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भैरवी थाट के राग : SWARGOSHTHI – 223 : BHAIRAVI THAAT



स्वरगोष्ठी – 223 में आज
 

दस थाट, दस राग और दस गीत – 10 : भैरवी थाट
 
राग भैरवी में ‘फुलवन गेंद से मैका न मारो...’ 
और 
मालकौंस में ‘आए सुर के पंछी आए...’


‘रेडियो प्लेबैक इण्डिया’ के साप्ताहिक स्तम्भ ‘स्वरगोष्ठी’ के मंच पर जारी नई लघु श्रृंखला ‘दस थाट, दस राग और दस गीत’ की दसवीं और समापन कड़ी में मैं कृष्णमोहन मिश्र, आप सब संगीत-प्रेमियों का हार्दिक स्वागत करता हूँ। इस लघु श्रृंखला में हम आपसे भारतीय संगीत के रागों का वर्गीकरण करने में समर्थ मेल अथवा थाट व्यवस्था पर चर्चा कर रहे हैं। भारतीय संगीत में सात शुद्ध, चार कोमल और एक तीव्र, अर्थात कुल 12 स्वरों का प्रयोग किया जाता है। एक राग की रचना के लिए उपरोक्त 12 में से कम से कम पाँच स्वरों की उपस्थिति आवश्यक होती है। भारतीय संगीत में ‘थाट’, रागों के वर्गीकरण करने की एक व्यवस्था है। सप्तक के 12 स्वरों में से क्रमानुसार सात मुख्य स्वरों के समुदाय को थाट कहते है। थाट को मेल भी कहा जाता है। दक्षिण भारतीय संगीत पद्धति में 72 मेल का प्रचलन है, जबकि उत्तर भारतीय संगीत में दस थाट का प्रयोग किया जाता है। इन दस थाट का प्रचलन पण्डित विष्णु नारायण भातखण्डे जी ने प्रारम्भ किया था। वर्तमान समय में रागों के वर्गीकरण के लिए यही पद्धति प्रचलित है। भातखण्डे जी द्वारा प्रचलित ये दस थाट हैं; कल्याण, बिलावल, खमाज, भैरव, पूर्वी, मारवा, काफी, आसावरी, तोड़ी और भैरवी। इन्हीं दस थाटों के अन्तर्गत प्रचलित-अप्रचलित सभी रागों को वर्गीकृत किया जाता है। श्रृंखला के आज के अंक में हम आपसे भैरवी थाट पर चर्चा करेंगे और इस थाट के आश्रय राग भैरवी में निबद्ध पण्डित भीमसेन जोशी के स्वरों में दो खयाल रचनाएँ प्रस्तुत करेंगे। साथ ही भैरवी थाट के अन्तर्गत वर्गीकृत राग मालकौंस के स्वरों में निबद्ध एक फिल्मी गीत का उदाहरण पण्डित राजन मिश्र की आवाज़ में प्रस्तुत करेंगे। 




श्रृंखला की पिछली नौ कड़ियों में हमने संगीत के नौ थाटों और उनके आश्रय रागों का परिचय प्राप्त किया। आज हम ‘भैरवी’ थाट और राग के बारे में चर्चा करेंगे। परन्तु इससे पहले आइए, थाट और राग के अन्तर को समझने का प्रयास किया जाए। दरअसल थाट केवल ढाँचा है और राग एक व्यक्तित्व है। थाट-निर्माण के लिए सप्तक के 12 स्वरों में से कोई सात स्वर क्रमानुसार प्रयोग किया जाता है, जब कि राग में पाँच से सात स्वर प्रयोग किए जाते हैं। साथ ही राग की रचना के लिए आरोह, अवरोह, प्रबल, अबल आदि स्वर-नियमों का पालन किया जाता है। आज का थाट है- ‘भैरवी’, जिसमें सा, रे॒, ग॒, म, प, ध॒, नि॒ स्वरों का प्रयोग होता है, अर्थात ऋषभ, गान्धार, धैवत और निषाद स्वर कोमल और मध्यम स्वर शुद्ध। ‘भैरवी’ थाट का आश्रय राग भैरवी नाम से ही पहचाना जाता है। इस राग का वादी स्वर मध्यम और संवादी स्वर षडज होता है। यूँ तो इसके गायन-वादन का समय प्रातःकाल, सन्धिप्रकाश बेला में है, इसके साथ ही परम्परागत रूप से राग ‘भैरवी’ का गायन-वादन किसी संगीत-सभा अथवा समारोह के अन्त में किये जाने की परम्परा बन गई है। राग ‘भैरवी’ को ‘सदा सुहागिन राग’ भी कहा जाता है। इस राग में ठुमरी, दादरा, सुगम संगीत और फिल्म संगीत में राग भैरवी का सर्वाधिक प्रयोग मिलता है। परन्तु आज आपको सुनवाने के लिए हमने राग भैरवी में निबद्ध दो खयाल का चुनाव किया है। इन खयाल के स्वर पण्डित भीमसेन जोशी के हैं।  

राग भैरवी : विलम्बित ‘फुलवन गेंद से...’ और द्रुत खयाल- ‘हमसे पिया...’ : पं. भीमसेन जोशी




भैरवी थाट के अन्य कुछ प्रमुख राग हैं- भैरवी, मालकौस, धनाश्री, विलासखानी तोड़ी, भूपाल तोड़ी, सेनावती, हेमवर्द्धिनी आदि। राग मालकौंस, भैरवी थाट का प्रमुख राग होता है। यह औडव-औडव जाति का राग है, अर्थात आरोह और अवरोह में पाँच-पाँच स्वरों का प्रयोग किया जाता है। राग मालकौंस में ऋषभ और पंचम स्वरों का प्रयोग नहीं होता। गान्धार, धैवत और निषाद स्वर कोमल प्रयोग किये जाते हैं। राग के आरोह में निसा निसां और अवरोह में सांनिधसा स्वर लगते हैं। राग का वादी स्वर मध्यम और संवादी स्वर षडज होता है। रात्रि के तीसरे प्रहर में इस राग का सौन्दर्य खूब निखर उठता है। अब हम आपको 1985 में प्रदर्शित संगीत-प्रधान फिल्म ‘सुर संगम’ से एक गीत सुनवाते हैं। यह गीत राग मालकौंस के स्वरों में पिरोया गया है। इस गीत का पार्श्वगायन पण्डित राजन मिश्र ने किया है, जबकि परदे पर समर्थ अभिनेता गिरीश कर्नाड ने अभिनीत किया है। फिल्म में उन्होने सुप्रसिद्ध शास्त्रीय गायक पण्डित शिवशंकर शास्त्री का चरित्र निभाया है। फिल्म ‘सुर संगम’ का कथानक संजीव सोनार का लिखा हुआ था और इसके गीतकार वसन्त देव हैं। संगीतकार लक्ष्मीकान्त प्यारेलाल ने फिल्म के लगभग सभी गीत रागों के आधार पर ही तैयार किए थे। इन्हीं गीतों में से राग मालकौंस पर आधारित गीत अब हम आपको सुनवाते हैं। आप यह गीत सुनिए और हमें इस अंक से और श्रृंखला से यहीं विराम देने की अनुमति दीजिए।

राग मालकौंस : ‘आए सुर के पंछी आए...’ : पं. राजन मिश्र : फिल्म सुर संगम






संगीत पहेली 


‘स्वरगोष्ठी’ के 223वें अंक की संगीत पहेली में आज हम आपको एक खयाल का अंश विद्वान गायक की आवाज में सुनवा रहे हैं। इसे सुन कर आपको निम्नलिखित तीन में से किन्हीं दो प्रश्नों के उत्तर देने हैं। पहेली क्रमांक 230 के सम्पन्न होने तक जिस प्रतिभागी के सर्वाधिक अंक होंगे, उन्हें इस वर्ष की तीसरी श्रृंखला (सेगमेंट) का विजेता घोषित किया जाएगा।



1 – गीत के इस अंश को सुन कर किस राग का आभास हो रहा है? राग का नाम बताइए।

2 – प्रस्तुत रचना किस ताल में निबद्ध है? ताल का नाम बताइए।

3 – क्या आप गायक की आवाज़ को पहचान सकते हैं? यदि हाँ, तो उनका नाम बताइए।

आप इन तीन में से किन्हीं दो प्रश्नों के उत्तर केवल swargoshthi@gmail.com या radioplaybackindia@live.com पर ही शनिवार, 20 जून, 2015 की मध्यरात्रि से पूर्व तक भेजें। COMMENTS में दिये गए उत्तर मान्य हो सकते है, किन्तु उसका प्रकाशन अन्तिम तिथि के बाद किया जाएगा। विजेता का नाम हम ‘स्वरगोष्ठी’ के 225वें अंक में प्रकाशित करेंगे। इस अंक में प्रस्तुत किये गए गीत-संगीत, राग अथवा कलासाधक के बारे में यदि आप कोई जानकारी या अपने किसी अनुभव को हम सबके बीच बाँटना चाहते हैं तो हम आपका इस मंच पर स्वागत करते हैं। आप पृष्ठ के नीचे दिये गए COMMENTS के माध्यम से तथा swargoshthi@gmail.com अथवा radioplaybackindia@live.com पर भी अपनी प्रतिक्रिया व्यक्त कर सकते हैं।


पिछली पहेली के विजेता


‘स्वरगोष्ठी’ की 221वें अंक की संगीत पहेली में हमने आपको 1954 में प्रदर्शित फिल्म ‘शबाब’ से चुन कर एक गीत का अंश सुनवाया था और आपसे तीन में से किसी दो प्रश्न के उत्तर पूछा था। पहले प्रश्न का सही उत्तर है- राग मुलतानी, दूसरे प्रश्न का सही उत्तर है- ताल तीनताल और तीसरे प्रश्न का सही उत्तर है- कवयित्रि भक्त मीराबाई। इस बार की पहेली में सही उत्तर देने वाले संगीत-प्रेमी हैं- वोरहीज़, न्यूजर्सी से डॉ. किरीट छाया, जबलपुर से क्षिति तिवारी, पेंसिलवेनिया, अमेरिका से विजया राजकोटिया और हैदराबाद से डी. हरिणा माधवी। चारो प्रतिभागियों को ‘रेडियो प्लेबैक इण्डिया’ की ओर से हार्दिक बधाई।


अपनी बात   


मित्रो, ‘रेडियो प्लेबैक इण्डिया’ के साप्ताहिक स्तम्भ ‘स्वरगोष्ठी’ के मंच पर हमारी लघु श्रृंखला ‘दस थाट, दस राग और दस गीत’ का यह समापन अंक था। अगले अंक से हमारी नई श्रृंखला ‘वर्षा ऋतु के रागों’ पर केन्द्रित रहेगी। इस श्रृंखला के लिए आप अपने पसंद के गीत, संगीत और राग की फरमाइश कर सकते हैं। अगले अंक में हम मल्हार अंग के एक प्रकार के साथ उपस्थित होंगे। ‘स्वरगोष्ठी’ के विभिन्न अंकों के बारे में हमें पाठकों, श्रोताओं और पहेली के प्रतिभागियों के अनेक प्रतिक्रियाएँ और सुझाव मिलते हैं। प्राप्त सुझाव और फर्माइशों के अनुसार ही हम अपनी आगामी प्रस्तुतियों का निर्धारण करते हैं। आप भी यदि कोई सुझाव देना चाहते हैं तो आपका स्वागत है। अगले रविवार को प्रातः 9 बजे ‘स्वरगोष्ठी’ के नये अंक के साथ हम उपस्थित होंगे। हमें आपकी प्रतीक्षा रहेगी।


प्रस्तुति : कृष्णमोहन मिश्र  


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