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मन्ना दा को समर्पित है आज की 'सिने पहेली'...

सिने पहेली – 85     "होगा मसीहा सामने तेरे, फिर भी न तू बच पायेगा, तेरा अपना ख़ून ही आख़िर तुझको आग लगायेगा, आसमान में उड़ने वाले मिट्टी में मिल जायेंगे....", कल टेलीविज़न पर मन्ना दा के अन्तिम सफ़र को देखते समय उन्ही के गाये फ़िल्म 'उपकार' के इस गीत के इन बोलों में इस नश्वर संसार के कटु सत्य को एक बार फिर से महसूस कर जैसे मन काँप सा उठा। मन्ना दा चले गये.... हमेशा के लिए.... बहुत बहुत दूर। और हमसे कह गये "जीवन कहीं भी ठहरता नहीं है, आँधी से तूफ़ाँ से डरता नहीं है, तू न चलेगा तो चल देंगी राहें, मइल को तरसेंगी तेरी निगाहें, तुझको चलना होगा, तुझको चलना होगा..."। मन्ना दा भी निरन्तर अपने जीवन पथ पर चलते रहे, बिना रुके, और करते रहे साधना, सुरों की।  संगीत की वादियों में गूंजती अनगिनत आवाज़ों में इस सुर-साधक की आवाज़ सबसे अलग है। इनके स्वर कभी नभ से विराटता रचते हैं, और कभी सागर की गहराई का अहसास कराते हैं। वो चाहे रुमानीयत हो, वीर रस के ओजपूर्ण गीत हो, हास्य की गुदगुदाहट हो, या फिर अपने आराध्य को अर्पित भक्ति की स्वरांजलि, इस

एक आवाज़ जिसने गज़ल को दिए नए मायने

म खमली आवाज़ की रूहानी महक और ग़ज़ल के बादशाह जगजीत सिंह को हमसे विदा हुए लगभग २ साल बीत चुके हैं, बीती १० तारिख को उनकी दूसरी बरसी के दिन, उनकी पत्नी चित्रा सिंह ने उनके करोड़ों मुरीदों को एक अनूठी संगीत सी डी का लाजवाब तोहफा दिया. "द वोईस बियोंड' के नाम से जारी इस नायब एल्बम में जगजीत के ७ अप्रकाशित ग़ज़लें सम्मिलित हैं, जी हाँ आपने सही पढ़ा -अप्रकाशित. शायद ये जगजीत की गाई ओरिजिनल ग़ज़लों का अंतिम संस्करण होगा, पर उनकी मृत्यु के पश्चात ऐसी कोई एल्बम नसीब होगी ऐसी उम्मीद भी आखिर किसे थी ?  खुद चित्रा सिंह ने जो खुद भी एक बेमिसाल गज़ल गायिका रहीं हैं, ने इस एल्बम को श्रोताओं के लिए जारी किया यूनिवर्सल मुय्सिक के साथ मिलकर. जगजीत खुद में गज़ल की एक परंपरा हैं और उनकी जगह खुद उनके अलावा और कोई नहीं भर सकता. जगजीत की इस एल्बम में आप क्या क्या सुन सकते हैं आईये देखें.  निदा फाजली के पारंपरिक अंदाज़ में लिखा गया एक भजन है. धडकन धडकन धड़क रहा है बस एक तेरो नाम ...  जगजीत के स्वरों में इसे सुनते हुए आप खुद को ईश्वर के बेहद करीब पायेंगें. नन्हों की भोली बातों में उजली उजल

अभिनय का नुक्सान, संगीत का फायदा - मीत ब्रो अनजान की तिकड़ी

नए सुर साधक (१) मनमीत, हरमीत और अनजान (बाएं से दायें) अ क्सर जब भी संगीतकार तिकड़ी की बात होती है तो जेहन में शंकर एहसान लॉय का नाम कौंधता है. मगर एक और भी संगीत तिकड़ी है जो धीरे धीरे ही सही मगर इंडस्ट्री में अपनी पहचान बना रही है, ये हैं मीत बंधू यानी हरमीत और मनमीत जिनके साथ जुड़ते हैं उनके मित्र अनजान. मीत ब्रो अनजान के नाम से मशहूर इस तिकड़ी का रचा हाल ही में प्रकाशित ' बॉस ' का शीर्षक गीत इन दिनों खूब बज रहा है.  मीत बंधू सबसे पहले छोटे परदे पर अवतरित हुए थे बतौर अभिनेता. पर कहीं न कहीं संगीत को मार्ग बना कर एक पॉप समूह बनाने का सपना भी पल रहा था. उनका पहला गीत जोगी सिंह बरनाला सिंह  बेहद कामियाब रहा और मीत बंधुओं ने अभिनय को अलविदा कह दिया. एक लाईव शो के दौरान उन्हें अनजान मिले, और तीनों को महसूस हुआ कि उनकी तिकड़ी साथ मिलकर धामल कर सकती है.  एक कोपरेट कंपनी की तरह काम करते हुए इस तिकड़ी ने अपने खुद के गीत रचने शुरू किये और अपने काम को लेकर प्रोडक्शन कंपनियों के पास आने जाने लगे. नए गीतों को अपने संकलन में जोड़ते हुए इन्हें खबर भी नहीं हुई कि कब १० बड

सूफी संतों के सदके में बिछा सूफी संगीत (सूफी संगीत ०३)

सूफी संगीत पर विशेष प्रस्तुति संज्ञा टंडन के साथ  सू फी संतों की साधना में चार मकाम बहुत महत्वपूर्ण माने जाते हैं- शरीअत ,  तरी-कत ,  मारि-फत तथा हकीकत। शरीयत में सदाचरण  ,  कुरान शरीफ का पाठ ,  पांचों वक्त की नमाज ,  अवराद यानी मुख्य आयतों का नियमित पाठ ,  अल्लाह का नाम लेना ,  जिक्रे जली अर्थात बोलकर या जिक्रे शफी यानी मुंह बंद करके अल्लाह का नाम लिया जाता है। उस मालिक का ध्यान किया जाता है। उसी का प्रेम से नाम लिया जाता है। मुराकवा में नामोच्चार के साथ-साथ अल्लाह का ध्यान तथा मुजाहिदा में योग की भांति चित्त की वृत्तियों का निरोध किया जाता है। पांचों ज्ञानेन्दियों के लोप का अभ्यास इसी में किया जाता है। इस शरीअत के बाद पीरो मुरशद अपने मुरीद को अपनाते हैं  ,  उसे रास्ता दिखाते हैं। इसके बाद शुरू होती है तरी-कत। इस में संसार की बातों से ऊपर उठकर अहम् को तोड़ने  ,  छोड़ने का अभ्यास किया जाता है। अपनी इद्रियों को वश में रखने के लिए शांत रहते हुए एकांतवास में व्रत उपवास किया जाता है। तब जाकर मारिफत की पायदान पर आने का मौका मिलता है। इस परम स्थिति में आने के लिए भी सात मकाम तय

अभिषेक ओझा की कहानी संयोग

इस लोकप्रिय स्तम्भ "बोलती कहानियाँ" के अंतर्गत हम आपको सुनवा रहे हैं प्रसिद्ध कहानियाँ। पिछले सप्ताह आपने गिरिजेश राव की मार्मिक कहानी " दूसरा कमरा " का पॉडकास्ट अनुराग शर्मा की आवाज़ में सुना था। आज हम आपकी सेवा में प्रस्तुत कर रहे हैं अभिषेक ओझा की कहानी " संयोग ", अनुराग शर्मा की आवाज़ में। कहानी "संयोग" का कुल प्रसारण समय 9 मिनट 38 सेकंड है। सुनें और बतायें कि हम अपने इस प्रयास में कितना सफल हुए हैं। इस कथा का टेक्स्ट ओझा-उवाच पर उपलब्ध है। यदि आप भी अपनी मनपसंद कहानियों, उपन्यासों, नाटकों, धारावाहिको, प्रहसनों, झलकियों, एकांकियों, लघुकथाओं को अपनी आवाज़ देना चाहते हैं तो अधिक जानकारी के लिए कृपया admin@radioplaybackindia.com पर सम्पर्क करें। वास्तविकता तो ये है कि किसे फुर्सत है मेरे बारे में सोचने की, लेकिन ये मानव मन भी न! ~ अभिषेक ओझा हर सप्ताह यहीं पर सुनें एक नयी कहानी "जैसे लॉटरी में हर बार उसका वही नंबर लगा हो जो लगना चाहिए था। वो पीछे मुड़ कर देखे तो क्या ऐसा नहीं है कि वो इन्हीं सब के लिए ही तो बना था ! चु

आज 'सिने पहेली' आपके मुँह में पानी न लाये तो कहिएगा...

सिने पहेली – 84     'रे डियो प्लेबैक इण्डिया' के सभी पाठकों व श्रोताओं को सुजॉय चटर्जी का सप्रेम नमस्कार! 'सिने पहेली' के इस नए अंक के साथ मैं हाज़िर हूँ। आशा है नवरात्रि, दुर्गापूजा, दशहरा और ईद के त्योहार आप सभी ने हर्षोल्लास के साथ मनाया होगा, और यह भी अंदाज़ा लगा रहे हैं कि अब आप दीपावली की तैयारियों में या तो जुट गए होंगे या कमर कस ही रहे होंगे। दोस्तों, त्योहारों के इस मौसम में खाने-पीने की तरफ़ विशेष ज़ोर दिया जाता है। हर प्रान्त के अपने अलग पकवान होते हैं, जिन्हें हम या तो घर में बनाते हैं या मेले में जाकर खाते हैं। क्यों न आज की 'सिने पहेली' को भी स्वादिष्ट बनाया जाए! जी हाँ, आज हम एक ऐसी पहेली लेकर आये हैं जिसे सुलझाते हुए आपके मुंह में पानी अवश्य आने वाला है। भूमिका में और ज़्यादा वक़्त न ज़ाया करते हुए यह रही आज की पहेली। आज की पहेली : FOOD FOR THOUGHT नीचे एक के बाद एक दस चित्र दिये गये हैं। हर चित्र में किसी न किसी पकवान या खाद्य वस्तु को दर्शाया गया है। इन चित्रों पर ग़ौर करें। चित्रों के बाद पहेल

राम चाहे सुरों की "लीला"

नि र्देशक से संगीतकार बने संजय लीला बंसाली ने ' गुज़ारिश ' में जैसे गीत रचे थे उनका नशा उनका खुमार आज तक संगीत प्रेमियों के दिलो-जेहन से उतरा नहीं है. सच तो ये है कि इस साल मुझे सबसे अधिक इंतज़ार था, वो यही देखने का था कि क्या संजय वाकई फिर कोई ऐसा करिश्मा कर पाते हैं या फिर " गुजारिश " को मात्र एक अपवाद ही माना जाए. दोस्तों रामलीला , गुजारिश से एकदम अलग जोनर की फिल्म है. मगर मेरी उम्मीदें आसमां छू रही थी, ऐसे में रामलीला का संगीत सुन मुझे क्या महसूस हुआ यही मैं आगे की पंक्तियों में आपको बताने जा रहा हूँ.  अदिति पॉल की नशीली आवाज़ से खुलता है गीत  अंग लगा दे . हल्की हल्की रिदम पर मादकता से भरी अदिति के स्वर जादू सा असर करती है उसपर शब्द 'रात बंजर सी है, काले खंजर सी है' जैसे हों तो नशा दुगना हो जाता है. दूसरे अंतरे से ठीक पहले रिदम में एक तीव्रता आती है जिसके बाद समर्पण का भाव और भी मुखरित होने लगता है. कोरस का प्रयोग सोने पे सुहागा लगता है.  धूप से छनके उतरता है अगला गीत श्रेया की रेशम सी बारीक आवाज़ में, सुरों में जैसे रंग झलकते हैं. ताल जैसे

इस ईद "जिक्र" उस परवरदिगार का सूफी संगीत में

प्लेबैक इंडिया ब्रोडकास्ट  सूफी संगीत भाग २  कहा जाता है कि सूफ़ीवाद ईराक़ के बसरा नगर में क़रीब एक हज़ार साल पहले जन्मा. भारत में इसके पहुंचने की सही सही समयावधि के बारे में आधिकारिक रूप से कुछ नहीं कहा जा सकता लेकिन बारहवीं-तेरहवीं शताब्दी में ग़रीबनवाज़ ख़्वाजा मोईनुद्दीन चिश्ती बाक़ायदा सूफ़ीवाद के प्रचार-प्रसार में रत थे. (पूरी पोस्ट यहाँ पढ़ सकते हैं)

‘जय जय हे जगदम्बे माता...’ : नवरात्र पर विशेष

स्वरगोष्ठी – 140 में आज रागों में भक्तिरस – 8 राग यमन में सांध्य-वन्दन के स्वर        ‘रेडियो प्लेबैक इण्डिया’ के साप्ताहिक स्तम्भ ‘स्वरगोष्ठी’ के मंच पर इन दिनों जारी लघु श्रृंखला ‘रागों में भक्तिरस’ की आठवीं कड़ी में मैं कृष्णमोहन मिश्र, एक बार पुनः आप सब संगीत-रसिकों का स्वागत करता हूँ। इस श्रृंखला के अन्तर्गत हम आपके लिए भारतीय संगीत के कुछ भक्तिरस प्रधान राग और उनमें निबद्ध रचनाएँ प्रस्तुत कर रहे हैं। साथ ही उस राग पर आधारित फिल्म संगीत के उदाहरण भी आपको सुनवा रहे हैं। श्रृंखला की आज की कड़ी में हम भारतीय संगीत के सर्वाधिक लोकप्रिय राग कल्याण अर्थात यमन पर चर्चा करेंगे। आपके समक्ष इस राग के भक्तिरस के पक्ष को स्पष्ट करने के लिए दो रचनाएँ प्रस्तुत करेंगे। पहले आप सुनेंगे 1964 में प्रदर्शित फिल्म ‘गंगा की लहरें’ से शक्तिस्वरूपा देवी दुर्गा की प्रशस्ति करता एक आरती गीत। आज के अंक में यह भक्तिगीत इसलिए भी प्रासंगिक है कि आज पूरे देश में शारदीय नवरात्र पर्व के नवें दिन देवी के मातृ-स्वरूप की आराधना पूरी आस्था के साथ की जा रही है। इसके साथ ही विश

आज विशेष प्रस्तुति दुर्गा महाअष्टमी पर

नवरात्रि पर्व पर विशेष प्रस्तुति   या देवी सर्वभूतेषु मातृरूपेण संस्थिता नमस्तस्यै , नमस्तस्यै , नमस्तस्यै नमो नमः   प्रिय मित्रों, इन दिनों पूरे देश में नवरात्रि पर्व धूमधाम से मनाया जा रहा है। दस दिनों के इस महाउत्सव का आज आठवाँ दिन है। इस दिन की महत्ता का अनुभव करते हुए हम आज के निर्धारित स्तम्भ 'सिने पहेली' के स्थान पर यह विशेष अंक प्रस्तुत कर रहे हैं। 'सिने पहेली' का अगला अंक अब अगले शनिवार को प्रकाशित होगा। जिन प्रतियोगियों ने पिछली पहेली का अभी तक जवाब नहीं भेजा है, वो अपना जवाब हमें बृहस्पतिवार शाम 5 बजे तक भेज सकते हैं।  'सिने पहेली' के स्थान पर श्री श्री दुर्गा महाअष्टमी के पवित्र उपलक्ष्य पर आइए 'रेडियो प्लेबैक इण्डिया' के आर्काइव से एक अनमोल पोस्ट का दोबारा स्वाद लें, जो 'ओल्ड इज़ गोल्ड शनिवार विशेष' के अन्तर्गत 16 दिसम्बर 2010 को प्रकाशित किया गया था। लावण्या शाह दोस्तों, हमने महान कवि, दार्शनिक और गीतकार पण्डित नरेन्द्र शर्मा जी की सुपुत्री श्रीमती लावण्या शाह जी से सम्पर्क किया कि वो अ

आत्मा को परमात्मा से जोड़ता सूफी संगीत (सूफी -एपिसोड ०१)

प्लेबैक इंडिया ब्रोडकास्ट  सूफी संगीत यानी, स्वरलहरियों पर तैरकर जाना और ईश्वर रुपी समुंदर में विलीन हो जाना, सूफी संगीत यानी, "मै" का खो जाना और "तू" हो जाना, सदियों से रूह को सकून देते, सूफी संगीत पर हमारी विशेष प्रस्तुति का पहला भाग सुनिए संज्ञा टंडन के साथ. उम्मीद है हमारे संगीत प्रेमियों के लिए ये पोडकास्ट एक अनमोल तोहफा साबित होगा.  यदि प्लयेर पर सुनने में असुविधा हो तो यहाँ से डाउनलोड करें. 

आपकी फ़रमाइश पर आज की 'सिने पहेली' में एक वर्ग-पहेली...

सिने पहेली – 83     'रेडियो प्लेबैक इण्डिया' के सभी पाठकों व श्रोताओं को सुजॉय चटर्जी का सप्रेम नमस्कार! 'सिने पहेली' की एक और कड़ी के साथ मैं हाज़िर हूँ। आज से नवरात्री का त्योहार शुरू हो रहा है, इस शुभ अवसर पर 'रेडियो प्लेबैक इण्डीया' की तरफ़ से हम आप सभी को शुभकामनायें देते हैं। आप अपने परिवार जनों के साथ इस त्योहार को हँसी-ख़ुशी मनायें ऐसी हम आशा करते हैं। दोस्तों, इस सेगमेण्ट की पहली कड़ी में पूछे गये गूगली में प्रतियोगियों की भागीदारी कम ही रही थी, पर पिछली कड़ी में आपकी भागीदारी में सुधार हुआ, और यही नहीं जितने भी खिलाड़ियों ने भाग लिया, सभी ने 100% सही जवाब भेजे। बहुत बढ़िया! इसी तरह के टक्कर की हम आगे भी उम्मीद रखते हैं, तभी तो 'सिने पहेली' बनेगा और भी दिलचस्प, और भी रोमांचक। सभी प्रतियोगियों का एक बार फिर से स्वागत करते हुए शुरू करते हैं आज की 'सिने पहेली'। आज की पहेली : BOLLYWOOD CROSSWORD हमारे पास समय-समय पर वर्ग पहेली की फ़रमाइशें आती रही हैं। क्योंकि इन्हें तैयार करने में काफ़ी

सुरों की मशाल लाया सुपर हीरो "क्रिश 3"

को ई मिल गया और क्रिश की कामियाबी ने भारतीय फिल्म परदे को दिया है, सुपरमैन स्पाईडरमैन सरीखा एक सुपर हीरो जो दर्शकों में, विशेषकर बच्चों में ख़ासा लोकप्रिय है, इसी लोकप्रियता को अपने अगले मुकाम तक ले जाने के लिए निर्देशक राकेश रोशन लेकर आये हैं क्रिश ३ . राकेश की अब तक की सभी फिल्मों में उनके भाई राजेश रोशन का ही संगीत रहा है और इस परंपरा का निर्वाह क्रिश ३ में भी हुआ है. इससे पहले कि फिल्म, वर्ष २०१३ में आपकी दिवाली को जगमगाए आईये देखें फिल्म का संगीत क्या ऐसा है जिसे आप चाहें कि गुनगुनाएं.  देसी सुपर हीरो क्रिश को अपने पहले संस्करण में कोई थीम गीत नहीं मिला था, तो चलिए इस कमी को पूरा कर दिया है इस एल्बम में. क्रिश का शीर्षक गीत ममता शर्मा की आवाज़ में है जिसमें खुद राजेश रोशन और अनिरुद्ध भोला ने बैक अप स्वरों का रंग मिलाया है. आखिरकार लगभग दो सालों तक मात्र आईटम गीतों की अपनी आवाज़ देने के बाद किसी बॉलीवुड संगीतकार ने ममता से कुछ अलग गवाया है, और उम्मीद के अनुरूप ममता ने गीत के साथ पूरा न्याय किया है. हाँ क्रिश जैसे सुपर हीरो के लिए कुछ इससे बेहतर गीत भी हो सकता था.  शां