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राग पीलू और पहाड़ी में "सारे जहाँ से अच्छा" : SWARGOSHTHI – 498 : RAG PILU & PAHADI

   




स्वरगोष्ठी – 498 में आज 

देशभक्ति गीतों में शास्त्रीय राग – 3 

"सारे जहाँ से अच्छा", पं रविशंकर ने बांधा पीलू में तो एन. दत्ता ने पहनाया फ़िल्मी जामा पहाड़ी का




“रेडियो प्लेबैक इण्डिया” के साप्ताहिक स्तम्भ "स्वरगोष्ठी" के मंच पर मैं सुजॉय चटर्जी, आप सब संगीत प्रेमियों का हार्दिक स्वागत करता हूँ। मित्रों, जनवरी का महीना देशभक्ति पर्वों का महीना है - 11 जनवरी को लाल बहादुर शास्त्री जी की पुण्यतिथि, 12 जनवरी को मास्टर सूर्य सेन का शहीदी दिवस, 23 जनवरी को नेताजी सुभाष चन्द्र बोस जयन्ती, 26 जनवरी को राष्ट्रीय पर्व गणतंत्र दिवस, 28 जनवरी को लाला लाजपत राय जयन्ती और 30 जनवरी को राष्ट्रपिता महात्मा गांधी की पुण्यतिथि व शहीद दिवस। इन सब को ध्यान में रखते हुए इन दिनों ’स्वरगोष्ठी’ पर जारी है श्रृंखला ’देशभक्ति गीतों में शास्त्रीय राग’। अब तक प्रकाशित इस श्रृंखला की दो कड़ियों में "ऐ मेरे वतन के लोगों" और वतन पे जो फ़िदा होगा" गीतों की चर्चा हुई है। आज इस श्रृंखला की तीसरी कड़ी में ज़िक्र एक और बेहद महत्वपूर्ण देशभक्ति गीत का - "सारे जहाँ से अच्छा हिन्दोस्तां हमारा"। इस गीत के तमाम संस्करणों में से हम चुन कर लाए हैं दो महत्वपूर्ण संस्करण। पहला, पंडित रविशंकर द्वारा रचा राग मिश्र पीलू में सितार पर बजाया हुआ सन् 1945 का महत्वपूर्ण IPTA संस्करण, और दूसरा, 1959 की फ़िल्म ’भाई बहन’ के लिए संगीतकार एन. दत्ता के निर्देशन में आशा भोसले का गाया गीत जो आधारित है राग पहाड़ी पर।


पंडित रवि शंकर
मशहूर 
शाइर मोहम्मद इक़बाल ने वर्ष 1904 में ग़ज़ल शैली में लिखा था "सारे जहाँ से अच्छा हिदोस्तां हमारा, हम बुलबुले हैं इसकी ये गुलिस्तां हमारा"। इस देशभक्ति ग़ज़ल को ख़ूब पसन्द किया गया जिसे देश के सर्वाधिक लोकप्रिय व महत्वपूर्ण देशभक्ति गीतों में गिना जाता है। इक़बाल जिस अंदाज़ में इसे गाते/ पढ़ते/ सुनाते थे, वह उनका अपना शाइराना अंदाज़ था। यह अंदाज़ आम शाइरों वाला था, जिसमें ठहराव था, शेर-ओ-शाइरी वाला रंग-ढंग था। वर्ष 1945 में सुप्रसिद्ध सितार वादक पंडित रवि शंकर ने राग मिश्र पीलू को आधार बना कर "सारे जहाँ से अच्छा" की एक नई धुन तैयार की। उन्हें लगा कि इस गीत की जो तत्कालीन धुन थी, उसमें जोश कुछ कम था। उनके अनुसार ऐसे देशभक्ति गीत का लय तोड़ा तीव्र होना चाहिए, इसे एक Marching Song के रूप में बजाया जा सके। 1946 में जब वे IPTA के आधिकारिक संगीतकार बने, तब IPTA के अनुरोध पर उन्होंने "सारे जहाँ से अच्छा" की उनकी बनाई धुन को सार्वजनिक रूप से प्रस्तुत किया जिसे सुन कर सभी मन्त्रमुग्ध हो गए। यह धुन IPTA के सदस्यों को इतनी पसन्द आयी कि उसके बाद से IPTA के सभी कार्यक्रमों की शुरुआत इसी से हुआ करने लगी। आगे चल कर वर्ष 1976 में दूरदर्शन के सिग्नेचर ट्युन के रूप में पंडित रवि शंकर और उस्ताद अली अहमद हुसैन ने मिल कर जिस धुन की रचना की, वह पंडित रवि शंकर के इसी "सारे जहाँ से अच्छा" की धुन पर आधारित थी। ज़रा दूरदर्शन की उस प्रचलित सिग्नेचर ट्युन को गुनगुना कर देखिए, आपको उसमें इसी "सारे जहाँ से अच्छा" की धुन की झलक मिलेगी।

अब कुछ बातें राग पीलू से सम्बन्धित। राग पीलू का सम्बन्ध काफी थाट से जोड़ा जाता है। आमतौर पर इस राग के आरोह में ऋषभ और धैवत स्वर वर्जित किया जाता है। अवरोह में सभी सात स्वर प्रयोग किये जाते हैं। इसलिए राग की जाति औड़व-सम्पूर्ण होती है, अर्थात आरोह में पाँच और अवरोह में सात स्वर प्रयोग होते हैं। इस राग में ऋषभ, गान्धार, धैवत और निषाद स्वर के कोमल और शुद्ध, दोनों रूप का प्रयोग किया जाता है। राग का वादी स्वर गान्धार और संवादी स्वर निषाद होता है। इस राग के गायन-वादन का समय दिन का तीसरा प्रहर माना गया है। इस राग के प्रयोग करते समय प्रायः अन्य कई रागों की छाया दिखाई देती है, इसीलिए राग पीलू को संकीर्ण जाति का राग कहा जाता है। यह चंचल प्रकृति का और श्रृंगार रस की सृष्टि करने वाला राग है। इस राग में अधिकतर ठुमरी, दादरा, टप्पा, गीत, भजन आदि का गायन बेहद लोकप्रिय है। क्योंकि इस राग के स्वरूप को कलाकार की शैली और व्याख्या पर छोड़ दिया जाता है, इसलिए इसे कई बार मिश्र पीलू के नाम से भी सम्बोधित किया जाता है। तो आइए इसी मिश्र पीलू पर आधारित सितार पर पंडित रवि शंकर द्वारा संगीतबद्ध किया हुआ "सारे जहाँ से अच्छा" की धुन सुनते हैं जिसे प्रस्तुत किया है प्रसिद्ध सितार वादक गौरव मजुमदार ने। उनके साथ संगत किया है चेलो पर बैरी फ़िलिप्स्, शहनाई पर अश्वनी शंकर और तबले पर अरुप चट्टोपाध्याय ने।  




सितार : “सारे जहाँ से अच्छा...” : वादक: गौरव मजुमदार, संगीत : पंडित रवि शंकर



आशा भोसले और एन. दत्ता
"सारे जहाँ से अच्छा" गीत के फ़िल्मी संस्करणों की अगर बात करें तो सबसे लोकप्रिय संस्करण 1959 की फ़िल्म ’भाई बहन’ में सुनने को मिलता है। संगीतकर दत्ता नाइक, जिन्हे हम एन. दत्ता के नाम से जानते हैं, ने राग पहाड़ी में इस गीत को एक नया जामा पहनाया, और आशा भोसले की सुरीली आवाज़ में ढल कर यह गीत सीधे श्रोताओं के कानों से होते हुए दिल में उतर गया। वैसे इस संस्करण में "सारे जहाँ से अच्छा" मूल गीत का केवल मुखड़ा ही लिया गया है। अन्तरे लिखे हैं फ़िल्म के गीतकार साहिर लुधियानवी ने। इसलिए इस गीत में गीतकार का नाम इक़बाल नहीं बल्कि साहिर लुधियानवी दिया गया है। फ़िल्मांकन में बेबी नाज़ नज़र आते हैं स्कूली छात्र-छात्राओं के साथ, और उनमें डेज़ी इरानी भी शामिल हैं।  भारतीय संगीत के कई रागों का उद्गम लोक संगीत से हुआ है। इन्हीं में से एक है राग पहाड़ी, जिसकी उत्पत्ति भारत के पर्वतीय अंचल में प्रचलित लोक संगीत से हुई है। यह राग बिलावल थाट के अन्तर्गत माना जाता है। राग पहाड़ी में मध्यम और निषाद स्वर बहुत अल्प प्रयोग किया जाता है। इसीलिए राग की जाति का निर्धारण करने में इन स्वरों की गणना नहीं की जाती और इसीलिए इस राग को औड़व-औड़व जाति का मान लिया जाता है। राग का वादी स्वर षडज और संवादी स्वर पंचम होता है। इसका चलन चंचल है और इसे क्षुद्र प्रकृति का राग माना जाता है। इस राग में ठुमरी, दादरा, गीत, ग़ज़ल आदि रचनाएँ खूब मिलती हैं। आम तौर पर गायक या वादक इस राग को निभाते समय रचना का सौन्दर्य बढ़ाने के लिए विवादी स्वरों का उपयोग भी कर लेते हैं। मध्यम और निषाद स्वर रहित राग भूपाली से बचाने के लिए राग पहाड़ी के अवरोह में शुद्ध मध्यम स्वर का प्रयोग किया जाता है। मन्द्र धैवत पर न्यास करने से राग पहाड़ी स्पष्ट होता है। इस राग के गाने-बजाने का सर्वाधिक उपयुक्त समय रात्रि का पहला प्रहर माना जाता है। राग पहाड़ी के स्वरूप को स्पष्ट रूप से अनुभव करने के लिए अब आप इसी राग पर आधारित फ़िल्म ’भाई बहन’ की वह रचना सुनिए आशा भोसले की आवाज़ में।





गीत : "सारे जहाँ से अच्छा...", फ़िल्म: भाई बहन  (1959), गायक: आशा भोसले


संगीत पहेली के महाविजेताओं के लिए सूचना 

वर्ष 2020 में ’स्वरगोष्ठी’ में पूछे गए पहेलियों में भाग लेकर पाँच प्रतियोगी महाविजेता बने हैं। स्वर्गीय कृष्णमोहन जी के अचानक निधन से हम उन पाँच महाविजेताओं की पहचान पूरी तरह से कर पाने में अब तक असमर्थ रहे हैं। परन्तु हमें पता चला है कृष्णमोहन जी ने उन सभी पाँच प्रतियोगियों को ई-मेल द्वारा उनके प्रथम पाँच विजेताओं में होने की सूचना दी थी। इनमें से कुछ नामों की जानकारी हमें पिछले दिनों प्राप्त हुई है, पर अब भी कुछ नामों की जानकारी हमें नहीं मिल पायी है। हम चाहते हैं कि ’स्वरगोष्ठी’ के 500-वें अंक में हम पाँचों महाविजेताओं के नामों की घोषणा एक साथ करें जिसके लिए हम आप से सहयोग की आशा करते हैं। आपसे अनुरोध है कि कृष्णमोहन जी द्वारा आपको भेजे गए उस ईमेल को आप हमें soojoi_india@yahoo.co.in के पते पर भेज दें। इस तरह से 500-वें अंक में हम पाँचों महाविजेताओं की घोषणा कर सकेंगे।  


संवाद

मित्रों, इन दिनों हम सब भारतवासी, प्रत्येक नागरिक को कोरोना वायरस से मुक्त करने के लिए प्रयत्नशील हैं। देश के कुछ स्थानों पर अचानक इस वायरस का प्रकोप इन दिनों बढ़ गया है। अप सब सतर्कता बरतें। संक्रमित होने वालों के स्वस्थ होने का प्रतिशत निरन्तर बढ़ रहा है। परन्तु अभी भी हमें पर्याप्त सतर्कता बरतनी है। विश्वास कीजिए, हमारे इस सतर्कता अभियान से कोरोना वायरस पराजित होगा। आप सब से अनुरोध है कि प्रत्येक स्थिति में चिकित्सकीय और शासकीय निर्देशों का पालन करें और अपने घर में सुरक्षित रहें। इस बीच शास्त्रीय संगीत का श्रवण करें और अनेक प्रकार के मानसिक और शारीरिक व्याधियों से स्वयं को मुक्त रखें। विद्वानों ने इसे “नाद योग पद्धति” कहा है। “स्वरगोष्ठी” की नई-पुरानी श्रृंखलाएँ सुने और पढ़ें। साथ ही अपनी प्रतिक्रिया से हमें अवगत भी कराएँ। 


अपनी बात

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कृष्णमोहन मिश्र जी की पुण्य स्मृति को समर्पित
प्रस्तुति : सुजॉय चटर्जी   

रेडियो प्लेबैक इण्डिया 
राग पीलू और पहाड़ी : SWARGOSHTHI – 498 : RAG PILU & PAHADI : 24 जनवरी, 2021 



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