सभी पाठकों को गणतन्त्र दिवस पर असंख्य मंगलकामना
स्वरगोष्ठी – 453 में आज
मारवा थाट के राग 2 : राग सोहनी 
पण्डित उल्हास कशालकर से सोहनी में खयाल और उस्ताद बड़े गुलाम अली खाँ से फिल्म “मुगल-ए-आज़म” का गीत सुनिए 
|  | 
| उस्ताद बड़े गुलाम अली खाँ | 
|  | 
| पण्डित उल्हास कशालकर | 
राग सोहनी मारवा
 थाट का बेहद लोकप्रिय राग है। सुप्रसिद्ध मयूरवीणा वादक पण्डित श्रीकुमार 
मिश्र ने राग सोहनी के बारे में बताया था कि राग सोहनी का प्रयोग खयाल और 
ठुमरी, दोनों प्रकार की गायकी में किया जाता है। ठुमरी अंग में इस राग का 
प्रयोग अधिक होता है। इस राग का प्रयोग दो प्रकार से किया जाता है। पहले 
प्रकार, औडव-षाड़व जाति के अन्तर्गत आरोह में ऋषभ और पंचम तथा अवरोह में 
पंचम का प्रयोग नहीं किया जाता। राग के दूसरे स्वरूप के आरोह में ऋषभ और 
अवरोह में पंचम का प्रयोग नहीं होता। राग सोहनी में उन्हीं स्वरों का 
प्रयोग होता है, जिनका राग पूरिया और मारवा में भी किया जाता है। किन्तु 
इसके प्रभाव और भावाभिव्यक्ति में पर्याप्त अन्तर हो जाता है। राग सोहनी का
 वादी स्वर धैवत और संवादी स्वर गान्धार होता है। धैवत पीड़ा की अभिव्यक्ति 
करने में समर्थ होता है। ‘नी सां रे(कोमल) सां’ की स्वर संगति से तीव्र 
पुकार का वातावरण निर्मित होता है। संवादी गान्धार कुछ देर के लिए इस 
उत्तेजना को शान्त कर सुकून देता है। वास्तव में वादी और संवादी स्वर राग 
के प्राणतत्त्व होते हैं, जिनसे रागों के भावों का सृजन होता है। रात्रि के
 तीसरे प्रहर में राग सोहनी के भाव अधिक स्पष्ट होते हैं। इस राग में मींड़ 
एवं गमक को कसे हुए ढंग से मध्यलय में प्रस्तुत करने से राग का भाव अधिक 
मुखरित होता है। यह चंचल प्रवृत्ति का राग है। श्रृंगार के विरह पक्ष की 
सार्थक अनुभूति कराने में यह राग समर्थ है। राग सोहनी, कर्नाटक संगीत के 
राग हंसनन्दी के समतुल्य है। यदि राग हंसनन्दी में शुद्ध ऋषभ का प्रयोग 
किया जाए तो यह ठुमरी अंग के राग सोहनी की अनुभूति कराता है। तंत्रवाद्य पर
 राग मारवा, पूरिया और सोहनी का वादन अपेक्षाकृत कम किया जाता है। अब हम 
आपको राग मारवा के यथार्थ शास्त्रीय स्वरूप की अनुभूति कराने के लिए 
सुविख्यात संगीतज्ञ पण्डित उल्हास कशालकर के स्वर में राग सोहनी में निबद्ध
 दो खयाल रचनाएँ प्रस्तुत कर रहे हैं। मध्यलय खयाल के बोल हैं; “जियरा रे कल नहीं पावे...” और द्रुतलय खयाल के बोल हैं; “देख वेख मन ललचाय...”।
 यह रिकार्डिंग हमें लखनऊ की सुप्रसिद्ध संगीत संस्था ‘आकर्षण’ के सौजन्य 
से प्राप्त हुई है। इस संस्था द्वारा 2007 में आयोजित संगीत सभा में पण्डित
 जी को आमंत्रित किया गया था। इस कार्यक्रम में उन्होने राग सोहनी की यह 
प्रस्तुतियाँ दी थी। आप राग सोहनी के खयाल सुनिए। 
राग सोहनी : खयाल : “जियरा रे...” और “देख वेख मन...” : पण्डित उल्हास कशालकर 
भारतीय
 फिल्मों के इतिहास में 1960 में प्रदर्शित, बेहद महत्त्वाकांक्षी फिल्म- 
‘मुगल-ए-आजम’, एक भव्य कृति थी। इसके निर्माता-निर्देशक के. आसिफ ने फिल्म 
की गुणबत्ता से कोई समझौता नहीं किया था। फिल्म के संगीत के लिए उन्होने 
पहले गोविन्द राम और फिर अनिल विश्वास को दायित्व दिया, परन्तु 
फिल्म-निर्माण में लगने वाले सम्भावित अधिक समय के कारण बात बनी नहीं। 
अन्ततः संगीतकार नौशाद तैयार हुए। नौशाद ने फिल्म में मुगल सल्तनत के वैभव 
को उभारने के लिए तत्कालीन दरबारी संगीत की झलक दिखाने का हर सम्भव प्रयत्न
 किया। नौशाद और के. आसिफ ने तय किया कि अकबर के नवरत्न तानसेन की मौजूदगी 
का अनुभव भी फिल्म में कराया जाए। नौशाद की दृष्टि विख्यात गायक उस्ताद बड़े
 गुलाम अली खाँ पर थी, किन्तु फिल्म में गाने के लिए उन्हें मनाना सरल नहीं
 था। पहले तो खाँ साहब ने फिल्म में गाने से साफ मना कर दिया, परन्तु जब 
दबाव बढ़ा तो टालने के इरादे से, एक गीत के लिए 25 हजार रुपये की माँग की। 
खाँ साहब ने सोचा कि एक गीत के लिए इतनी बड़ी धनराशि देने के लिए निर्माता 
तैयार नहीं होंगे। यह उस समय की एक बड़ी धनराशि थी, परन्तु के. आसिफ ने 
तत्काल हामी भर दी। नौशाद ने शकील बदायूनी से प्रसंग के अनुकूल गीत लिखने 
को कहा। गीत तैयार हो जाने पर नौशाद ने खाँ साहब को गीत सौंप दिया। उस्ताद 
बड़े गुलाम अली खाँ ने ठुमरी अंग की गायकी में अधिक प्रयोग किए जाने वाले 
राग सोहनी, दीपचन्दी ताल में निबद्ध कर गीत; ‘प्रेम जोगन बन के...’ 
को रिकार्ड कराया। रिकार्डिंग से पहले खाँ साहब ने वह दृश्य देखने की इच्छा
 भी जताई, जिस पर इस गीत को शामिल करना था। मधुबाला और दिलीप कुमार के उन 
प्रसंगों को देख कर उन्होने अपने गायन में कुछ परिवर्तन भी किये। इस प्रकार
 भारतीय फिल्म-संगीत-इतिहास में राग सोहनी के स्वरों में ढला एक अनूठा गीत 
शामिल हुआ। उस्ताद बड़े गुलाम अली खाँ द्वारा राग सोहनी के स्वरों में 
पिरोया यह गीत नौशाद और के. आसिफ को इतना पसन्द आया कि उन्होने खाँ साहब को
 दोबारा 25 हजार रुपये भेंट करते हुए एक और गीत गाने का अनुरोध किया। खाँ 
साहब का फिल्म में राग रागेश्री, तीनताल में निबद्ध दूसरा गीत गाया - ‘शुभ दिन आयो राजदुलारा...’।
 ये दोनों गीत फिल्म संगीत के इतिहास के सर्वाधिक उल्लेखनीय किन्तु सबसे 
खर्चीले गीत सिद्ध हुए। लीजिए, आप उस्ताद बड़े गुलाम अली खाँ द्वारा राग 
सोहनी के स्वरों में ढला यह गीत सुनिए और हमें आज के इस अंक को यहीं विराम 
देने की अनुमति दीजिए।   
राग सोहनी : “प्रेम जोगन बन के...” : उस्ताद बड़े गुलाम अली खाँ : फिल्म – मुगल-ए-आजम 
संगीत पहेली 
 
‘स्वरगोष्ठी’
 के 453वें अंक की संगीत पहेली में आज हम आपको वर्ष 1985 में प्रदर्शित एक 
फिल्म के गीत का अंश सुनवा रहे हैं। गीत के इस अंश को सुन कर आपको दो अंक 
अर्जित करने के लिए निम्नलिखित तीन में से कम से कम दो प्रश्नों के सही 
उत्तर देना आवश्यक हैं। यदि आपको तीन में से केवल एक अथवा तीनों प्रश्नों 
का उत्तर ज्ञात हो तो भी आप प्रतियोगिता में भाग ले सकते हैं। 460वें अंक 
की पहेली तक जिस प्रतिभागी के सर्वाधिक अंक होंगे उन्हें वर्ष के प्रथम 
सत्र का विजेता घोषित किया जाएगा। इसके साथ ही पूरे वर्ष के प्राप्तांकों 
की गणना के बाद वर्ष के अन्त में महाविजेताओं की घोषणा की जाएगी और उन्हें 
सम्मानित भी किया जाएगा। 
1 - इस गीतांश को सुन कर बताइए कि इसमें किस राग का स्पर्श है? 
2 – इस गीत में प्रयोग किये गए ताल को पहचानिए और उसका नाम बताइए। 
3 – इस गीत में किस गायक/गायिका के युगल स्वर हैं? 
आप उपरोक्त तीन मे से किन्हीं दो प्रश्नों के उत्तर केवल swargoshthi@gmail.com या radioplaybackindia9@gmail.com
 पर ही शनिवार 1 फरवरी, 2020 की मध्यरात्रि से पूर्व तक भेजें। आपको यदि 
उपरोक्त तीन में से केवल एक प्रश्न का सही उत्तर ज्ञात हो तो भी आप पहेली 
प्रतियोगिता में भाग ले सकते हैं। COMMENTS
 में दिये गए उत्तर मान्य हो सकते हैं, किन्तु उसका प्रकाशन पहेली का उत्तर
 देने की अन्तिम तिथि के बाद किया जाएगा। फेसबुक पर पहेली कौततार स्वीकार 
नहीं किया जाएगा। विजेताओं के नाम हम उनके शहर/ग्राम, प्रदेश और देश के नाम
 के साथ “स्वरगोष्ठी” के अंक संख्या 455 में प्रकाशित करेंगे। इस अंक में 
प्रस्तुत गीत, संगीत या कलाकार के बारे में यदि आप कोई जानकारी या अपने 
किसी अनुभव को हम सबके बीच बाँटना चाहते हैं तो हम आपका इस संगोष्ठी में 
स्वागत करते हैं। आप पृष्ठ के नीचे दिये गए COMMENTS के माध्यम से तथा swargoshthi@gmail.com अथवा radioplaybackindia9@gmail.com पर भी अपनी प्रतिक्रिया व्यक्त कर सकते हैं। 
पिछली पहेली के सही उत्तर और विजेता 
 
“स्वरगोष्ठी”
 के 451वें अंक में हमने आपसे 1966 में प्रदर्शित फिल्म “साज और आवाज़” से 
एक राग आधारित गीत का अंश सुनवा कर आपसे तीन में से कम से कम दो सही 
उत्तरों की अपेक्षा की थी। पहेली के पहले प्रश्न का सही उत्तर है; राग – मारवा, दूसरे प्रश्न का सही उत्तर है; ताल – तीनताल व कहरवा तथा तीसरे प्रश्न का सही उत्तर है; स्वर – लता मंगेशकर और साथी। 
‘स्वरगोष्ठी’ की इस पहेली का सही उत्तर देने वाले हमारे विजेता हैं; वोरहीज, न्यूजर्सी से डॉ. किरीट छाया, चेरीहिल न्यूजर्सी से प्रफुल्ल पटेल, जबलपुर, मध्यप्रदेश से क्षिति तिवारी, अहमदाबाद, गुजरात से मुकेश लाडिया और हैदराबाद से डी. हरिणा माधवी।
 उपरोक्त सभी प्रतिभागियों को दो-दो अंक मिलते हैं। सभी विजेताओं को 
‘रेडियो प्लेबैक इण्डिया’ की ओर से हार्दिक बधाई। सभी प्रतिभागियों से 
अनुरोध है कि अपने पते के साथ कृपया अपना उत्तर ई-मेल से ही भेजा करें। इस 
पहेली प्रतियोगिता में हमारे नए प्रतिभागी भी हिस्सा ले सकते हैं। यह 
आवश्यक नहीं है कि आपको पहेली के तीनों प्रश्नों के सही उत्तर ज्ञात हो। 
यदि आपको पहेली का कोई एक उत्तर भी ज्ञात हो तो भी आप इसमें भाग ले सकते 
हैं।    
अपनी बात 
मित्रों,
 ‘रेडियो प्लेबैक इण्डिया’ के साप्ताहिक स्तम्भ ‘स्वरगोष्ठी’ पर जारी हमारी
 श्रृंखला “मारवा थाट के राग” की पहली कड़ी में आज आपने मारवा थाट के जन्य 
राग सोहनी का परिचय प्राप्त किया। साथ ही इस राग के शास्त्रीय स्वरूप को 
समझने के लिए आपने सुविख्यात संगीतज्ञ पण्डित उल्हास कशालकर से इस राग में 
निबद्ध खयाल रचना का रसास्वादन किया। राग सोहनी के आधार पर रचे गए फिल्मी 
गीत के उदाहरण के लिए हमने आपके लिए सुप्रसिद्ध फिल्म “मुगल-ए-आजम” का एक 
गीत प्रस्तुत किया, जिसे उस्ताद बड़े गुलाम अली खाँ ने स्वर दिया है। फिल्म 
के संगीतकार नौशाद हैं। अगले अंक में हम मारवा थाट के एक अन्य जन्य राग का 
परिचय प्रस्तुत करेंगे। कुछ तकनीकी समस्या के कारण अपने फेसबुक के मित्र 
समूह पर हम “स्वरगोष्ठी” का लिंक साझा नहीं कर पा रहे हैं। सभी संगीत 
अनुरागियों से अनुरोध है कि हमारी वेबसाइट http://radioplaybackindia.com अथवा http://radioplaybackindia.blogspot.com
 पर क्लिक करके हमारे सभी साप्ताहिक स्तम्भों का अवलोकन करते रहें। 
“स्वरगोष्ठी” की पिछली कड़ियों के बारे में हमें अनेक पाठकों की प्रतिक्रिया
 लगातार मिल रही है। हमें विश्वास है कि हमारे अन्य पाठक भी “स्वरगोष्ठी” 
के प्रत्येक अंक का अवलोकन करते रहेंगे और अपनी प्रतिक्रिया हमें भेजते 
रहेंगे। आज के इस अंक अथवा श्रृंखला के बारे में यदि आपको कुछ कहना हो तो 
हमें अवश्य लिखें। यदि आपका कोई सुझाव या अनुरोध हो तो हमें swargoshthi@gmail.com अथवा radioplaybackindia9@gmail.com
 पर अवश्य लिखिए। अगले अंक में रविवार को प्रातः सात बजे “स्वरगोष्ठी” के 
इसी मंच पर एक बार फिर संगीत के सभी अनुरागियों का स्वागत करेंगे। 
प्रस्तुति : कृष्णमोहन मिश्र   
 राग सोहनी : SWARGOSHTHI 453 : RAG SOHANI : 26 जनवरी, 2019
 
 
Comments