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राग रागेश्वरी : SWARGOSHTHI – 378 : RAG RAGESHWARI









स्वरगोष्ठी – 378 में आज

राग से रोगोपचार – 7 : रात्रि के दूसरे प्रहर का राग रागेश्वरी

सकारात्मक ठहराव लाने और अनिद्रा के उपचार में सहायक है राग रागेश्वरी




परवीन सुल्ताना
लता मंगेशकर
‘रेडियो प्लेबैक इण्डिया’ के साप्ताहिक स्तम्भ ‘स्वरगोष्ठी’ के मंच पर जारी हमारी श्रृंखला “राग से रोगोपचार” की सातवीं कड़ी में मैं कृष्णमोहन मिश्र, इस श्रृंखला के लेखक, संगीतज्ञ और इसराज तथा मयूरवीणा के सुविख्यात वादक पण्डित श्रीकुमार मिश्र के साथ आप सब संगीत-प्रेमियों का हार्दिक स्वागत करता हूँ। मानव का शरीर प्रकृति की अनुपम देन है। बाहरी वातावरण के प्रतिकूल प्रभाव से मानव के तन और मन में प्रायः कुछ विकृतियाँ उत्पन्न हो जाती हैं। इन विकृतियों को दूर करने के लिए हम विभिन्न चिकित्सा पद्धतियों की शरण में जाते हैं। पूरे विश्व में रोगोपचार की अनेक पद्धतियाँ प्रचलित है। भारत में हजारों वर्षों से योग से रोगोपचार की परम्परा जारी है। प्राणायाम का तो पूरा आधार ही श्वसन क्रिया पर केन्द्रित होता है। संगीत में स्वरोच्चार भी श्वसन क्रिया पर केन्द्रित होते हैं। भारतीय संगीत में 7 शुद्ध, 4 कोमल और 1 तीव्र, अर्थात कुल 12 स्वरों का प्रयोग होता है। इन्हीं स्वरों के संयोजन से राग की उत्पत्ति होती है। स्वर-योग या श्रव्य माध्यम से गायन या वादन के सुरीले, भावप्रधान और प्रभावकारी नाद अर्थात संगीत हमारे मस्तिष्क के संवेदनशील भागों में प्रवेश करता है। मस्तिष्क में नाद के प्रभाव का विश्लेषण होता है। ग्राह्य और उपयोगी नाद को मस्तिष्क सुरक्षित कर लेता है जहाँ नाद की परमाणु ऊर्जा के प्रभाव से सशक्त और उत्तम कोटि के हारमोन्स का सृजन होता है। यह हारमोन्स शरीर की समस्त कोशिकाओं में व्याप्त हो जाता है। इसकी ऊर्जा से अनेक मानसिक और मनोदैहिक समस्याओं का उपचार सम्भव हो सकता है। इसके साथ ही चिकित्सक के सुझावानुसार औषधियों का सेवन भी आवश्यक हो सकता है। मन की शान्ति, सकारात्मक तथा मृदु संवेदना और भक्ति में एकाग्रता के लिए राग भैरवी के कोमल स्वर प्रभावकारी सिद्ध होते हैं। इसी प्रकार विविध रागों के गातन-वादन के माध्यम से प्रातःकाल से रात्रिकालीन परिवेश में प्रभावकारी होता है। अलग-अलग स्वर-भावों और गीत के साहित्य के रसों के अनुसार उत्पन्न सशक्त भाव-प्रवाह के द्वारा डिप्रेशन, तनाव, चिन्ताविकृति आदि मानसिक समस्याओं का उपचार सम्भव है। इस श्रृंखला में हम विभिन्न रागो के स्वरो से उत्पन्न प्रभावों का क्रमशः विवेचन कर रहे हैं। श्रृंखला के सातवें अंक में आज हम राग रागेश्वरी के स्वरो से विभिन्न रोगों के उपचार पर चर्चा करेंगे और आपको सुविख्यात गायिका विदुषी परवीन सुल्ताना के स्वर में राग रागेश्वरी में निबद्ध एक आकर्षक खयाल सुनवाएँगे। इसके साथ ही “स्वरगोष्ठी” की परम्परा के अनुसार 1953 में प्रदर्शित फिल्म “अनारकली” से इसी राग में पिरोया एक मधुर गीत लता मंगेशकर के स्वर में प्रस्तुत करेंगे।



संगीत-मार्तण्ड पण्डित ओंकारनाथ ठाकुर की पद्धति के अनुसार राग रागेश्वरी के आरोह में सा, ग, म, ध, नि, सां और अवरोह में सां, नि॒, ध, म, ग, म, रे सा स्वरों का प्रयोग किया जाता है। इस राग का वादी स्वर गान्धार और संवादी स्वर कोमल निषाद होता है। इसका सटीक समय रात्रि 10 बजे से 11 बजे तक है। ग, म, रे, सा स्वरों द्वारा भावनात्मक व सकारात्मक ठहराव महसूस हो सकता है। इस प्रकार यह उपचार मरीज पर्याप्त शान्ति प्रदान कर सकता है। पीड़ित व्यक्ति को निद्रा का आनन्द प्रदान कराने के लिए रात्रि 11 से 12.30 बजे के मध्य राग मालकौंस का श्रवण लाभदायक हो सकता है। राग रागेश्वरी से भी निद्रा आ सकती है। इस राग में मध्यम स्वर का गाम्भीर्य एकाग्रता व निद्रा की स्थितियाँ ला सकता है। मनोभौतिक व्याधियों; धड़कन, उच्चरक्तचाप, उदर विकार आदि समस्याओं का निदान भी इस राग के स्वरात्मक व कलाकार के भावानुसार अभिव्यक्त सजीव सांगीतिक प्रभावों के द्वारा सम्भव हो सकता है।

अब हम आपको राग रागेश्वरी में निबद्ध एक मनमोहक रचना सुनवाते हैं। इसे विख्यात गायिका विदुषी परवीन सुल्ताना ने प्रस्तुत किया है। खयाल, ठुमरी और भजन गायन में सिद्ध विदुषी परवीन सुल्ताना का जन्म 14 जुलाई, 1950 असम के नौगाँव जिलान्तर्गत डाकापट्टी नामक स्थान पर एक संगीत-प्रेमी परिवार में हुआ था। संगीत की प्रारम्भिक शिक्षा उन्हें अपने पिता इकरामुल मजीद और दादा मोहम्मद नजीब खाँ से प्राप्त हुई। बाद में 1973 से कोलकाता के सुप्रसिद्ध गुरु पण्डित चिन्मय लाहिड़ी से उन्हें संगीत का विधिवत मार्गदर्शन प्राप्त हुआ। पटियाला घराने के गायक उस्ताद दिलशाद खाँ से भी उन्हें संगीत की बारीकियाँ सीखने का अवसर मिला। आगे चल इन्हीं दिलशाद खाँ से उनका विवाह भी हुआ। परवीन सुल्ताना ने पहली मंच-प्रस्तुति 1962 में मात्र 12 वर्ष की आयु में दी थी। 1965 से ही उनके ग्रामोफोन रेकार्ड बनने लगे थे। उन्होने कई फिल्मों में पार्श्वगायन भी किया है। फिल्म दो बूँद पानी, पाकीजा, कुदरत और गदर के गाये गीत अत्यन्त लोकप्रिय हुए थे। 1976 में मात्र 25 वर्ष की आयु में उन्हें ‘पद्मश्री’ सम्मान से नवाजा गया। 1981 में फिल्म ‘कुदरत’ में गाये गीत के लिए परवीन जी को श्रेष्ठ पार्श्वगायिका का फिल्मफेयर पुरस्कार प्राप्त हुआ। 1986 में उन्हें तानसेन सम्मान और 1999 में संगीत नाटक अकादमी पुरस्कार मिला। इस वर्ष (2014) उन्हें ‘पद्मभूषण’सम्मान से अलंकृत किया गया। परवीन जी के गायन में उनकी तानें तीनों सप्तकों में फर्राटेदार चलती हैं। आइए इनकी आवाज़ में सुनते हैं राग रागेश्वरी में निबद्ध एक मोहक खयाल रचना।

राग रागेश्वरी : “देत बधाई साईं को...” : विदुषी परवीन सुलताना


राग रागेश्वरी खमाज थाट का राग माना जाता है। इसमें निषाद स्वर कोमल प्रयोग किया जाता है। राग में पंचम स्वर बिल्कुल वर्जित होता है और आरोह में ऋषभ वर्जित होता है। इसीलिए इस राग की जाति औड़व-षाड़व होती है। राग का वादी स्वर गान्धार और संवादी स्वर निषाद होता है। राग रागेश्वरी के गायन-वादन का उपयुक्त समय रात्रि का दूसरा प्रहर माना जाता है। राग रागेश्वरी का एक दूसरा प्रकार भी होता है, जिसके आरोह में शुद्ध निषाद और अवरोह में कोमल निषाद स्वर का प्रयोग किया जाता है, किन्तु मन्द्र सप्तक में सदैव कोमल निषाद स्वर का प्रयोग किया जाता है। कोमल निषाद स्वर की रागेश्वरी अधिक प्रचलित है। इस राग में धैवत और गान्धार की संगति अत्यन्त मनोरंजक होती है। अवरोह में कभी-कभी गान्धार स्वर का वक्र प्रयोग कर लिया जाता है। राग बागेश्री और मालगुंजी इस राग के समप्रकृति राग हैं। राग रागेश्वरी पर आधारित एक फिल्मी गीत अब आप सुनिए। लता मंगेशकर के स्वर में प्रस्तुत इस गीत को हमने 1953 में प्रदर्शित फिल्म “अनारकली” से लिया है। फिल्म के संगीतकार सी. रामचन्द्र हैं। आप यह गीत सुनिए और हमे आज के इस अंक को यहीं विराम देने की अनुमति दें।

राग रागेश्वरी : “मोहब्बत ऐसी धड़कन है...” : लता मंगेशकर : फिल्म – अनारकली



संगीत पहेली

‘स्वरगोष्ठी’ के 378वें अंक की संगीत पहेली में आज हम आपको वर्ष 1961 में प्रदर्शित एक फिल्म से रागबद्ध गीत का अंश सुनवा रहे हैं। गीत के इस अंश को सुन कर आपको दो अंक अर्जित करने के लिए निम्नलिखित तीन में से कम से कम दो प्रश्नों के उत्तर देने आवश्यक हैं। यदि आपको तीन में से केवल एक अथवा तीनों प्रश्नों का उत्तर ज्ञात हो तो भी आप प्रतियोगिता में भाग ले सकते हैं। 380वें अंक की ‘स्वरगोष्ठी’ तक जिस प्रतिभागी के सर्वाधिक अंक होंगे, उन्हें वर्ष 2018 के तीसरे सत्र का विजेता घोषित किया जाएगा। इसके साथ ही पूरे वर्ष के प्राप्तांकों की गणना के बाद वर्ष के अन्त में महाविजेताओं की घोषणा की जाएगी और उन्हें सम्मानित भी किया जाएगा।





1 – इस गीतांश को सुन कर बताइए कि इसमें किस राग की छाया है?

2 – इस गीत में प्रयोग किये गए ताल को पहचानिए और उसका नाम बताइए।

3 – इस गीत में किस पार्श्वगायिका के स्वर है।?

आप उपरोक्त तीन मे से किन्हीं दो प्रश्नों के उत्तर केवल swargoshthi@gmail.com या radioplaybackindia@live.com पर ही शनिवार, 4 अगस्त, 2018 की मध्यरात्रि से पूर्व तक भेजें। आपको यदि उपरोक्त तीन में से केवल एक प्रश्न का सही उत्तर ज्ञात हो तो भी आप पहेली प्रतियोगिता में भाग ले सकते हैं। COMMENTS में दिये गए उत्तर मान्य हो सकते हैं, किन्तु उसका प्रकाशन पहेली का उत्तर देने की अन्तिम तिथि के बाद किया जाएगा। “फेसबुक” पर पहेली का उत्तर स्वीकार नहीं किया जाएगा। विजेता का नाम हम उनके शहर, प्रदेश और देश के नाम के साथ ‘स्वरगोष्ठी’ के 380वें अंक में प्रकाशित करेंगे। इस अंक में प्रस्तुत गीत-संगीत, राग, अथवा कलासाधक के बारे में यदि आप कोई जानकारी या अपने किसी अनुभव को हम सबके बीच बाँटना चाहते हैं तो हम आपका इस संगोष्ठी में स्वागत करते हैं। आप पृष्ठ के नीचे दिये गए COMMENTS के माध्यम से तथा swargoshthi@gmail.com अथवा radioplaybackindia@live.com पर भी अपनी प्रतिक्रिया व्यक्त कर सकते हैं।


पिछली पहेली के विजेता

‘स्वरगोष्ठी’ की 376वें अंक की संगीत पहेली में हमने आपको वर्ष 1962 में प्रदर्शित फिल्म “प्राइवेट सेक्रेटरी” के एक रागबद्ध गीत का अंश सुनवा कर आपसे तीन में से किसी दो प्रश्न के उत्तर पूछा था। पहले प्रश्न का सही उत्तर है; राग – बागेश्री, दूसरे प्रश्न का सही उत्तर है; ताल एकताल और दादरा और तीसरे प्रश्न का सही उत्तर है; स्वर – मन्ना डे

“स्वरगोष्ठी” की इस पहेली प्रतियोगिता में तीनों अथवा तीन में से दो प्रश्नो के सही उत्तर देकर विजेता बने हैं; लखीमपुर खीरी, उत्तर प्रदेश से सत्येन्द्र दुबे, कल्याण, महाराष्ट्र से शुभा खाण्डेकर, वोरहीज, न्यूजर्सी से डॉ. किरीट छाया, चेरीहिल न्यूजर्सी से प्रफुल्ल पटेल, पेंसिलवेनिया, अमेरिका से विजया राजकोटिया, जबलपुर, मध्यप्रदेश से क्षिति तिवारी और हैदराबाद से डी. हरिणा माधवी। उपरोक्त सभी प्रतिभागियों को ‘रेडियो प्लेबैक इण्डिया’ की ओर से हार्दिक बधाई। सभी प्रतिभागियों से अनुरोध है कि अपने पते के साथ कृपया अपना उत्तर ई-मेल से ही भेजा करें। इस पहेली प्रतियोगिता में हमारे नये प्रतिभागी भी हिस्सा ले सकते हैं। यह आवश्यक नहीं है कि आपको पहेली के तीनों प्रश्नों के सही उत्तर ज्ञात हो। यदि आपको पहेली का कोई एक उत्तर भी ज्ञात हो तो भी आप इसमें भाग ले सकते हैं।


अपनी बात

मित्रों, ‘रेडियो प्लेबैक इण्डिया’ के साप्ताहिक स्तम्भ ‘स्वरगोष्ठी’ पर जारी हमारी महत्त्वाकांक्षी श्रृंखला “राग से रोगोपचार” की सातवीं कड़ी में आपने कुछ शारीरिक और मनोशारीरिक रोगों के उपचार में सहयोगी राग रागेश्वरी का परिचय प्राप्त किया। साथ ही आपने इस राग में निबद्ध एक खयाल विदुषी परवीन सुल्ताना के स्वर में सुना। इस राग पर आधारित एक गीत फिल्म “अनारकली” से लता मंगेशकर के स्वर में भी सुना।

पेंसिलवेनिया, अमेरिका से हमारी एक नियमित पाठक विजया राजकोटिया ने लिखा है; "Maru Bihag gane ke saath meri chinta bhag gai. I am writing not as a joke, but it is true." 

हमें विश्वास है कि हमारे अन्य पाठक भी “स्वरगोष्ठी” के प्रत्येक अंक का अवलोकन करते रहेंगे और अपनी प्रतिक्रिया हमें भेजते रहेगे। आज के अंक के बारे में यदि आपको कुछ कहना हो तो हमें अवश्य लिखें। हमारी वर्तमान अथवा अगली श्रृंखला के लिए यदि आपका कोई सुझाव या अनुरोध हो तो हमें swargoshthi@gmail.com पर अवश्य लिखिए। अगले अंक में रविवार को प्रातः 7 बजे हम ‘स्वरगोष्ठी’ के इसी मंच पर एक बार फिर सभी संगीत-प्रेमियों का स्वागत करेंगे।



शोध व आलेख : पं. श्रीकुमार मिश्र   
सम्पादन व प्रस्तुति : कृष्णमोहन मिश्र   


रेडियो प्लेबैक इण्डिया 
राग रागेश्वरी : SWARGOSHTHI – 378 : RAG RAGESHWARI : 29 जुलाई, 2018

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