Skip to main content

राग खमाज : SWARGOSHTHI – 489 : RAG KHAMAJ





स्वरगोष्ठी – 489 में आज 

राज कपूर के विस्मृत संगीतकार – 5 : संगीतकार नौशाद

“दिल को तेरी तस्वीर...” राज कपूर के लिए जब नौशाद ने रफी से पार्श्वगायन कराया





उस्ताद निसार हुसैन खाँ 

संगीतकार नौशाद 
“रेडियो प्लेबैक इण्डिया” के साप्ताहिक स्तम्भ "स्वरगोष्ठी" के मंच पर जारी हमारी श्रृंखला “राज कपूर के विस्मृत संगीतकार" की पाँचवीं कड़ी में मैं कृष्णमोहन मिश्र, आप सब संगीत प्रेमियों का हार्दिक स्वागत करता हूँ। इस श्रृंखला में हम फिल्म निर्माता, निर्देशक और अभिनेता राज कपूर के फिल्मी जीवन के पहले दशक के कुछ विस्मृत संगीतकारों की और उनकी कृतियों पर चर्चा कर रहे हैं। इन फिल्मों में से राज कपूर ने कुछ फिल्मों का निर्माण, कुछ का निर्देशन और कुछ फिल्मों में केवल अभिनय किया था। आरम्भ के पहले दशक अर्थात 1948 में प्रदर्शित फिल्म "आग" से लेकर 1958 में प्रदर्शित फिल्म "फिर सुबह होगी" तक की चर्चा इस श्रृंखला में की जाएगी। आम तौर पर राज कपूर की फिल्मों के अधिकतर संगीतकार शंकर जयकिशन ही रहे हैं। उन्होने राज कपूर की कुल 20 फिल्मों का संगीत निर्देशन किया है। इसके अलावा बाद की कुछ फिल्मों में लक्ष्मीकान्त, प्यारेलाल और रवीन्द्र जैन ने भी संगीत दिया है। राज कपूर के फिल्मों के प्रारम्भिक दशक के कुछ संगीतकार भुला दिये गए है, यद्यपि इन फिल्मों के गीत आज भी लोकप्रिय हैं। राज कपूर का जन्म 14 दिसम्बर, 1924 को पेशावर (अब पाकिस्तान) में जाने-माने अभिनेता पृथ्वीराज कपूर के घर हुआ था। श्रृंखला की कड़ियाँ राज कपूर के जन्म पखवारे तक और वर्ष 2020 के अन्तिम रविवार तक जारी रहेगी। उनकी 97वीं जयन्ती अवसर के लिए हमने राज कपूर और उनके कुछ विस्मृत संगीतकारों को स्मरण करने का निश्चय किया है। इस श्रृंखला के माध्यम से हम भारतीय सिनेमा के एक ऐसे स्वप्नदर्शी व्यक्तित्व राज कपूर पर चर्चा करेंगे, जिसने देश की स्वतन्त्रता के पश्चात कई दशकों तक भारतीय जनमानस को प्रभावित किया। सिनेमा के माध्यम से समाज को सर्वाधिक प्रभावित करने वाले भारतीय सिनेमा के पाँच स्तम्भों; वी. शान्ताराम, विमल राय, महबूब खाँ और गुरुदत्त के साथ राज कपूर का नाम भी एक कल्पनाशील फ़िल्मकार के रूप में इतिहास में दर्ज़ हो चुका है। इस वर्ष 14 दिसम्बर को इस महान फ़िल्मकार की 97वीं जयन्ती है। इस अवसर के लिए श्रृंखला प्रस्तुत करने की जब योजना बन रही थी तब अपने पाठकों और श्रोताओं के अनेकानेक सुझाव मिले कि इस श्रृंखला में राज कपूर की आरम्भिक फिल्मों के गीतों को एक नये कोण से टटोला जाए। जारी श्रृंखला “राज कपूर के विस्मृत संगीतकार" में हमने उनके लोकप्रिय संगीत निर्देशकों के अलावा दस ऐसे संगीतकारों के गीतों को चुना है, जिन्होने राज कपूर के आरम्भिक दशक की फिल्मों में उत्कृष्ट स्तर का संगीत दिया था। ये संगीतकार राज कपूर के व्यक्तित्व से और राज कपूर इनके संगीत से अत्यन्त प्रभावित हुए थे। इसके साथ ही इस श्रृंखला में प्रस्तुत किये जाने वाले गीतों के रागों का विश्लेषण भी करेंगे। इस कार्य में हमारा सहयोग "फिल्मी गीतों में राग" विषयक शोधकर्ता और "हिन्दी सिने राग इनसाइक्लोपीडिया" के लेखक के.एल. पाण्डेय और फिल्म संगीत के इतिहासकार सुजॉय चटर्जी ने किया है। श्रृंखला के आज की पाँचवीं कड़ी में हम 1950 में राज कपूर द्वारा अभिनीत फिल्म "दास्तान” से राग खमाज पर आधारित एक गीत; "दिल को हाय दिल को, तेरी तस्वीर से...”, जिसका संगीत नौशाद ने और स्वर मुहम्मद रफी और सुरैया ने दिया है। यह गीत राग खमाज पर आधारित है। राग खमाज के शास्त्रीय स्वरूप का दिग्दर्शन कराने के उद्येश्य से हम राग खमाज में निबद्ध एक बन्दिश “कोयलिया कूक सुनावे...” को सुप्रसिद्ध संगीतज्ञ उस्ताद निसार हुसैन खाँ के स्वर में प्रस्तुत कर रहे हैं। 



राज कपूर के प्रारम्भिक संगीतकार विषयक श्रृंखला “राज कपूर के विस्मृत संगीतकार” की पाँचवीं कड़ी में आपका हार्दिक स्वागत है। श्रृंखला की पिछली कड़ियों में हम यह उल्लेख कर चुके हैं कि राज कपूर ने अपनी पहली फिल्म “आग” के लिए “पृथ्वी थियेटर” के संगीतकार राम गांगुली को चुना था। बाद में जब उन्होने फिल्म “बरसात” के निर्माण की योजना बनाई तो राम गांगुली के स्थान पर उन्हीं के संगीत दल के तबला वादक शंकर और हारमोनियम वादक जयकिशन को संगीत निर्देशक के रूप में चुना। “बरसात” से लेकर “मेरा नाम जोकर” तक यह साथ निरन्तर जारी रहा, केवल फिल्म “जागते रहो” और “अब दिल्ली दूर नहीं” को छोड़ कर, जिनका संगीत निर्देशन क्रमशः सलिल चौधरी और दत्ताराम ने किया था। अपनी फिल्मों के स्थायी संगीतकारों के साथ ही राज कपूर ने आरम्भिक दौर के लगभग सभी संगीतकारों के साथ कार्य किया था। इन फिल्मों के निर्माता या निर्देशक स्वयं राज कपूर नहीं थे, बल्कि दूसरे निर्माता और निर्देशकों की फिल्मों में मात्र अभिनय किया था। ऐसी फिल्मों में राज कपूर अभिनय के साथ ही इन संगीतकारों के कार्यों से भी प्रभावित हुए थे। ऐसे ही एक महान संगीतकार नौशाद थे, जिनके संगीत निर्देशन में उन्होने 1950 की फिल्म “दास्तान” में अभिनय किया था। 


फिल्म "दास्तान" में राज कपूर 
राज कपूर ने अपने फिल्मी जीवन के पहले दशक में दो ऐसी फिल्मों में अभिनय किया था, जिसके संगीतकार नौशाद थे। 1949 की फिल्म “अन्दाज़” और 1950 की फिल्म “दास्तान” में राज कपूर मात्र अभिनेता थे, किन्तु उनकी पूरी दृष्टि नौशाद के संगीत पर टिकी हुई थी। फिल्म “अन्दाज़” में राज कपूर के साथ दिलीप कुमार और नरगिस को लिया गया था। नौशाद ने इस फिल्म के गीतों में एक प्रयोग किया था। उन्होने दिलीप कुमार के लिए मुकेश की, नरगिस के लिए लता मंगेशकर की और राज कपूर के लिए मोहम्मद रफी की आवाज़ में गीतों को रिकार्ड किया। लता मंगेशकर के गाये गीत: “उठाए जा उनके सितम...” की रिकार्डिंग के अवसर पर राज कपूर उपस्थित थे। गीत सुन कर उन्होने लता जी को अपनी फिल्मों के लिए स्थायी गायिका बना लिया। मुकेश, राज कपूर के लिए पहले भी अपनी आवाज़ दे चुके थे, परन्तु फिल्म ‘अन्दाज़’ में नौशाद का प्रयोग; दिलीप कुमार के लिए मुकेश के आवाज़ की असफलता के बाद वह स्थायी आवाज़ बन गए। इस फिल्म में नौशाद ने राज कपूर और नरगिस के लिए एकमात्र गीत; “यूँ तो आपस में बिगड़ते हैं खफा होते हैं...” रिकार्ड किया था। दुर्भाग्य से राज कपूर के हिस्से का यह एकमात्र गीत असफल रहा, जबकि दिलीप कुमार के लिए मुकेश द्वारा गाये सभी गीत हिट हुए। नौशाद के संगीत निर्देशन में 1950 में बनी फिल्म “दास्तान” में राज कपूर एक बार फिर फिल्म के नायक थे। इस नायिका प्रधान फिल्म में सुरैया नायिका भी थीं और अपने गीतों की गायिका भी थी। इस समय तक नौशाद खूब चर्चित हो चुके थे। फिल्म “दास्तान” के पोस्टर और ट्रेलर में यह प्रचारित किया गया था; “चालीस करोड़ में एक ही नौशाद...”। फिल्म “दास्तान” उस दौर में “सिल्वर जुबली” मनाने में सफल हुई। इस फिल्म में सुरैया के गाये गीतों के अलावा राज कपूर और सुरैया पर फिल्माया गया गीत; “दिल को तेरी तस्वीर से बहलाए हुए हैं...” भी अत्यन्त लोकप्रिय हुआ था। नौशाद ने पूर्व की भाँति इस गीत में मोहम्मद रफी की ही आवाज़ राज कपूर के लिए ली। आइए, आज हम आपको राज कपूर द्वारा अभिनीत और नौशाद द्वारा संगीतबद्ध फिल्म “दास्तान” का युगल गीत। गीतकार हैं शकील बदायूनी और स्वर मोहम्मद रफी तथा सुरैया के हैं। 

राग खमाज : "दिल को तेरी तस्वीर से..." : मुहम्मद रफी और सुरैया : संगीत - नौशाद


खमाज थाट के स्वर होते हैं; सा, रे, ग, म, प, ध, नि॒। अर्थात इस थाट में निषाद स्वर कोमल और शेष सभी स्वर शुद्ध होते हैं। इस थाट का आश्रय राग “खमाज” कहलाता है। “खमाज” राग में थाट के अनुकूल निषाद कोमल और शेष सभी स्वर शुद्ध होते हैं। यह षाड़व-सम्पूर्ण जाति का राग है। अर्थात राग के आरोह में छः स्वर और अवरोह में सात स्वर प्रयोग किये जाते हैं। राग खमाज के आरोह में सा, ग, म, प, ध, नि, सां और अवरोह में सां, नि, ध, प, म, ग, रे, सा स्वरों का प्रयोग होता है। आरोह में ऋषभ स्वर नहीं लगता। राग में दोनों निषाद का प्रयोग होता है। आरोह में शुद्ध निषाद और अवरोह में कोमल निषाद लगाया जाता है। वादी स्वर गान्धार और संवादी स्वर निषाद होता है। इस राग के गायन-वादन का समय रात्रि का दूसरा प्रहर होता है। राग खमाज का उदाहरण प्रस्तुत करने के लिए हमने रामपुर सहसवान घराने के प्रमुख स्तम्भ उस्ताद निसार हुसैन खाँ (1909 – 1993) के स्वर में प्रस्तुत एक दुर्लभ बन्दिश का चुनाव किया है। राग खमाज की यह अनमोल रचना 1929 में रिकार्ड की गई थी। उस्ताद निसार हुसेन खाँ को अपने पिता और गुरु उस्ताद फिदा हुसेन खाँ से संगीत विरासत में प्राप्त हुआ था। बहुत छोटी आयु में उन्हें बड़ौदा के महाराज सयाजी राव गायकवाड़ के दरबारी संगीतज्ञ होने का गौरव प्राप्त हुआ था। आगे चलकर खाँ साहब ‘आकाशवाणी’ से भी जुड़े। 1977 में उन्हें आई.टी.सी. संगीत रिसर्च अकादमी, कोलकाता में प्रधान गुरु नियुक्त किया गया। यहाँ रह कर उन्होने उस्ताद राशिद खाँ सहित अनेक योग्य शिष्यों को तैयार किया। भारत सरकार द्वारा 1970 में उन्हें ‘पद्मभूषण’ सम्मान से विभूषित किया गया। इसके अलावा खाँ साहब को संगीत नाटक अकादमी पुरस्कार, तानसेन सम्मान सहित गन्धर्व महाविद्यालय से डाक्टरेट की उपाधि से भी नवाजा गया था। आइए गायकी के इस शिखर-पुरुष की आवाज़ में सुनते हैं, राग खमाज की यह बन्दिश। आप इस बन्दिश का रसास्वादन कीजिए और हमें आज की इस कड़ी को यहीं विराम देने की अनुमति दीजिए। 

राग खमाज : “कोयलिया कूक सुनावे...” : उस्ताद निसार हुसेन खाँ 




संगीत पहेली

"स्वरगोष्ठी" के 489वें अंक की संगीत पहेली में आज हम आपको लगभग सात दशक पुरानी एक फिल्म के राग आधारित गीत का अंश सुनवा रहे हैं। गीत के इस अंश को सुन कर आपको दो अंक अर्जित करने के लिए निम्नलिखित तीन में से कम से कम दो प्रश्नों के सही उत्तर देना आवश्यक हैं। यदि आपको तीन में से केवल एक अथवा तीनों प्रश्नों का उत्तर ज्ञात हो तो भी आप प्रतियोगिता में भाग ले सकते हैं। श्रृंखला के चौथे सत्र अर्थात अंक संख्या 490 की पहेली का उत्तर प्राप्त होने के बाद तक जिस प्रतिभागी के सर्वाधिक अंक होंगे उन्हें इस वर्ष के चतुर्थ सत्र का विजेता घोषित किया जाएगा। इसके साथ ही पूरे वर्ष के प्राप्तांकों की गणना के बाद वर्ष के अन्त में महाविजेताओं की घोषणा की जाएगी और उन्हें सम्मानित भी किया जाएगा। 





1 - इस गीतांश को सुन कर बताइए कि इसमें किस राग का स्पर्श है? 

2 – इस गीत में प्रयोग किये गए ताल को पहचानिए और उसका नाम बताइए। 

3 – इस गीत में किन युगल गायक और गायिका के स्वर है? 

आप उपरोक्त तीन मे से किन्हीं दो प्रश्नों के उत्तर केवल swargoshthi@gmail.com या radioplaybackindia9@gmail.com पर ही शनिवार 28 नवम्बर, 2020 की मध्यरात्रि से पूर्व तक भेजें। आपको यदि उपरोक्त तीन में से केवल एक प्रश्न का सही उत्तर ज्ञात हो तो भी आप पहेली प्रतियोगिता में भाग ले सकते हैं। COMMENTS में दिये गए उत्तर मान्य हो सकते हैं, किन्तु उसका प्रकाशन पहेली का उत्तर देने की अन्तिम तिथि के बाद किया जाएगा। फेसबुक पर पहेली का उत्तर स्वीकार नहीं किया जाएगा। विजेताओं के नाम हम उनके शहर/ग्राम, प्रदेश और देश के नाम के साथ “स्वरगोष्ठी” के अंक संख्या 491 में प्रकाशित करेंगे। इस अंक में प्रस्तुत गीत, संगीत या कलाकार के बारे में यदि आप कोई जानकारी या अपने किसी अनुभव को हम सबके बीच बाँटना चाहते हैं तो हम आपका इस संगोष्ठी में स्वागत करते हैं। आप पृष्ठ के नीचे दिये गए COMMENTS के माध्यम से तथा swargoshthi@gmail.com अथवा radioplaybackindia9@gmail.com पर भी अपनी प्रतिक्रिया व्यक्त कर सकते हैं। 


पिछली पहेली के सही उत्तर और विजेता

“स्वरगोष्ठी” के 487वें अंक में हमने आपको 1950 में प्रदर्शित फिल्म "बावरे नैन” से लिये गए एक युगल गीत का अंश सुनवा कर आपसे तीन में से कम से कम दो सही उत्तरों की अपेक्षा की गई थी। इस गीत के आधार राग को पहचानने में हमारे अधिकतर प्रतिभागियों को असफलता मिली। पहेली के पहले प्रश्न का सही उत्तर है; राग – काफी, दूसरे प्रश्न का सही उत्तर है; ताल – कहरवा तथा तीसरे प्रश्न का सही उत्तर है; स्वर – मुकेश और गीता दत्त। 

‘स्वरगोष्ठी’ की इस पहेली का सही उत्तर देने वाले हमारे विजेता हैं; वोरहीज, न्यूजर्सी से डॉ. किरीट छाया, जबलपुर, मध्यप्रदेश से क्षिति तिवारी, चेरीहिल, न्यूजर्सी से प्रफुल्ल पटेल और शारीरिक अस्वस्थता के बावजूद हैदराबाद से डी. हरिणा माधवी। उपरोक्त सभी प्रतिभागियों में से प्रत्येक को दो-दो अंक मिलते हैं। ‘रेडियो प्लेबैक इण्डिया’ की ओर से आप सभी को हार्दिक बधाई। सभी प्रतिभागियों से अनुरोध है कि अपने पते के साथ कृपया अपना उत्तर ई-मेल से ही भेजा करें। इस पहेली प्रतियोगिता में हमारे नए प्रतिभागी भी हिस्सा ले सकते हैं। यह आवश्यक नहीं है कि आपको पहेली के तीनों प्रश्नों के सही उत्तर ज्ञात हो। यदि आपको पहेली का कोई एक उत्तर भी ज्ञात हो तो भी आप इसमें भाग ले सकते हैं। 


संवाद

मित्रों, इन दिनों हम सब भारतवासी, प्रत्येक नागरिक को कोरोना वायरस से मुक्त करने के लिए प्रयत्नशील हैं। अब तक हम काफी हद तक हम सफल भी हुए हैं। इसका प्रकोप भी अब कम हुआ है। संक्रमित होने वालों के स्वस्थ होने का प्रतिशत निरन्तर बढ़ रहा है। परन्तु अभी भी हमें पर्याप्त सतर्कता बरतनी है। विश्वास कीजिए, हमारे इस सतर्कता अभियान से कोरोना वायरस पराजित होगा। आप सब से अनुरोध है कि प्रत्येक स्थिति में चिकित्सकीय और शासकीय निर्देशों का पालन करें और अपने घर में सुरक्षित रहें। इस बीच शास्त्रीय संगीत का श्रवण करें और अनेक प्रकार के मानसिक और शारीरिक व्याधियों से स्वयं को मुक्त रखें। विद्वानों ने इसे “नाद योग पद्धति” कहा है। “स्वरगोष्ठी” की नई-पुरानी श्रृंखलाएँ सुने और पढ़ें। साथ ही अपनी प्रतिक्रिया से हमें अवगत भी कराएँ। 


अपनी बात

मित्रों, “रेडियो प्लेबैक इण्डिया” के साप्ताहिक स्तम्भ “स्वरगोष्ठी” पर जारी हमारी नई श्रृंखला “राज कपूर के विस्मृत संगीतकार" की पाँचवीं कड़ी में आज आपने राज कपूर की अभिनीत फिल्म "दास्तान” के एक गीत का रसास्वादन और गीतकार तथा संगीतकार का परिचय प्राप्त किया। यह गीत राग खमाज पर आधारित है। राग के शास्त्रीय स्वरूप को समझने के लिए हमने आपको सुप्रसिद्ध संगीतज्ञ उस्ताद निसार हुसैन खाँ के स्वर में एक अत्यन्त कर्णप्रिय बन्दिश का रसास्वादन कराया। 

कुछ तकनीकी समस्या के कारण हम अपने फेसबुक के मित्र समूह के साथ “स्वरगोष्ठी” का लिंक साझा नहीं कर पा रहे हैं। सभी संगीत अनुरागियों से अनुरोध है कि हमारी वेबसाइट http://radioplaybackindia.com अथवा http://radioplaybackindia.blogspot.com पर क्लिक करके हमारे सभी साप्ताहिक स्तम्भों का अवलोकन करते रहें। “स्वरगोष्ठी” के वेब पेज के दाहिनी ओर निर्धारित स्थान पर अपना ई-मेल आईडी अंकित कर आप हमारे सभी पोस्ट के लिंक को नियमित रूप से अपने ई-मेल पर प्राप्त कर सकते है। “स्वरगोष्ठी” की पिछली कड़ियों के बारे में हमें अनेक पाठकों की प्रतिक्रिया लगातार मिल रही है। हमें विश्वास है कि हमारे अन्य पाठक भी “स्वरगोष्ठी” के प्रत्येक अंक का अवलोकन करते रहेंगे और अपनी प्रतिक्रिया हमें भेजते रहेंगे। आज के इस अंक अथवा श्रृंखला के बारे में यदि आपको कुछ कहना हो तो हमें अवश्य लिखें। यदि आपका कोई सुझाव या अनुरोध हो तो हमें swargoshthi@gmail.com अथवा radioplaybackindia9@gmail.com पर अवश्य लिखिए। अगले अंक में रविवार को प्रातः सात बजे “स्वरगोष्ठी” के इसी मंच पर हम एक बार फिर संगीत के सभी अनुरागियों का स्वागत करेंगे। 


प्रस्तुति : कृष्णमोहन मिश्र  


रेडियो प्लेबैक इण्डिया 
राग खमाज : SWARGOSHTHI – 489 : RAG KHAMAJ : 22 नवम्बर, 2020 









Comments

Popular posts from this blog

सुर संगम में आज -भारतीय संगीताकाश का एक जगमगाता नक्षत्र अस्त हुआ -पंडित भीमसेन जोशी को आवाज़ की श्रद्धांजली

सुर संगम - 05 भारतीय संगीत की विविध विधाओं - ध्रुवपद, ख़याल, तराना, भजन, अभंग आदि प्रस्तुतियों के माध्यम से सात दशकों तक उन्होंने संगीत प्रेमियों को स्वर-सम्मोहन में बाँधे रखा. भीमसेन जोशी की खरज भरी आवाज का वैशिष्ट्य जादुई रहा है। बन्दिश को वे जिस माधुर्य के साथ बदल देते थे, वह अनुभव करने की चीज है। 'तान' को वे अपनी चेरी बनाकर अपने कंठ में नचाते रहे। भा रतीय संगीत-नभ के जगमगाते नक्षत्र, नादब्रह्म के अनन्य उपासक पण्डित भीमसेन गुरुराज जोशी का पार्थिव शरीर पञ्चतत्त्व में विलीन हो गया. अब उन्हें प्रत्यक्ष तो सुना नहीं जा सकता, हाँ, उनके स्वर सदियों तक अन्तरिक्ष में गूँजते रहेंगे. जिन्होंने पण्डित जी को प्रत्यक्ष सुना, उन्हें नादब्रह्म के प्रभाव का दिव्य अनुभव हुआ. भारतीय संगीत की विविध विधाओं - ध्रुवपद, ख़याल, तराना, भजन, अभंग आदि प्रस्तुतियों के माध्यम से सात दशकों तक उन्होंने संगीत प्रेमियों को स्वर-सम्मोहन में बाँधे रखा. भीमसेन जोशी की खरज भरी आवाज का वैशिष्ट्य जादुई रहा है। बन्दिश को वे जिस माधुर्य के साथ बदल देते थे, वह अनुभव करने की चीज है। 'तान' को वे अपनी चे...

‘बरसन लागी बदरिया रूमझूम के...’ : SWARGOSHTHI – 180 : KAJARI

स्वरगोष्ठी – 180 में आज वर्षा ऋतु के राग और रंग – 6 : कजरी गीतों का उपशास्त्रीय रूप   उपशास्त्रीय रंग में रँगी कजरी - ‘घिर आई है कारी बदरिया, राधे बिन लागे न मोरा जिया...’ ‘रेडियो प्लेबैक इण्डिया’ के साप्ताहिक स्तम्भ ‘स्वरगोष्ठी’ के मंच पर जारी लघु श्रृंखला ‘वर्षा ऋतु के राग और रंग’ की छठी कड़ी में मैं कृष्णमोहन मिश्र एक बार पुनः आप सभी संगीतानुरागियों का हार्दिक स्वागत और अभिनन्दन करता हूँ। इस श्रृंखला के अन्तर्गत हम वर्षा ऋतु के राग, रस और गन्ध से पगे गीत-संगीत का आनन्द प्राप्त कर रहे हैं। हम आपसे वर्षा ऋतु में गाये-बजाए जाने वाले गीत, संगीत, रागों और उनमें निबद्ध कुछ चुनी हुई रचनाओं का रसास्वादन कर रहे हैं। इसके साथ ही सम्बन्धित राग और धुन के आधार पर रचे गए फिल्मी गीत भी सुन रहे हैं। पावस ऋतु के परिवेश की सार्थक अनुभूति कराने में जहाँ मल्हार अंग के राग समर्थ हैं, वहीं लोक संगीत की रसपूर्ण विधा कजरी अथवा कजली भी पूर्ण समर्थ होती है। इस श्रृंखला की पिछली कड़ियों में हम आपसे मल्हार अंग के कुछ रागों पर चर्चा कर चुके हैं। आज के अंक से हम वर्षा ऋतु...

काफी थाट के राग : SWARGOSHTHI – 220 : KAFI THAAT

स्वरगोष्ठी – 220 में आज दस थाट, दस राग और दस गीत – 7 : काफी थाट राग काफी में ‘बाँवरे गम दे गयो री...’  और  बागेश्री में ‘कैसे कटे रजनी अब सजनी...’ ‘रेडियो प्लेबैक इण्डिया’ के साप्ताहिक स्तम्भ ‘स्वरगोष्ठी’ के मंच पर जारी नई लघु श्रृंखला ‘दस थाट, दस राग और दस गीत’ की सातवीं कड़ी में मैं कृष्णमोहन मिश्र, आप सब संगीत-प्रेमियों का हार्दिक अभिनन्दन करता हूँ। इस लघु श्रृंखला में हम आपसे भारतीय संगीत के रागों का वर्गीकरण करने में समर्थ मेल अथवा थाट व्यवस्था पर चर्चा कर रहे हैं। भारतीय संगीत में सात शुद्ध, चार कोमल और एक तीव्र, अर्थात कुल 12 स्वरों का प्रयोग किया जाता है। एक राग की रचना के लिए उपरोक्त 12 में से कम से कम पाँच स्वरों की उपस्थिति आवश्यक होती है। भारतीय संगीत में ‘थाट’, रागों के वर्गीकरण करने की एक व्यवस्था है। सप्तक के 12 स्वरों में से क्रमानुसार सात मुख्य स्वरों के समुदाय को थाट कहते है। थाट को मेल भी कहा जाता है। दक्षिण भारतीय संगीत पद्धति में 72 मेल का प्रचलन है, जबकि उत्तर भारतीय संगीत में दस थाट का प्रयोग किया जाता है। इन...