नमस्कार! पूरे 'आवाज़' और 'हिंद-युग्म' परिवार की तरफ़ से आप सभी को नववर्ष की बहुत बहुत शुभकामनाएँ। २०११ का यह नया साल आप सब के जीवन में ढेरों ख़ुशियाँ व सफलताएँ लेकर आए, यह हमारी शुभेच्छा है आप सब के लिए। 'ओल्ड इज़ गोल्ड' शनिवार की विशेष प्रस्तुति 'ईमेल के बहाने यादों के ख़ज़ाने' में आप सभी का स्वागत है। इस साप्ताहिक स्तंभ के ज़रिए आप अपनी खट्टी मीठी यादों को पूरी दुनिया के साथ बाँट सकते हैं, या फिर कोई ख़ास गीत अगर आप सुनवाना चाहें, या 'ओल्ड इज़ गोल्ड' के लिए अपनी राय और सुझाव भेजना चाहें, उनकी भी व्यवस्था है इस साप्ताहिक पेशकश में। किसी दायरे में हमने इस विशेषांक को नहीं बांधा है, इसलिए आप अपने तरीके से कुछ भी इसमें भेज सकते हैं जो आपको लगे कि सब से साथ बांटा जा सकता है। आज हम हमारे जिन दोस्त का ईमेल शामिल कर रहे हैं, वो हैं कृष्णमोहन मिश्र, जिनके मनपसंद गायक हैं मन्ना डे। तो चलिए आज का यह अंक कृष्णमोहन जी और मन्ना दा के नाम करते हैं।
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प्रिय सजीव सारथी एवं सुजॉय चटर्जी,
आप दोनों को मेरी हार्दिक शुभकामनाएँ; इसलिए कि आप फिल्म संगीत के क्षेत्र में उत्कृष्ट कार्य कर रहे हैं। 'ओल्ड इज़ गोल्ड' की यह शृंखला भावी शोधार्थियों के लिए तो उपयोगी है ही, नई पीढ़ी के लिए धरोहर भी है।
मैं, कृष्णमोहन मिश्र, लखनऊ-वासी, ६३ वर्षीय संगीत-प्रेमी हूँ। विगत ३८ वर्षों से संगीत की मंच-प्रस्तुतियों की समीक्षा-कार्य करता रहा हूँ। 'ओल्ड इज़ गोल्ड' का अभी कुछ मास पूर्व ही सदस्य बना हूँ। 'फ्लेशबैक एपिसोड' (सफ़र अब तक) पढ़ने के बाद लगा कि आपने फिल्म-संगीत के खजाने को टटोलने का प्रयास किया तो है, किन्तु अभी बहुतेरे कोण टटोलने शेष हैं।
फिल्म एवं सुगम संगीत क्षेत्र में आदरणीय मन्ना डे का योगदान अविस्मरणीय है। एक शृंखला तो उनके जन्मदिवस या किसी अन्य अवसर पर प्रस्तुत की जा सकती है। मैं इस हेतु आपका सहयोग कर सकता हूँ। मैंने शास्त्रीय तथा उपशास्त्रीय रागों पर आधारित पुराने फिल्मी गीतों को सूचीबद्ध किया है। आपने राग आधारित १० गीतों की शृंखला प्रस्तुत किया ही है, मेरी इस सूची से कुछ और श्रृंखलाएँ भी बन सकती हैं। कृपया इस दिशा में मेरा मार्गदर्शन कर मेरे अल्पज्ञान का उपयोग करें।
कृष्णमोहन मिश्र
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कृष्णमोहन जी, सब से पहले तो बहुत बहुत धन्यवाद आपके इस ईमेल के लिए। बहुत अच्छा लगा आपके बारे में जानकर। आपने जिन शब्दों में 'ओल्ड इज़ गोल्ड' की तारीफ़ की है, हमारा हौसला बढ़ाया है, उसके लिए हम आपके आभारी हैं। इसमें कोई शक़ या दोराय नहीं कि मन्ना डे का संगीत जगत में अद्वितीय योगदान रहा है। वो एक सुर-गंधर्व हैं जिन्होंने फ़िल्म संगीत को शास्त्रीयता से समृद्ध करने में उल्लेखनीय योगदान दिया है। १ मई को मन्ना दा का जन्मदिवस है, उस समय हम उन पर १० अंकों की एक लघु शृंखला अवश्य प्रस्तुत करेंगे, ऐसा हम आपसे वादा करते हैं। आप ने शास्त्रीय रागों को सूचीबद्ध करने की जो बात लिखी है, आप बेशक़ हमें इसे भेज सकते हैं हमारे oig@hindyugm.com के पते पर। वैसे आपको यह बता दें कि कल, यानी २ जनवरी से हर रविवार सुबह हम शास्त्रीय संगीत पर आधारित एक नया स्तंभ शुरु कर रहे हैं, जिसमें भी आपके इस सूची में से गानें चुनने की गुंजाइश रहेगी। ज़रूर भेजिएगा अपनी सूची।
आइए अब आज के गीत पर आते हैं। क्योंकि ज़िक्र मन्ना डे का आया है इस अंक में, तो क्यों ना उनका गाया एक दुर्लभ गीत सुना जाए। दुर्लभ इसलिए कहा क्योंकि इस गीत में मन्ना दा के साथ और भी दो गायकों की आवाज़ें शामिल हैं - किशोर कुमार और मोहम्मद रफ़ी। १९८१ में किशोर कुमार की एक फ़िल्म आयी थी 'चलती का नाम ज़िंदगी' जिसमें उन्होंने अभिनय और गायन तो किया ही था, फ़िल्म को निर्देशित भी किया था। अशोक कुमार, अनूप कुमार और अमित कुमार ने भी अभिनय किया था इस फ़िल्म में। इस फ़िल्म में किशोर दा ने एक ऐसा गीत बनाया जिसे उन्होंने मन्ना दा और रफ़ी साहब के साथ मिलकर गाया, जिसके बोल थे "बंद मुट्ठी लाख की"। आपको शायद याद हो 'चलती का नाम गाड़ी' में "बाबू समझो इशारे" गीत में "बंद मुट्ठी लाख की" का इस्तेमाल हुआ था। शायद वहीं से आज के इस प्रस्तुत गीत का आइडिया आया होगा। और दोस्तों, इत्तेफ़ाक़ देखिए, पिछले साल, इसी दिन, यानी १ जनवरी २०१० को 'ओल्ड इज़ गोल्ड' पर मन्ना डे साहब का ही गाया गीत बजा था फ़िल्म 'जुर्माना' का - "ए सखी राधिके बावरी हो गई"। याद है न? और इस साल के 'ओल्ड इज़ गोल्ड' की शुरुआत भी इस सुर-गंधर्व की आवाज़ के साथ हो रही है। एक नहीं, बल्कि तीन तीन सुरसाधकों की आवाज़ों से। तो लीजिए नये साल के जश्न को और भी शानदार और जानदार बनाते हुए सुनते हैं मन्ना डे, किशोर कुमार और मोहम्मद रफ़ी का गाया 'चलती का नाम ज़िंदगी' फ़िल्म का यह गीत।
सुजॉय चट्टर्जी
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प्रिय सजीव सारथी एवं सुजॉय चटर्जी,
आप दोनों को मेरी हार्दिक शुभकामनाएँ; इसलिए कि आप फिल्म संगीत के क्षेत्र में उत्कृष्ट कार्य कर रहे हैं। 'ओल्ड इज़ गोल्ड' की यह शृंखला भावी शोधार्थियों के लिए तो उपयोगी है ही, नई पीढ़ी के लिए धरोहर भी है।
मैं, कृष्णमोहन मिश्र, लखनऊ-वासी, ६३ वर्षीय संगीत-प्रेमी हूँ। विगत ३८ वर्षों से संगीत की मंच-प्रस्तुतियों की समीक्षा-कार्य करता रहा हूँ। 'ओल्ड इज़ गोल्ड' का अभी कुछ मास पूर्व ही सदस्य बना हूँ। 'फ्लेशबैक एपिसोड' (सफ़र अब तक) पढ़ने के बाद लगा कि आपने फिल्म-संगीत के खजाने को टटोलने का प्रयास किया तो है, किन्तु अभी बहुतेरे कोण टटोलने शेष हैं।
फिल्म एवं सुगम संगीत क्षेत्र में आदरणीय मन्ना डे का योगदान अविस्मरणीय है। एक शृंखला तो उनके जन्मदिवस या किसी अन्य अवसर पर प्रस्तुत की जा सकती है। मैं इस हेतु आपका सहयोग कर सकता हूँ। मैंने शास्त्रीय तथा उपशास्त्रीय रागों पर आधारित पुराने फिल्मी गीतों को सूचीबद्ध किया है। आपने राग आधारित १० गीतों की शृंखला प्रस्तुत किया ही है, मेरी इस सूची से कुछ और श्रृंखलाएँ भी बन सकती हैं। कृपया इस दिशा में मेरा मार्गदर्शन कर मेरे अल्पज्ञान का उपयोग करें।
कृष्णमोहन मिश्र
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कृष्णमोहन जी, सब से पहले तो बहुत बहुत धन्यवाद आपके इस ईमेल के लिए। बहुत अच्छा लगा आपके बारे में जानकर। आपने जिन शब्दों में 'ओल्ड इज़ गोल्ड' की तारीफ़ की है, हमारा हौसला बढ़ाया है, उसके लिए हम आपके आभारी हैं। इसमें कोई शक़ या दोराय नहीं कि मन्ना डे का संगीत जगत में अद्वितीय योगदान रहा है। वो एक सुर-गंधर्व हैं जिन्होंने फ़िल्म संगीत को शास्त्रीयता से समृद्ध करने में उल्लेखनीय योगदान दिया है। १ मई को मन्ना दा का जन्मदिवस है, उस समय हम उन पर १० अंकों की एक लघु शृंखला अवश्य प्रस्तुत करेंगे, ऐसा हम आपसे वादा करते हैं। आप ने शास्त्रीय रागों को सूचीबद्ध करने की जो बात लिखी है, आप बेशक़ हमें इसे भेज सकते हैं हमारे oig@hindyugm.com के पते पर। वैसे आपको यह बता दें कि कल, यानी २ जनवरी से हर रविवार सुबह हम शास्त्रीय संगीत पर आधारित एक नया स्तंभ शुरु कर रहे हैं, जिसमें भी आपके इस सूची में से गानें चुनने की गुंजाइश रहेगी। ज़रूर भेजिएगा अपनी सूची।
आइए अब आज के गीत पर आते हैं। क्योंकि ज़िक्र मन्ना डे का आया है इस अंक में, तो क्यों ना उनका गाया एक दुर्लभ गीत सुना जाए। दुर्लभ इसलिए कहा क्योंकि इस गीत में मन्ना दा के साथ और भी दो गायकों की आवाज़ें शामिल हैं - किशोर कुमार और मोहम्मद रफ़ी। १९८१ में किशोर कुमार की एक फ़िल्म आयी थी 'चलती का नाम ज़िंदगी' जिसमें उन्होंने अभिनय और गायन तो किया ही था, फ़िल्म को निर्देशित भी किया था। अशोक कुमार, अनूप कुमार और अमित कुमार ने भी अभिनय किया था इस फ़िल्म में। इस फ़िल्म में किशोर दा ने एक ऐसा गीत बनाया जिसे उन्होंने मन्ना दा और रफ़ी साहब के साथ मिलकर गाया, जिसके बोल थे "बंद मुट्ठी लाख की"। आपको शायद याद हो 'चलती का नाम गाड़ी' में "बाबू समझो इशारे" गीत में "बंद मुट्ठी लाख की" का इस्तेमाल हुआ था। शायद वहीं से आज के इस प्रस्तुत गीत का आइडिया आया होगा। और दोस्तों, इत्तेफ़ाक़ देखिए, पिछले साल, इसी दिन, यानी १ जनवरी २०१० को 'ओल्ड इज़ गोल्ड' पर मन्ना डे साहब का ही गाया गीत बजा था फ़िल्म 'जुर्माना' का - "ए सखी राधिके बावरी हो गई"। याद है न? और इस साल के 'ओल्ड इज़ गोल्ड' की शुरुआत भी इस सुर-गंधर्व की आवाज़ के साथ हो रही है। एक नहीं, बल्कि तीन तीन सुरसाधकों की आवाज़ों से। तो लीजिए नये साल के जश्न को और भी शानदार और जानदार बनाते हुए सुनते हैं मन्ना डे, किशोर कुमार और मोहम्मद रफ़ी का गाया 'चलती का नाम ज़िंदगी' फ़िल्म का यह गीत।
सुजॉय चट्टर्जी
Comments
साल की शुरुआत एक शरारती,शौख गाने से की है जो बरबस चेहरे पर एक मुस्कान ला देता है बस इसी तरह एक प्यारी सी मुस्कान आप लोगो के चेहरे पर सदा खिली रहे.मन्ना डे जी को वो स्थान फिल्म इंडस्ट्री ने नही दिया जो वे 'डिजर्व' करते थे.उनके गाये अधिकाँश गाने सेकंड हीरो पर फिल्माया जाना उसका एक कारन हो सकता है.मुझे हमेशा ऐसा लगा.हो सकता है मेरा सोचना गलत हो किन्तु उनके जैसा शास्त्रीय संगीत पर आधिरित गीत गाने वाला ....दूसरा कोई नही.उनका बंगाली गीत 'कॉफी हाऊस'जरूर सुनियेगा.
शुभकामनाये और प्यार.दोनों दूंगी क्या करूं?
ऐसिच हूँ मैं तो. हा हा हा
ऐसी गलतियाँ????
तभी तो कहती हूँ...
ऐसिच हूँ मैं तो-स्टुपिड-