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दूर है किनारा....आईये किनारे को ढूंढती मन्ना दा की आवाज़ के सागर में गोते लगाये हम भी

ओल्ड इस गोल्ड शृंखला # 641/2010/341 'ओ ल्ड इस गोल्ड' के दोस्तों, नमस्कार! मैं, सुजॉय चटर्जी, आप सभी का इस स्तंभ में फिर एक बार स्वागत करता हूँ। युं तो इस शृंखला का वाहक मैं और सजीव जी हैं, लेकिन समय समय पर आप में से कई श्रोता-पाठक इस स्तंभ के लिए उल्लेखनीय योगदान करते आये हैं, चाहे किसी भी रूप में क्यों न हो! यह हमारा सौभाग्य है कि हाल में हमारी जान-पहचान एक ऐसे वरिष्ठ कला संवाददाता व समीक्षक से हुई, जो अपने लम्बे करीयर के बेशकीमती अनुभवों से हमारा न केवल ज्ञानवर्धन कर रहे हैं, बल्कि 'सुर-संगम' स्तंभ में भी अपना अमूल्य योगदान समय समय पर दे रहे हैं। और अब 'ओल्ड इज़ गोल्ड' के लिए एक पूरी की पूरी शृंखला के साथ हाज़िर हैं। आप हैं लखनऊ के श्री कृष्णमोहन मिश्र। मिश्र जी का परिचय कुछ शब्दों में संभव नहीं, इसलिए आप यहाँ क्लिक कर उनके बारे में विस्तृत रूप से जान सकते हैं। तो दोस्तों, आइए अगले दस अंकों के लिए 'ओल्ड इज़ गोल्ड' का आनंद लें श्री कृष्णमोहन मिश्र जी के साथ। एक और बात, कृष्णमोहन जी नें इस शृंखला के हर अंक में इतने सारे तथ्य भरे हैं कि अलग से "

सुर संगम में आज - लोकप्रिय तालवाद्य घटम की चर्चा

सुर संगम - 17 - घटम जब विक्कु अपना अरंगेत्रम् देने मंच पर जा रहे थे, तब 'गणेश' नामक एक बच्चे ने उनका घटम तोड़ दिया। इसे घटना को वे आज भी अपने करियर के लिए शुभ मानते हैं। सु प्रभात! सुर-संगम के आज के अंक में मैं, सुमित चक्रवर्ती आपका स्वागत करता हूँ। भारतीय संगीत में ताल की भूमिका सबसे महत्त्व्पूर्ण मानी गयी है। ताल किसी भी तालवाद्य से निकलने वाली ध्वनि का वह तालबद्ध चक्र है जो किसी भी गीत अथवा राग को गाते समय गायक को सुर लगाने के सही समय का बोध कराता है। भारतीय शास्त्रीय संगीत में जहाँ कुछ ताल बहुत रसद हैं वहीं कुछ ताल बहुत ही जटिल व जटिल भी हैं। तालों के लिए कई वाद्‍यों का प्रयोग किया जाता है जिनमें तबला, ढोलक, ढोल, मृदंगम, घटम आदि कुछ नाम हम सब जानते हैं। आज के इस अंक में हम चर्चा करेंगे एक बहुत ही लोकप्रिय तालवाद्य - घटम के बारे में। घटम मूलतः दक्षिण भारत के कार्नाटिक संगीत में प्रयोग किया जाने वाला तालवाद्य है। राजस्थान में इसी के दो अनुरूप मड्गा तथा सुराही के नामों से प्रचलित हैं। यह एक मिट्टी का बरतन है जिसे वादक अपनी उँगलियो, अंगूठे, हथेलियों व हाथ की एड़ी से इसके बाहरी

ओल्ड इज़ गोल्ड - शनिवार विशेष - एक मुलाक़ात शब्बीर कुमार से

ओल्ड इज़ गोल्ड - शनिवार विशेष - 38 'ओल्ड इज़ गोल्ड' के दोस्तों नमस्कार! आज शनिवार की इस विशेष प्रस्तुति के लिए हम लेकर आये हैं फ़िल्म जगत के जाने-माने पार्श्वगायक शब्बीर कुमार से एक छोटी सी मुलाक़ात। छोटी इसलिए क्योंकि शब्बीर साहब का हाल ही में विविध भारती ने भी एक साक्षात्कार लिया था, जिसमें बहुत ही विस्तार से शब्बीर साहब नें अपने जीवन के बारे में और अपने संगीत करीयर के बारे में बताया था। बचपन की बातें, किस तरह से संगीत में उनकी दिलचस्पी हुई, रफ़ी साहब के वे कैसे फ़ैन बने, रफ़ी साहब से उनकी पहली मुलाक़ात कब और किस तरह से हुई, रफ़ी साहब के अंतिम सफ़र में वो किस तरीके से शरीक हुए, वो ख़ुद एक पार्श्वगायक कैसे बने, ये सब कुछ विविध भारती के उस साक्षात्कार में आ चुका है। आप में से जो श्रोता-पाठक उस कार्यक्रम को सुनने से चूक गये थे, उनके लिए इस साक्षात्कार का लिखित रूप हमनें 'विविध भारती लिस्नर्स क्लब' में पोस्ट किया था। ये रहे उसके लिंक्स: 'आज के महमान - शब्बीर कुमार - भाग-१-१ ' 'आज के महमान - शब्बीर कुमार - भाग-१-२ ' 'आज के महमान - शब्बीर कुमार - भाग-२

हर घर के कोने में एक पोस्ट बॉक्स होता है... रितुपर्णा घोष लाये हैं संगीत की एक अजीब दावत "मेमोरीस इन मार्च" में

Taaza Sur Taal (TST) - 09/2011 - Memories In March 'ताज़ा सुर ताल' के आज के अंक में मैं, सुजॉय चटर्जी, आप सभी का स्वागत करता हूँ। दोस्तों, जिस तरह से समाज का नज़रिया बद्लता रहा है, उसी तरह से हमारी फ़िल्मों की कहानियों में, किरदारों में भी बदलाव आते रहे हैं। "फ़िल्म समाज का आइना है" वाक़ई सही बात है। एक विषय जो हमेशा से ही समाजिक विरोध और घृणा का पात्र रहा है, वह है समलैंगिक्ता। भले ही सुप्रीम कोर्ट नें समलैंगिक संबंध को स्वीकृति दे दी है, लेकिन देखना यह है कि हमारा समाज कब इसे खुले दिल से स्वीकार करता है। फ़िल्मों की बात करें तो पिछ्ले कई सालों से समलैंगिक चरित्र फ़िल्मों में दिखाये जाते रहे हैं, लेकिन उन पर हास्य-व्यंग के तीर ही चलाये गये हैं। जब अंग्रेज़ी फ़िल्म 'ब्रोकबैक माउण्टेन' नें समलैंगिक संबंध को रुचिकर रूप में प्रस्तुत किया तो हमारे यहाँ भी फ़िल्मकारों ने साहस किया, और सब से पहले निर्देशक ओनिर 'माइ ब्रदर निखिल' में इस राह पर चलकर दिखाया। अभी हाल ही में 'डोन्नो व्हाई न जाने क्यों' में भी समलैंगिक संबंध को दर्शाया गया लेकिन फ़िल्म के न

माथे पे लगाइके बिंदिया, अखियन उड़ाइके निंदिया....हास्य अभिनेता देवन वर्मा ने भी पार्श्व गायन में अपनी आवाज़ आजमाई

ओल्ड इस गोल्ड शृंखला # 640/2010/340 दो स्तों नमस्कार! इन दिनों 'ओल्ड इज़ गोल्ड' रोशन है फ़िल्मी सितारों के गाये नग़मों से। पिछली नौ कड़ियों में हमनें नौ सितारों के गाये गीत सुनवाये और कई सितारों के नाम लिये जिनकी आवाज़ फ़िल्मी गीतों में सुनाई दी हैं। फ़िल्मी सितारों द्वारा गाये गीतों की परम्परा ४० के दशक में शुरु हुई थी, जो अब तक जारी है। आइए कुछ और नाम लें। अनिल कपूर नें गाया था फ़िल्म 'चमेली की शादी' का शीर्षक गीत। कल्याणजी-आनंदजी के ही निर्देशन में राजकुमार साहब नें सलमा आग़ा के साथ फ़िल्म 'महावीरा' के एक गीत में संवाद बोले। ९० के दशक के शुरुआत में श्रीदेवी नें 'चांदनी' का शीर्षक गीत गा कर काफ़ी लोकप्रियता हासिल की थी। माधुरी दीक्षित की भी आवाज़ गूंजी कविता कृष्णामूर्ती और पंडित बिरजु महाराज के साथ 'देवदास' फ़िल्म के "काहे छेड़े मोहे" गीत में। शाहरुख़ ख़ान नें 'जोश' में "अपुन बोला", आमिर ख़ान नें 'ग़ुलाम' में "आती क्या खण्डाला", सलमान ख़ान नें 'हेल्लो ब्रदर' में "सोने की डाल पर चांदी

कायदा कायदा आखिर फायदा.....कभी कभी कायदों को हटाकर भी जीने का मज़ा है समझा रहीं हैं रेखा

ओल्ड इस गोल्ड शृंखला # 639/2010/339 'ओ ल्ड इज़ गोल्ड' के दोस्तों नमस्कार! 'सितारों की सरगम' शृंखला में कल आपनें शत्रुघ्न सिंहा का गाया गीत सुना था ॠषीकेश मुखर्जी निर्देशित फ़िल्म 'नरम गरम' से, राहुल देव बर्मन का स्वरबद्ध किया और गुलज़ार साहब का लिखा। आज की कड़ी में भी जो गीत आप सुनने जा रहे हैं, उसे इसी टीम, यानी कि ॠषी दा, पंचम दा और गुलज़ार साहब, नें बनाया है। यह है १९८० की बेहद कामयाब फ़िल्म 'ख़ूबसूरत' से अभिनेत्री रेखा का गाया गीत "कायदा कायदा आख़िर फ़ायदा", जिसमें सपन चक्रवर्ती नें उनका साथ दिया है। युं तो गुलज़ार साहब बच्चों वाले गीत लिखने में और उनमें अजीब-ओ-गरीब उपमाएँ व रूपक देने में माहिर हैं, लेकिन इस गीत में तो उन्हें ऐसी खुली छूट व आज़ादी मिली कि वो तो अपनी कल्पना को पता नहीं किस हद तक लेके गये हैं। 'ख़ूबसूरत' के मुख्य कलाकार थे रेखा, दीना पाठक, अशोक कुमार, राकेश रोशन, शशिकला प्रमुख। कहानी तो आपको पता ही है, अगर आप में से किसी नें इस फ़िल्म को अब तक नहीं देखा है, तो हमारा सुझाव है कि आज ही इसे देखें। वाक़ई एक लाजवाब फ़िल्म

एक बात सुनी है चाचा जी बतलाने वाली है....और सुनिए कि चाचा शत्रुघ्न ने इस बार "खामोश" नहीं कहा

ओल्ड इस गोल्ड शृंखला # 638/2010/338 फ़ि ल्मी सितारों की आवाज़ें इन दिनों गूंज रही है 'ओल्ड इज़ गोल्ड' की महफ़िल में, और शृंखला है 'सितारों की सरगम'। आज जिस आवाज़ की बारी है, उस आवाज़ की हम किसी गीत में कल्पना भी नहीं कर सकते, क्यों यह बुलंद आवाज़ तो लोगों को "ख़ामोश" करवाती आई है। इसलिए इस शख़्स द्वारा गाये गीत की कल्पना करना ज़रा मुश्किल हो जाता है। शत्रुघ्न सिंहा। जी हाँ, ॠषीकेश मुखर्जी निर्देशित १९८१ की फ़िल्म 'नरम गरम' में शत्रु साहब नें सुषमा श्रेष्ठ के साथ मिलकर एक युगल गीत गाया था, जो काफ़ी मशहूर भी हुआ। चाचा और भतीजी द्वारा गाया गया यह एक बड़ा ही मज़ेदार गीत है जिसके बोल हैं "एक बात सुनी है चाचा जी बतलाने वाली है, घर में एक अनोखी चीज़ आने वाली है"। चाचा बनें हैं शत्रु साहब और भतीजी हैं किरण वैरले। ये वही किरण हैं जिन्होंने 'नमकीन' फ़िल्म में छोटी बहन की भूमिका अदा की थी। भतीजी के उपर लिखे सवाल का चाचा जी यह कहते हुए जवाब देते हैं कि "हाँ रे भइया नें फिर कोई लड़की देखी है, तेरी चाची बुलडोज़र आने वाली है"। याद है न इस