ओल्ड इस गोल्ड शृंखला # 242 "रो ..रो के इन्ही राहों में खोना पड़ा एक अपने को, हँस हँस के इन्ही राहों में अपनाया था बेगाने को। जीवन के सफ़र में राही मिलते हैं बिछड़ जाने को, और दे जाते हैं यादें तन्हाई में तड़पाने को"। ये पंक्तियाँ सुनने में निराशावादी भले ही लगे, लेकिन है बिल्कुल सच। आज २५ अक्तुबर का दिन हम सब के लिए एक आम तारीख़ हो सकता है, लेकिन साहित्य और फ़िल्म संगीत के रसिकों के लिए आज का दिन यादगार दिन है, क्योंकि आज है महान शायर व गीतकार साहिर लुधियानवी साहब की पुण्यतिथि। २५ अक्तुबर १९८० के दिन इस दुनिया-ए-फ़ानी को हमेशा के लिए छोड़ गये थे साहिर साहब, और अपने पीछे छोड़ गए अपने शब्दों का एक ऐसा महासागर जिसमें मोतियाँ हैं अनगिनत, और जिनमें सुरीली तरंगें हैं बेशुमार! साहिर लुधियानवी और सचिन देव बर्मन पर केन्द्रित शृंखला 'जिन पर नाज़ है हिंद को' का आज का यह अंक समर्पित है साहिर साहब की पुण्य स्मृति को। मोह भंग, विद्रोह और निराशा के सुर साहिर लुधियानवी की ज़िंदगी के हिस्से बन गए थे। पिता का दुर्व्यवहार और कॊलेज का पहला असफ़ल प्रेम उनके कोमल मन पर गहरा असर कर गया था