स्वरगोष्ठी – 420 में आज
खमाज थाट के राग – 1 : राग खमाज
उस्ताद निसार हुसैन खाँ से इस राग में खयाल और मन्ना डे से फिल्मी गीत सुनिए
उस्ताद निसार हुसैन खाँ |
मन्ना डे |
आज से आरम्भ हो रही है हमारी श्रृंखला, “खमाज थाट के राग”। खमाज थाट के स्वर होते हैं - सा, रे ग, म, प ध, नि॒।
अर्थात इस थाट में निषाद स्वर कोमल और शेष सभी स्वर शुद्ध होते हैं। इस
थाट का आश्रय राग ‘खमाज’ कहलाता है। ‘खमाज’ राग में थाट के अनुकूल निषाद
कोमल और शेष सभी स्वर शुद्ध होते हैं। यह षाड़व-सम्पूर्ण जाति का राग है।
अर्थात राग के आरोह में छः स्वर और अवरोह में सात स्वर प्रयोग किये जाते
हैं। राग खमाज के आरोह में सा, ग, म, प, ध नि सां और अवरोह में सां, नि, ध, प, म, ग, रे, सा
स्वरों का प्रयोग होता है। आरोह में ऋषभ स्वर नहीं लगता। राग में दोनों
निषाद का प्रयोग होता है। आरोह में शुद्ध निषाद और अवरोह में कोमल निषाद
लगाया जाता है। वादी स्वर गान्धार और संवादी स्वर निषाद होता है। इस राग के
गायन-वादन का समय रात्रि का दूसरा प्रहर होता है। राग खमाज का उदाहरण
प्रस्तुत करने के लिए हमने रामपुर सहसवान घराने के प्रमुख स्तम्भ उस्ताद
निसार हुसैन खाँ (1909-1993) द्वारा प्रस्तुत एक दुर्लभ बन्दिश का चुनाव
किया है। राग खमाज की यह अनमोल रचना 1929 में रिकार्ड की गई थी। उस्ताद
निसार हुसेन खाँ को अपने पिता और गुरु उस्ताद फिदा हुसेन खाँ से संगीत
विरासत में प्राप्त हुआ था। बहुत छोटी आयु में उन्हें बड़ौदा के महाराज
सयाजी राव गायकवाड़ के दरबारी संगीतज्ञ होने का गौरव प्राप्त हुआ था। आगे
चलकर खाँ साहब ‘आकाशवाणी’ से भी जुड़े। 1977 में उन्हें आई.टी.सी. संगीत
रिसर्च अकादमी, कोलकाता में प्रधान गुरु नियुक्त किया गया। यहाँ रह कर
उन्होने उस्ताद राशिद खाँ सहित अनेक योग्य शिष्यो को तैयार किया। भारत
सरकार द्वारा 1970 में उन्हें ‘पद्मभूषण’ सम्मान से विभूषित किया गया। इसके
अलावा खाँ साहब को संगीत नाटक अकादमी पुरस्कार, तानसेन सम्मान सहित
गन्धर्व महाविद्यालय से डाक्टरेट की उपाधि से भी नवाजा गया था। आइए गायकी
के इस शिखर-पुरुष की आवाज़ में सुनते हैं, राग खमाज की यह बन्दिश।
राग खमाज : ‘कोयलिया कूक सुनावे...’ : उस्ताद निसार हुसेन खाँ
आज
के अंक में राग खमाज पर आधारित जिस फिल्मी गीत का रसास्वादन करा रहे हैं,
उसके बारे में फिल्मी गीतों के सुप्रसिद्ध इतिहासकार सुजॉय चटर्जी लिखते
हैं; ठुमरी उपशास्त्रीय संगीत की एक लोकप्रिय शैली है जो मुख्यतः राधा और
कृष्ण का प्रेमगीत है। ठुमरी केवल गायक-गायिकाएँ ही नहीं गाती हैं बल्कि इस
पर कथक शैली में नृत्य भी किया जाता है। श्रृंगार रस, यानी कि प्रेम रस की
एक महत्वपूर्ण मिसाल है ठुमरी। ठुमरी को कई रागों में गाया जा सकता है।
राग खमाज में एक बेहद मशहूर ठुमरी है "कौन गली गयो श्याम..."।
समय-समय पर इसे अनेक गायक-गायिकाओं ने गाया है। फिल्म में भी इसे जगह मिली
है। जैसे कि कमाल अमरोही ने अपनी महत्वकांक्षी फिल्म "पाकीजा" में परवीन
सुल्ताना से यह ठुमरी गवायी थी। आज के अंक में हम आपको एक पारम्परिक ठुमरी
से प्रेरित एक लोकप्रिय फिल्मी गीत सुनवा रहे हैं फिल्म "बुड्ढा मिल गया"
से। 1971 में बनी फिल्म "बुड्ढा मिल गया" में राहुल देव बर्मन का संगीत था।
इस फिल्म में "रात कली एक ख्वाब में आई" और "भली भली सी एक सूरत" जैसे गाने बेहद मशहूर हुए थे, लेकिन इसमें मन्ना डे और अर्चना का गाया ठुमरी के रंग में ढाला हुआ "आयो कहाँ ते घनश्याम, रैना बिताई किस धाम"
भी काफ़ी चर्चित हुआ था। शास्त्रीय संगीत पर आधारित गीत को आम लोगों में
लोकप्रिय बनाने में जिन संगीतकारों को महारत हासिल थी उनमें से एक पंचम भी
थे। यूँ तो राग खमाज पर कई लोकप्रिय गीत बने हैं जैसे कि "अमर प्रेम" फिल्म
का "बडा नट्खट है रे कृष्ण कन्हैया...", इसी फिल्म से "कुछ तो लोग कहेंगे...", "काला पानी" फिल्म का "नज़र लागी राजा तोरे बंगले पर...", और फिर वो प्रसिद्ध भजन "वैष्णवा जन तो तेने कहिए...",
और भी कई गीत हैं, लेकिन "बुड्ढा मिल गया" फिल्म का यह गीत भी अपने आप में
अनूठा है, बेजोड़ है। यूँ तो पूरे गीत में मन्ना डे की आवाज़ है, बस आखिर
में अर्चना, जो की इस फिल्म की अभिनेत्री भी हैं, एक लाइन गाती हैं और गीत
समाप्त हो जाता है. तो लीजिए पेश है "आयो कहाँ ते घनश्याम..."।
राग खमाज : “आयो कहाँ ते घनश्याम...” : मन्ना डे और अर्चना : फिल्म – बुड्ढा मिल गया
संगीत पहेली
“स्वरगोष्ठी”
के 420वें अंक की संगीत पहेली में आज हम आपको वर्ष 1985 में प्रदर्शित एक
फिल्म के राग आधारित गीत का अंश सुनवा रहे हैं। गीत के इस अंश को सुन कर
आपको दो अंक अर्जित करने के लिए निम्नलिखित तीन में से कम से कम दो
प्रश्नों के सही उत्तर देने आवश्यक हैं। यदि आपको तीन में से केवल एक अथवा
तीनों प्रश्नों का उत्तर ज्ञात हो तो भी आप प्रतियोगिता में भाग ले सकते
हैं। इस अंक की पहेली का उत्तर आने तक जिस प्रतिभागी के सर्वाधिक अंक
होंगे, उन्हें वर्ष 2019 के दूसरे सत्र का विजेता घोषित किया जाएगा। इसके
साथ ही पूरे वर्ष के प्राप्तांकों की गणना के बाद वर्ष के अन्त में
महाविजेताओं की घोषणा की जाएगी और उन्हें सम्मानित भी किया जाएगा।
1 – इस गीतांश को सुन कर बताइए कि इसमें किस राग का स्पर्श है?
2 – इस गीत में प्रयोग किये गए ताल को पहचानिए और उसका नाम बताइए।
3 – इस गीत में किन युगलगायकों के स्वर हैं?
आप उपरोक्त तीन मे से किन्हीं दो प्रश्नों के उत्तर केवल swargoshthi@gmail.com या radioplaybackindia@live.com
पर ही शनिवार, 25 मई, 2019 की मध्यरात्रि से पूर्व तक भेजें। आपको यदि
उपरोक्त तीन में से केवल एक प्रश्न का सही उत्तर ज्ञात हो तो भी आप पहेली
प्रतियोगिता में भाग ले सकते हैं। COMMENTS
में दिये गए उत्तर मान्य हो सकते हैं, किन्तु उसका प्रकाशन पहेली का उत्तर
देने की अन्तिम तिथि के बाद किया जाएगा। “फेसबुक” पर पहेली का उत्तर
स्वीकार नहीं किया जाएगा। विजेता का नाम हम उनके शहर, प्रदेश और देश के नाम
के साथ ‘स्वरगोष्ठी’ के अंक संख्या 422 में प्रकाशित करेंगे। इस अंक में
प्रस्तुत गीत-संगीत, राग, अथवा कलासाधक के बारे में यदि आप कोई जानकारी या
अपने किसी अनुभव को हम सबके बीच बाँटना चाहते हैं तो हम आपका इस संगोष्ठी
में स्वागत करते हैं। आप पृष्ठ के नीचे दिये गए COMMENTS के माध्यम से तथा swargoshthi@gmail.com अथवा radioplaybackindia@live.com पर भी अपनी प्रतिक्रिया व्यक्त कर सकते हैं।
पिछली पहेली के सही उत्तर और विजेता
‘स्वरगोष्ठी’
के 418वें अंक की पहेली में हमने आपसे वर्ष 1972 में प्रदर्शित फिल्म
“बावर्ची” के एक गीत का एक अंश सुनवा कर तीन प्रश्नों में से पूर्ण अंक
प्राप्त करने के लिए कम से कम दो प्रश्नों के सही उत्तर की अपेक्षा की थी।
पहेली के पहले प्रश्न का सही उत्तर है; राग – अल्हैया बिलावल, दूसरे प्रश्न का सही उत्तर है; ताल – तीनताल व सितारखानी और तीसरे प्रश्न का सही उत्तर है; स्वर – मन्ना डे, लक्ष्मी शंकर और निर्मला देवी।
‘स्वरगोष्ठी’ की इस पहेली का सही उत्तर देने वाले हमारे विजेता हैं; वोरहीज, न्यूजर्सी से डॉ. किरीट छाया, कल्याण, महाराष्ट्र से शुभा खाण्डेकर, चेरीहिल न्यूजर्सी से प्रफुल्ल पटेल, अहमदाबाद, गुजरात से मुकेश लाडिया, जबलपुर, मध्यप्रदेश से क्षिति तिवारी और हैदराबाद से डी. हरिणा माधवी।
उपरोक्त सभी प्रतिभागियों को ‘रेडियो प्लेबैक इण्डिया’ की ओर से हार्दिक
बधाई। सभी प्रतिभागियों से अनुरोध है कि अपने पते के साथ कृपया अपना उत्तर
ई-मेल से ही भेजा करें। इस पहेली प्रतियोगिता में हमारे नये प्रतिभागी भी
हिस्सा ले सकते हैं। यह आवश्यक नहीं है कि आपको पहेली के तीनों प्रश्नों के
सही उत्तर ज्ञात हो। यदि आपको पहेली का कोई एक भी उत्तर ज्ञात हो तो भी आप
इसमें भाग ले सकते हैं।
अपनी बात
“हिन्दी सिने राग इन्साइक्लोपीडिया” भाग -3 का मुखपृष्ठ |
‘रेडियो
प्लेबैक इण्डिया’ के साप्ताहिक स्तम्भ ‘स्वरगोष्ठी’ पर नई श्रृंखला “खमाज
थाट के राग” की पहली कड़ी में आज आपने खमाज थाट के जनक राग “खमाज” का परिचय
प्राप्त किया। साथ ही इस राग के शास्त्रीय स्वरूप को समझने के लिए
सुविख्यात संगीतज्ञ उस्ताद निसार हुसैन खाँ द्वारा प्रस्तुत एक खयाल रचना
का रसास्वादन किया। इसके बाद इसी राग पर आधारित फिल्म “बुड्ढा मिल गया” से
एक ठुमरीनुमा मोहक गीत मन्ना डे और अर्चना के स्वरों में सुनवाया। संगीतकार
राहुलदेव बर्मन ने इस गीत को राग खमाज के स्वरों में पिरोया है।
“स्वरगोष्ठी” पर हमारी पिछली कड़ियों के बारे में हमें अनेक पाठकों की
प्रतिक्रिया लगातार मिल रही है। हमें विश्वास है कि हमारे अन्य पाठक भी
“स्वरगोष्ठी” के प्रत्येक अंक का अवलोकन करते रहेंगे और अपनी प्रतिक्रिया
हमें भेजते रहेगे। आज के अंक और श्रृंखला के बारे में यदि आपको कुछ कहना हो
तो हमें अवश्य लिखें। हमारी वर्तमान अथवा अगली श्रृंखला के लिए यदि आपका
कोई सुझाव या अनुरोध हो तो हमें swargoshthi@gmail.com
पर अवश्य लिखिए। अगले अंक में रविवार को प्रातः 7 बजे हम ‘स्वरगोष्ठी’ के
इसी मंच पर एक बार फिर सभी संगीत-प्रेमियों का स्वागत करेंगे।
प्रस्तुति : कृष्णमोहन मिश्र
राग खमाज : SWARGOSHTHI – 420 : RAG KHAMAJ : 19 मई, 2019
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