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राग काफी : SWARGOSHTHI – 488 : RAG KAFI

 


आपको दीपोत्सव पर हार्दिक मंगलकामना 

संगीतकार रोशन की पुण्यतिथि (16 नवम्बर) पर विशेष  
   




स्वरगोष्ठी – 488 में आज 

राज कपूर के विस्मृत संगीतकार – 4 : संगीतकार रोशन 

राज कपूर द्वारा अभिनीत फिल्म "बावरे नैन" के गीतों को रोशन ने संगीतबद्ध किया था। 





विदुषी मालिनी राजुरकर 

संगीतकार रोशन 
“रेडियो प्लेबैक इण्डिया” के साप्ताहिक स्तम्भ "स्वरगोष्ठी" के मंच पर जारी हमारी श्रृंखला “राज कपूर के विस्मृत संगीतकार" की चौथी कड़ी में मैं कृष्णमोहन मिश्र, आप सब संगीत प्रेमियों का हार्दिक स्वागत करता हूँ। इस श्रृंखला में हम फिल्म निर्माता, निर्देशक और अभिनेता राज कपूर के फिल्मी जीवन के पहले दशक के कुछ विस्मृत संगीतकारों की और उनकी कृतियों पर चर्चा कर रहे हैं। इन फिल्मों में से राज कपूर ने कुछ फिल्मों का निर्माण, कुछ का निर्देशन और कुछ फिल्मों में केवल अभिनय किया था। आरम्भ के पहले दशक अर्थात 1948 में प्रदर्शित फिल्म "आग" से लेकर 1958 में प्रदर्शित फिल्म "फिर सुबह होगी" तक की चर्चा इस श्रृंखला में की जाएगी। आम तौर पर राज कपूर की फिल्मों के अधिकतर संगीतकार शंकर जयकिशन ही रहे हैं। उन्होने राज कपूर की कुल 20 फिल्मों का संगीत निर्देशन किया है। इसके अलावा बाद की कुछ फिल्मों में लक्ष्मीकान्त, प्यारेलाल और रवीन्द्र जैन ने भी संगीत दिया है। राज कपूर के फिल्मों के प्रारम्भिक दशक के कुछ संगीतकार भुला दिये गए है, यद्यपि इन फिल्मों के गीत आज भी लोकप्रिय हैं। राज कपूर का जन्म 14 दिसम्बर, 1924 को पेशावर (अब पाकिस्तान) में जाने-माने अभिनेता पृथ्वीराज कपूर के घर हुआ था। श्रृंखला की कड़ियाँ राज कपूर के जन्म पखवारे तक और वर्ष 2020 के अन्तिम रविवार तक जारी रहेगी। उनकी 97वीं जयन्ती अवसर के लिए हमने राज कपूर और उनके कुछ विस्मृत संगीतकारों को स्मरण करने का निश्चय किया है। इस श्रृंखला के माध्यम से हम भारतीय सिनेमा के एक ऐसे स्वप्नदर्शी व्यक्तित्व राज कपूर पर चर्चा करेंगे, जिसने देश की स्वतन्त्रता के पश्चात कई दशकों तक भारतीय जनमानस को प्रभावित किया। सिनेमा के माध्यम से समाज को सर्वाधिक प्रभावित करने वाले भारतीय सिनेमा के पाँच स्तम्भों; वी. शान्ताराम, विमल राय, महबूब खाँ और गुरुदत्त के साथ राज कपूर का नाम भी एक कल्पनाशील फ़िल्मकार के रूप में इतिहास में दर्ज़ हो चुका है। इस वर्ष 14 दिसम्बर को इस महान फ़िल्मकार की 97वीं जयन्ती है। इस अवसर के लिए श्रृंखला प्रस्तुत करने की जब योजना बन रही थी तब अपने पाठकों और श्रोताओं के अनेकानेक सुझाव मिले कि इस श्रृंखला में राज कपूर की आरम्भिक फिल्मों के गीतों को एक नये कोण से टटोला जाए। जारी श्रृंखला “राज कपूर के विस्मृत संगीतकार" में हमने उनके लोकप्रिय संगीत निर्देशकों के अलावा दस ऐसे संगीतकारों के गीतों को चुना है, जिन्होने राज कपूर के आरम्भिक दशक की फिल्मों में उत्कृष्ट स्तर का संगीत दिया था। ये संगीतकार राज कपूर के व्यक्तित्व से और राज कपूर इनके संगीत से अत्यन्त प्रभावित हुए थे। इसके साथ ही इस श्रृंखला में प्रस्तुत किये जाने वाले गीतों के रागों का विश्लेषण भी करेंगे। इस कार्य में हमारा सहयोग "फिल्मी गीतों में राग" विषयक शोधकर्ता और "हिन्दी सिने राग इनसाइक्लोपीडिया" के लेखक के.एल. पाण्डेय और फिल्म संगीत के इतिहासकार सुजॉय चटर्जी ने किया है। श्रृंखला के आज की चौथी कड़ी में हम 1950 में राज कपूर द्वारा अभिनीत फिल्म "बावरे नैन” से राग काफी पर आधारित एक गीत; "ख़यालों में किसी के इस तरह आया नहीं करते...” यह एक युगल गीत है, जिसका संगीत रोशन ने और मुकेश व गीता दत्त ने स्वर दिया है। कल 16 नवम्बर को संगीतकार रोशन की पुण्यतिथि है। उन्हें श्रद्धांजलि देते हुए उन्हीं का गीत समर्पित कर रहे हैं। राग काफी के शास्त्रीय स्वरूप का दिग्दर्शन कराने के उद्येश्य से हम राग काफी में निबद्ध एक तराना रचना को सुविख्यात संगीत विदुषी मालिनी राजुरकर के स्वर में प्रस्तुत कर रहे हैं। 




"बावरे नैन" में राज कपूर 

राज कपूर की प्रारम्भिक दौर की फिल्मों के संगीतकारों पर केन्द्रित हमारी श्रृंखला “राज कपूर के विस्मृत संगीतकार” श्रृंखला में हम राज कपूर की फिल्म यात्रा के आरम्भिक एक दशक के उन संगीतकारों की चर्चा कर रहे हैं, जिनके संगीत ने फिल्म इतिहास के कई पृष्ठों को रेखांकित किया है। राज कपूर के अभिनय में सहज रूप से हँसने और उतने ही सहज रूप में रोने की अद्भुत क्षमता थी। सम्भवतः इसी गुण के कारण उन्हें “भारत का चार्ली चैपलिन” कहा गया था। राज कपूर को प्रेम ने हँसने और रोने की क्षमता दी, तो स्वतन्त्रता के बाद तेजी से बदलते भारतीय मूल्यों ने हँसते हुए रोना और रोते हुए हँसना सिखा दिया। “आग” से लेकर “जिस देश में गंगा बहती है” तक राज कपूर की फिल्मों में प्रेम के स्थायी भाव के साथ देश की विसंगतियों पर दर्शकों ने आँसू के भाव को स्पष्ट रूप से अनुभव किया है। परदे पर राज कपूर द्वारा गाये अधिकतर दर्द भरे गीतों में स्वर मुकेश के हैं। आज हम आपसे राज कपूर द्वारा अभिनीत फिल्म ‘बावरे नैन’ के गीतों पर चर्चा करेंगे, जिसे रोशन ने संगीतबद्ध किया था। 

पाँचवें दशक के अन्त अर्थात 1949 में भारतीय फिल्म जगत में एक ऐसे संगीतकार का उदय हुआ, जो लखनऊ के मैरिस कालेज (वर्तमान में; भातखण्डे संगीत विश्वविद्यालय) से शास्त्रीय संगीत विधिवत प्रशिक्षित, मैहर के उस्ताद अलाउद्दीन खाँ से गुरु शिष्य परम्परा में सारंगी वादन की शिक्षा प्राप्त और बारह वर्षों तक आकाशवाणी में संगीतकार के रूप में कार्य करने का अनुभव लेकर आए थे। फिल्म संगीत में नया रंग भरने वाले उस संगीतकार को हम रोशन के नाम से जानते हैं। मुम्बई में रोशन को पहला अवसर देने वाले फिल्मकार थे केदार शर्मा, जिन्होंने अपनी फिल्म “नेकी और बदी” में उन्हें संगीत निर्देशन के लिए अनुबन्धित किया। दुर्भाग्य से यह फिल्म चली नहीं और रोशन का बेहतर संगीत भी अनसुना रह गया। रोशन स्वभाव से अन्तर्मुखी थे। पहली फिल्म “नेकी और बदी” की असफलता से रोशन चिन्तित रहा करते थे, तभी केदार शर्मा ने अपनी अगली फिल्म “बावरे नैन” के संगीत का दायित्व उन्हें सौंपा। इस फिल्म के नायक राज कपूर थे। रोशन ने राज कपूर की अभिनय शैली और फिल्म में उनके चरित्र का सूक्ष्म अध्ययन किया और उसी के अनुकूल गीतों की धुनें बनाई। इस बार फिल्म भी हिट हुई और रोशन का संगीत भी। आज भी “बावरे नैन” एक बड़ी संगीतमय फिल्म के रूप में याद की जाती है। कल रोशन की पुण्यतिथि है। हम उनकी स्मृतियों को नमन करते हुए उनका ही एक गीत प्रस्तुत कर रहे हैं। 

फिल्म “बावरे नैन” के नायक राज कपूर के लिए रोशन ने मुकेश की आवाज़ को प्राथमिकता दी। राजकपूर और मुकेश एक ही गुरु से संगीत सीखा करते थे, जबकि मुकेश और रोशन स्कूल के सहपाठी थे। फिल्म “बावरे नैन” में ये तीनों मित्र एकत्र हुए थे। परिणामस्वरूप फिल्म का गीत, संगीत उत्कृष्ट स्तर का बन गया। इस फिल्म में मुकेश और गीता दत्त का गाया युगल गीत; “ख़यालों में किसी के इस तरह...”, मुकेश और राजकुमारी का गाया; “मुझे सच सच बता दो...”, राजकुमारी के स्वरों में गाये गए अन्य एकल गीत अपने समय के लोकप्रिय गीतों में थे। परन्तु जो लोकप्रियता राज कपूर पर फिल्माए गए गीत; “तेरी दुनिया में दिल लगता नहीं वापस बुला ले...” को मिली वह ऐतिहासिक थी। मुकेश के गाये इस गीत ने तहलका मचा दिया। इस गीत की लोकप्रियता का अनुमान इस तथ्य से ही लगाया जा सकता है कि लगभग तीन दशक बाद एच.एम.वी. ने अपने “बेस्ट ऑफ मुकेश” संग्रह में इस गीत को स्थान दिया। इसी प्रकार फिल्म के एक अन्य युगल गीत; “ख़यालों में किसी के इस तरह आया नहीं करते...” ने भी लोकप्रियता का कीर्तिमान स्थापित किया। आइए, यही गीत अब हम सब सुनते हैं, जिसे मुकेश और गीता दत्त ने गाया है। गीतकार हैं, केदार शर्मा और संगीतकार हैं रोशन। फिल्म “बावरे नैन” के इस गीत को सुनवाने का अनुरोध हमें “स्वरगोष्ठी” के अनेक पाठकों ने किया है। आइए सुनते हैं, राज कपूर के फिल्मी सफर का एक उल्लेखनीय गीत। 

राग काफी : “ख़यालों में किसी के इस तरह...” : मुकेश और गीता दत्त : संगीत – रोशन 


हमारे संगीत का एक अत्यन्त मनमोहक राग है; काफी। इस राग में होली विषयक रचनाएँ खूब मुखर हो जातीं हैं। पहले हम राग काफी के स्वरों की संरचना पर विचार करते हैं। राग काफी, काफी थाट का आश्रय राग है और इसकी जाति है सम्पूर्ण-सम्पूर्ण, अर्थात आरोह-अवरोह में सात-सात स्वर प्रयोग किए जाते हैं। आरोह में सा, रे, ग(कोमल), म, प, ध, नि(कोमल), सां, तथा अवरोह में सां नि(कोमल), ध, प, म, ग(कोमल), रे, सा, स्वरों का प्रयोग किया जाता है। इस राग का वादी स्वर पंचम और संवादी स्वर षडज होता है। कभी-कभी वादी कोमल गान्धार और संवादी कोमल निषाद का प्रयोग भी मिलता है। दक्षिण भारतीय संगीत का राग खरहरप्रिया राग काफी के समतुल्य राग है। राग काफी, ध्रुवपद और खयाल की अपेक्षा उपशास्त्रीय संगीत में अधिक प्रयोग किया जाता है। ठुमरियों में प्रायः दोनों गान्धार और दोनों धैवत का प्रयोग भी मिलता है। टप्पा गायन में शुद्ध गान्धार और शुद्ध निषाद का प्रयोग वक्र गति से किया जाता है। इस राग का गायन-वादन रात्रि के दूसरे प्रहर में किए जाने की परम्परा है, किन्तु फाल्गुन में इसे किसी भी समय गाया-बजाया जा सकता है। लोक, फिल्म और सुगम संगीत की रचनाओं में शब्दों का महत्त्व अधिक होता है, किन्तु जैसे-जैसे हम शास्त्रीयता की ओर बढ़ते है शब्दों की अपेक्षा स्वरों का महत्त्व बढ़ता जाता है। हमारे संगीत की एक विधा है, तराना, जिसमें शब्दों की अपेक्षा स्वर बेहद महत्त्वपूर्ण हो जाते हैं। सुप्रसिद्ध गायिका मालिनी राजुरकर ने राग काफी में एक मोहक तराना गाया है। अब हम आपके लिए द्रुत तीनताल में निबद्ध वही काफी का तराना प्रस्तुत कर रहे हैं। लीजिए सुनिए यह तराना और शब्दों के स्थान पर दीपोत्सव के अवसर पर काफी के स्वरों में होली के परिवेश का अनुभव कीजिए। आप यह तराना सुनिए और हमें आज की इस कड़ी को यहीं विराम देने की अनुमति दीजिए। 

राग काफी : द्रुत तीनताल में निबद्ध तराना : स्वर – विदुषी मालिनी राजुरकर 





संगीत पहेली

"स्वरगोष्ठी" के 488वें अंक की संगीत पहेली में आज हम आपको ठीक सात दशक पुरानी एक फिल्म के राग आधारित गीत का अंश सुनवा रहे हैं। गीत के इस अंश को सुन कर आपको दो अंक अर्जित करने के लिए निम्नलिखित तीन में से कम से कम दो प्रश्नों के सही उत्तर देना आवश्यक हैं। यदि आपको तीन में से केवल एक अथवा तीनों प्रश्नों का उत्तर ज्ञात हो तो भी आप प्रतियोगिता में भाग ले सकते हैं। श्रृंखला के चौथे सत्र अर्थात अंक संख्या 490 की पहेली का उत्तर प्राप्त होने के बाद तक जिस प्रतिभागी के सर्वाधिक अंक होंगे उन्हें इस वर्ष के चतुर्थ सत्र का विजेता घोषित किया जाएगा। इसके साथ ही पूरे वर्ष के प्राप्तांकों की गणना के बाद वर्ष के अन्त में महाविजेताओं की घोषणा की जाएगी और उन्हें सम्मानित भी किया जाएगा। 





1 - इस गीतांश को सुन कर बताइए कि इसमें किस राग की छाया है? 

2 – इस गीत में प्रयोग किये गए ताल को पहचानिए और उसका नाम बताइए। 

3 – इस गीत में किन युगल गायक और गायिका के स्वर है? 

आप उपरोक्त तीन मे से किन्हीं दो प्रश्नों के उत्तर केवल swargoshthi@gmail.com या radioplaybackindia9@gmail.com पर ही शनिवार 21 नवम्बर, 2020 की मध्यरात्रि से पूर्व तक भेजें। आपको यदि उपरोक्त तीन में से केवल एक प्रश्न का सही उत्तर ज्ञात हो तो भी आप पहेली प्रतियोगिता में भाग ले सकते हैं। COMMENTS में दिये गए उत्तर मान्य हो सकते हैं, किन्तु उसका प्रकाशन पहेली का उत्तर देने की अन्तिम तिथि के बाद किया जाएगा। फेसबुक पर पहेली का उत्तर स्वीकार नहीं किया जाएगा। विजेताओं के नाम हम उनके शहर/ग्राम, प्रदेश और देश के नाम के साथ “स्वरगोष्ठी” के अंक संख्या 490 में प्रकाशित करेंगे। इस अंक में प्रस्तुत गीत, संगीत या कलाकार के बारे में यदि आप कोई जानकारी या अपने किसी अनुभव को हम सबके बीच बाँटना चाहते हैं तो हम आपका इस संगोष्ठी में स्वागत करते हैं। आप पृष्ठ के नीचे दिये गए COMMENTS के माध्यम से तथा swargoshthi@gmail.com अथवा radioplaybackindia9@gmail.com पर भी अपनी प्रतिक्रिया व्यक्त कर सकते हैं। 


पिछली पहेली के सही उत्तर और विजेता

“स्वरगोष्ठी” के 486वें अंक में हमने आपको 1949 में प्रदर्शित फिल्म "सुनहरे दिन” से लिये गए एक युगल गीत का अंश सुनवा कर आपसे तीन में से कम से कम दो सही उत्तरों की अपेक्षा की गई थी। इस गीत के आधार राग को पहचानने में हमारे अधिकतर प्रतिभागियों को असफलता मिली। पहेली के पहले प्रश्न का सही उत्तर है; राग – काफी, दूसरे प्रश्न का सही उत्तर है; ताल – कहरवा तथा तीसरे प्रश्न का सही उत्तर है; स्वर – मुकेश। 

‘स्वरगोष्ठी’ की इस पहेली का सही उत्तर देने वाले हमारे विजेता हैं; चेरीहिल, न्यूजर्सी से प्रफुल्ल पटेल, वोरहीज, न्यूजर्सी से डॉ. किरीट छाया, जबलपुर, मध्यप्रदेश से क्षिति तिवारी और शारीरिक अस्वस्थता के बावजूद हैदराबाद से डी. हरिणा माधवी। उपरोक्त सभी प्रतिभागियों में से प्रत्येक को दो-दो अंक मिलते हैं। ‘रेडियो प्लेबैक इण्डिया’ की ओर से आप सभी को हार्दिक बधाई। सभी प्रतिभागियों से अनुरोध है कि अपने पते के साथ कृपया अपना उत्तर ई-मेल से ही भेजा करें। इस पहेली प्रतियोगिता में हमारे नए प्रतिभागी भी हिस्सा ले सकते हैं। यह आवश्यक नहीं है कि आपको पहेली के तीनों प्रश्नों के सही उत्तर ज्ञात हो। यदि आपको पहेली का कोई एक उत्तर भी ज्ञात हो तो भी आप इसमें भाग ले सकते हैं। 


संवाद

मित्रों, इन दिनों हम सब भारतवासी, प्रत्येक नागरिक को कोरोना वायरस से मुक्त करने के लिए प्रयत्नशील हैं। अब तक हम काफी हद तक हम सफल भी हुए हैं। इसका प्रकोप भी अब कम हुआ है। संक्रमित होने वालों के स्वस्थ होने का प्रतिशत निरन्तर बढ़ रहा है। परन्तु अभी भी हमें पर्याप्त सतर्कता बरतनी है। विश्वास कीजिए, हमारे इस सतर्कता अभियान से कोरोना वायरस पराजित होगा। आप सब से अनुरोध है कि प्रत्येक स्थिति में चिकित्सकीय और शासकीय निर्देशों का पालन करें और अपने घर में सुरक्षित रहें। इस बीच शास्त्रीय संगीत का श्रवण करें और अनेक प्रकार के मानसिक और शारीरिक व्याधियों से स्वयं को मुक्त रखें। विद्वानों ने इसे “नाद योग पद्धति” कहा है। “स्वरगोष्ठी” की नई-पुरानी श्रृंखलाएँ सुने और पढ़ें। साथ ही अपनी प्रतिक्रिया से हमें अवगत भी कराएँ। 


अपनी बात

मित्रों, ‘रेडियो प्लेबैक इण्डिया’ के साप्ताहिक स्तम्भ ‘स्वरगोष्ठी’ पर जारी हमारी नई श्रृंखला “राज कपूर के विस्मृत संगीतकार" की चौथी कड़ी में आज आपने राज कपूर की अभिनीत फिल्म "बावरे नैन” के एक गीत का रसास्वादन और गीत और संगीतकार का परिचय प्राप्त किया। यह गीत राग काफी पर आधारित है। राग के शास्त्रीय स्वरूप को समझने के लिए हमने आपको सुप्रसिद्ध संगीत विदुषी मालिनी राजुरकर के स्वर में एक अत्यन्त कर्णप्रिय तराना का गायन प्रस्तुत किया। 

कुछ तकनीकी समस्या के कारण हम अपने फेसबुक के मित्र समूह के साथ “स्वरगोष्ठी” का लिंक साझा नहीं कर पा रहे हैं। सभी संगीत अनुरागियों से अनुरोध है कि हमारी वेबसाइट http://radioplaybackindia.com अथवा http://radioplaybackindia.blogspot.com पर क्लिक करके हमारे सभी साप्ताहिक स्तम्भों का अवलोकन करते रहें। “स्वरगोष्ठी” के वेब पेज के दाहिनी ओर निर्धारित स्थान पर अपना ई-मेल आईडी अंकित कर आप हमारे सभी पोस्ट के लिंक को नियमित रूप से अपने ई-मेल पर प्राप्त कर सकते है। “स्वरगोष्ठी” की पिछली कड़ियों के बारे में हमें अनेक पाठकों की प्रतिक्रिया लगातार मिल रही है। हमें विश्वास है कि हमारे अन्य पाठक भी “स्वरगोष्ठी” के प्रत्येक अंक का अवलोकन करते रहेंगे और अपनी प्रतिक्रिया हमें भेजते रहेंगे। आज के इस अंक अथवा श्रृंखला के बारे में यदि आपको कुछ कहना हो तो हमें अवश्य लिखें। यदि आपका कोई सुझाव या अनुरोध हो तो हमें swargoshthi@gmail.com अथवा radioplaybackindia9@gmail.com पर अवश्य लिखिए। अगले अंक में रविवार को प्रातः सात बजे “स्वरगोष्ठी” के इसी मंच पर हम एक बार फिर संगीत के सभी अनुरागियों का स्वागत करेंगे। 


प्रस्तुति : कृष्णमोहन मिश्र  



रेडियो प्लेबैक इण्डिया 
राग काफी : SWARGOSHTHI – 488 : RAG KAFI : 15 नवम्बर, 2020 



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