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सुर संगम में आज - उस्ताद हबीब ख़ान का बजाया विचित्र वीणा वादन

सुर संगम - 06 विचित्र वीणा का रेंज पाँच ऒक्टेव का होता है। सितार की तरह विचित्र वीणा भी उंगलियों में मिज़राब (plectrums) पहनकर बजाया जाता है, तथा मेलडी के लिए शीशे का एक बट्टा मुख्य तारों पर फेरा जाता है। दो नोट्स के बीच दो इंच का फ़ासला हो सकता है। सु प्रभात! 'सुर-संगम' में आप सभी का बहुत बहुत स्वागत है। दोस्तों, हमारे देश में प्राचीण काल से जितने भी साज़ हुए हैं, उनमें से कुछ साज़ आज विलुप्त प्राय हो गये हैं, यानी कि जिनका आज इस्तमाल ना के बराबर हो गये हैं। रुद्र-वीणा और सुरशृंगार की तरह विचित्र-वीणा एक ऐसा ही साज़ है। प्राचीन काल में एकतंत्री वीणा नाम का एक साज़ हुआ करता था; विचित्र वीणा उसी साज़ का आधुनिक रूप है। इस वीणा में तीन फ़ीट लम्बा और ६ इंच चौड़ा एक डंड होता है, और दोनों तरफ़ दो तुम्बे होते हैं कद्दु के आकार के जिन्हें हम रेज़ोनेटर भी कह सकते हैं। डंड के दोनों छोर पर मोर के सर की आकृति बनी होती है। विचित्र वीणा वादक वीणा को अपने सामने ज़मीन पर रख कर अपनी उंगलियाँ तारों पर फेरता है। विचित्र वीणा में मौजूद तारों (स्ट्रिंग्स) की बात करें तो इसमें चार मुख्य 'प्लेयि

ई मेल के बहाने यादों के खजाने - आज बारी है रोमेंद्र सागर जी की पसंद के गीत के

नमस्कार! 'ओल्ड इज़ गोल्ड' के इस साप्ताहिक अंक में आप सभी का स्वागत है। 'ईमेल के बहाने यादों के ख़ज़ाने' 'ओल्ड इज़ गोल्ड' का एक ऐसा स्तंभ है जिसमें हम आप ही की बात करते हैं, और आप ही के पसंद के गीत सुनवाते हैं। फ़िल्मी गीत हर किसी के जीवन से जुड़ा होता है। कुछ गीत अगर हमें अपने बचपन की यादें ताज़ा कर देते हैं तो कुछ जवानी के दिनों के। कुछ गीतों से हमारा पीछे छोड़ आया प्यार वापस ज़िंदा हो जाता है तो कुछ गीत हमारे जुदाई के दिनों के हमसफ़र बन जाते हैं। हम भी यही चाहते हैं कि आप अपनी इन खट्टी मीठी यादों को हमारे साथ बाँटें इस साप्ताहिक अंक के ज़रिए। कोई तो गीत ऐसा ज़रूर होगा जिसे सुनकर आपको कोई ख़ास बात अपनी ज़िंदगी की एकदम से याद आ जाती होगी! तो लिख भेजिए हमें oig@hindyugm.com के पते पर, ठीक उसी तरह से जिस तरह हमारे दूसरे साथी लिख भेज रहे हैं। और अब आज के फ़रमाइशी गीत की बारी। इस बार लिखने वाले हैं हमारे रोमेन्द्र सागर साहब। रोमेन्द्र जी लिखते हैं ---- " अनीता सिंह जी की फरमाईश को देखा तो कुछ अपना भी मन मचल सा गया !एक गीत है मुकेश की आवाज़ में ...फिल्म "मन

एक प्यार का नगमा है.....संगीतकार जोड़ी एल पी के विशाल संगीत खजाने को, दशकों दशकों तक फैले संगीत सफर को सलाम करता एक गीत

ओल्ड इस गोल्ड शृंखला # 510/2010/210 "मैं एक गाना बोलता हूँ आपको जो मुझे बहुत पसंद है, और सब से बड़ी ख़ुशी मुझे इसलिए है कि वह ट्युन लक्ष्मी जी ने ख़ुद बनायी हुई है। मतलब कम्प्लीट सोच उनकी है, वह गीत है "एक प्यार का नग़मा है"। 'ओल्ड इज़ गोल्ड' के दोस्तों नमस्कार, 'एक प्यार का नग़मा है' शृंखला की अंतिम कड़ी में आपका बहुत बहुत स्वागत है। प्यारेलाल जी के कहे इन शब्दों को हम आगे बढ़ाएँगे, लेकिन उससे पहले हमारे तमाम नये दोस्तों के लिए यह बता दें कि इन दिनों आप 'ओल्ड इज़ गोल्ड' पर सुन रहे हैं सगीतकार जोड़ी लक्ष्मीकांत-प्यारेलाल के स्वरबद्ध गीतों से सजी यह लघु शृंखला और आज इस शृंखला को हम अंजाम दे रहे हैं इस दिल को छू लेने वाले युगल गीत के ज़रिये। फ़िल्म 'शोर' का यह सदाबहार गीत है लता और मुकेश की आवाज़ों में जिसमें है यमन और बिलावल का स्पर्श। इस गीत को मनोज कुमार और नंदा पर बड़ी ही कलात्मक्ता से फ़िल्मांकन किया गया है। आनंद बक्शी, राजेन्द्र कृष्ण, भरत व्यास, राजा मेहंदी अली ख़ान, और मजरूह सुल्तानपुरी के बाद आज बारी गीतकार संतोष आनंद की। मनोज कुम

खुशी की वो रात आ गयी..... और माहौल में गम की सदा भी घुल गयी, एल पी और मुकेश का गठबंधन

ओल्ड इस गोल्ड शृंखला # 509/2010/209 'ओ ल्ड इज़ गोल्ड' के दोस्तों, नमस्कार! इन दिनों इस स्तंभ में आप सुन रहे हैं फ़िल्म जगत के सुप्रसिद्ध संगीतकार जोड़ी लक्ष्मीकांत-प्यारेलाल के स्वरबद्ध गीतों से सजी लघु शृंखला 'एक प्यार का नग़मा है'। आज इस शृंखला की नौवी कड़ी में हम चुन लाये हैं मुकेश की आवाज़ में फ़िल्म 'धरती कहे पुकार के' का एक ऐसा गीत जिसमें है विरोधाभास। विरोधाभास इसलिए कि गीत के बोलों में तो ख़ुशी की बात की जा रही है, लेकिन गायकी के अदाज़ में करुण रस का संचार हो रहा है। "ख़ुशी की वह रात आ गयी, कोई गीत जगने दो, गाओ रे झूम झूम"। इस तरह के गीतों का हिंदी फ़िल्मों में कई कई बार प्रयोग हुआ है। सिचुएशन कुछ इस तरह की होती है कि नायिका की शादी नायक के बजाय किसी और से हो रही होती है, और शादी के उस जलसे में नायक नायिका को शुभकामनाएँ देते हुए गीत गाता तो है, लेकिन उस गीत में छुपा होता है उसके दिल का दर्द। कुछ ऐसे ही गीतों की याद दिलाएँ आपको? फ़िल्म 'पारसमणि' का गीत "सलामत रहो, सलामत रहो", फ़िल्म 'मिलन' में मुकेश का ही गाया हुआ कुछ

गोरे गोरे चाँद से मुख पर काली काली ऑंखें हैं ....कवितामय शब्द और सुंदर संगीत संयोजन का उत्कृष्ट मेल

ओल्ड इस गोल्ड शृंखला # 505/2010/205 'ए क प्यार का नग़मा है', दोस्तों, सुप्रसिद्ध संगीतकार जोड़ी लक्ष्मीकांत-प्यारेलाल के स्वरबद्ध गीतों से सजी यह लघु शृंखला इन दिनों आप सुन और पढ़ रहे हैं 'आवाज़' के सांध्य-स्तंभ 'ओल्ड इज़ गोल्ड' में। एल.पी एक ऐसे संगीतकार जोड़ी हुए जिन्होंने इतने ज़्यादा फ़िल्मों में संगीत दिया है कि शायद ही कोई ऐसा समकालीन गायक होगा या होंगी जिन्होंने एल.पी के लिए गीत ना गाये होंगे। लता मंगेशकर, मोहम्मद रफ़ी, मन्ना डे और आशा भोसले को सुनने के बाद आज बारी है गायक मुकेश की। उधर गीतकारों की बात करें तो आनंद बक्शी साहब ने लक्ष्मी-प्यारे के लिए सब से ज़्यादा गीत लिखे हैं, इसलिए ज़ाहिर है कि इस शृंखला में बक्शी साहब के लिखे कई गीत शामिल होंगे, लेकिन हमने इस बात को भी ध्यान रखा है कि कुछ दूसरे गीतकारों को भी शामिल करें जिन्होंने कम ही सही लेकिन बहुत उम्दा काम किया है एल.पी के साथ। हमनें दो ऐसे गीतकारों की रचनाएँ आपको सुनवाई हैं - राजेन्द्र कृष्ण और भरत व्यास। आज हम लेकर आये हैं राजा मेहन्दी अली ख़ान का लिखा एक गीत फ़िल्म 'अनीता' से। आपको याद

खत लिख दे संवरिया के नाम बाबू....आशा की मासूम गुहार एल पी के सुरों में ढलकर जैसे और भी मधुर हो गयी

ओल्ड इस गोल्ड शृंखला # 504/2010/204 ल क्ष्मीकांत प्यारेलाल के संगीतबद्ध गीतों की शृंखला 'एक प्यार का नग़मा है' की चौथी कड़ी में आज आवाज़ आशा भोसले की। युं तो लक्ष्मी-प्यारे के ज़्यादातर गानें लता जी ने गाए हैं, आशा जी के इनके लिए गीत थोड़े कम हैं। लेकिन जितने भी गानें हैं, उनमें आज जो गीत हम आपको सुनवाने के लिए लाए हैं, वह एक ख़ास मुकाम रखता है। यह है फ़िल्म 'आये दिन बहार के' का गीत "ख़त लिख दे सांवरिया के नाम बाबू, वो जान जाएँगे, पहचान जाएँगे"। दोस्तों, एक ज़माना ऐसा था कि जब फ़िल्मों में चिट्ठी और ख़त पर गानें बना करते हैं। बहुत से गानें हैं इस श्रेणी के। यहाँ तक कि ९० के दशक में भी ख़त लिखने पर कई गीत बनें हैं, मसलन, फ़िल्म 'खेल' का गीत "ख़त लिखना है पर सोचती हूँ", फ़िल्म 'दुलारा' में "ख़त लिखना बाबा ख़त लिखना", फ़िल्म 'बेख़ुदी' में "ख़त मैंने तेरे नाम लिखा, हाल-ए-दिल तमाम लिखा", फ़िल्म 'जीना तेरी गली में' का "जाते हो परदेस पिया, जाते ही ख़त लिखना" आदि। लेकिन २००० के दशक के आते ही ईमेल

फूल अहिस्ता फैको, फूल बड़े नाज़ुक होते हैं....इसे कहते है नाराज़ होने, शिकायत करने का लखनवी शायराना अंदाज़

ओल्ड इस गोल्ड शृंखला # 498/2010/198 नौ रसों में कुछ रस वो होते हैं जो अच्छे होते है, और कुछ रस ऐसे हैं जिनका अधिक मात्रा में होना हमारे मन-मस्तिष्क के लिए हानिकारक होता हैं। शृंगार, हास्य, शांत, वीर पहली श्रेणी में आते हैं जबकि करुण, विभत्स और रौद्र रस हमें एक मात्रा के बाद हानी पहुँचाते हैं। 'ओल्ड इज़ गोल्ड' के दोस्तों नमस्कार, 'रस माधुरी' शृंखला में आज बातें रौद्र रस की। जब हमारी आशाएँ पूरी नहीं हो पाती, तब हमें लगता है कि हमें नकारा गया है और यही रौद्र रस का आधार बनता है। यह ज़रूरी नहीं कि ग़ुस्से से हमेशा हानी ही पहुँचती है, कभी कभी रौद्र का इस्तेमाल सकारात्मक कार्य के लिए भी हो सकता है जैसे कि माँ का बच्चे को डाँटना, गुरु का शिष्य को डाँटना, मित्र का अपने मित्र को भलाई के मार्ग पर लाने के लिए डाँटना इत्यादि। लेकिन निरर्थक विषयों पर नाराज़ होना और बात बात पर नाराज़ होकर सीन क्रीएट कर लेना अपने लिए भी और पूरे वातावरण के लिए हानिकारक ही होता है। यह जानना बहुत ज़रूरी है कि ग़ुस्से से कोई भी समस्या का समाधान नहीं होता, बल्कि वह समस्या और विस्तारित होती है। मन अशांत ह

रविवार सुबह की कॉफी और एक और क्लास्सिक "अंदाज़" के दो अप्रदर्शित और दुर्लभ गीत

नौशाद अली की रूहानियत और मजरूह सुल्तानपुरी की कलम जब जब एक साथ मिलकर परदे पर चलीं तो एक नया ही इतिहास रचा गया. उस पर महबूब खान का निर्देशन और मिल जाए तो क्या बात हो, जैसे सोने पे सुहागा. राज कपूर और नर्गिस जिस जोड़ी ने कितनी ही नायाब फ़िल्में भारतीय सिनेमा को दीं हैं उस पर अगर दिलीप कुमार का अगर साथ और मिल जाए तो कहने की ज़रुरत नहीं कि एक साथ कितनी ही प्रतिभाओं को देखने का मौका मिलेगा......अब तक तो आप समझ गए होंगे के हमारी ये कलम किस तरफ जा रही है...जी हाँ सही अंदाजा लगाया आपने लेकिन यहाँ कुछ का अंदाजा गलत भी हो सकता है. साहब अंदाजा नहीं अंदाज़ कहिये. साथ में मुराद, कुक्कु वी एच देसाई, अनवरीबाई, अमीर बानो, जमशेदजी, अब्बास, वासकर और अब्दुल. सिनेमा के इतने लम्बे इतिहास में दिलीप कुमार और राज कपूर एक साथ इसी फिल्म में पहली और आखिरी बार नजर आये. फिल्म की कहानी प्यार के त्रिकोण पर आधारित थी जिस पर अब तक न जाने कितनी ही फिल्मे बन चुकी हैं. फिल्म में केवल दस गीत थे जिनमे आवाजें थीं लता मंगेशकर, मुकेश, शमशाद बेगम और मोहम्मद रफ़ी साब की. फिल्म को लिखा था शम्स लखनवी ने, जी बिलकुल वोही जिन्होंने

तुम्हें जिंदगी के उजाले मुबारक....एक गैर-गुलज़ारनुमा गीत, जो याद दिलाता है मुकेश और कल्याणजी भाई की भी

ओल्ड इस गोल्ड शृंखला # 468/2010/168 र क्षाबंधन के शुभवसर पर सभी दोस्तों को हम अपनी हार्दिक शुभकामनाएँ देते हुए आज की यह प्रस्तुति शुरु कर रहे हैं। दोस्तों, आज रक्षाबंधन के साथ साथ २४ अगस्त भी है। आज ही के दिन सन् २००० को संगीतकार जोड़ी कल्याणजी-आनंदजी के कल्याणजी भाई हम से हमेशा के लिए दूर चले गए थे। आज जब हम 'ओल्ड इज़ गोल्ड' पर गुलज़ार साहब के लिखे गीतों की शृंखला प्रस्तुत कर रहे हैं, तो आपको यह भी बता दें कि गुलज़ार साहब ने एक फ़िल्म में कल्याणजी-आनंदजी के लिए गीत लिखे थे। और वह फ़िल्म थी 'पूर्णिमा'। आज कल्याणजी भाई के स्मृति दिवस पर आइए उसी फ़िल्म से एक बेहद प्यारा सा दर्द भरा गीत सुनते हैं मुकेश की आवाज़ में - "तुम्हे ज़िंदगी के उजाले मुबारक़, अंधेरे हमें आज रास आ गए हैं, तुम्हे पाके हम ख़ुद से दूर हो गए थे, तुम्हे छोड़ कर अपने पास आ गए हैं"। अभी दो दिन बाद, २७ अगस्त को मुकेश जी की भी पुण्यतिथि है। इसलिए आज के इस गीत के ज़रिए हम कल्याणजी भाई और मुकेश जी, दोनों को ही श्रद्धांजली अर्पित कर रहे हैं।'पूर्णिमा' १९६५ की फ़िल्म थी और उन दिनों गुलज़ार साह

आ अब लौट चलें.....धुन विदेशी ही सही पर पुकार एकदम देसी थी दिल से निकली हुई

ओल्ड इस गोल्ड शृंखला # 448/2010/148 प राये धुनों को अपने अंदाज़ में ढाल कर हमारे फ़िल्मी संगीतकारों ने कैसे कैसे सुपरहिट गीत हमें दिए हैं, उसी के कुछ नमूने हम इन दिनों पेश कर रहे हैं 'ओल्ड इज़ गोल्ड' की लघु शृंखला 'गीत अपना धुन पराई' के अंतर्गत, और साथ ही साथ उन मूल विदेशी धुनों से संबंधित थो़ड़ी बहुत जानकारियाँ भी दे रहे हैं जो इंटरनेट में गूगलिंग् के ज़रिए हमने खोज निकाला है। एक और संगीतकार जिन्होने बेशुमार विदेशी धुनें अपने गीतों में अपनाई, वो हैं सुप्रसिद्ध संगीतकार जोड़ी शंकर जयकिशन। आपको एक फ़ेहरिस्त यहाँ दे रहे हैं जिससे आपको अंदाज़ा हो जाएगा कि एस.जे की जोड़ी ने किन किन गीतों में यह शैली अपनाई। १. दिल उसे दो जो जाँ दे दे (अंदाज़) - 'With a little help from my friends' २. है ना बोलो बोलो (अंदाज़) - 'Papa loves mama' ३. कोई बुलाए और कोई आए (अपने हुए पराए) - 'Old Beirut' ४. ले जा ले जा (ऐन ईवनिंग् इन पैरिस) - The Shadows, "Man of Mystery" ५. जाने भी दे सनम मुझे (अराउण्ड दि वर्ल्ड) - 'I'll get you' by Beatles ६. आज की

दिल तड़प तड़प के.....सलिल दा की धुन पर मुकेश (जयंती पर विशेष) और लता की आवाजें

ओल्ड इस गोल्ड शृंखला # 445/2010/145 'गी त अपना धुन पराई' लघु शृंखला में इन दिनों आप सुन रहे हैं फ़िल्म संगीत के सुनहरे दौर के कुछ ऐसे सदाबहार नग़में जो प्रेरित हैं किसी मूल विदेशी धुन या गीत से। ये दस गीत दस अलग अलग संगीतकारों के हमने चुने हैं। पिछले चार कड़ियों में हम सुन चुके हैं स्नेहल भाटकर, अनिल बिस्वास, मुकुल रॊय और राहुल देव बर्मन के स्वरबद्ध गीत; आज बारी है संगीतकार सलिल चौधरी की। सलिल दा और प्रेरीत गीतों का अगर एक साथ ज़िक्र हो रहा हो तो सब से पहले जो गीत याद आता है, वह है फ़िल्म 'छाया' का - "इतना ना मुझसे तू प्यार बढ़ा", जो कि मोज़ार्ट की सीम्फ़नी से प्रेरीत था। लेकिन आज हमने आपको सुनवाने के लिए यह गीत नहीं चुना है, बल्कि एक और ख़ूबसूरत गीत जो आधारित है पोलैण्ड के एक लोक गीत पर। फ़िल्म 'मधुमती' का यह सदाबहार गीत है "दिल तड़प तड़प के दे रहा है ये सदा, तू हम से आँख ना चुरा, तुझे क़सम है आ भी जा"। लता मंगेशकर और मुकेश की आवाज़ों में गीतकार शैलेन्द्र की रचना। मूल पोलैण्ड का लोक गीत कुछ इस तरह से है - "Szła Dzieweczka do Laseczka,

किसी राह में, किसी मोड पर....कहीं छूटे न साथ ओल्ड इस गोल्ड के हमारे हमसफरों का

ओल्ड इस गोल्ड शृंखला # 429/2010/129 क ल्याणजी-आनंदजी के सुर लहरियों से सजी इस लघु शृंखला 'दिल लूटने वाले जादूगर' में आज छा रहा है शास्त्रीय रंग। इसे एक रोचक तथ्य ही माना जाना चाहिए कि तुलनात्मक रूप से कम लोकप्रिय राग चारूकेशी पर कल्याणजी-आनंदजी ने कई गीत कम्पोज़ किए हैं जो बेहद कामयाब सिद्ध हुए हैं। चारूकेशी के सुरों को आधार बनाकर "छोड़ दे सारी दुनिया किसी के लिए" (सरस्वतीचन्द्र), "मोहब्बत के सुहाने दिन, जवानी की हसीन रातें" (मर्यादा), "किसी राह में किसी मोड़ पर (मेरे हमसफ़र), "अकेले हैं चले आओ" (राज़), "एक तू ना मिला" (हिमालय की गोद में), "कभी रात दिन हम दूर थे" (आमने सामने), "बेख़ुदी में सनम उठ गए जो क़दम" (हसीना मान जाएगी), "जानेजाना, जब जब तेरी सूरत देखूँ" (जाँबाज़) जैसे गीतों की याद कल्याणजी-आनंदजी के द्वारा इस राग के विविध प्रयोगों के उदाहरण के रूप में फ़िल्म संगीत में जीवित रहेगी। चारूकेशी का इतना व्यापक व विविध इस्तेमाल शायद ही किसी और संगीतकार ने किया होगा! दूसरे संगीतकारों के जो दो चार गानें

ये मेरा दिल यार का दीवाना...जबरदस्त ऒरकेस्ट्रेशन का उत्कृष्ट नमूना है ये गीत

ओल्ड इस गोल्ड शृंखला # 428/2010/128 'दि ल लूटने वाले जादूगर' - कल्याणजी-आनंदजी के धुनों से सजी इस लघु शृंखला में आज हम और थोड़ा सा आगे बढ़ते हुए पहुँच जाते हैं सन‍ १९७८ में। ७० के दशक के मध्य भाग से हिंदी फ़िल्मों का स्वरूप बदलने लगा था। नर्मोनाज़ुक प्रेम कहानियो से हट कर, ऐंग्री यंग मैन की इमेज हमारे नायकों को दिया जाने लगा। इससे ना केवल कहानियों से मासूमीयत ग़ायब होने लगी, बल्कि इसका प्रभाव फ़िल्म के गीतों पर भी पड़ा। क्योंकि गानें फ़िल्म के किरदार और सिचुयशन को केन्द्र में रखते हुए ही बनाए जाते हैं, ऐसे में गीतकारों और संगीतकारों को भी उसी सांचे में अपने आप को ढालना पड़ा। जो नहीं ढल सके, वो पीछे रह गए। कल्याणजी-आनंदजी एक ऐसे संगीतकार थे जिन्होने हर बदलते दौर को स्वीकारा और उसी के हिसाब से सगीत तैयार किया। और यही वजह है कि १९५८ में उनके गानें जितने लोकप्रिय हुआ करते थे, ८० के दशक में भी लोगों ने उनके गीतों को वैसे ही हाथों हाथ ग्रहण किया। हाँ, तो हम ज़िक्र कर रहे थे १९७८ के साल की। इस साल अमिताभ बच्चन की मशहूर फ़िल्म आई थी 'डॊन', जिसमें इस जोड़ी का संगीत था। सुपर स्ट

फूल तुम्हें भेजा है खत में....एक बेहद संवेदनशील फिल्म का एक बेहद नर्मो नाज़ुक गीत

ओल्ड इस गोल्ड शृंखला # 424/2010/124 क ल्याणजी-आनंदजी के संगीत की मिठास इन दिनों 'ओल्ड इज़ गोल्ड' में घुल रही है। १९५९, १९६४ और १९६५ के बाद आज हम आ पहुँचे हैं साल १९६८ में। यह एक बेहद महत्वपूर्ण पड़ाव वाला साल है इस संगीतकार जोड़ी के करीयर का, क्योंकि इसी साल आई थी फ़िल्म 'सरस्वतीचन्द्र'। पंकज राग अपनी किताब 'धुनों की यात्रा' में लिखते हैं कि "चंदन सा बदन चंचल चितवन" सातवें दशक की युवा पीढ़ी का प्रेम गीत बनकर स्थापित है ही, लेकिन उससे कहीं भी कम नहीं है "फूल तुम्हे भेजा है ख़त में" का सौन्दर्य जो उस ज़माने की आहिस्ता आहिस्ता चलने वाली अपेक्षाकृत कम भाग दौड़ की ज़िंदगी के बीच पनपी रूमानी भावनाओं को बड़े ही मधुर आग्रह से प्रतिध्वनित करती है। क्या ख़ूब कहा है पंकज जी ने। लता जी और मुकेश जी की आवाज़ों में इंदीवर साहब का लिखा हुआ यह बेहद लोकप्रिय व मधुर युगल गीत आज हम लेकर आए हैं। इस फ़िल्म से जुड़े तथ्य तो हम पहले ही आपको दे चुके हैं जब हमने कड़ी नम्बर-१४ में "चंदन सा बदन" सुनवाया था। आज तो बस इसी गीत की बातें होंगी। दोस्तो, यह गीत है त

जो प्यार तुने मुझको दिया था....मुकेश की आवाज़ और कल्याणजी आनंदजी का स्वर संसार

ओल्ड इस गोल्ड शृंखला # 422/2010/122 'दि ल लूटने वाले जादूगर' - कल्याणजी-आनंदजी के सुरों से सजे दिलकश गीतों पर आधारित 'ओल्ड इज़ गोल्ड' की इस लघु शृंखला की दूसरी कड़ी में उस गायक की आवाज़ आज गूंज रही है दोस्तों, जिस गायक ने इस जोड़ी के संगीत निर्देशन में अपने करीयर के सब से ज़्यादा गीत गाए हैं। बिल्कुल ठीक समझे आप। मुकेश। आम तौर पर जनता यह समझ बैठती है कि शंकर जयकिशन के लिए मुकेश ने सब से अधिक गीत गाए, लेकिन हक़ीक़त कुछ और ही है। कल्याणजी आनंदजी के दर्द भरे नग़मों में मुकेश की आवाज़ का कुछ इस क़दर इस्तेमाल हुआ है कि ये गानें आज भी जैसे कलेजा चीर के रख देता है। मुकेश के गायन में सिर्फ़ सहेजता ही नहीं बल्कि आत्मीयता भी है। उनका गाया हर दर्द भरा गीत जैसे अपने ही दिल की आवाज़ लगती है। और इन्हे गुनगुनाकर आदमी ज़िंदगी के सारे ग़मों को बांट लेता है। कल्याणजी-आनंदजी के पुरअसर धुनों में पिरो कर, गीतकार आनंद बक्शी के बोलों से सज कर, और मुकेश की जादूई आवाज़ में ढल कर जब फ़िल्म 'दुल्हा दुल्हन' का गीत "जो प्यार तुमने मुझको दिया था, वो प्यार तेरा मैं लौटा रहा हूँ" बा