स्वरगोष्ठी – 450 में आज
सभी पाठकों और श्रोताओं का नववर्ष 2020 के पहले अंक में अभिनन्दन
महाविजेताओं की प्रस्तुतियाँ – 1
महाविजेता मुकेश लाडिया और डी. हरिणा माधवी के सम्मान में उनकी प्रस्तुतियाँ
डी. हरिणा माधवी |
मुकेश लाडिया |
‘रेडियो
प्लेबैक इण्डिया’ के साप्ताहिक स्तम्भ ‘स्वरगोष्ठी’ के मंच पर सभी
संगीत-प्रेमियों का नववर्ष के पहले अंक में हार्दिक अभिनन्दन है। इसी अंक
से आपका प्रिय स्तम्भ ‘स्वरगोष्ठी’ दसवें वर्ष में प्रवेश कर रहा है। विगत
नौ वर्षों से असंख्य पाठकों, श्रोताओं, संगीत शिक्षकों और वरिष्ठ
संगीतज्ञों का प्यार, दुलार और मार्गदर्शन इस स्तम्भ को मिलता रहा है।
इन्टरनेट पर शास्त्रीय, उपशास्त्रीय, लोक, सुगम और फिल्म संगीत विषयक चर्चा
का सम्भवतः यह एकमात्र नियमित साप्ताहिक स्तम्भ है, जो विगत नौ वर्षों से
निरन्तरता बनाए हुए है। इस पुनीत अवसर पर मैं कृष्णमोहन मिश्र, ‘रेडियो
प्लेबैक इण्डिया’ के सम्पादक और संचालक मण्डल के सभी सदस्यों; सजीव सारथी,
सुजॉय चटर्जी, अमित तिवारी, अनुराग शर्मा, विश्वदीपक, संज्ञा टण्डन, पूजा
अनिल और रीतेश खरे के साथ अपने सभी पाठकों और श्रोताओं के प्रति आभार प्रकट
करता हूँ। आज दसवें वर्ष के इस प्रवेशांक में हम ‘स्वरगोष्ठी’ की संगीत
पहेली के पाँचवें महाविजेता मुकेश लड़िया और चौथी महाविजेता डी. हरिणा माधवी
की प्रस्तुतियों का रसास्वादन कराएँगे। इसके अलावा नववर्ष के इस प्रवेशांक
में मांगलिक अवसरों पर परम्परागत रूप से बजने वाले मंगलवाद्य शहनाई का
वादन भी प्रस्तुत करेंगे। वादक हैं, भारतरत्न के सर्वोच्च अलंकरण से
विभूषित उस्ताद बिस्मिल्लाह खाँ और राग है सर्वप्रिय भैरवी।
‘स्वरगोष्ठी’ का शुभारम्भ ठीक नौ वर्ष पूर्व ‘रेडियो प्लेबैक इण्डिया’ के
संचालक और सम्पादक मण्डल के प्रमुख सदस्य सुजॉय चटर्जी ने रविवार, 2 जनवरी
2011 को किया था। आरम्भ में यह ‘हिन्दयुग्म’ के ‘आवाज़’ मंच पर हमारे अन्य
नियमित स्तम्भों के साथ प्रकाशित हुआ करता था। उन दिनों इस स्तम्भ का
शीर्षक ‘सुर संगम’ था। दिसम्बर 2011 से हमने ‘रेडियो प्लेबैक इण्डिया’ नाम
से एक अपना नया सामूहिक मंच बनाया और पाठकों के अनुरोध पर जनवरी 2012 से इस
स्तम्भ का शीर्षक ‘स्वरगोष्ठी’ कर दिया गया। तब से हम आपसे निरन्तर यहीं
मिलते हैं। समय-समय पर आपसे मिले सुझावों के आधार पर हम अपने सभी स्तम्भों
के साथ ‘स्वरगोष्ठी’ में भी संशोधन करते रहते हैं। इस स्तम्भ के प्रवेशांक
में सुजॉय जी ने इसके उद्देश्यों पर प्रकाश डाला था। उन्होने लिखा था;
उस्ताद बिस्मिल्लाह खाँ |
“नये साल के
इस पहले रविवार की सुहानी सुबह में मैं, सुजॉय चटर्जी, आप सभी का 'आवाज़'
पर स्वागत करता हूँ। यूँ तो हमारी मुलाक़ात नियमित रूप से 'ओल्ड इज़ गोल्ड'
पर होती रहती है, लेकिन अब से मैं 'ओल्ड इज़ गोल्ड' के अलावा हर रविवार की
सुबह भी आपसे मुख़ातिब रहूँगा इस नये स्तम्भ में जिसकी हम आज से शुरुआत कर
रहे हैं। दोस्तों, प्राचीनतम संगीत की अगर हम बात करें तो वो है हमारा
शास्त्रीय संगीत, जिसका उल्लेख हमें वेदों में मिलता है। चार वेदों में
सामवेद में संगीत का व्यापक वर्णन मिलता है। इन वैदिक ऋचाओं को सामगान के
रूप में गाया जाता था। फिर उससे 'जाति' बनी और फिर आगे चलकर 'राग' बनें।
ऐसी मान्यता है कि ये अलग-अलग राग हमारे अलग-अलग 'चक्र' (ऊर्जाविन्दु) को
प्रभावित करते हैं। ये अलग-अलग राग आधार बनें शास्त्रीय संगीत का और
युगों-युगों से इस देश के सुरसाधक इस परम्परा को निरन्तर आगे बढ़ाते चले जा
रहे हैं, हमारी संस्कृति को सहेजते हुए बढ़े जा रहे हैं। संगीत की तमाम
धाराओं में सबसे महत्वपूर्ण धारा है शास्त्रीय अर्थात रागदारी संगीत। बाकी
जितनी तरह का संगीत है, उन सबमें उच्च स्थान पर है अपना रागदारी संगीत। तभी
तो संगीत की शिक्षा का अर्थ ही है शास्त्रीय संगीत की शिक्षा। अक्सर
साक्षात्कारों में कलाकार इस बात का ज़िक्र करते हैं कि एक अच्छा गायक या
संगीतकार बनने के लिए शास्त्रीय संगीत का सीखना बेहद ज़रूरी है। तो
दोस्तों, आज से 'आवाज़' पर पहली बार एक ऐसा साप्ताहिक स्तम्भ शुरु हो रहा
है जो समर्पित है, भारतीय परम्परागत शास्त्रीय संगीत को। गायन और वादन,
यानी साज़ और आवाज़, दोनों को ही बारी-बारी से इसमें शामिल किया जाएगा।
भारतीय संगीत से इस स्तम्भ की हम शुरुआत कर रहे हैं, लेकिन आगे चलकर अन्य
संगीत शैलियों को भी शामिल करने की उम्मीद रखते हैं।” तो यह सन्देश
हमारे इस स्तम्भ के प्रवेशांक का था। ‘स्वरगोष्ठी’ की कुछ और पुरानी यादों
को ताज़ा करने से पहले आज का चुना हुआ संगीत सुनते हैं। आज ‘स्वरगोष्ठी’
दसवें वर्ष में प्रवेश कर रहा है। हम इस पावन अवसर पर मंगलवाद्य शहनाई का
वादन प्रस्तुत कर रहे हैं। इस अंक में हम देश के सर्वोच्च नागरिक सम्मान
‘भारतरत्न’ से अलंकृत उस्ताद बिस्मिल्लाह खाँ की शहनाई पर बजाया राग भैरवी
प्रस्तुत कर रहे हैं।
मंगलध्वनि : राग भैरवी : शहनाई वादन : उस्ताद बिस्मिल्लाह खाँ और साथी
हमारे
दल के सर्वाधिक कर्मठ साथी सुजोय चटर्जी ने ‘स्वरगोष्ठी’ स्तम्भ की नीव
रखी थी। उद्देश्य था, शास्त्रीय और उपशास्त्रीय संगीत-प्रेमियों को एक ऐसा
मंच देना जहाँ किसी कलासाधक, प्रस्तुति अथवा किसी संगीत-विधा पर हम आपसे
संवाद कायम कर सकें और आपसे विचारों का आदान-प्रदान कर सकें। आज के 450वें
अंक के माध्यम से हम कुछ पुरानी स्मृतियों को ताज़ा कर रहे हैं। जैसा कि
पहले ही उल्लेख किया गया है कि इस स्तम्भ की बुनियाद सुजॉय चटर्जी ने रखी
थी और आठवें अंक तक अपने आलेखों के माध्यम से अनेक संगीतज्ञों के
व्यक्तित्व और कृतित्व से हमें रससिक्त किया था। नौवें अंक से हमारे एक नये
साथी सुमित चक्रवर्ती हमसे जुड़े और आपके अनुरोध पर उन्होने शास्त्रीय,
उपशास्त्रीय संगीत के साथ लोक संगीत को भी ‘सुर संगम’ से जोड़ा। सुमित जी
ने इस स्तम्भ के 30वें अंक तक आपके लिए बहुविध सामग्री प्रस्तुत की, जिसे
आप सब पाठकों-श्रोताओं ने सराहा। इसी बीच मुझ अकिंचन को भी कई विशेष अवसरों
पर कुछ अंक प्रस्तुत करने का अवसर मिला। सुमित जी की पारिवारिक और
व्यावसायिक व्यस्तता के कारण 31वें अंक से ‘सुर संगम’ का पूर्ण दायित्व
मेरे साथियों ने मुझे सौंपा। मुझ पर विश्वास करने के लिए अपने साथियों का
मैं आभारी हूँ। साथ ही अपने पाठकों-श्रोताओं का अनमोल प्रोत्साहन भी मुझे
मिला, जो आज भी जारी है।
बीते
वर्ष के अंकों में ‘स्वरगोष्ठी’ से असंख्य पाठक, श्रोता, समालोचक और
संगीतकार जुड़े। हमें उनका प्यार, दुलार और मार्गदर्शन मिला। उन सभी का
नामोल्लेख कर पाना सम्भव नहीं है। ‘स्वरगोष्ठी’ का सबसे रोचक भाग प्रत्येक
अंक में प्रकाशित होने वाली ‘संगीत पहेली’ है। इस पहेली में बीते वर्ष के
दौरान अनेक संगीत-प्रेमियों ने सहभागिता की। इन सभी उत्तरदाताओं को उनके
सही उत्तर पर प्रति सप्ताह अंक दिये गए। वर्ष के अन्त में सभी प्राप्तांकों
की गणना की की गई। 448वें अंक तक की गणना की जा चुकी है। इनमें से
सर्वाधिक अंक प्राप्त करने वाले पाँच महाविजेताओं का चयन कर लिया गया है।
आज के इस अंक में हम आपका परिचय पहेली के चौथे और पाँचवें महाविजेताओं से
करा रहे हैं। पहले, दूसरे और तीसरे महाविजेताओ का परिचय हम अगले सप्ताह
प्राप्त करेंगे।
पहेली
प्रतियोगिता में पाँचवें स्थान को सुशोभित करने वाले अहमदाबाद, गुजरात
निवासी मुकेश लाडिया हैं। मुकेश जी “स्वरगोष्ठी” के विगत लगभग दो वर्षों से
नियमित पाठक हैं। “स्वरगोष्ठी” के 378वें अंक की पहेली से उन्होने पहेली
प्रतियोगिता में भाग लेना आरम्भ किया था। मूलतः अहमदाबाद, गुजरात निवासी
मुकेश जी बीच-बीच में फीनिक्स, अमेरिका में भी प्रवास करते हैं। वह चाहे
भारत में रहें या अमेरिका में, “स्वरगोष्ठी” को पढ़ना/सुनना और पहेली
प्रतियोगिता में भाग लेना नहीं भूलते। मुकेश जी शास्त्रीय संगीत के विधिवत
कलाकार अथवा शिक्षक नहीं हैं, किन्तु संगीत के प्रेमी अवश्य हैं। पिछले 48
वर्षों से अहमदाबाद में आयोजित होने वाले प्रायः सभी संगीत समारोहों और
गोष्ठियों में शामिल होकर देश के लगभग सभी प्रतिष्ठित कलासाधकों की
प्रस्तुतियो का रसास्वादन करते रहे हैं। उन्होने वायलिन वादन की प्रारम्भिक
शिक्षा प्राप्त कर अखिल भारतीय संगीत विद्यालय की प्रवेशिका पूर्ण कक्षा
की परीक्षा उत्तीर्ण की है। इसके बाद अनेक प्रतिष्ठित कलाकारों को अनेक
माध्यमों से श्रवण कर अध्ययन किया। संगीत के प्रति अनुराग होने के साथ-साथ
मुकेश जी ने अपने पारिवारिक और व्यावसायिक दायित्वों का भी कुशलता से
निर्बहन किया है। उन्हे शास्त्रीय गायन का अभ्यास करने की ललक रही, परन्तु
इच्छानुसार अधिक नहीं कर सके। वर्तमान में 67 वर्षीय मुकेश लाडिया प्रतिदिन
रिकार्डेड अथवा सजीव माध्यम से संगीत अवश्य सुनते हैं। शास्त्रीय संगीत के
प्रति अपने ज्ञान और अनुराग के बल पर मुकेश जी ने वर्ष 2019 में
“स्वरगोष्ठी” की पहेली प्रतियोगिता में 68 अंक प्राप्त कर पाँचवाँ स्थान
प्राप्त किया। आज “महाविजेता अंक” में हम उनका हार्दिक अभिनन्दन करते हैं
और उनके सम्मान में “यू-ट्यूब” के सौजन्य से गायकी अंग में वादन करने वाली
सुप्रसिद्ध वायलिन कलासाधिका विदुषी एन. राजम् से वायलिन पर राग झिंझोटी
सुनवा रहे है।
राग झिंझोटी : वायलिन पर गायकी अंग में वादन : विदुषी एन. राजम्
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सम्पादक