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राग जोगिया : SWARGOSHTHI – 503 : RAG JOGIYA

       



स्वरगोष्ठी – 503 में आज 

देशभक्ति गीतों में शास्त्रीय राग – 7 

"जाने वाले सिपाही से पूछो, वो कहाँ जा रहा है...", राग जोगिया में सवाल सिपाहियों से




“रेडियो प्लेबैक इण्डिया” के साप्ताहिक स्तम्भ "स्वरगोष्ठी" के मंच पर मैं सुजॉय चटर्जी, साथी साथी सलाहकर शिलाद चटर्जी के साथ, आप सब संगीत प्रेमियों का हार्दिक स्वागत करता हूँ।उन्नीसवीं सदी में देशभक्ति गीतों के लिखने-गाने का रिवाज हमारे देश में काफ़ी ज़ोर पकड़ चुका था। पराधीनता की बेड़ियों में जकड़ा देश गीतों, कविताओं, लेखों के माध्यम से जनता में राष्ट्रीयता की भावना जगाने का काम करने लगा। जहाँ एक तरफ़ कवियों और शाइरों ने देशप्रेम की भावना से ओतप्रोत रचनाएँ लिखे, वहीं उन कविताओं और गीतों को अर्थपूर्ण संगीत में ढाल कर हमारे संगीतकारों ने उन्हें और भी अधिक प्रभावशाली बनाया। ये देशभक्ति की धुनें ऐसी हैं कि जो कभी हमें जोश से भर देती हैं तो कभी इनके करुण स्वर हमारी आँखें नम कर जाते हैं। कभी ये हमारा सर गर्व से ऊँचा कर देते हैं तो कभी इन्हें सुनते हुए हमारे रोंगटे खड़े हो जाते हैं। इन देशभक्ति की रचनाओं में बहुत सी रचनाएँ ऐसी हैं जो शास्त्रीय रागों पर आधारित हैं। और इन्हीं रागाधारित देशभक्ति रचनाओं से सुसज्जित है ’स्वरगोष्ठी’ की वर्तमान श्रृंखला ’देशभक्ति गीतों में शास्त्रीय राग’। अब तक प्रकाशित इस श्रृंखला की अब तक प्रकाशित छः कड़ियों में हमने राग आसावरी, गुजरी तोड़ी, पहाड़ी, भैरवी, मियाँ की मल्हार, कल्याण (यमन) और शुद्ध कल्याण पर आधारित सात देशभक्ति गीतों की चर्चा की गई हैं। आज प्रस्तुत है इस श्रृंखला की सातवीं कड़ी में राग जोगिया पर आधारित एक फ़िल्मी रचना। और साथ में राग जोगिया में बड़ा ख़याल पंडित भीमसेन जोशी की आवाज़ में।


मन्ना डे और सलिल चौधरी (Courtesy: pinterest.com)
मख़दूम मोहिउद्दीन 
 केवल एक शाइर ही नहीं बल्कि एक क्रान्तिकारी भी थे जिन्होंने अपनी कलम से कुछ ऐसी रचनाएँ लिखीं जो शोले उगलते जान पड़ते थे। उनकी एक मशहूर नज़्म है "सिपाही" जिसकी रचना उन्होंने दूसरे विश्व युद्ध के दौरान हुई तबाही के मनज़र को देखते हुए की थी। उनकी इस नज़्म का प्रयोग बिमल रॉय पिक्चर्स के बैनर तले बनी 1961 की फ़िल्म ’उसने कहा था’ में किया गया था। मूलत: यह सिपाहियों का गीत है जो सवाल उठाता है युद्ध पर जाने की आवश्यकता को लेकर। सिपाही जंग लड़ने आख़िर क्यों जा रहे हैं? जंग की ज़रूरत क्यों है? क्यों नहीं दुनिया में अमन और चैन से रह सकते लोग? इन तमाम सवालों के जवाब ढूंढ़ते इस गीत का संगीत तैयार किया था सलिल चौधरी ने और इस गीत को गाया है मन्ना डे, सबिता चौधरी और साथियों ने। वैसे तो गीत में मुख्य रूप से मन्ना डे और साथियों की ही आवाज़ें हैं, लेकिन हर अन्तरे के बाद सबिता चौधरी मुखड़े को ऊँची पट्टी पर गाती हैं। ग़ौर तलब बात है कि इस गीत में मन्ना डे द्वारा गाया मुखड़ा अगर मेलडी है तो कोरस और सबिता चौधरी द्वारा गाया मुखड़ा काउण्टर मेलडी है। काउण्टर मेलडी का प्रयोग पाश्चात्य संगीत में अधिक होता है जो मेलडी के ऊपर से एक झोंके की तरह बह जाता है। इस गीत का संगीत संयोजन, कोरस की गायन शैली और सबिता चौधरी द्वारा केवल एक पंक्ति गाना हमें ’जिस देश में गंगा बहती है’ फ़िल्म के "आ अब लौट चलें" गीत की याद दिला जाता है।

’रेख़्ता’ में  उपलब्ध जानकारी के अनुसार मख़दूम मोहिउद्दीन को इस नज़्म ’सिपाही’ को लिखने की प्रेरणा लखनऊ में मुहर्रम के दौरान मिली थी। वह एक नौहा था - "क़ैदख़ाने में मादर पुकारीं, सुब्‍ह होती है जागो सकीना..."। यह नौहा राग जोगिया पर आधारित है जिसे सुबह-सुबह सुनने पर एक अलग ही अनुभूति होती है। इससे प्रभावित होकर मख़दूम ने अपनी नज़्म ’सिपाही’ लिखी और जब भी वो ’सिपाही’ पढ़ कर सुनाते थे, वो उसे उसी राग जोगिया वाली धुन पर भावुक अंदाज़ में गाया करते थे, जिसे सुन कर श्रोताओं के रोगटे खड़े हो जाते थे। जब सलिल चौधरी को इस नज़्म को संगीतबद्ध करने का मौक़ा फ़िल्म ’उसने कहा था’ में मिला, तब उन्होंने भी उसी मौलिक धुन को ही अपनाया। और साथ में पाश्चात्य ऑरकेस्ट्रेशन का प्रयोग करते हुए एक फ़्युज़न उत्पन्न किया। राग जोगिया की चर्चा करने से पहले आइए इस गीत को सुन लिया जाए!



गीत : “जाने वाले सिपाही से पूछो...” : फ़िल्म: उसने कहा था, गायक: मन्ना डे, सबिता चौधरी, साथी


पं भीमसेन जोशी (Courtesy:deccanherald.com)
इस गीत को सुनते हुए शास्त्रीय संगीत के जानकार इसमें राग जोगिया की छाया को महसूस कर पाए होंगे। 
राग जोगिया, भैरव थाट का जन्य राग माना जाता है। इसके आरोह में गान्धार तथा निषाद स्वर वर्जित तथा अवरोह में गान्धार स्वर वर्जित किया जाता है। अतः इस राग की जाति औड़व-षाड़व होती है। राग का वादी स्वर मध्यम और संवादी स्वर षडज होता है। अर्थात इसके आरोह में पाँच और अवरोह में छः स्वर प्रयोग किये जाते हैं। आरोह में गान्धार और निषाद तथा अवरोह में गान्धार स्वर वर्जित होता है। राग में कोमल ऋषभ और कोमल धैवत का प्रयोग किया जाता है। अन्य सभी शुद्ध स्वर प्रयोग होते हैं। आरोह के स्वर हैं- सा, रे(कोमल), म, प, ध(कोमल), सां और अवरोह के स्वर हैं- सां, नि, ध(कोमल), प, ध(कोमल), म, रे(कोमल), सा। राग जोगिया का गायन समय प्रातःकाल सन्धिप्रकाश के समय सर्वाधिक उपयुक्त माना जाता है। कुछ विद्वान राग जोगिया में तार षडज को वादी और मध्यम को संवादी मानते हैं। किन्तु दोनों दृष्टियों में यह उत्तरांग प्रधान राग है। राग जोगिया में बहुधा बड़ा खयाल नहीं गाया जाता। यह छोटा खयाल और ठुमरी के उपयुक्त राग माना जाता है। कभी-कभी राग के आकर्षण को बढ़ाने के लिए अवरोह में कोमल निषाद का अल्प प्रयोग कर लिया जाता है। आइए अब हम आपको राग जोगिया में निबद्ध एक ठुमरी सुनवाते हैं पंडित भीमसेन जोशी की आवाज़ में, जिसके बोल हैं "पिया के मिलन की आस"। तबले पर संगत की है महापुरुष मिश्र ने। यह पंडित जोशी द्वारा पश्चिम बंगाल के श्रीरामपुर में आयोजित एक कार्यक्रम में 21 दिसम्बर 1986 को प्रस्तुत किया गया था।



गीत : ठुमरी - “पिया के मिलन की आस...” : गायक: पंडित भीमसेन जोशी 



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कृष्णमोहन मिश्र जी की पुण्य स्मृति को समर्पित
विशेष सलाहकार : शिलाद चटर्जी
प्रस्तुति : सुजॉय चटर्जी   

रेडियो प्लेबैक इण्डिया 
राग जोगिया : SWARGOSHTHI – 503 : RAG JOGIYA: 28 फरवरी, 2021



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