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राग गान्धारी : SWARGOSHTHI – 484 : RAG GANDHARI




स्वरगोष्ठी – 484 में आज 

आसावरी थाट के राग – 6 : राग - गान्धारी 

प्रोफेसर बी.आर. देवधर से गान्धारी में रागदारी संगीत की रचना और के.एल. सहगल से गैरफिल्मी गीत सुनिए 





प्रोफेसर बी.आर. देवधर 


कुन्दनलाल सहगल 

“रेडियो प्लेबैक इण्डिया” के साप्ताहिक स्तम्भ ‘स्वरगोष्ठी’ के मंच पर जारी हमारी श्रृंखला “आसावरी थाट के राग” की छठी कड़ी में मैं कृष्णमोहन मिश्र, आप सब संगीत प्रेमियों का हार्दिक स्वागत करता हूँ। भारतीय संगीत के अन्तर्गत आने वाले रागों का वर्गीकरण करने के लिए मेल अथवा थाट व्यवस्था है। भारतीय संगीत में सात शुद्ध, चार कोमल और एक तीव्र अर्थात कुल बारह स्वरों का प्रयोग होता है। एक राग की रचना के लिए इन बारह स्वरों में से कम से कम पाँच स्वरों का होना आवश्यक होता है। संगीत में थाट रागों के वर्गीकरण की पद्धति है। सप्तक के बारह में से मुख्य सात स्वरों के क्रमानुसार समुदाय को थाट कहते हैं, जिससे राग उत्पन्न होते हों। थाट को मेल भी कहा जाता है। दक्षिण भारतीय संगीत पद्धति में 72 मेल प्रचलित हैं, जबकि उत्तर भारतीय संगीत पद्धति में 10 थाट का प्रयोग किया जाता है। इसका प्रचलन पण्डित विष्णु नारायण भातखण्डे जी ने प्रारम्भ किया था। वर्तमान समय में रागों के वर्गीकरण के लिए यही पद्धति प्रचलित है। भातखण्डे जी द्वारा प्रचलित ये दस थाट हैं; कल्याण, बिलावल, खमाज, भैरव, पूर्वी, मारवा, काफी, आसावरी, तोड़ी और भैरवी। सभी प्रचलित और अप्रचलित रागों को इन्हीं दस थाट के अन्तर्गत सम्मिलित किया गया है। भारतीय संगीत में थाट, स्वरों के उस समूह को कहते हैं जिससे रागों का वर्गीकरण किया जा सकता है। पन्द्रहवीं शताब्दी के उत्तरार्द्ध में 'राग तरंगिणी’ ग्रन्थ के लेखक लोचन कवि ने रागों के वर्गीकरण की परम्परागत 'ग्राम और मूर्छना प्रणाली’ का परिमार्जन कर मेल अथवा थाट प्रणाली की स्थापना की। लोचन कवि के अनुसार उस समय सोलह हज़ार राग प्रचलित थे। इनमें 36 मुख्य राग थे। सत्रहवीं शताब्दी में थाट के अन्तर्गत रागों का वर्गीकरण प्रचलित हो चुका था। थाट प्रणाली का उल्लेख सत्रहवीं शताब्दी के ‘संगीत पारिजात’ और ‘राग विबोध’ नामक ग्रन्थों में भी किया गया है। लोचन द्वारा प्रतिपादित थाट प्रणाली का प्रयोग लगभग तीन सौ वर्षों तक होता रहा। उन्नीसवीं शताब्दी के अन्तिम और बीसवीं शताब्दी के प्रारम्भिक दशकों में पण्डित विष्णु नारायण भातखण्डे ने भारतीय संगीत के बिखरे सूत्रों को न केवल संकलित किया बल्कि संगीत के कई सिद्धान्तों का परिमार्जन भी किया। भातखण्डे जी द्वारा निर्धारित दस थाट में से आठवाँ थाट आसावरी है। इस श्रृंखला में हम आसावरी थाट के रागों पर क्रमशः चर्चा कर रहे हैं। प्रत्येक थाट का एक आश्रय अथवा जनक राग होता है और शेष जन्य राग कहलाते हैं। आपके लिए इस श्रृंखला में हम आसावरी थाट के जनक और जन्य रागों पर चर्चा कर रहे हैं। श्रृंखला की छठी कड़ी में आज हमने आसावरी थाट के जन्य राग गान्धारी का चयन किया है। श्रृंखला की इस कड़ी में आज हम आपके लिए षाड़व-सम्पूर्ण जाति के राग गान्धारी का परिचय प्रस्तुत करेंगे। इसके साथ ही सुविख्यात संगीतज्ञ और शिक्षक प्रोफेसर बी.आर. देवधर के स्वरों में राग गान्धारी में निबद्ध एक रागदारी रचना प्रस्तुत कर रहे हैं। इस राग के स्वरों का प्रयोग करने वाला कोई भी फिल्मी गीत नहीं मिला। अतः गायक और अभनेता कुन्दनलाल सहगल की आवाज़ में एक गैरफ़िल्मी गीत सुनवा रहे हैं। इस गीत की रिकार्डिंग का उपयोग 1955 में प्रदर्शित फिल्म "अमर सहगल" में किया गया है। गीत के आरम्भ में राग आसावरी और बाद में राग गान्धारी परिलक्षित होता है। गीत सम्भवतः हज़रत अमीर खुसरो का लिखा हुआ है और स्वयं कुन्दनलाल सहगल द्वारा स्वरबद्ध किया यह गीत कुन्दनलाल सहगल के ही स्वर में प्रस्तुत किया गया है। 



राग गान्धारी की गणना आसावरी थाट के अन्तर्गत की जाती है। इस राग में गान्धार, धैवत और निषाद स्वर कोमल और दोनों ऋषभ स्वरों का प्रयोग किया जाता है। आरोह में गान्धार स्वर वर्जित होता है और अवरोह में सातो स्वर प्रयोग किये जाते हैं। इसलिए इस राग की जाति षाड़व-सम्पूर्ण होती है। राग गान्धारी का वादी स्वर धैवत और संवादी स्वर कोमल गान्धार माना जाता है। इस राग के गायन अथवा वादन का सर्वाधिक उपयुक्त समय दिन का तीसरा प्रहर होता है। यह एक कम प्रचलित राग है। धैवत स्वर और उत्तरांग प्रधान चलन होने से इस राग की प्रस्तुति में ओज, पुकार और जागृति का भाव उत्पन्न होता है। आरोह में जौनपुरी की छाया परिलक्षित होती है किन्तु भैरवी और आसावरी की स्वर संगतियों के प्रयोग से वह छाया तिरोहित भी हो जाती है। राग में ऋषभ, गान्धार, धैवत और निषाद स्वर कोमल प्रयोग किये जाने के कारण यह प्रश्न भी उठ सकता है कि इस राग को भैरवी थाट के अन्तर्गत क्यों न रखा जाय। स्वर की दृष्टि से भैरवी और आसावरी में केवल ऋषभ स्वर का अन्तर है। अतः इसे भैरवी और आसावरी दोनों थाट में रखा जा सकता है। परन्तु राग गान्धारी का चलन आसावरी जैसा होने के कारण इसे आसावरी थाट में रखना अधिक उपयुक्त है। अब हम आपको राग "गान्धारी" की तीनताल में निबद्ध एक दुर्लभ बन्दिश सुनवाते हैं, जिसे गत शताब्दी के सुप्रसिद्ध शास्त्रज्ञ प्रोफेसर बी.आर. देवधर ने प्रस्तुत किया है। 

राग गान्धारी : "जियरा लरजे मोरा..." : प्रोफेसर बी.आर. देवधर 

 

राग गान्धारी उत्तरांग प्रधान राग है। इसका चलन राग जौनपुरी की तरह मध्य सप्तक के उत्तरांग में तथा तार सप्तक में अधिक होता है, किन्तु पूर्वांग में दोनों ऋषभ के प्रयोग से यह राग स्पष्ट हो जाता है और समप्रकृति रागों से अलग हो जाता है। राग गान्धारी पर आधारित किसी फिल्मी गीत को खोजने का हमने काफी प्रयास किया, किन्तु हमें सफलता नहीं मिली। इस खोज को आगे बढ़ाने के लिए हमने अपने मित्र और "फिल्मी गीतों में राग" विषयक शोधकर्ता व "हिन्दी सिने राग इन्साक्लोपीडिया" के लेखक श्री के.एल. पाण्डेय से सम्पर्क किया। श्री पाण्डेय के अनुसार उन्हें राग गान्धारी पर आधारित एक भी फिल्मी गीत नहीं मिला। हाँ, गायक-अभिनेता कुन्दनलाल सहगल कि आवाज़ में एक गैर फिल्मी गीत अवश्य मिला है, जिसमें राग आसावरी और गान्धारी का मेल है। आज हम आपको यही गीत सुनवाते है। फिल्म संगीत के इतिहास के लेखक और शोधकर्ता सुजॉय चटर्जी और सहगल के जीवन पर आधारित 1955 में प्रदर्शित फिल्म "अमर सहगल" के अनुसार यह गीत कुन्दनलाल सहगल ने फिल्मी दुनियाँ में आने से पूर्व गाया था। इस गीत में राग आसावरी के साथ राग गान्धारी का प्रयोग हुआ है। गीतकार के नाम के विषय में श्री चटर्जी ने बताया कि अधिक सम्भावना अमीर खुसरो की है। वर्ष 1932 में यह गीत हिन्दुस्तान ग्रामोफोन कम्पनी ने रिकार्ड किया था। फिल्म "अमर सहगल" में इसी रिकार्ड का प्रयोग किया गया है। गीत के संगीतकार पर भी पर्याप्त मतभेद है। रिकार्ड पर संगीतकार के रूप में सहगल का नाम ही अंकित है, किन्तु कहीं-कहीं आर.सी. बोराल का नाम और कुछ इतिहासकारों के अनुसार अपरेश लाहिड़ी के नाम का अनुमान लगाया गया है। यदि किसी पाठक को इस गीत के विषय में कोई प्रामाणिक जानकारी हो तो कृपया हमें अवश्य सूचित करें। आप यह गैरफिल्मी गीत सुनिए और हमें आज की इस कड़ी को यहीं विराम देने की अनुमति दीजिए। 

राग गान्धारी और आसावरी : "झुलना झुलाओ री..." : स्वर - कुन्दनलाल सहगल : गैरफिल्मी गीत 




संगीत पहेली

"स्वरगोष्ठी" के 483वें अंक की संगीत पहेली में आज हम आपको एक राग आधारित, गैरफिल्मी गीत का अंश सुनवा रहे हैं। गीत के इस अंश को सुन कर आपको दो अंक अर्जित करने के लिए निम्नलिखित तीन में से कम से कम दो प्रश्नों के सही उत्तर देना आवश्यक हैं। यदि आपको तीन में से केवल एक अथवा तीनों प्रश्नों का उत्तर ज्ञात हो तो भी आप प्रतियोगिता में भाग ले सकते हैं। श्रृंखला के चौथे सत्र अर्थात अंक संख्या 490 की पहेली का उत्तर प्राप्त होने के बाद तक जिस प्रतिभागी के सर्वाधिक अंक होंगे उन्हें इस वर्ष के चतुर्थ सत्र का विजेता घोषित किया जाएगा। इसके साथ ही पूरे वर्ष के प्राप्तांकों की गणना के बाद वर्ष के अन्त में महाविजेताओं की घोषणा की जाएगी और उन्हें सम्मानित भी किया जाएगा। 





1 - इस गीतांश को सुन कर बताइए कि इसमें किस राग का स्पर्श है? 

2 – इस गीत में प्रयोग किये गए ताल को पहचानिए और उसका नाम बताइए। 

3 – इस गीत में किस पार्श्वगायक के स्वर है? 

आप उपरोक्त तीन मे से किन्हीं दो प्रश्नों के उत्तर केवल swargoshthi@gmail.com या radioplaybackindia9@gmail.com पर ही शनिवार 24 अक्तूबर, 2020 की मध्यरात्रि से पूर्व तक भेजें। आपको यदि उपरोक्त तीन में से केवल एक प्रश्न का सही उत्तर ज्ञात हो तो भी आप पहेली प्रतियोगिता में भाग ले सकते हैं। COMMENTS में दिये गए उत्तर मान्य हो सकते हैं, किन्तु उसका प्रकाशन पहेली का उत्तर देने की अन्तिम तिथि के बाद किया जाएगा। फेसबुक पर पहेली का उत्तर स्वीकार नहीं किया जाएगा। विजेताओं के नाम हम उनके शहर/ग्राम, प्रदेश और देश के नाम के साथ “स्वरगोष्ठी” के अंक संख्या 486 में प्रकाशित करेंगे। इस अंक में प्रस्तुत गीत, संगीत या कलाकार के बारे में यदि आप कोई जानकारी या अपने किसी अनुभव को हम सबके बीच बाँटना चाहते हैं तो हम आपका इस संगोष्ठी में स्वागत करते हैं। आप पृष्ठ के नीचे दिये गए COMMENTS के माध्यम से तथा swargoshthi@gmail.com अथवा radioplaybackindia9@gmail.com पर भी अपनी प्रतिक्रिया व्यक्त कर सकते हैं। 


पिछली पहेली के सही उत्तर और विजेता

“स्वरगोष्ठी” के 482वें अंक में हमने आपको 1952 में प्रदर्शित फिल्म "बैजू बावरा" के एक गीत का अंश सुनवा कर आपसे तीन में से कम से कम दो सही उत्तरों की अपेक्षा की गई थी। इस गीत के आधार राग को पहचानने में हमारे अधिकतर प्रतिभागी सफल रहे। पहेली के पहले प्रश्न का सही उत्तर है; राग - देसी, दूसरे प्रश्न का सही उत्तर है; ताल – तीनताल तथा तीसरे प्रश्न का सही उत्तर है; स्वर – पण्डित दत्तात्रेय विष्णु पलुस्कर और उस्ताद अमीर खाँ। 

‘स्वरगोष्ठी’ की इस पहेली का सही उत्तर देने वाले हमारे विजेता हैं; अहमदाबाद, गुजरात से मुकेश लाडिया, वोरहीज, न्यूजर्सी से डॉ. किरीट छाया, चेरीहिल, न्यूजर्सी से प्रफुल्ल पटेल, जबलपुर, मध्यप्रदेश से क्षिति तिवारी, और शारीरिक अस्वस्थता के बावजूद हैदराबाद से डी. हरिणा माधवी। उपरोक्त सभी प्रतिभागियों में से प्रत्येक को दो-दो अंक मिलते हैं। ‘रेडियो प्लेबैक इण्डिया’ की ओर से आप सभी को हार्दिक बधाई। सभी प्रतिभागियों से अनुरोध है कि अपने पते के साथ कृपया अपना उत्तर ई-मेल से ही भेजा करें। इस पहेली प्रतियोगिता में हमारे नए प्रतिभागी भी हिस्सा ले सकते हैं। यह आवश्यक नहीं है कि आपको पहेली के तीनों प्रश्नों के सही उत्तर ज्ञात हो। यदि आपको पहेली का कोई एक उत्तर भी ज्ञात हो तो भी आप इसमें भाग ले सकते हैं। 


संवाद

मित्रों, इन दिनों हम सब भारतवासी, प्रत्येक नागरिक को कोरोना वायरस से मुक्त करने के लिए प्रयत्नशील हैं। अब तक हम काफी हद तक हम सफल भी हुए हैं। संक्रमित होने वालों के स्वस्थ होने का प्रतिशत निरन्तर बढ़ रहा है। परन्तु अभी भी हमें पर्याप्त सतर्कता बरतनी है। विश्वास कीजिए, हमारे इस सतर्कता अभियान से कोरोना वायरस पराजित होगा। आप सब से अनुरोध है कि प्रत्येक स्थिति में चिकित्सकीय और शासकीय निर्देशों का पालन करें और अपने घर में सुरक्षित रहें। इस बीच शास्त्रीय संगीत का श्रवण करें और अनेक प्रकार के मानसिक और शारीरिक व्याधियों से स्वयं को मुक्त रखें। विद्वानों ने इसे “नाद योग पद्धति” कहा है। “स्वरगोष्ठी” की नई-पुरानी श्रृंखलाएँ सुने और पढ़ें। साथ ही अपनी प्रतिक्रिया से हमें अवगत भी कराएँ। 


अपनी बात

मित्रों, ‘रेडियो प्लेबैक इण्डिया’ के साप्ताहिक स्तम्भ ‘स्वरगोष्ठी’ पर जारी हमारी श्रृंखला “आसावरी थाट के राग” की छठी कड़ी में आज आपने आसावरी थाट के जन्य राग गान्धारी का परिचय प्राप्त किया। राग के शास्त्रीय स्वरूप को समझने के लिए हमने आपको सुप्रसिद्ध संगीतविद प्रोफेसर बी.आर. देवधर के स्वरों में राग की एक बन्दिश सुनवाया। इसके साथ ही “स्वरगोष्ठी” की परम्परा के अनुसार हमने फिल्मी गीतों में राग गान्धारी के प्रयोग को खोजने का पर्याप्त प्रयास किया, परन्तु हमें ऐसा कोई भी गीत नहीं मिला। अन्ततः आज की कड़ी में हम आपको 1932 में रिकार्ड किया और कुन्दनलाल सहगल के स्वर में प्रस्तुत एक गैरफिल्मी गीत प्रस्तुत किया है। इस गीत में राग आसावरी के साथ राग गान्धारी का प्रयोग हुआ है। 

कुछ तकनीकी समस्या के कारण हम अपने फेसबुक के मित्र समूह पर “स्वरगोष्ठी” का लिंक साझा नहीं कर पा रहे हैं। सभी संगीत अनुरागियों से अनुरोध है कि हमारी वेबसाइट http://radioplaybackindia.com अथवा http://radioplaybackindia.blogspot.com पर क्लिक करके हमारे सभी साप्ताहिक स्तम्भों का अवलोकन करते रहें। “स्वरगोष्ठी” के वेब पेज के दाहिनी ओर निर्धारित स्थान पर अपना ई-मेल आईडी अंकित कर आप हमारे सभी पोस्ट के लिंक को नियमित रूप से अपने ई-मेल पर प्राप्त कर सकते है। “स्वरगोष्ठी” की पिछली कड़ियों के बारे में हमें अनेक पाठकों की प्रतिक्रिया लगातार मिल रही है। हमें विश्वास है कि हमारे अन्य पाठक भी “स्वरगोष्ठी” के प्रत्येक अंक का अवलोकन करते रहेंगे और अपनी प्रतिक्रिया हमें भेजते रहेंगे। आज के इस अंक अथवा श्रृंखला के बारे में यदि आपको कुछ कहना हो तो हमें अवश्य लिखें। यदि आपका कोई सुझाव या अनुरोध हो तो हमें swargoshthi@gmail.com अथवा radioplaybackindia9@gmail.com पर अवश्य लिखिए। अगले अंक में रविवार को प्रातः सात बजे “स्वरगोष्ठी” के इसी मंच पर हम एक बार फिर संगीत के सभी अनुरागियों का स्वागत करेंगे। 


प्रस्तुति : कृष्णमोहन मिश्र  


रेडियो प्लेबैक इण्डिया 
राग गान्धारी : SWARGOSHTHI – 484 : RAG GANDHARI : 18 अक्तूबर, 2020
 


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