Skip to main content

राग काफी : SWARGOSHTHI – 487 : RAG KAFI

 






स्वरगोष्ठी – 487 में आज 

राज कपूर के विस्मृत संगीतकार - 3 : संगीतकार ज्ञानदत्त 

"सुनहरे दिन" में राज कपूर के लिए कर्णप्रिय राग काफी पर आधारित गीत ज्ञानदत्त ने सँजोया 





पण्डित भीमसेन जोशी 

फिल्म 'सुनहरे दिन' में राज कपूर 
“रेडियो प्लेबैक इण्डिया” के साप्ताहिक स्तम्भ "स्वरगोष्ठी" के मंच पर जारी हमारी श्रृंखला “राज कपूर के विस्मृत संगीतकार" की तीसरी कड़ी में मैं कृष्णमोहन मिश्र, आप सब संगीत प्रेमियों का हार्दिक स्वागत करता हूँ। इस श्रृंखला में हम फिल्म निर्माता, निर्देशक और अभिनेता राज कपूर के फिल्मी जीवन के पहले दशक के कुछ विस्मृत संगीतकारों की और उनकी कृतियों पर चर्चा कर रहे हैं। इन फिल्मों में से राज कपूर ने कुछ फिल्मों का निर्माण, कुछ का निर्देशन और कुछ फिल्मों में केवल अभिनय किया था। आरम्भ के पहले दशक अर्थात 1948 में प्रदर्शित फिल्म "आग" से लेकर 1958 में प्रदर्शित फिल्म "फिर सुबह होगी" तक की चर्चा इस श्रृंखला में की जाएगी। आम तौर पर राज कपूर की फिल्मों के अधिकतर संगीतकार शंकर जयकिशन ही रहे हैं। उन्होने राज कपूर की कुल 20 फिल्मों का संगीत निर्देशन किया है। इसके अलावा बाद की कुछ फिल्मों में लक्ष्मीकान्त, प्यारेलाल और रवीन्द्र जैन ने भी संगीत दिया है। राज कपूर के फिल्मों के प्रारम्भिक दशक के कुछ संगीतकार भुला दिये गए है, यद्यपि इन फिल्मों के गीत आज भी लोकप्रिय हैं। राज कपूर का जन्म 14 दिसम्बर, 1924 को पेशावर (अब पाकिस्तान) में जाने-माने अभिनेता पृथ्वीराज कपूर के घर हुआ था। श्रृंखला की कड़ियाँ राज कपूर के जन्म पखवारे तक और वर्ष 2020 के अन्तिम रविवार तक जारी रहेगी। उनकी 97वीं जयन्ती अवसर के लिए हमने राज कपूर और उनके कुछ विस्मृत संगीतकारों को स्मरण करने का निश्चय किया है। इस श्रृंखला के माध्यम से हम भारतीय सिनेमा के एक ऐसे स्वप्नदर्शी व्यक्तित्व राज कपूर पर चर्चा करेंगे, जिसने देश की स्वतन्त्रता के पश्चात कई दशकों तक भारतीय जनमानस को प्रभावित किया। सिनेमा के माध्यम से समाज को सर्वाधिक प्रभावित करने वाले भारतीय सिनेमा के पाँच स्तम्भों; वी. शान्ताराम, विमल राय, महबूब खाँ और गुरुदत्त के साथ राज कपूर का नाम भी एक कल्पनाशील फ़िल्मकार के रूप में इतिहास में दर्ज़ हो चुका है। इस वर्ष 14 दिसम्बर को इस महान फ़िल्मकार की 97वीं जयन्ती है। इस अवसर के लिए श्रृंखला प्रस्तुत करने की जब योजना बन रही थी तब अपने पाठकों और श्रोताओं के अनेकानेक सुझाव मिले कि इस श्रृंखला में राज कपूर की आरम्भिक फिल्मों के गीतों को एक नये कोण से टटोला जाए। आज से आरम्भ हो रही श्रृंखला “राज कपूर के विस्मृत संगीतकार" में हमने उनके लोकप्रिय संगीत निर्देशकों के अलावा दस ऐसे संगीतकारों के गीतों को चुना है, जिन्होने राज कपूर के आरम्भिक दशक की फिल्मों में उत्कृष्ट स्तर का संगीत दिया था। ये संगीतकार राज कपूर के व्यक्तित्व से और राज कपूर इनके संगीत से अत्यन्त प्रभावित हुए थे। इसके साथ ही इस श्रृंखला में प्रस्तुत किये जाने वाले गीतों के रागों का विश्लेषण भी करेंगे। इस कार्य में हमारा सहयोग "फिल्मी गीतों में राग" विषयक शोधकर्ता और "हिन्दी सिने राग इनसाइक्लोपीडिया" के लेखक के.एल. पाण्डेय और फिल्म संगीत के इतिहासकार सुजॉय चटर्जी ने किया है। श्रृंखला के आज की तीसरी कड़ी में हम 1949 में राज कपूर द्वारा अभिनीत फिल्म "सुनहरे दिन" से राग काफी पर आधारित एक गीत; "बहारों ने जिसे छेड़ा..." प्रस्तुत कर रहे हैं। राग काफी के शास्त्रीय स्वरूप का दिग्दर्शन कराने के उद्येश्य से हम राग काफी में निबद्ध एक रागदारी रचना "बावरे गम दे गयो..." को सुविख्यात संगीतज्ञ पण्डित भीमसेन जोशी के स्वर में प्रस्तुत कर रहे हैं। 



इस श्रृंखला के अन्तर्गत इन दिनों हम सुप्रसिद्ध फ़िल्मकार राज कपूर की फिल्म यात्रा के कुछ ऐसे पड़ावों की चर्चा कर रहे हैं, जिनमें संगीत के प्रति उनके अनुराग और चिन्तन का रेखांकन हुआ है। पिछले अंकों में हम यह चर्चा कर चुके हैं कि राज कपूर को संगीत संस्कारगत प्राप्त हुआ था। बचपन में अपनी माँ से, किशोरावस्था में न्यू थिएटर्स के संगीत कक्ष से और युवावस्था में अपने पिता के पृथ्वी थिएटर के नाटकों से प्राप्त संगीत राज कपूर के रग-रग में बसा हुआ था। अपनी पहली फिल्म "आग" के लिए उन्होने पृथ्वी थियेटर के संगीतकार राम गांगुली को चुना था। इस फिल्म में शंकर और जयकिशन, संगीत दल के मात्र एक वादक थे। अपनी अगली फिल्म "बरसात" के लिए राज कपूर ने शंकर जयकिशन को ही संगीतकार के रूप में चुना था। कहने की आवश्यकता नहीं है कि इस फिल्म का संगीत अत्यन्त लोकप्रिय हुआ था। "बरसात" (1949) से लेकर "मेरा नाम जोकर" (1070) तक पूरे 21 वर्षों के दौरान शंकर जयकिशन, राज कपूर की 20 फिल्मों के सफल संगीतकार रहे। इसके बाद आर.के. की फिल्मों; "बॉबी", "सत्यं शिवं सुन्दरम्", "प्रेम रोग" और "प्रेम ग्रन्थ" के संगीतकार लक्ष्मीकान्त प्यारेलाल तथा "राम तेरी गंगा मैली" और "हिना’ के संगीतकार रवीन्द्र जैन थे। इस श्रृंखला में हम राज कपूर के सर्वाधिक लोकप्रिय संगीतकारों के स्थान पर उनके फिल्मी सफर के प्रारम्भिक एक दशक के उन संगीतकारों की चर्चा कर रहे हैं, जिनका गहरा प्रभाव राज कपूर पर पड़ा। 1949 में जब राज कपूर फिल्म "बरसात" के निर्माण में व्यस्त थे उसी समय वे तीन अन्य निर्माताओं की फिल्मों; "सुनहरे दिन", "परिवर्तन" और "अन्दाज़" में अभिनेता के रूप में भी कार्य कर रहे थे। इतनी व्यस्तता के बावजूद उन्होने किसी भी फिल्म में अपने अभिनय का स्तर गिरने नहीं दिया। इस वर्ष की फिल्मों में से आज हम फिल्म "सुनहरे दिन" में राज कपूर की भूमिका की और फिल्म के एक गीत के माध्यम से इस फिल्म के विस्मृत संगीतकार ज्ञानदत्त की चर्चा करेंगे। 1949 में प्रदर्शित फिल्म "सुनहरे दिन" का निर्माण जगत पिक्चर्स ने किया था, जिसके निर्देशक सतीश निगम थे। फिल्म में राज कपूर की भूमिका एक रेडियो गायक की थी। अपने श्रोताओं के बीच यह गायक चरित्र बेहद लोकप्रिय है। इस फिल्म का यह गीत वर्तमान में लगभग विस्मृत संगीतकार ज्ञानदत्त ने राग काफी पर आधारित किया है। इसके साथ ही राग काफी की एक शास्त्रीय रचना विख्यात संगीतज्ञ पण्डित भीमसेन जोशी के स्वर में भी प्रस्तुत करेंगे। 


संगीतकार ज्ञानदत्त 
चौथे और पाँचवे दशक के चर्चित संगीतकार ज्ञानदत्त का फिल्मी सफर रणजीत मूवीटोन से आरम्भ हुआ था। 1937 में प्रदर्शित "तूफानी टोली" उनकी पहली फिल्म थी। श्रृंगार रस से परिपूर्ण संगीत रचने में उनका कोई प्रतिद्वन्द्वी नहीं था। उनकी चौथे दशक की फिल्मों की प्रमुख गायिका वहीदन बाई (अपने समय की सुप्रसिद्ध अभिनेत्री निम्मी की माँ) थीं। संगीत की दृष्टि से अनेक सफल फिल्मों की संगीत रचना करने के बाद पाँचवें दशक के अन्त में ज्ञानदत्त ने राज कपूर द्वारा अभिनीत फिल्म "सुनहरे दिन" की संगीत रचना की थी। इस फिल्म का संगीत ज्ञानदत्त के लिए विशेष उल्लेखनीय रहा। लोकप्रियता की दृष्टि से उस वर्ष की फिल्मों में राजकपूर द्वारा निर्मित, निर्देशित और अभिनीत "बरसात" तथा केवल अभिनीत फिल्म "सुनहरे दिन" के गीत शीर्ष पर थे। "सुनहरे दिन" का नायक चूँकि रेडियो गायक है, अतः ज्ञानदत्त ने इन गीतों में वाद्यवृन्द (आर्केस्ट्रा) का अत्यन्त आकर्षक प्रयोग किया था। फिल्म में ज्ञानदत्त ने राज कपूर के लिए मुकेश को पार्श्वगायक के रूप में अवसर दिया था। मुकेश और राज कपूर एक ही गुरु से संगीत सीखने जाया करते थे। फिल्म "आग" में मुकेश और राज कपूर की जोड़ी साथ थी, किन्तु इन दोनों के आवाज़ की स्वाभाविकता का अनुभव फिल्म "सुनहरे दिन" के गीतों से हुआ। फिल्म में मुकेश के साथ सुरिन्दर कौर और शमशाद बेग़म की आवाज़ें हैं। फिल्म "सुनहरे दिन" के गीतों में मुकेश और सुरिन्दर कौर की आवाज़ों में; "दिल दो नैनों में खो गया...", "लो जी सुन लो...", मुकेश और शमशाद बेग़म के स्वरों में; "मैंने देखी जग की रीत..." अत्यन्त लोकप्रिय गीत सिद्ध हुए, परन्तु जो लोकप्रियता मुकेश के एकल स्वर में प्रस्तुत गीत; "बहारों ने जिसे छेड़ा है वो साजे जवानी है..." को मिली, उससे अपने समय का यह एक उल्लेखनीय गीत बन गया था। आज हम आपको उल्लास और उमंग से परिपूर्ण यही गीत सुनवाएँगे। "सुनहरे दिन" संगीतकार ज्ञानदत्त के फिल्मी सफर की सफलतम फिल्म थी। इस फिल्म के बाद ज्ञानदत्त की संगीतबद्ध फिल्में व्यावसायिक रूप से असफल होती गई। अन्ततः 1965 में फिल्म "जनम जनम के साथी" के साथ ही उन्होने अपने संगीतकार जीवन से विराम ले लिया। 3 दिसम्बर 1974 को संगीतकार ज्ञानदत्त का निधन हुआ था। आइए आज हम आपको सुनवाते हैं, ज्ञानदत्त द्वारा संगीतबद्ध वह ऐतिहासिक गीत, जिसने गायक मुकेश और अभिनेता राज कपूर की जोड़ी को स्थायित्व दिया। गीतकार हैं, शेवन रिजवी। 

राग काफी : "बहारों ने जिसे छेड़ा..." : मुकेश : फिल्म - सुनहरे दिन : संगीत - ज्ञानदत्त 


काफी थाट के स्वर हैं; सा, रे, कोमल ग॒, म, प, ध, कोमल नि॒। इस थाट में गान्धार और निषाद कोमल और शेष स्वर शुद्ध प्रयोग किए जाते हैं। काफी थाट का आश्रय राग ‘काफी’ होता है। राग "काफी" में गान्धार और निषाद स्वर कोमल प्रयोग किया जाता है। इसके आरोह के स्वर हैं; सा, रे, ग(कोमल), म, प, ध, नि(कोमल), सां तथा अवरोह के स्वर हैं; सां, नि(कोमल), ध, प, म, ग(कोमल), रे, सा। राग काफी की जाति सम्पूर्ण-सम्पूर्ण होती है। इस राग का वादी स्वर पंचम और संवादी स्वर षडज होता है और इसका गायन अथवा वादन समय मध्यरात्रि होता है। परन्तु फाल्गुन मास में हर समय गाया जा सकता है। राग काफी में ठुमरी, होली और रंगोत्सव से सम्बन्धित रचनाएँ खूब निखरती हैं। अधिकांश ठुमरियों में ब्रज की होली का वर्णन मिलता है। इससे मिलता जुलता राग "सिन्दूरा" होता है। आइए, सुप्रसिद्ध गायक पण्डित भीमसेन जोशी के स्वरों में राग काफी की एक बन्दिश सुनते हैं। आप राग "काफी" की यह रचना सुनिए और हमें आज की इस कड़ी को यहीं विराम देने की अनुमति दीजिए। 

राग काफी : "बावरे गम दे गयो री..." : पण्डित भीमसेन जोशी 




संगीत पहेली

"स्वरगोष्ठी" के 487वें अंक की संगीत पहेली में आज हम आपको ठीक सात दशक पुरानी एक फिल्म के राग आधारित गीत का अंश सुनवा रहे हैं। गीत के इस अंश को सुन कर आपको दो अंक अर्जित करने के लिए निम्नलिखित तीन में से कम से कम दो प्रश्नों के सही उत्तर देना आवश्यक हैं। यदि आपको तीन में से केवल एक अथवा तीनों प्रश्नों का उत्तर ज्ञात हो तो भी आप प्रतियोगिता में भाग ले सकते हैं। श्रृंखला के चौथे सत्र अर्थात अंक संख्या 490 की पहेली का उत्तर प्राप्त होने के बाद तक जिस प्रतिभागी के सर्वाधिक अंक होंगे उन्हें इस वर्ष के चतुर्थ सत्र का विजेता घोषित किया जाएगा। इसके साथ ही पूरे वर्ष के प्राप्तांकों की गणना के बाद वर्ष के अन्त में महाविजेताओं की घोषणा की जाएगी और उन्हें सम्मानित भी किया जाएगा। 





1 - इस गीतांश को सुन कर बताइए कि इसमें किस राग का स्पर्श है? 

2 – इस गीत में प्रयोग किये गए ताल को पहचानिए और उसका नाम बताइए। 

3 – इस गीत में किन युगल पार्श्वगायिका और गायक के स्वर है? 

आप उपरोक्त तीन मे से किन्हीं दो प्रश्नों के उत्तर केवल swargoshthi@gmail.com या radioplaybackindia9@gmail.com पर ही शनिवार 14 नवम्बर, 2020 की मध्यरात्रि से पूर्व तक भेजें। आपको यदि उपरोक्त तीन में से केवल एक प्रश्न का सही उत्तर ज्ञात हो तो भी आप पहेली प्रतियोगिता में भाग ले सकते हैं। COMMENTS में दिये गए उत्तर मान्य हो सकते हैं, किन्तु उसका प्रकाशन पहेली का उत्तर देने की अन्तिम तिथि के बाद किया जाएगा। फेसबुक पर पहेली का उत्तर स्वीकार नहीं किया जाएगा। विजेताओं के नाम हम उनके शहर/ग्राम, प्रदेश और देश के नाम के साथ “स्वरगोष्ठी” के अंक संख्या 489 में प्रकाशित करेंगे। इस अंक में प्रस्तुत गीत, संगीत या कलाकार के बारे में यदि आप कोई जानकारी या अपने किसी अनुभव को हम सबके बीच बाँटना चाहते हैं तो हम आपका इस संगोष्ठी में स्वागत करते हैं। आप पृष्ठ के नीचे दिये गए COMMENTS के माध्यम से तथा swargoshthi@gmail.com अथवा radioplaybackindia9@gmail.com पर भी अपनी प्रतिक्रिया व्यक्त कर सकते हैं। 


पिछली पहेली के सही उत्तर और विजेता

“स्वरगोष्ठी” के 485वें अंक में हमने आपको 1948 में प्रदर्शित फिल्म "गोपीनाथ" से लिये गए एक युगल गीत का अंश सुनवा कर आपसे तीन में से कम से कम दो सही उत्तरों की अपेक्षा की गई थी। इस गीत के आधार राग को पहचानने में हमारे अधिकतर प्रतिभागियों को असफलता मिली। पहेली के पहले प्रश्न का सही उत्तर है; राग - सिन्धु भैरवी, दूसरे प्रश्न का सही उत्तर है; ताल – कहरवा तथा तीसरे प्रश्न का सही उत्तर है; स्वर – नीनू मजूमदार और मीना कपूर। 

‘स्वरगोष्ठी’ की इस पहेली का सही उत्तर देने वाले हमारे विजेता हैं; चेरीहिल, न्यूजर्सी से प्रफुल्ल पटेल, वोरहीज, न्यूजर्सी से डॉ. किरीट छाया, जबलपुर, मध्यप्रदेश से क्षिति तिवारी और शारीरिक अस्वस्थता के बावजूद हैदराबाद से डी. हरिणा माधवी। उपरोक्त सभी प्रतिभागियों में से प्रत्येक को दो-दो अंक मिलते हैं। ‘रेडियो प्लेबैक इण्डिया’ की ओर से आप सभी को हार्दिक बधाई। सभी प्रतिभागियों से अनुरोध है कि अपने पते के साथ कृपया अपना उत्तर ई-मेल से ही भेजा करें। इस पहेली प्रतियोगिता में हमारे नए प्रतिभागी भी हिस्सा ले सकते हैं। यह आवश्यक नहीं है कि आपको पहेली के तीनों प्रश्नों के सही उत्तर ज्ञात हो। यदि आपको पहेली का कोई एक उत्तर भी ज्ञात हो तो भी आप इसमें भाग ले सकते हैं। 


संवाद

मित्रों, इन दिनों हम सब भारतवासी, प्रत्येक नागरिक को कोरोना वायरस से मुक्त करने के लिए प्रयत्नशील हैं। अब तक हम काफी हद तक हम सफल भी हुए हैं। इसका प्रकोप भी अब कम हुआ है। संक्रमित होने वालों के स्वस्थ होने का प्रतिशत निरन्तर बढ़ रहा है। परन्तु अभी भी हमें पर्याप्त सतर्कता बरतनी है। विश्वास कीजिए, हमारे इस सतर्कता अभियान से कोरोना वायरस पराजित होगा। आप सब से अनुरोध है कि प्रत्येक स्थिति में चिकित्सकीय और शासकीय निर्देशों का पालन करें और अपने घर में सुरक्षित रहें। इस बीच शास्त्रीय संगीत का श्रवण करें और अनेक प्रकार के मानसिक और शारीरिक व्याधियों से स्वयं को मुक्त रखें। विद्वानों ने इसे “नाद योग पद्धति” कहा है। “स्वरगोष्ठी” की नई-पुरानी श्रृंखलाएँ सुने और पढ़ें। साथ ही अपनी प्रतिक्रिया से हमें अवगत भी कराएँ। 


अपनी बात

मित्रों, ‘रेडियो प्लेबैक इण्डिया’ के साप्ताहिक स्तम्भ ‘स्वरगोष्ठी’ पर जारी हमारी नई श्रृंखला “राज कपूर के विस्मृत संगीतकार" की तीसरी कड़ी में आज आपने राज कपूर की अभिनीत फिल्म "सुनहरे दिन" के एक गीत का रसास्वादन और गीत का परिचय प्राप्त किया। यह गीत राग काफी पर आधारित है। राग के शास्त्रीय स्वरूप को समझने के लिए हमने आपको सुप्रसिद्ध संगीतज्ञ पण्डित भीमसेन जोशी के स्वर में एक अत्यन्त कर्णप्रिय रचना "बावरे गम दे गयो री..." का गायन प्रस्तुत किया। 

लखनऊ, दूरदर्शन की समाचार वाचक, उद्घोषक और सुप्रसिद्ध गायिका निर्मला कुमारी ने "स्वरगोष्ठी" के पिछले अंक के बारे में प्रशंसात्मक टिप्पणी की है। लिखतीं है; वाह वाह । संगीत की इस सुन्दर श्रृंखला की प्रशंसा के लिए शब्द नहीं हैं । आपको बहुत बहुत बधाई । 

फेसबुक पर हमारी एक श्रोता और पाठक राजश्री श्रीवास्तव ने लिखा; Krishn mohan ji aap bahut hi sarahniy kaarya kar rahe hain sageet me ruchi rakhne walon ke apki sajha ki gai jankariyan prashasaniya hai. Bahut babut dhanywad. 

कुछ तकनीकी समस्या के कारण हम अपने फेसबुक के मित्र समूह के साथ “स्वरगोष्ठी” का लिंक साझा नहीं कर पा रहे हैं। सभी संगीत अनुरागियों से अनुरोध है कि हमारी वेबसाइट http://radioplaybackindia.com अथवा http://radioplaybackindia.blogspot.com पर क्लिक करके हमारे सभी साप्ताहिक स्तम्भों का अवलोकन करते रहें। “स्वरगोष्ठी” के वेब पेज के दाहिनी ओर निर्धारित स्थान पर अपना ई-मेल आईडी अंकित कर आप हमारे सभी पोस्ट के लिंक को नियमित रूप से अपने ई-मेल पर प्राप्त कर सकते है। “स्वरगोष्ठी” की पिछली कड़ियों के बारे में हमें अनेक पाठकों की प्रतिक्रिया लगातार मिल रही है। हमें विश्वास है कि हमारे अन्य पाठक भी “स्वरगोष्ठी” के प्रत्येक अंक का अवलोकन करते रहेंगे और अपनी प्रतिक्रिया हमें भेजते रहेंगे। आज के इस अंक अथवा श्रृंखला के बारे में यदि आपको कुछ कहना हो तो हमें अवश्य लिखें। यदि आपका कोई सुझाव या अनुरोध हो तो हमें swargoshthi@gmail.com अथवा radioplaybackindia9@gmail.com पर अवश्य लिखिए। अगले अंक में रविवार को प्रातः सात बजे “स्वरगोष्ठी” के इसी मंच पर हम एक बार फिर संगीत के सभी अनुरागियों का स्वागत करेंगे। 


प्रस्तुति : कृष्णमोहन मिश्र  



रेडियो प्लेबैक इण्डिया राग काफी : SWARGOSHTHI – 487 : RAG KAFI : 8 नवम्बर, 2020
 


Comments

बहुत सुंदर प्रस्तुति।

Popular posts from this blog

सुर संगम में आज -भारतीय संगीताकाश का एक जगमगाता नक्षत्र अस्त हुआ -पंडित भीमसेन जोशी को आवाज़ की श्रद्धांजली

सुर संगम - 05 भारतीय संगीत की विविध विधाओं - ध्रुवपद, ख़याल, तराना, भजन, अभंग आदि प्रस्तुतियों के माध्यम से सात दशकों तक उन्होंने संगीत प्रेमियों को स्वर-सम्मोहन में बाँधे रखा. भीमसेन जोशी की खरज भरी आवाज का वैशिष्ट्य जादुई रहा है। बन्दिश को वे जिस माधुर्य के साथ बदल देते थे, वह अनुभव करने की चीज है। 'तान' को वे अपनी चेरी बनाकर अपने कंठ में नचाते रहे। भा रतीय संगीत-नभ के जगमगाते नक्षत्र, नादब्रह्म के अनन्य उपासक पण्डित भीमसेन गुरुराज जोशी का पार्थिव शरीर पञ्चतत्त्व में विलीन हो गया. अब उन्हें प्रत्यक्ष तो सुना नहीं जा सकता, हाँ, उनके स्वर सदियों तक अन्तरिक्ष में गूँजते रहेंगे. जिन्होंने पण्डित जी को प्रत्यक्ष सुना, उन्हें नादब्रह्म के प्रभाव का दिव्य अनुभव हुआ. भारतीय संगीत की विविध विधाओं - ध्रुवपद, ख़याल, तराना, भजन, अभंग आदि प्रस्तुतियों के माध्यम से सात दशकों तक उन्होंने संगीत प्रेमियों को स्वर-सम्मोहन में बाँधे रखा. भीमसेन जोशी की खरज भरी आवाज का वैशिष्ट्य जादुई रहा है। बन्दिश को वे जिस माधुर्य के साथ बदल देते थे, वह अनुभव करने की चीज है। 'तान' को वे अपनी चे

कल्याण थाट के राग : SWARGOSHTHI – 214 : KALYAN THAAT

स्वरगोष्ठी – 214 में आज दस थाट, दस राग और दस गीत – 1 : कल्याण थाट राग यमन की बन्दिश- ‘ऐसो सुघर सुघरवा बालम...’  ‘रेडियो प्लेबैक इण्डिया’ के साप्ताहिक स्तम्भ ‘स्वरगोष्ठी’ के मंच पर आज से आरम्भ एक नई लघु श्रृंखला ‘दस थाट, दस राग और दस गीत’ के प्रथम अंक में मैं कृष्णमोहन मिश्र, आप सब संगीत-प्रेमियों का हार्दिक स्वागत करता हूँ। आज से हम एक नई लघु श्रृंखला आरम्भ कर रहे हैं। भारतीय संगीत के अन्तर्गत आने वाले रागों का वर्गीकरण करने के लिए मेल अथवा थाट व्यवस्था है। भारतीय संगीत में 7 शुद्ध, 4 कोमल और 1 तीव्र, अर्थात कुल 12 स्वरों का प्रयोग होता है। एक राग की रचना के लिए उपरोक्त 12 स्वरों में से कम से कम 5 स्वरों का होना आवश्यक है। संगीत में थाट रागों के वर्गीकरण की पद्धति है। सप्तक के 12 स्वरों में से क्रमानुसार 7 मुख्य स्वरों के समुदाय को थाट कहते हैं। थाट को मेल भी कहा जाता है। दक्षिण भारतीय संगीत पद्धति में 72 मेल प्रचलित हैं, जबकि उत्तर भारतीय संगीत पद्धति में 10 थाट का प्रयोग किया जाता है। इसका प्रचलन पण्डित विष्णु नारायण भातखण्डे जी ने प्रारम्भ किया

‘बरसन लागी बदरिया रूमझूम के...’ : SWARGOSHTHI – 180 : KAJARI

स्वरगोष्ठी – 180 में आज वर्षा ऋतु के राग और रंग – 6 : कजरी गीतों का उपशास्त्रीय रूप   उपशास्त्रीय रंग में रँगी कजरी - ‘घिर आई है कारी बदरिया, राधे बिन लागे न मोरा जिया...’ ‘रेडियो प्लेबैक इण्डिया’ के साप्ताहिक स्तम्भ ‘स्वरगोष्ठी’ के मंच पर जारी लघु श्रृंखला ‘वर्षा ऋतु के राग और रंग’ की छठी कड़ी में मैं कृष्णमोहन मिश्र एक बार पुनः आप सभी संगीतानुरागियों का हार्दिक स्वागत और अभिनन्दन करता हूँ। इस श्रृंखला के अन्तर्गत हम वर्षा ऋतु के राग, रस और गन्ध से पगे गीत-संगीत का आनन्द प्राप्त कर रहे हैं। हम आपसे वर्षा ऋतु में गाये-बजाए जाने वाले गीत, संगीत, रागों और उनमें निबद्ध कुछ चुनी हुई रचनाओं का रसास्वादन कर रहे हैं। इसके साथ ही सम्बन्धित राग और धुन के आधार पर रचे गए फिल्मी गीत भी सुन रहे हैं। पावस ऋतु के परिवेश की सार्थक अनुभूति कराने में जहाँ मल्हार अंग के राग समर्थ हैं, वहीं लोक संगीत की रसपूर्ण विधा कजरी अथवा कजली भी पूर्ण समर्थ होती है। इस श्रृंखला की पिछली कड़ियों में हम आपसे मल्हार अंग के कुछ रागों पर चर्चा कर चुके हैं। आज के अंक से हम वर्षा ऋतु की