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न ये चाँद होगा न तारे रहेंगें...एस एच बिहारी का लिखा ये अनमोल नग्मा गीता दत्त की आवाज़ में.

ओल्ड इस गोल्ड शृंखला # 93 आ ज के 'ओल्ड इज़ गोल्ड' में प्यार के इज़हार का एक बड़ा ही ख़ूबसूरत अंदाज़ पेश-ए-ख़िदमत है गीता दत्त की आवाज़ में। दोस्तों, आपने ऐसा कई कई गीतों में सुना होगा कि प्रेमी अपनी प्रेमिका से कहता है कि जब तक यह दुनिया रहेगी, तब तक मेरा प्यार रहेगा; और जब तक चाँद सितारे चमकते रहेंगे, तब तक हमारे प्यार के दीये जलते रहेंगे, वगैरह वगैरह । लेकिन आज का जो यह गीत है वह एक क़दम आगे निकल जाता है और कहता है कि भले ही चाँद तारे चमकना छोड़ दें, लेकिन उनका प्यार हमेशा एक दूसरे के साथ बना रहेगा। आप समझ गये होंगे कि हमारा इशारा किस गीत की तरफ़ है। जी हाँ, फ़िल्म 'शर्त' का सदाबहार गीत "न ये चाँद होगा न तारे रहेंगे, मगर हम हमेशा तुम्हारे रहेंगे"। इस गीत को हेमंत कुमार ने भी गाया था लेकिन आज हम गीताजी का गाया गीत आपको सुनवा रहे हैं। गीत का एक एक शब्द दिल को छू लेनेवाला है, जिनसे सच्चे प्यार की कोमलता झलकती है। 'चाँद' से याद आया कि इसी फ़िल्म में 'चाँद' से जुड़े कुछ और गानें भी थे, जैसे कि लता और हेमन्तदा का गाया "देखो वो चाँद छुपके कर

अखियाँ भूल गयी हैं सोना....सोने सा चमकता है ये गीत आज ५० सालों के बाद भी

ओल्ड इस गोल्ड शृंखला # 84 आ ज 'ओल्ड इज़ गोल्ड' में एक बहुत ही ख़ुशनुमा, चुलबुला सा, गुदगुदाने वाला गीत लेकर हम हाज़िर हुए हैं। दोस्तों, हमारी फ़िल्मों में कुछ 'सिचुएशन' ऐसे होते हैं जो बड़े ही जाने पहचाने से होते हैं और जो सालों से चले आ रहे हैं। लेकिन पुराने होते हुए भी ये 'सिचुएशन' आज भी उतने ही लोकप्रिय हैं जितने कि उस ज़माने में हुआ करते थे। ऐसी ही एक 'सिचुएशन' हमारी फ़िल्मों में हुआ करती है कि जिसमें सखियाँ नायिका को उसके नायक और उसकी प्रेम कहानी को लेकर छेड़ती हैं और नायिका पहले तो इन्कार करती हैं लेकिन आख़िर में मान जाती हैं लाज भरी अखियाँ लिए। 'सिचुएशन' तो हमने आपको बता दी, हम बारी है 'लोकेशन' की। तो ऐसे 'सिचुएशन' के लिए गाँव के पनघट से बेहतर और कौन सा 'लोकेशन' हो सकता है भला! फ़िल्म 'गूँज उठी शहनाई' में भी एक ऐसा ही गीत था। यह फ़िल्म आज से पूरे ५० साल पहले, यानी कि १९५९ में आयी थी, लेकिन आज के दौर में भी यह गीत उतना ही आनंददायक है कि जितना उस समय था। गीता दत्त, लता मंगेशकर और सखियों की आवाज़ों में यह गी

रविवार सुबह की कॉफी और कुछ दुर्लभ गीत (5)

पराग संकला से हमारे श्रोता परिचित हैं, आप गायिका गीता दत्त के बहुत बड़े मुरीद हैं और उन्हीं की याद में गीता दत्त डॉट कॉम के नाम से एक वेबसाइट भी चलते हैं. आवाज़ पर गीता दत्त के विविध गीतों पर एक लम्बी चर्चा वो पेश कर चुके हैं अपने आलेख " असली गीता दत्त की खोज में " के साथ. आज एक बार फिर रविवार सुबह की कॉफी का आनंद लें पराग संकला के साथ गीता दत्त जी के गाये कुछ दुर्लभ "प्रेम गीतों" को सुनकर. गीता दत्त और प्रेम गीतों की भाषा हिंदी चित्रपट संगीत में अलग अलग प्रकार के गीत बनाते हैं. लोरी, भजन, नृत्यगीत, हास्यगीत, कव्वाली, बालगीत और ग़ज़ल. इन सब गानों के बीच में एक मुख्य प्रकार जो हिंदी फिल्मों में हमेशा से अधिक मात्रा में रहता हैं वह हैं प्रणयगीत यानी कि प्रेम की भाषा को व्यक्त करने वाले मधुर गीत! फिल्म चाहे हास्यफिल्म हो, या भावुक या फिर वीररस से भरपूर या फिर सामजिक विषय पर बनी हो, मगर हर फिल्म में प्रेम गीत जरूर होते हैं. कई फिल्मों में तो छः सात प्रेमगीत हुआ करते हैं. चालीस के दशक में बनी फिल्मों से लेकर आज की फिल्मों तक लगभग हर फिल्म में कोई न कोई प्रणयगीत जरूर

गुमसुम सा ये जहाँ....ये रात ये समां...गीतकार राजेंद्र कृष्ण ने रचा था ये प्रेम गीत

ओल्ड इस गोल्ड शृंखला # 74 फ़ि ल्म जगत के इतिहास में बहुत सारी फ़िल्में ऐसी हैं जो अगर आज याद की जाती हैं तो सिर्फ़ और सिर्फ़ उनके गीत संगीत की वजह से। और इनमें से कुछ फ़िल्में तो ऐसी भी हैं कि जिनका केवल एक गीत ही काफ़ी था फ़िल्म को यादगार बनाने के लिए। एक ऐसी ही फ़िल्म थी 'दुनिया झुकती है' जिसके केवल एक मशहूर गीत की वजह से इस फ़िल्म को आज भी सुमधुर संगीत के सुधी श्रोता बड़े प्यार से याद करते हैं। हेमन्त कुमार और गीता दत्त की युगल आवाज़ों में यह गीत है "गुमसुम सा ये जहाँ, ये रात ये हवा, एक साथ आज दो दिल धड़केंगे दिलरुबा"। रात का समा, चाँद और चाँदनी, ठंडी हवायें, सुहाना मौसम, प्रेमी-प्रेमिका का साथ, इन सब को लेकर फ़िल्मों में गाने तो बेशुमार बने हैं। लेकिन प्रस्तुत गीत अपनी नाज़ुकी अंदाज़, ग़ज़ब की 'मेलडी', रुमानीयत से भरपूर बोल, और गायक गायिका की बेहतरीन अदायिगी की वजह से भीड़ से जैसे कुछ अलग से लगते है। तभी तो आज तक यह गीत अपनी एक अलग पहचान बनाये हुए है। चाँद का बदली की ओट में छुपना, नील गगन का प्यार के आगे झुकना, दो प्रेमियों का दुनिया से दूर होकर अपनी प्य

मेरा सुंदर सपना बीत गया....दर्द की पराकाष्ठा है गीता दत्त के इस गीत में

ओल्ड इस गोल्ड शृंखला # 67 आ ज का 'ओल्ड इज़ गोल्ड' सुनकर आपका मन विकल हो उठेगा ऐसा हमारा ख्याल है, क्योंकि आज का गीत गीता राय की वेदना भरी आवाज़ में है और जब जब गीताजी ऐसे दर्दभरे गीत गाती थी तब जैसे अपने कलेजे को ग़म के समन्दर में डूबोकर रख देती थी। उनके गले से दर्द कुछ इस तरह से बाहर निकलकर आता था कि सुननेवाले को उसमें अपने दर्द की झलक मिलती थी। गीताजी के गाये इस तरह के बहुत सारे गानें हैं, लेकिन आज हमने जिस गीत को चुना है वह है फ़िल्म 'दो भाई' से "मेरा सुंदर सपना बीत गया"। यह गीताजी की पहली लोकप्रिय फ़िल्मी रचना थी। इससे पहले उन्होने संगीतकार हनुमान प्रसाद के लिये कुछ गीत गाये ज़रूर थे लेकिन उन्हे उतनी कामयाबी नहीं मिली। सचिन देव बर्मन के धुनो को पाकर जैसे गीताजी की आवाज़ खुलकर सामने आयी फ़िल्म 'दो भाई' में। यह फ़िल्म आयी थी सन् १९४७ में फ़िल्मिस्तान के बैनर तले और उस वक़्त गीताजी की उम्र थी केवल १६ वर्ष। और इसी फ़िल्म से गीतकार राजा मेहेन्दी अली ख़ान का भी फ़िल्म जगत में पदार्पण हुआ। इसी फ़िल्म में गीता राय का गाया एक और मशहूर गीत था "याद करो

असली गीता दत्त की खोज में...

जब मैं गीता दत्त के गाने सुनता हूँ तब दुविधा में पड़ जाता हूँ. "मैं तो गिरिधर के घर जाऊं" गानेवाली वो ही गायिका हैं क्या जिसने कहा था "ओह बाबू ओह लाला". जो एक छोटे बालक की आवाज़ में फल तथा सब्जी बेच रही थी "फल की बहार हैं केले अनार हैं" वो ही एक विरहन के बोल सुना रही थी "आओगे ना साजन आओगे ना"! शास्त्रीय संगीत की मधुर लय और तानपर "बाट चलत नयी चुनरी रंग डारी" की शिकायत हो रही थी और तभी जनम जन्मांतर का साथ निभाने वाला गीत "ना यह चाँद होगा ना तारे रहेंगे मगर हम हमेशा तुम्हारे रहेंगे" गाया जा रहा था. "कोई दूर से आवाज़ दे चले आओ" में सचमुच किसी दूर कोने से एक बिरहन की वाणी सुनाई आ रही थी और साथ ही "चंदा चांदनी में जब चमके क्या हो, आ मिले जो कोई छम से पूछते हो क्या हमसे?" यह सवाल किया जा रहा था. रेलगाडी की धक् धक् पर चलती हुई रेहाना गीता की आवाज़ पर थिरक कर गा रही थी" धक् धक् करती चली हम सब से कहती चली जीवन की रेल रे मुहब्बत का नाम हैं दिलों का मेल रे". अपने आप से सवाल किया जा रहा था "ए दिल मुझे बता द

जाने कहाँ मेरा जिगर गया जी...रफी साहब पूछ रहे हैं गीता दत्त से

ओल्ड इस गोल्ड शृंखला # 64 पु राने ज़माने की फ़िल्मों में नायक-नायिका की जोड़ी के अलावा एक जोड़ी और भी साथ साथ फ़िल्म में चलती थी, और यह जोड़ी हुआ करती थी दो हास्य-कलाकारों की। जॉनी वाकर एक बेहद मशहूर हास्य अभिनेता हुआ करते थे उन दिनो और हर फ़िल्म में निभाया हुआ उनका चरित्र यादगार बन कर रह जाता था। उन पर बहुत सारे गाने भी फ़िल्माये गये हैं जिनमें से ज़्यादातर रफ़ी साहब ने गाये हैं। जॉनी वाकर के बेटे नासिर ख़ान ने एक बार कहा भी था कि उनके पिता के हाव भाव की नक़ल गायिकी में रफ़ी साहब के सिवाय और दूसरा कोई नहीं कर पाता था। कुछ उदहारण देखिये रफ़ी साहब और जॉनी भाई की जोड़ी के गानों की "सर जो तेरा चकराये या दिल डूबा जाये", "ऐ दिल है मुश्किल जीना यहाँ", "ऑल लाइन किलियर", "जंगल में मोर नाचा किसी ने ना देखा", "ये दुनिया गोल है", और "मेरा यार बना है दुल्हा" इत्यादि। ऐसी ही एक और फ़िल्म आयी थी 'मिस्टर ऐंड मिसेस ५५' जिसमें जॉनी वाकर और कुमकुम पर एक बहुत ही मशहूर युगल-गीत फ़िल्माया गया था और जिसमें रफ़ी साहब के साथ गीत दत्त ने आवा

ख्यालों में किसी के इस तरह आया नहीं करते...रोशन साहब का एक नायाब गीत

ओल्ड इस गोल्ड शृंखला # 57 स न १९४९ में एक नौजवान अपनी पत्नी का प्रोत्साहन और ज़िन्दगी में कुछ बड़ा करने का ख्याल लेकर मायानगरी मुंबई पहुँचे थे। एक दिन ख़ुशकिस्मती से दादर स्टेशन पर उनकी मुलाक़ात हो गई फ़िल्मकार केदार शर्मा से। केदार शर्मा उन दिनो मशहूर थे नये नये प्रतिभाओं को अपनी फ़िल्मों में मौका देने के लिए। बस फिर क्या था, उन्होने इस नौजवान को भी अपना पहला 'ब्रेक' दिया बतौर संगीतकार, फ़िल्म थी 'नेकी और बदी'। और वह नौजवान जिसकी हम बात कर रहे हैं, वो और कोई नहीं बल्कि संगीतकार रोशन थे। दुर्भाग्यवश 'नेकी और बदी' में रोशन अपनी संगीत का कमाल नहीं दिखा सके और ना ही यह फ़िल्म दर्शकों के दिलों को छू सकी। इस असफलता से रोशन इतने निराश हो गए थे कि उनकी जीने की चाहत ही ख़त्म हो गई थी। केदार शर्माजी का बड़प्पन देखिये कि उन्होने रोशन की यह हालत देख कर उन्हे अपनी अगली फ़िल्म 'बावरे नैन' में भी संगीत देने का एक और मौका दे दिया। और इस बार इस मौके को रोशन ने इस क़दर अंजाम दिया कि उन्हे फिर कभी पीछे मुड़कर देखने की ज़रूरत नहीं पड़ी। बावरे नैन कामयाब रही और इसके संगीत

ठंडी हवा काली घटा आ ही गयी झूम के....गीता दत्त की पुकार पर

ओल्ड इस गोल्ड शृंखला # 48 आ ज के 'ओल्ड इस गोल्ड' में हम एक ऐसा गीत लेकर आए हैं जिसे सुन कर आप खुश हो जाएँगे. भाई, मुझे तो यह गीत बेहद पसंद है और जब भी कभी मैं इस गीत को सुन लेता हूँ तो दिल में एक खुशी की लहर सी दौड जाती है. आज की परेशानियाँ भरी ज़िंदगी में यह गीत कुछ देर के लिए ही सही लेकिन हमारे होंठों पे मुस्कान लाने में कोई कसर नहीं छोड़ता. ठंडी हवाओं और काली घटाओं पर बहुत सारे गाने आज तक बने हैं, लेकिन यह गीत भीड से अलग अपनी एक मज़बूत पहचान रखता है. मिस्टर & मिसिस 55 फिल्म का यह गीत ओपी नय्यर के संगीत और मजरूह के बोलों से सज़ा है. यूँ तो इस गीत के गायिकाओं में गीता दत्त और साथियों का नाम दर्ज किया गया है, लेकिन इस गीत में शामिल आवाज़ें अपने आप में कई राज़ छुपाये हुए है. इसमें कोई दोराय नहीं कि गीता दत्त की ही आवाज़ मुख्य रूप से सुनाई देती है, लेकिन गौर से अगर आप यह गीत सुने तो कम से कम दो और अलग आवाज़ें भी आप आसानी से महसूस कर सकते हैं, ख़ास कर गीत के शुरूआती मुखड़े में ही. गीत कुछ इस तरह से शुरू होता है... पहली आवाज़: ठंडी हवा दूसरी आवाज़: काली घटा तीसरी आवाज़: आ ही

अरे तौबा ये तेरी अदा...हंसती बिजली गाता शोला ये किसने देखा...अरे तौबा...

ओल्ड इस गोल्ड शृंखला # 34 'ओ ल्ड इस गोल्ड' की एक और शाम लेकर हम हाज़िर हैं दोस्तों! आज हम आप को एक ऐसा गीत सुनवाने जा रहे हैं जिसे आप ने एक लंबे अरसे से नहीं सुना होगा, और आप में से कई लोग तो शायद पहली बार यह गीत सुनेंगे. यह जो आज का गीत है वो है तो एक चर्चित फिल्म से ही, लेकिन इस गीत को शायद उतना बढावा नहीं मिला जीतने फिल्म के दूसरे गीतों को मिला. इससे पहले कि इस गीत का ज़िक्र हम करें, गीता दत्त के बारे में चंद अल्फ़ाज़ कहना चाहूँगा. गीता दत्त की आवाज़ की ख़ासियत यह थी कि कभी उसमें वेदना की आह मिलती तो कभी रूमानियत की शोखी, कभी भक्ति रस में लीन हो जाती तो कभी अपनी आवाज़ को लंबा खींचकर लोगों को भाव-विभोर कर देती. अपने शुरूआती दिनों में गीता दत्त को केवल भक्ति रचनाएँ ही गाने को मिलते थे. उनकी आवाज़ में भक्ति गीत बेहद सुंदर जान पड्ते. ऐसा लगने लगा था कि गीता दत्त की प्रतिभा को भक्ति रस के खाँचे में ही क़ैद कर दिया जाएगा. लेकिन संगीतकार ओ पी नय्यर ने पहली बार अपनी पहली ही फिल्म "आसमान" में गीता दत्त से गाने गवाए और यहाँ से शुरू हुई एक नशीली लंबी यात्रा. फिर तो जैसे नय्

जब से मिली तोसे अखियाँ जियरा डोले रे...हो डोले...हो डोले...हो डोले...

ओल्ड इस गोल्ड शृंखला # 13 दो स्तों नमस्कार! 'ओल्ड इस गोल्ड' के एक और कडी के साथ हम हाज़िर हैं. आशा है आप हर रोज़ 'ओल्ड इस गोल्ड' को सुन रहे होंगे और हर रोज़ पूछी गयी पहेली को बूझने का भी प्रयास करते होंगे. हमारा आप से यह अनुरोध है कि अगर आपके जेहन में ऐसा कोई ख़ास गीत है जिसे आप ने बहुत दिनों से नहीं सुना और इस शृंखला के अंतर्गत सुनना चाहते हैं तो हमें ज़रूर लिखिएगा. अगर गीत हमारे पास उपलब्ध होगा तो हम उसे ज़रूर शामिल करेंगे. और आइए अब आते हैं हमारे आज के गीत पर. आज का गीत हमने चुना है 1955 में बनी फिल्म "अमानत" से. यह फिल्म बिमल रॉय प्रोडएक्शन के 'बॅनर' तले बनाई गयी थी. इससे पहले बिमल रॉय "दो बीघा ज़मीन" और "नौकरी" जैसे फिल्मों का निर्माण कर चुके थे. "अमानत" फिल्म का निर्देशन किया अरविंद सेन ने, और इसके मुख्य कलाकार थे भारत भूषण और चाँद उस्मानी. दो बीघा ज़मीन और नौकरी की तरह अमानत में भी सलिल चौधुरी का संगीत था. बिमल-दा और सलिल-दा गहरे दोस्त थे और इन दोनो ने कई फिल्मों में साथ साथ काम किया. गीतकार शैलेंद्रा भी इनके काफ़

ऐ दिल मुझे बता दे...तू किस पे आ गया है...

ओल्ड इस गोल्ड शृंखला # 12 आ ज 'ओल्ड इस गोल्ड' में हम सलाम कर रहे हैं फिल्म जगत के दो महान सुर साधकों को. एक हैं गायिका गीता दत्त और दूसरे संगीतकार मदन मोहन. यूँ तो मदन मोहन के साथ लता मंगेशकर का ही नाम सबसे पहले जेहन में आता है, लेकिन गीता दत्त ने भी कुछ बडे ही खूबसूरत नगमें गाये हैं मदन मोहन के लिए. इनमें से एक है फिल्म "भाई भाई" का, "ऐ दिल मुझे बता दे तू किसपे आ गया है, वो कौन है जो आकर ख्वाबों पे छा गया है". दोस्तों, अगर आप ने कल का 'ओल्ड इस गोल्ड' सुना होगा तो आपको पता होगा कि हमने उसमें आशा भोसले का गाया "आँखों में जो उतरी है दिल में" गाना सुनवाया था. वो गाना ज़िंदगी में किसी के आ जाने की खुशी को उजागर करता है. वैसे ही "भाई भाई" फिल्म का यह गाना भी कुछ उसी अंदाज़ का है. किसी का अचानक दिल में आ जाना, ख्वाबों पर भी उसी का राज होना, पहले पहले प्यार की वो मीठी मीठी अनुभूतियाँ, यही तो है इस गीत में. "भाई भाई" 1956 की फिल्म थी जिसका निर्माण दक्षिण के नामचीं 'बॅनर' ऐ वी एम् ने किया था. अशोक कुमार, किशोर कुमार, नि

बरकरार है आज भी ओ पी नैयर के संगीत का मदभरा जादू

जीनिअस संगीतकार ओ पी नैयर की दूसरी पुण्यतिथि पर विशेष - १९५२ में एक फ़िल्म आई थी, -आसमान, जिसमें गीता दत्त ने एक बेहद खूबसूरत गीत गाया था -"देखो जादू भरे मोरे नैन..." यह संगीतकार ओ पी नैयर की पहली फ़िल्म थी, जो पहला गाना इस फ़िल्म के लिए रिकॉर्ड हुआ था वो था "बेवफा जहाँ में वफ़ा ढूँढ़ते रहे..." गायक थे सी एच आत्मा साहब. दो अन्य गीत सी एच आत्मा की आवाज़ में होने थे जो नासिर पर फिल्माए जाने थे और ४ अन्य गीत, गीता ने गाने थे जो नायिका श्यामा पर फिल्मांकित होने थे. फ़िल्म के कुल ८ गीतों में से आखिरी एक गीत जो फ़िल्म की सहनायिका पर चित्रित होना था उसके बोल थे "जब से पी संग नैना लगे...". नैयर ने इस गीत के लिए लता जी को तलब किया पर जब लता जी को ख़बर मिली कि उन्हें एक ऐसा गीत गाने को कहा जा रहा है जो नायिका पर नही फिल्माया जाएगा (ये उन दिनों बहुत बड़ी बात हुआ करती थी) उनके अहम् को धक्का लगा. वो उन दिनों की (और उसके बाद के दिनों की भी) सबसे सफल गायिका थी. लता ने ओ पी के लिए इस गीत को गाने से साफ़ इनकार कर दिया और जब नैयर साहब तक ये बात पहुँची, तो उन्होंने भी एक दृढ़

गुरु दत्त , एक अशांत अधूरा कलाकार !

महान फिल्मकार गुरुदत्त की पुण्यतीथी पर एक विशेष प्रस्तुति लेकर आए हैं दिलीप कवठेकर कुछ दिनों पहले मैंने एक सूक्ति कहीं पढ़ी थी - To make simple thing complicated is commonplace. But ,to make complicated things awesomely simple is Creativity. गुरुदत्त की अज़ीम शख्सियत पर ये विचार शत प्रतिशत खरे उतरते है. वे महान कलाकार थे , Creative Genre के प्रायः लुप्तप्राय प्रजाति, जिनके सृजनात्मक और कलात्मक फिल्मों के लिए उन्हें हमेशा याद किया जायेगा. आज से ४४ साल पहले १० अक्टुबर सन १९६४ को, उन्होंने अपने इस कलाजीवन से तौबा कर ली. रात के १ बजे के आसपास उनसे विदा लेने वाले आख़िरी शख्स थे अबरार अल्वी. उनके निधन से हमें उन कालजयी फिल्मों से मरहूम रहना पडा, जो उनके Signature Fims कही जाती है. वसंथ कुमार शिवशंकर पदुकोने के नाम से इस दुनिया में आँख खोलने वाले इस महान कलाकार नें एक से बढ़कर एक ऐसी फिल्मों से हमारा त,अर्रूफ़ करवाया जो विश्वस्तरीय Masterpiece थीं. गुरुदत्त नें गीत संगीत की चासनी में डूबी, यथार्थ से एकदम नज़दीक खट्टी मीठी कहानियों की पर बनी फ़िल्मों से, उन जीवंत सीधे सच्चे संवेदनशील चरित्रों से हम