का शीर्षक गीत "मैं तेरी दुश्मन" पहले अनुराधा पौडवाल से ही रेकॊर्ड करवाया गया था, लेकिन बाद में लता मंगेशकर से डब करवा लिया गया। इस बात को लेकर अनुराधा पौडवाल ने एक इंटरव्यु में अफ़सोस भी जताया था।

दोस्तों अब पहेली है आपके संगीत ज्ञान की कड़ी परीक्षा, आपने करना ये है कि नीचे दी गयी धुन को सुनना है और अंदाज़ा लगाना है उस अगले गीत का. गीत पहचान लेंगें तो आपके लिए नीचे दिए सवाल भी कुछ मुश्किल नहीं रहेंगें. नियम वही हैं कि एक आई डी से आप केवल एक प्रश्न का ही जवाब दे पायेंगें. हर १० अंकों की शृंखला का एक विजेता होगा, और जो १००० वें एपिसोड तक सबसे अधिक श्रृंखलाओं में विजय हासिल करेगा वो ही अंतिम महा विजेता माना जायेगा. और हाँ इस बार इस महाविजेता का पुरस्कार नकद राशि में होगा ....कितने ?....इसे रहस्य रहने दीजिए अभी के लिए :)

पहेली 01/शृंखला 09
गीत का ये हिस्सा सुनें-


अतिरिक्त सूत्र - गायिका हैं सुर्रैया.

सवाल १ - फिल्म का नाम बताएं - १ अंक
सवाल २ - गीतकार बताएं - २ अंक
सवाल ३ - संगीतकार बताएं - 1 अंक

पिछली पहेली का परिणाम -
अमित जी दो बैक तो बैक शृंखला में विजयी हुए हैं, बधाई जनाब....नयी शृंखला के लिए शुभकामनाएँ

खोज व आलेख- सुजॉय चटर्जी


इन्टरनेट पर अब तक की सबसे लंबी और सबसे सफल ये शृंखला पार कर चुकी है ५०० एपिसोडों लंबा सफर. इस सफर के कुछ यादगार पड़ावों को जानिये इस फ्लेशबैक एपिसोड में. हम ओल्ड इस गोल्ड के इस अनुभव को प्रिंट और ऑडियो फॉर्मेट में बदलकर अधिक से अधिक श्रोताओं तक पहुंचाना चाहते हैं. इस अभियान में आप रचनात्मक और आर्थिक सहयोग देकर हमारी मदद कर सकते हैं. पुराने, सुमधुर, गोल्ड गीतों के वो साथी जो इस मुहीम में हमारा साथ देना चाहें हमें oig@hindyugm.com पर संपर्क कर सकते हैं या कॉल करें 09871123997 (सजीव सारथी) या 09878034427 (सुजॉय चटर्जी) को

Comments

गीतकार बताएं-डी. एन. मधोक (D N Madhok)
Anjaana said…
Movie Name : Sharda
संगीतकार : नौशाद
पंछी जा पीछे रहा है बचपन मेरा, उसको जा के ले आ..इस गाने को सुनकर लगता नहीं है कि यह किसी गायिका का पहला गाना होगा. इस गाने को खूबसूरती के साथ गाया था सुरैया ने.उस समय वो मात्र १२ साल कि उम्र की थीं.अदाकारा मेहताब पर यह गाना फिल्माया गया था जो कि उस समय उनसे उम्र में काफी बड़ी थीं.

सच बात तो यह है कि सुरैया को अपना बचपन जीने का मौका ही नहीं मिला.जब वो १० साल की थीं तब उन्होंने युवा मुमताज़ का किरदार निभाया था. पहली बार १९४१ में उन्होंने कैमरे का सामना करा था और उनके फ़िल्मी जीवन का समापन १९६३ की फिल्म 'रुस्तम सोहराब' से हुआ था.

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