Skip to main content

राग सिन्धु भैरवी : SWARGOSHTHI – 486 : RAG SINDHU BHAIRAVI





स्वरगोष्ठी – 486 में आज 

राज कपूर के विस्मृत संगीतकार - 2 : संगीतकार नीनू मजुमदार 

राज कपूर की स्मृति में नीनू मजूमदार की तीन दशक पहले राग सिन्धु भैरवी में बनाई धुन सुरक्षित थी 






राज कपूर 


उस्ताद बड़े गुलाम अली खाँ 

“रेडियो प्लेबैक इण्डिया” के साप्ताहिक स्तम्भ ‘स्वरगोष्ठी’ के मंच पर गत सप्ताह से आरम्भ हमारी श्रृंखला “राज कपूर के विस्मृत संगीतकार" की दूसरी कड़ी में मैं कृष्णमोहन मिश्र, आप सब संगीत प्रेमियों का हार्दिक स्वागत करता हूँ। इस श्रृंखला में हम फिल्म निर्माता, निर्देशक और अभिनेता राज कपूर के फिल्मी जीवन के पहले दशक के कुछ विस्मृत संगीतकारों की और उनकी कृतियों पर चर्चा कर रहे हैं। इन फिल्मों में से राज कपूर ने कुछ फिल्मों का निर्माण, कुछ का निर्देशन और कुछ फिल्मों में केवल अभिनय किया था। आरम्भ के पहले दशक अर्थात 1948 में प्रदर्शित फिल्म "आग" से लेकर 1958 में प्रदर्शित फिल्म "फिर सुबह होगी" तक की चर्चा इस श्रृंखला में की जाएगी। आम तौर पर राज कपूर की फिल्मों के अधिकतर संगीतकार शंकर जयकिशन ही रहे हैं। उन्होने राज कपूर की कुल 20 फिल्मों का संगीत निर्देशन किया है। इसके अलावा बाद की कुछ फिल्मों में लक्ष्मीकान्त, प्यारेलाल और रवीन्द्र जैन ने भी संगीत दिया है। राज कपूर के फिल्मों के प्रारम्भिक दशक के कुछ संगीतकार भुला दिये गए है, यद्यपि इन फिल्मों के गीत आज भी लोकप्रिय हैं। राज कपूर का जन्म 14 दिसम्बर, 1924 को पेशावर (अब पाकिस्तान) में जाने-माने अभिनेता पृथ्वीराज कपूर के घर हुआ था। श्रृंखला की कड़ियाँ राज कपूर के जन्म पखवारे तक और वर्ष 2020 के अन्तिम रविवार तक जारी रहेगी। उनकी 97वीं जयन्ती अवसर के लिए हमने राज कपूर और उनके कुछ विस्मृत संगीतकारों को स्मरण करने का निश्चय किया है। इस श्रृंखला के माध्यम से हम भारतीय सिनेमा के एक ऐसे स्वप्नदर्शी व्यक्तित्व राज कपूर पर चर्चा करेंगे, जिसने देश की स्वतन्त्रता के पश्चात कई दशकों तक भारतीय जनमानस को प्रभावित किया। सिनेमा के माध्यम से समाज को सर्वाधिक प्रभावित करने वाले भारतीय सिनेमा के पाँच स्तम्भों; वी. शान्ताराम, विमल राय, महबूब खाँ और गुरुदत्त के साथ राज कपूर का नाम भी एक कल्पनाशील फ़िल्मकार के रूप में इतिहास में दर्ज़ हो चुका है। इस वर्ष 14 दिसम्बर को इस महान फ़िल्मकार की 97वीं जयन्ती है। इस अवसर के लिए श्रृंखला प्रस्तुत करने की जब योजना बन रही थी तब अपने पाठकों और श्रोताओं के अनेकानेक सुझाव मिले कि इस श्रृंखला में राज कपूर की आरम्भिक फिल्मों के गीतों को एक नये कोण से टटोला जाए। आज से आरम्भ हो रही श्रृंखला “राज कपूर के विस्मृत संगीतकार" में हमने उनके लोकप्रिय संगीत निर्देशकों के अलावा दस ऐसे संगीतकारों के गीतों को चुना है, जिन्होने राज कपूर के आरम्भिक दशक की फिल्मों में उत्कृष्ट स्तर का संगीत दिया था। ये संगीतकार राज कपूर के व्यक्तित्व से और राज कपूर इनके संगीत से अत्यन्त प्रभावित हुए थे। इसके साथ ही इस श्रृंखला में प्रस्तुत किये जाने वाले गीतों के रागों का विश्लेषण भी करेंगे। इस कार्य में हमारा सहयोग "फिल्मी गीतों में राग" विषयक शोधकर्ता और "हिन्दी सिने राग इनसाइक्लोपीडिया" के लेखक के.एल. पाण्डेय और फिल्म संगीत के इतिहासकार सुजॉय चटर्जी ने किया है। श्रृंखला के आज की दूसरी कड़ी में हम 1948 में राज कपूर द्वारा अभिनीत फिल्म "गोपीनाथ" का राग सिन्धु भैरवी पर आधारित एक गीत; "आई गोरी राधिका..." प्रस्तुत कर रहे हैं। राग सिन्धु भैरवी के शास्त्रीय स्वरूप का दिग्दर्शन कराने के उद्येश्य से हम राग सिन्धु भैरवी में निबद्ध एक बहुचर्चित ठुमरी "का करूँ सजनी आए न बालम..." को सुविख्यात संगीतज्ञ उस्ताद बड़े गुलाम अली खाँ के स्वर में प्रस्तुत कर रहे हैं। 



स्वप्नदर्शी फ़िल्मकार राज कपूर के संगीतकारों पर केन्द्रित श्रृंखला “राज कपूर के विस्मृत संगीतकार" की दूसरी कड़ी में, उनके द्वारा अभिनीत और 1948 में प्रदर्शित फिल्म "गोपीनाथ" के एक गीत के माध्यम से फिल्म संगीत के प्रति उनकी सोच और चिन्तन को स्पष्ट करने का प्रयास करेंगे। राज कपूर के निकट के लोगों का मानना था कि उनके मन में पहले ध्वनियों का जन्म होता था, फिर दृश्य का विचार विकसित होता था। राज कपूर के मन के तहखाने में एक संरचना वर्षों तक दबी रहती थी। वर्षों बाद किसी अन्य फिल्म के दृश्य विचार के समय उस संरचना का प्रस्फुटन होता था। सही समय और सही प्रसंग में राज कपूर उनका उपयोग कर फिल्म को विशिष्ट बना देते थे। संगीतकार लक्ष्मीकान्त प्यारेलाल ने एक अवसर पर कहा था कि यदि वे संगीतकार बनना चाहते तो सर्वश्रेष्ठ संगीतकार सिद्ध होते। 

मीना कपूर
 

नीनू मजुमदार 

राज कपूर को संगीत के प्रति लगाव बचपन से ही था। उनकी माँ रमाशरणी देवी लोकगीतों की विदुषी थीं। उनके पास संस्कार गीतों का भंडार था। राज कपूर पर अपनी माँ के लोकगीतों का विशेष प्रभाव पड़ा। किशोरावस्था में राज कपूर अपने पिता पृथ्वीराज कपूर के साथ नियमित रूप से कोलकाता के न्यू थियेटर के संगीत कक्ष में जाया करते थे, वहाँ आर.सी. बोराल और सहगल जैसे दिग्गज रियाज़ किया करते थे। न्यू थियेटर के संगीत कक्ष में राज कपूर ने तबला बजाना सीखा था। युवावस्था के आरम्भिक दिनों में कुछ समय तक राज कपूर ने विधिवत शास्त्रीय और रवीन्द्र संगीत भी सीखा था। यहीं पर मुकेश भी संगीत सीखने आते थे। इन गुरु भाइयों की आजीवन मित्रता का बीजारोपण भी यहीं पर हुआ था। संगीत के प्रति असीम श्रद्धा होने के कारण रचना से पूर्व उनके मन में ध्वनियों का जन्म हो जाता था। यही कारण है कि उनकी पूरी फिल्म एक "ऑपेरा" की तरह होती थी। फिल्म का पूरा कथानक संगीत की धुरी के चारो ओर घूमता है। राज कपूर व्यक्ति को भूल सकते थे, किन्तु एक सुनी हुई धुन कभी नहीं भूलते थे। 1978 में राज कपूर द्वारा निर्मित और निर्देशित फिल्म "सत्यम शिवम सुन्दरम्" प्रदर्शित हुई थी। इस फिल्म का एक गीत "यशोमति मैया से पूछे नन्दलाला..." बेहद लोकप्रिय पहले भी था और आज भी है। इसके गीतकार नरेन्द्र शर्मा और संगीतकार लक्ष्मीकान्त प्यारेलाल थे। इस सुमधुर गीत की धुन के लिए लक्ष्मीकान्त प्यारेलाल को भरपूर श्रेय मिला था। बहुत कम लोगों का ध्यान इस तथ्य की ओर गया होगा कि इस मोहक धुन के कारक स्वयं राज कपूर ही थे। दरअसल राज कपूर ने 1948 में प्रदर्शित फिल्म "गोपीनाथ" में अभिनय किया था। इस फिल्म को राज कपूर और नायिका तृप्ति मित्रा के उत्कृष्ट अभिनय और संगीतकार नीनू मजुमदार के मधुर संगीत के लिए सदा याद रखा जाएगा। नीनू मजूमदार का वास्तविक नाम निरंजन मजूमदार था। वे उस्ताद फ़ैयाज़ खाँ की गायकी से प्रभावित थे। लखनऊ में रह कर उन्होने सुप्रसिद्ध गायिका बेगम अख्तर से पूरब अंग की गायकी भी सीखी थी। फिल्म "गोपीनाथ" के गीतों को स्वयं नीनू मजुमदार, मीना कपूर और शमशाद बेगम ने स्वर दिया था। फिल्म के एक युगल गीत; "बाली उमर पिया मोर..." में शमशाद बेगम के साथ राज कपूर का स्वर भी है। फिल्म "गोपीनाथ" का जो गीत हम आज आपको सुनवाने जा रहे हैं, उसके बोल हैं; "आई गोरी राधिका, ब्रज में बलखाती..."। इस गीत को नीनू मजुमदार और मीना कपूर ने स्वर दिया है। राग सिन्धु भैरवी पर आधारित सूरदास का यह पद राज कपूर पर फिल्माया नहीं गया था, इसके बावजूद इसकी प्यारी धुन उनके मन के अन्तस्थल में तीन दशकों तक सुरक्षित दबी पड़ी रही। 1978 में जब राज कपूर के निर्देशन में फिल्म "सत्यं शिवम सुन्दरम्" का निर्माण हो रहा था, तीन दशक पुरानी यह धुन उनकी स्मृतियों के तहखाने से निकल कर बाहर आई। कवि नरेन्द्र शर्मा ने इस धुन को शब्दों से, लक्ष्मीकान्त प्यारेलाल ने संगीत वाद्यों और लता मंगेशकर व मन्ना डे ने स्वरों से अलंकृत किया। अब आप सुनिये राज कपूर द्वारा अभिनीत, फिल्म "गोपीनाथ" का गीत; "आई गोरी राधिका, ब्रज में बलखाती..." और तुलना कीजिए राज कपूर द्वारा निर्मित और निर्देशित फिल्म "सत्यं शिवं सुन्दरम्" के उस लोकप्रिय गीत से। 

राग सिन्धु भैरवी : "आई गोरी राधिका ब्रज में बलखाती..." नीनू मजूमदार और मीना कपूर : फिल्म - गोपीनाथ 


राग सिन्धु भैरवी की गणना आसावरी थाट के अन्तर्गत की जाती है। इस राग की जाति सम्पूर्ण-सम्पूर्ण होती है, अर्थात आरोह और अवरोह में सात-सात स्वर प्रयोग किया जाता है। राग में दोनों ऋषभ, कोमल गान्धार और दोनों निषाद लगाए जाते हैं। कोमल ऋषभ स्वर का इस राग में अल्प प्रयोग होता है। आरोह में शुद्ध निषाद की प्रबलता होती है। कोई भी स्वर वर्जित नहीं है। राग का वादी स्वर धैवत और संवादी स्वर गान्धार होता है। दिन के दूसरे प्रहर में यह राग अधिक आकर्षक लगता है। कुछ गायक पंचम स्वर को षडज मान कर गाते हैं। इस राग में ठुमरी और फिल्म संगीत की रचनाएँ अधिक मिलती है। "स्वरगोष्ठी" के आज के अक में हम आपके लिए लेकर आए हैं राग सिन्धु भैरवी की विख्यात ठुमरी; "का करूँ सजनी आए न बालम..."। इस ठुमरी को सर्वाधिक प्रसिद्धि तब मिली, जब इसे उस्ताद बड़े गुलाम अली खाँ के स्वरों का योगदान मिला। उन्होने इस ठुमरी को अपना स्वर देकर कालजयी बना दिया। उस्ताद बड़े गुलाम अली खाँ का जन्म 1902 में पराधीन भारत में पंजाब के कसूर में हुआ था जो अब पाक़िस्तान में है। उनके पिता अली बक्श खाँ तत्कालीन पश्चिम पंजाब प्रान्त के एक संगीत परिवार से सम्बन्धित थे और ख़ुद भी एक जाने-माने गायक थे। बड़े ग़ुलाम अली ने 7 वर्ष की उम्र में ही अपने चाचा काले खाँ से सारंगी वादन और गायन सीखना शुरु किया। काले ख़ाँ साहब के निधन के बाद बड़े ग़ुलाम अली अपने पिता से संगीत सीखते रहे। बड़े ग़ुलाम अली खाँ ने अपनी स्वर-यात्रा का आरम्भ सारंगी वादक के रूप में किया और कलकत्ता में आयोजित उनकी पहली संगीत-सभा में ही उन्हें लोकप्रियता मिली। बाद में उन्होने अपनी गायन प्रतिभा से भी संगीत प्रेमियों को प्रभावित किया। उनके गले की मिठास, गायकी का अन्दाज, हरकतें, आदि ने उन्हें शीर्ष स्थान पर बिठा दिया। आइए, उस्ताद बड़े गुलाम अली खाँ के स्वरों में सुनते हैं राग सिधु भैरवी में निबद्ध आज की ठुमरी; "का करूँ सजनी आए न बालम..."। आप यह ठुमरी सुनिए और हमें आज की इस कड़ी को यहीं विराम देने की अनुमति दीजिए। 

ठुमरी सिन्धु भैरवी : "का करूँ सजनी आए न बालम..." : उस्ताद बड़े गुलाम अली खाँ 




संगीत पहेली

"स्वरगोष्ठी" के 486वें अंक की संगीत पहेली में आज हम आपको लगभग सात दशक पुरानी एक फिल्म के राग आधारित गीत का अंश सुनवा रहे हैं। गीत के इस अंश को सुन कर आपको दो अंक अर्जित करने के लिए निम्नलिखित तीन में से कम से कम दो प्रश्नों के सही उत्तर देना आवश्यक हैं। यदि आपको तीन में से केवल एक अथवा तीनों प्रश्नों का उत्तर ज्ञात हो तो भी आप प्रतियोगिता में भाग ले सकते हैं। श्रृंखला के चौथे सत्र अर्थात अंक संख्या 490 की पहेली का उत्तर प्राप्त होने के बाद तक जिस प्रतिभागी के सर्वाधिक अंक होंगे उन्हें इस वर्ष के चतुर्थ सत्र का विजेता घोषित किया जाएगा। इसके साथ ही पूरे वर्ष के प्राप्तांकों की गणना के बाद वर्ष के अन्त में महाविजेताओं की घोषणा की जाएगी और उन्हें सम्मानित भी किया जाएगा। 





1 - इस गीतांश को सुन कर बताइए कि इसमें किस राग का प्रभाव है? 

2 – इस गीत में प्रयोग किये गए ताल को पहचानिए और उसका नाम बताइए। 

3 – इस गीत में किस पार्श्वगायक के स्वर है? 

आप उपरोक्त तीन मे से किन्हीं दो प्रश्नों के उत्तर केवल swargoshthi@gmail.com या radioplaybackindia9@gmail.com पर ही शनिवार 7 नवम्बर, 2020 की मध्यरात्रि से पूर्व तक भेजें। आपको यदि उपरोक्त तीन में से केवल एक प्रश्न का सही उत्तर ज्ञात हो तो भी आप पहेली प्रतियोगिता में भाग ले सकते हैं। COMMENTS में दिये गए उत्तर मान्य हो सकते हैं, किन्तु उसका प्रकाशन पहेली का उत्तर देने की अन्तिम तिथि के बाद किया जाएगा। फेसबुक पर पहेली का उत्तर स्वीकार नहीं किया जाएगा। विजेताओं के नाम हम उनके शहर/ग्राम, प्रदेश और देश के नाम के साथ “स्वरगोष्ठी” के अंक संख्या 488 में प्रकाशित करेंगे। इस अंक में प्रस्तुत गीत, संगीत या कलाकार के बारे में यदि आप कोई जानकारी या अपने किसी अनुभव को हम सबके बीच बाँटना चाहते हैं तो हम आपका इस संगोष्ठी में स्वागत करते हैं। आप पृष्ठ के नीचे दिये गए COMMENTS के माध्यम से तथा swargoshthi@gmail.com अथवा radioplaybackindia9@gmail.com पर भी अपनी प्रतिक्रिया व्यक्त कर सकते हैं। 


पिछली पहेली के सही उत्तर और विजेता

“स्वरगोष्ठी” के 484वें अंक में हमने आपको 1948 में प्रदर्शित फिल्म "आग" से लिये गए एक गीत का अंश सुनवा कर आपसे तीन में से कम से कम दो सही उत्तरों की अपेक्षा की गई थी। इस गीत के आधार राग को पहचानने में हमारे अधिकतर प्रतिभागियों को सफलता मिली। पहेली के पहले प्रश्न का सही उत्तर है; राग - भैरवी, दूसरे प्रश्न का सही उत्तर है; ताल – दादरा तथा तीसरे प्रश्न का सही उत्तर है; स्वर – मुकेश। 

‘स्वरगोष्ठी’ की इस पहेली का सही उत्तर देने वाले हमारे विजेता हैं; चेरीहिल, न्यूजर्सी से प्रफुल्ल पटेल, जबलपुर, मध्यप्रदेश से क्षिति तिवारी, वोरहीज, न्यूजर्सी से डॉ. किरीट छाया और शारीरिक अस्वस्थता के बावजूद हैदराबाद से डी. हरिणा माधवी। उपरोक्त सभी प्रतिभागियों में से प्रत्येक को दो-दो अंक मिलते हैं। ‘रेडियो प्लेबैक इण्डिया’ की ओर से आप सभी को हार्दिक बधाई। सभी प्रतिभागियों से अनुरोध है कि अपने पते के साथ कृपया अपना उत्तर ई-मेल से ही भेजा करें। इस पहेली प्रतियोगिता में हमारे नए प्रतिभागी भी हिस्सा ले सकते हैं। यह आवश्यक नहीं है कि आपको पहेली के तीनों प्रश्नों के सही उत्तर ज्ञात हो। यदि आपको पहेली का कोई एक उत्तर भी ज्ञात हो तो भी आप इसमें भाग ले सकते हैं। 


संवाद

मित्रों, इन दिनों हम सब भारतवासी, प्रत्येक नागरिक को कोरोना वायरस से मुक्त करने के लिए प्रयत्नशील हैं। अब तक हम काफी हद तक हम सफल भी हुए हैं। इसका प्रकोप भी अब कम हुआ है। संक्रमित होने वालों के स्वस्थ होने का प्रतिशत निरन्तर बढ़ रहा है। परन्तु अभी भी हमें पर्याप्त सतर्कता बरतनी है। विश्वास कीजिए, हमारे इस सतर्कता अभियान से कोरोना वायरस पराजित होगा। आप सब से अनुरोध है कि प्रत्येक स्थिति में चिकित्सकीय और शासकीय निर्देशों का पालन करें और अपने घर में सुरक्षित रहें। इस बीच शास्त्रीय संगीत का श्रवण करें और अनेक प्रकार के मानसिक और शारीरिक व्याधियों से स्वयं को मुक्त रखें। विद्वानों ने इसे “नाद योग पद्धति” कहा है। “स्वरगोष्ठी” की नई-पुरानी श्रृंखलाएँ सुने और पढ़ें। साथ ही अपनी प्रतिक्रिया से हमें अवगत भी कराएँ। 


अपनी बात

मित्रों, ‘रेडियो प्लेबैक इण्डिया’ के साप्ताहिक स्तम्भ ‘स्वरगोष्ठी’ पर जारी हमारी नई श्रृंखला “राज कपूर के विस्मृत संगीतकार" की दूसरी कड़ी में आज आपने राज कपूर की अभिनीत फिल्म "गोपीनाथ" के एक गीत का रसास्वादन और गीत का परिचय प्राप्त किया। यह गीत राग सिन्धु भैरवी पर आधारित है। राग के शास्त्रीय स्वरूप को समझने के लिए हमने आपको सुप्रसिद्ध संगीतज्ञ उस्ताद बड़े गुलाम अली खाँ के स्वर में एक अत्यन्त लोकप्रिय ठुमरी "का करूँ सजनी आए न बालम..." सुनवाई। 

कुछ तकनीकी समस्या के कारण हम अपने फेसबुक के मित्र समूह के साथ “स्वरगोष्ठी” का लिंक साझा नहीं कर पा रहे हैं। सभी संगीत अनुरागियों से अनुरोध है कि हमारी वेबसाइट http://radioplaybackindia.com अथवा http://radioplaybackindia.blogspot.com पर क्लिक करके हमारे सभी साप्ताहिक स्तम्भों का अवलोकन करते रहें। “स्वरगोष्ठी” के वेब पेज के दाहिनी ओर निर्धारित स्थान पर अपना ई-मेल आईडी अंकित कर आप हमारे सभी पोस्ट के लिंक को नियमित रूप से अपने ई-मेल पर प्राप्त कर सकते है। “स्वरगोष्ठी” की पिछली कड़ियों के बारे में हमें अनेक पाठकों की प्रतिक्रिया लगातार मिल रही है। हमें विश्वास है कि हमारे अन्य पाठक भी “स्वरगोष्ठी” के प्रत्येक अंक का अवलोकन करते रहेंगे और अपनी प्रतिक्रिया हमें भेजते रहेंगे। आज के इस अंक अथवा श्रृंखला के बारे में यदि आपको कुछ कहना हो तो हमें अवश्य लिखें। यदि आपका कोई सुझाव या अनुरोध हो तो हमें swargoshthi@gmail.com अथवा radioplaybackindia9@gmail.com पर अवश्य लिखिए। अगले अंक में रविवार को प्रातः सात बजे “स्वरगोष्ठी” के इसी मंच पर हम एक बार फिर संगीत के सभी अनुरागियों का स्वागत करेंगे। 


प्रस्तुति : कृष्णमोहन मिश्र  
रेडियो प्लेबैक इण्डिया 
राग सिन्धु भैरवी : SWARGOSHTHI – 486 : RAG SINDHU BHAIRAVI : 1 नवम्बर, 2020 



Comments

Popular posts from this blog

सुर संगम में आज -भारतीय संगीताकाश का एक जगमगाता नक्षत्र अस्त हुआ -पंडित भीमसेन जोशी को आवाज़ की श्रद्धांजली

सुर संगम - 05 भारतीय संगीत की विविध विधाओं - ध्रुवपद, ख़याल, तराना, भजन, अभंग आदि प्रस्तुतियों के माध्यम से सात दशकों तक उन्होंने संगीत प्रेमियों को स्वर-सम्मोहन में बाँधे रखा. भीमसेन जोशी की खरज भरी आवाज का वैशिष्ट्य जादुई रहा है। बन्दिश को वे जिस माधुर्य के साथ बदल देते थे, वह अनुभव करने की चीज है। 'तान' को वे अपनी चेरी बनाकर अपने कंठ में नचाते रहे। भा रतीय संगीत-नभ के जगमगाते नक्षत्र, नादब्रह्म के अनन्य उपासक पण्डित भीमसेन गुरुराज जोशी का पार्थिव शरीर पञ्चतत्त्व में विलीन हो गया. अब उन्हें प्रत्यक्ष तो सुना नहीं जा सकता, हाँ, उनके स्वर सदियों तक अन्तरिक्ष में गूँजते रहेंगे. जिन्होंने पण्डित जी को प्रत्यक्ष सुना, उन्हें नादब्रह्म के प्रभाव का दिव्य अनुभव हुआ. भारतीय संगीत की विविध विधाओं - ध्रुवपद, ख़याल, तराना, भजन, अभंग आदि प्रस्तुतियों के माध्यम से सात दशकों तक उन्होंने संगीत प्रेमियों को स्वर-सम्मोहन में बाँधे रखा. भीमसेन जोशी की खरज भरी आवाज का वैशिष्ट्य जादुई रहा है। बन्दिश को वे जिस माधुर्य के साथ बदल देते थे, वह अनुभव करने की चीज है। 'तान' को वे अपनी चे...

‘बरसन लागी बदरिया रूमझूम के...’ : SWARGOSHTHI – 180 : KAJARI

स्वरगोष्ठी – 180 में आज वर्षा ऋतु के राग और रंग – 6 : कजरी गीतों का उपशास्त्रीय रूप   उपशास्त्रीय रंग में रँगी कजरी - ‘घिर आई है कारी बदरिया, राधे बिन लागे न मोरा जिया...’ ‘रेडियो प्लेबैक इण्डिया’ के साप्ताहिक स्तम्भ ‘स्वरगोष्ठी’ के मंच पर जारी लघु श्रृंखला ‘वर्षा ऋतु के राग और रंग’ की छठी कड़ी में मैं कृष्णमोहन मिश्र एक बार पुनः आप सभी संगीतानुरागियों का हार्दिक स्वागत और अभिनन्दन करता हूँ। इस श्रृंखला के अन्तर्गत हम वर्षा ऋतु के राग, रस और गन्ध से पगे गीत-संगीत का आनन्द प्राप्त कर रहे हैं। हम आपसे वर्षा ऋतु में गाये-बजाए जाने वाले गीत, संगीत, रागों और उनमें निबद्ध कुछ चुनी हुई रचनाओं का रसास्वादन कर रहे हैं। इसके साथ ही सम्बन्धित राग और धुन के आधार पर रचे गए फिल्मी गीत भी सुन रहे हैं। पावस ऋतु के परिवेश की सार्थक अनुभूति कराने में जहाँ मल्हार अंग के राग समर्थ हैं, वहीं लोक संगीत की रसपूर्ण विधा कजरी अथवा कजली भी पूर्ण समर्थ होती है। इस श्रृंखला की पिछली कड़ियों में हम आपसे मल्हार अंग के कुछ रागों पर चर्चा कर चुके हैं। आज के अंक से हम वर्षा ऋतु...

काफी थाट के राग : SWARGOSHTHI – 220 : KAFI THAAT

स्वरगोष्ठी – 220 में आज दस थाट, दस राग और दस गीत – 7 : काफी थाट राग काफी में ‘बाँवरे गम दे गयो री...’  और  बागेश्री में ‘कैसे कटे रजनी अब सजनी...’ ‘रेडियो प्लेबैक इण्डिया’ के साप्ताहिक स्तम्भ ‘स्वरगोष्ठी’ के मंच पर जारी नई लघु श्रृंखला ‘दस थाट, दस राग और दस गीत’ की सातवीं कड़ी में मैं कृष्णमोहन मिश्र, आप सब संगीत-प्रेमियों का हार्दिक अभिनन्दन करता हूँ। इस लघु श्रृंखला में हम आपसे भारतीय संगीत के रागों का वर्गीकरण करने में समर्थ मेल अथवा थाट व्यवस्था पर चर्चा कर रहे हैं। भारतीय संगीत में सात शुद्ध, चार कोमल और एक तीव्र, अर्थात कुल 12 स्वरों का प्रयोग किया जाता है। एक राग की रचना के लिए उपरोक्त 12 में से कम से कम पाँच स्वरों की उपस्थिति आवश्यक होती है। भारतीय संगीत में ‘थाट’, रागों के वर्गीकरण करने की एक व्यवस्था है। सप्तक के 12 स्वरों में से क्रमानुसार सात मुख्य स्वरों के समुदाय को थाट कहते है। थाट को मेल भी कहा जाता है। दक्षिण भारतीय संगीत पद्धति में 72 मेल का प्रचलन है, जबकि उत्तर भारतीय संगीत में दस थाट का प्रयोग किया जाता है। इन...