स्वरगोष्ठी – 485 में आज
राज कपूर के विस्मृत संगीतकार - 1 : संगीतकार राम गांगुली
राज कपूर के पहले संगीतकार राम गांगुली ने इस गीत में राग भैरवी का आधार लिया
राज कपूर |
राम गांगुली |
“रेडियो प्लेबैक इण्डिया” के साप्ताहिक स्तम्भ ‘स्वरगोष्ठी’ के मंच पर आज से आरम्भ हो रही हमारी नई श्रृंखला “राज कपूर के विस्मृत संगीतकार" की पहली कड़ी में मैं कृष्णमोहन मिश्र, आप सब संगीत प्रेमियों का हार्दिक स्वागत करता हूँ। इस श्रृंखला में हम फिल्म निर्माता, निर्देशक और अभिनेता राज कपूर के फिल्मी जीवन के पहले दशक के कुछ विस्मृत संगीतकारों की और उनकी कृतियों पर चर्चा कर रहे हैं। इन फिल्मों में से कुछ का उन्होने निर्माण, कुछ का निर्देशन और कुछ फिल्मों में केवल अभिनय किया था। आरम्भ के पहले दशक अर्थात 1948 में प्रदर्शित फिल्म "आग" से लेकर 1958 में प्रदर्शित फिल्म "फिर सुबह होगी" की चर्चा इस श्रृंखला में की जाएगी। आम तौर पर राज कपूर की फिल्मों के अधिकतर संगीतकार शंकर जयकिशन ही रहे हैं। उन्होने राज कपूर की कुल 20 फिल्मों का संगीत निर्देशन किया है। हैं। इसके अलावा बाद की कुछ फिल्मों में लक्ष्मीकान्त - प्यारेलाल और रवीन्द्र जैन ने भी संगीत दिया है। राज कपूर के फिल्मों के प्रारम्भिक दशक के कुछ संगीतकार भुला दिये गए है, यद्यपि इन फिल्मों के गीत आज भी लोकप्रिय हैं। राज कपूर का जन्म 14 दिसम्बर, 1924 को पेशावर (अब पाकिस्तान) में जाने-माने अभिनेता पृथ्वीराज कपूर के घर हुआ था। श्रृंखला की कड़ियाँ राज कपूर के जन्म पखवारे तक और वर्ष 2020 के अन्तिम रविवार तक जारी रहेगी। उनकी 97वीं जयन्ती अवसर के लिए हमने राज कपूर और उनके कुछ विस्मृत संगीतकारों को स्मरण करने का निश्चय किया है। इस श्रृंखला के माध्यम से हम भारतीय सिनेमा के एक ऐसे स्वप्नदर्शी व्यक्तित्व राज कपूर पर चर्चा करेंगे, जिसने देश की स्वतन्त्रता के पश्चात कई दशकों तक भारतीय जनमानस को प्रभावित किया। सिनेमा के माध्यम से समाज को सर्वाधिक प्रभावित करने वाले भारतीय सिनेमा के पाँच स्तम्भों; वी. शान्ताराम, विमल राय, महबूब खाँ और गुरुदत्त के साथ राज कपूर का नाम भी एक कल्पनाशील फ़िल्मकार के रूप में इतिहास में दर्ज़ हो चुका है। इस वर्ष 14 दिसम्बर को इस महान फ़िल्मकार की 97वीं जयन्ती है। इस अवसर के लिए श्रृंखला प्रस्तुत करने की जब योजना बन रही थी तब अपने पाठकों और श्रोताओं के अनेकानेक सुझाव मिले कि इस श्रृंखला में राज कपूर की आरम्भिक फिल्मों के गीतों को एक नये कोण से टटोला जाए। आज से आरम्भ हो रही श्रृंखला “राज कपूर के विस्मृत संगीतकार" में हमने दस ऐसे संगीतकारों के गीतों को चुना है, जिन्होने राज कपूर के आरम्भिक दशक की फिल्मों में उत्कृष्ट स्तर का संगीत दिया था। ये संगीतकार राज कपूर के व्यक्तित्व से और राज कपूर इनके संगीत से अत्यन्त प्रभावित हुए थे। इसके साथ ही इस श्रृंखला में प्रस्तुत किये जाने वाले गीतों के रागों का विश्लेषण भी करेंगे। इस कार्य में हमारा सहयोग "फिल्मी गीतों में राग" विषयक शोधकर्ता और "हिन्दी सिने राग इनसाइक्लोपीडिया" के लेखक के.एल. पाण्डेय ने किया है। आज की पहली कड़ी में हम राज कपूर की पहली फिल्म "आग" का राग भैरवी पर आधारित एक गीत प्रस्तुत कर रहे हैं। राग भैरवी के शास्त्रीय स्वरूप का दिग्दर्शन कराने के उद्येश्य से हम राग भैरवी पर आधारित दो खयाल रचनाएँ पण्डित भीमसेन जोशी के स्वर में प्रस्तुत कर रहे हैं।
राज कपूर के फिल्म निर्माण की लालसा का आरम्भ फिल्म "आग" से हुआ था। फिल्म के संगीतकार राम गांगुली थे। दरअसल यह पहली फिल्म राज कपूर के भावी फिल्मी जीवन का एक घोषणापत्र था। ठीक उसी प्रकार जैसे लोकतन्त्र में चुनाव लड़ने वाला प्रत्याशी अपने दल का घोषणापत्र जनता के सामने प्रस्तुत करता है। फिल्म "आग" में जो मुद्दे लिये गए थे, बाद की फिल्मों में उन्हीं मुद्दों का विस्तार था, और "आग" की चरम परिणति "मेरा नाम जोकर" में हम देखते हैं। "आग" का नायक नाटक और रंगमंच के प्रति दीवाना है। फिल्म में राज कपूर का एक संवाद है; "मैं थियेटर को उस ऊँचाई पर ले जाऊँगा, जहाँ लोग उसे सम्मान की दृष्टि से देखते हैं..."। राज कपूर अपने पिता के "पृथ्वी थियेटर" में एक सामान्य कर्मचारी के रूप में कार्य करते थे। "आग" का कथ्य यहीं से उपजा था। केवल कथ्य ही नहीं, पहली फिल्म के संगीतकार भी राज कपूर को "पृथ्वी थियेटर" से ही मिले थे, संगीतकार राम गांगुली। राम गांगुली ही पृथ्वीराज कपूर की नाट्य संस्था के नाटकों के संगीतकार हुआ करते थे।
मुकेश |
5 अगस्त, 1928 को जन्में राम गांगुली को सितार वादन की शिक्षा उस्ताद अलाउद्दीन से प्राप्त हुई थी। मात्र 17 वर्ष की आयु से ही उन्होने मंच प्रदर्शन करना आरम्भ कर दिया था। संगीतकार आर.सी. बोराल ने उन्हें न्यू थियेटर में वादक के रूप स्थान दिया। बाद में पृथ्वीराज कपूर ने अपने नाटकों में संगीत निर्देशन के लिए पृथ्वी थियेटर में बुला लिया। "पृथ्वी थियेटर" के ही अत्यन्त लोकप्रिय नाटक "पठान" में अभिनय करते हुए राज कपूर ने राम गांगुली का संगीतबद्ध किया गीत; "हम बाबू नये निराले हैं..." गाया था। अपने इन्हीं प्रगाढ़ सम्बन्धों के कारण राज कपूर ने अपनी पहली निर्मित, अभिनीत और निर्देशित फिल्म "आग" के संगीतकार के रूप में राम गांगुली को चुना। फिल्म "आग" के गीत; "काहे कोयल शोर मचाए...", "कहीं का दीपक कहीं की बाती...", "रात को जो चमके तारें..." आदि अपने समय में लोकप्रिय हुए थे, किन्तु जो लोकप्रियता "ज़िंदा हूँ इस तरह कि गम-ए-ज़िंदगी नहीं..." गीत को मिली वह आज तक कायम है। आज भी यह गीत सुनने वालों को रोमांचित कर देता है। इस गीत में वी. शान्ताराम की फिल्म "सेहरा" के संगीतकार और चर्चित शहनाई और बाँसुरी वादक रामलाल ने गीत में अत्यंत संवेदनशील बाँसुरी वादन किया था। साथ ही राज कपूर की सर्वाधिक 20 फिल्मों में संगीत निर्देशन करने वाले शंकर और जयकिशन, फिल्म "आग" में क्रमशः तबला और हारमोनियम वादक थे। फिल्म "आग" के गीतकार बहजाद लखनवी थे और गायक थे, राज कपूर के सबसे प्रिय गायक मुकेश। अब आप स्वप्नदर्शी फ़िल्मकार राज कपूर की पहली निर्देशित और अभिनीत फिल्म "आग" से राग भैरवी के सुरों को स्पर्श करता यह गीत सुनिए।
राग भैरवी : "ज़िंदा हूँ इस तरह कि..." : मुकेश : फिल्म - आग : संगीत - राम गांगुली
पण्डित भीमसेन जोशी |
आज का राग भैरवी है। यह भारतीय संगीत का अत्यन्त महत्त्वपूर्ण राग है। इस राग में ऋषभ, गान्धार, धैवत और निषाद स्वर कोमल और मध्यम स्वर शुद्ध प्रयोग किया जाता है। शेष स्वर शुद्ध होते हैं। राग कि जाति सम्पूर्ण-सम्पूर्ण होती है। कुछ विद्वान इस राग में सभी बारह स्वरों का प्रयोग भी करते हैं। भैरवी थाट का आश्रय अथवा जनक राग भैरवी नाम से ही इस राग को पहचाना जाता है। इस राग का वादी स्वर मध्यम और संवादी स्वर षडज होता है। यूँ तो इसके गायन-वादन का समय प्रातःकाल, सन्धिप्रकाश बेला में है, इसके साथ ही परम्परागत रूप से राग ‘भैरवी’ का गायन-वादन किसी संगीत-सभा अथवा समारोह के अन्त में किये जाने की परम्परा बन गई है। इस राग में कुछ संगीतज्ञ पंचम स्वर को वादी और षडज स्वर को संवादी मान कर प्रयोग करते हैं, किन्तु अधिकतर संगीतज्ञ मध्यम स्वर को वादी और षडज स्वर को संवादी मानते हैं। राग ‘भैरवी’ को ‘सदा सुहागिन राग’ भी कहा जाता है। इस राग में ठुमरी, दादरा, सुगम संगीत और फिल्म संगीत में राग भैरवी का सर्वाधिक प्रयोग मिलता है। राग भैरवी में खयाल रचनाएँ कम ही गायी-बजायी जाती है। परन्तु आज आपको सुनवाने के लिए हमने राग भैरवी में निबद्ध दो रागदारी रचनाओं का चुनाव किया है। इन रचनाओं के स्वर पण्डित भीमसेन जोशी के हैं। आप यह रागदारी संगीत की रचना सुनिए और हमें आज की इस कड़ी से यहीं विराम लेने की अनुमति दीजिए।
राग भैरवी : विलम्बित "फुलवन गेंद से..." और द्रुत खयाल "हमसे पिया..." : पण्डित भीमसेन जोशी
संगीत पहेली
"स्वरगोष्ठी" के 485वें अंक की संगीत पहेली में आज हम आपको सात दशक पुरानी एक फिल्म के राग आधारित गीत का अंश सुनवा रहे हैं। गीत के इस अंश को सुन कर आपको दो अंक अर्जित करने के लिए निम्नलिखित तीन में से कम से कम दो प्रश्नों के सही उत्तर देना आवश्यक हैं। यदि आपको तीन में से केवल एक अथवा तीनों प्रश्नों का उत्तर ज्ञात हो तो भी आप प्रतियोगिता में भाग ले सकते हैं। श्रृंखला के चौथे सत्र अर्थात अंक संख्या 490 की पहेली का उत्तर प्राप्त होने के बाद तक जिस प्रतिभागी के सर्वाधिक अंक होंगे उन्हें इस वर्ष के चतुर्थ सत्र का विजेता घोषित किया जाएगा। इसके साथ ही पूरे वर्ष के प्राप्तांकों की गणना के बाद वर्ष के अन्त में महाविजेताओं की घोषणा की जाएगी और उन्हें सम्मानित भी किया जाएगा।
1 - इस गीतांश को सुन कर बताइए कि इसमें किस राग की छाया है?
2 – इस गीत में प्रयोग किये गए ताल को पहचानिए और उसका नाम बताइए।
3 – इस गीत में किस विस्मृत गायक के स्वर है?
आप उपरोक्त तीन मे से किन्हीं दो प्रश्नों के उत्तर केवल swargoshthi@gmail.com या radioplaybackindia9@gmail.com पर ही शनिवार 31 अक्तूबर, 2020 की मध्यरात्रि से पूर्व तक भेजें। आपको यदि उपरोक्त तीन में से केवल एक प्रश्न का सही उत्तर ज्ञात हो तो भी आप पहेली प्रतियोगिता में भाग ले सकते हैं। COMMENTS में दिये गए उत्तर मान्य हो सकते हैं, किन्तु उसका प्रकाशन पहेली का उत्तर देने की अन्तिम तिथि के बाद किया जाएगा। फेसबुक पर पहेली का उत्तर स्वीकार नहीं किया जाएगा। विजेताओं के नाम हम उनके शहर/ग्राम, प्रदेश और देश के नाम के साथ “स्वरगोष्ठी” के अंक संख्या 487 में प्रकाशित करेंगे। इस अंक में प्रस्तुत गीत, संगीत या कलाकार के बारे में यदि आप कोई जानकारी या अपने किसी अनुभव को हम सबके बीच बाँटना चाहते हैं तो हम आपका इस संगोष्ठी में स्वागत करते हैं। आप पृष्ठ के नीचे दिये गए COMMENTS के माध्यम से तथा swargoshthi@gmail.com अथवा radioplaybackindia9@gmail.com पर भी अपनी प्रतिक्रिया व्यक्त कर सकते हैं।
पिछली पहेली के सही उत्तर और विजेता
“स्वरगोष्ठी” के 483वें अंक में हमने आपको 1932 में कुन्दनलाल सहगल के स्वर में रिकार्ड किये गए एक गैरफ़िल्मी गीत का अंश सुनवा कर आपसे तीन में से कम से कम दो सही उत्तरों की अपेक्षा की गई थी। इस गीत के आधार राग को पहचानने में हमारे अधिकतर प्रतिभागी सफल नहीं रहे। पहेली के पहले प्रश्न का सही उत्तर है; राग - आसावरी और गान्धारी, दूसरे प्रश्न का सही उत्तर है; ताल – तीनताल तथा तीसरे प्रश्न का सही उत्तर है; स्वर – कुन्दनलाल सहगल।
‘स्वरगोष्ठी’ की इस पहेली का सही उत्तर देने वाले हमारे विजेता हैं; जबलपुर, मध्यप्रदेश से क्षिति तिवारी, वोरहीज, न्यूजर्सी से डॉ. किरीट छाया, अहमदाबाद, गुजरात से मुकेश लाडिया, चेरीहिल, न्यूजर्सी से प्रफुल्ल पटेल, और शारीरिक अस्वस्थता के बावजूद हैदराबाद से डी. हरिणा माधवी। उपरोक्त सभी प्रतिभागियों में से प्रत्येक को दो-दो अंक मिलते हैं। ‘रेडियो प्लेबैक इण्डिया’ की ओर से आप सभी को हार्दिक बधाई। सभी प्रतिभागियों से अनुरोध है कि अपने पते के साथ कृपया अपना उत्तर ई-मेल से ही भेजा करें। इस पहेली प्रतियोगिता में हमारे नए प्रतिभागी भी हिस्सा ले सकते हैं। यह आवश्यक नहीं है कि आपको पहेली के तीनों प्रश्नों के सही उत्तर ज्ञात हो। यदि आपको पहेली का कोई एक उत्तर भी ज्ञात हो तो भी आप इसमें भाग ले सकते हैं।
संवाद
मित्रों, इन दिनों हम सब भारतवासी, प्रत्येक नागरिक को कोरोना वायरस से मुक्त करने के लिए प्रयत्नशील हैं। अब तक हम काफी हद तक हम सफल भी हुए हैं। इसका प्रकोप भी अब कम हुआ है। संक्रमित होने वालों के स्वस्थ होने का प्रतिशत निरन्तर बढ़ रहा है। परन्तु अभी भी हमें पर्याप्त सतर्कता बरतनी है। विश्वास कीजिए, हमारे इस सतर्कता अभियान से कोरोना वायरस पराजित होगा। आप सब से अनुरोध है कि प्रत्येक स्थिति में चिकित्सकीय और शासकीय निर्देशों का पालन करें और अपने घर में सुरक्षित रहें। इस बीच शास्त्रीय संगीत का श्रवण करें और अनेक प्रकार के मानसिक और शारीरिक व्याधियों से स्वयं को मुक्त रखें। विद्वानों ने इसे “नाद योग पद्धति” कहा है। “स्वरगोष्ठी” की नई-पुरानी श्रृंखलाएँ सुने और पढ़ें। साथ ही अपनी प्रतिक्रिया से हमें अवगत भी कराएँ।
अपनी बात
मित्रों, ‘रेडियो प्लेबैक इण्डिया’ के साप्ताहिक स्तम्भ ‘स्वरगोष्ठी’ पर जारी हमारी नई श्रृंखला “राज कपूर के विस्मृत संगीतकार" की पहली कड़ी में आज आपने राज कपूर की अभिनीत और निर्देशित फिल्म "आग" के एक गीत का रसास्वादन और गीत का परिचय प्राप्त किया। यह गीत राग भैरवी पर आधारित है। राग के शास्त्रीय स्वरूप को समझने के लिए हमने आपको सुप्रसिद्ध संगीतज्ञ पण्डित भीमसेन जोशी के स्वर में दो खयाल रचनाएँ सुनवाई। "स्वरगोष्ठी" के 483वें अंक पर प्रतिक्रिया व्यक्त करती हुई हमारी बहुत पुरानी पाठक और श्रोता, पेंसिलवेनिया, अमेरिका निवासी श्रीमती विजया राजकोटिया लिखती हैं; So good to hear Nom-Tom alaap of Dhrupad style from Ustad Faiyaz Khan ji. Also the movie song is great sung by Amir Khan and D.V.Paluskar. These are unique pieces and will remain living in the hearts of all music lovers.
कुछ तकनीकी समस्या के कारण हम अपने फेसबुक के मित्र समूह पर “स्वरगोष्ठी” का लिंक साझा नहीं कर पा रहे हैं। सभी संगीत अनुरागियों से अनुरोध है कि हमारी वेबसाइट http://radioplaybackindia.com अथवा http://radioplaybackindia.blogspot.com पर क्लिक करके हमारे सभी साप्ताहिक स्तम्भों का अवलोकन करते रहें। “स्वरगोष्ठी” के वेब पेज के दाहिनी ओर निर्धारित स्थान पर अपना ई-मेल आईडी अंकित कर आप हमारे सभी पोस्ट के लिंक को नियमित रूप से अपने ई-मेल पर प्राप्त कर सकते है। “स्वरगोष्ठी” की पिछली कड़ियों के बारे में हमें अनेक पाठकों की प्रतिक्रिया लगातार मिल रही है। हमें विश्वास है कि हमारे अन्य पाठक भी “स्वरगोष्ठी” के प्रत्येक अंक का अवलोकन करते रहेंगे और अपनी प्रतिक्रिया हमें भेजते रहेंगे। आज के इस अंक अथवा श्रृंखला के बारे में यदि आपको कुछ कहना हो तो हमें अवश्य लिखें। यदि आपका कोई सुझाव या अनुरोध हो तो हमें swargoshthi@gmail.com अथवा radioplaybackindia9@gmail.com पर अवश्य लिखिए। अगले अंक में रविवार को प्रातः सात बजे “स्वरगोष्ठी” के इसी मंच पर हम एक बार फिर संगीत के सभी अनुरागियों का स्वागत करेंगे।
प्रस्तुति : कृष्णमोहन मिश्र
राग भैरवी : SWARGOSHTHI – 485 : RAG BHAIRAVI : 25 अक्तूबर, 2020
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