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चित्रकथा - 66: हिन्दी फ़िल्मों के महिला गीतकार (भाग-3)

अंक - 66

हिन्दी फ़िल्मों के महिला गीतकार (भाग-3)

"उतरा ना दिल में कोई उस दिलरुबा के बाद..." 




’रेडियो प्लेबैक इंडिया’ के सभी पाठकों को सुजॉय चटर्जी का सप्रेम नमस्कार! फ़िल्म जगत एक ऐसा उद्योग है जो पुरुष-प्रधान है। अभिनेत्रियों और पार्श्वगायिकाओं को कुछ देर के लिए अगर भूल जाएँ तो पायेंगे कि फ़िल्म निर्माण के हर विभाग में महिलाएँ पुरुषों की तुलना में ना के बराबर रही हैं। जहाँ तक फ़िल्मी गीतकारों और संगीतकारों का सवाल है, इन विधाओं में तो महिला कलाकारों की संख्या की गिनती उंगलियों पर की जा सकती है। आज ’चित्रकथा’ में हम एक शोधालेख लेकर आए हैं जिसमें हम बातें करेंगे हिन्दी फ़िल्म जगत के महिला गीतकारों की, और उनके द्वारा लिखे गए यादगार गीतों की। पिछले अंक में इस लेख का दूसरा भाग प्रस्तुत किया गया था, आज प्रस्तुत है इसका तीसरा और अंतिम भाग।



Rani Malik
’हिन्दी फ़िल्मों के महिला गीतकार’ की दूसरी कड़ी माया गोविंद पर जा कर समाप्त हुई थी। 90 के दशक में माया गोविंद के अलावा जिन महिला गीतकार ने अपने सुपरहिट गीतों से धूम मचाई, वो हैं रानी मलिक। 1990 की ब्लॉकबस्टर फ़िल्म रही ’आशिक़ी’, जिसे फ़िल्म संगीत की प्रचलित धारा को मोड़ने वाली trend-setter फ़िल्म मानी जाती है। इस फ़िल्म से समीर और नदीम-श्रवण कामयाबी की बुलन्दी पर पहुँच गए थे। इसी फ़िल्म के चार गीतों में समीर के साथ रानी मलिक ने भी अपना सहयोग दिया। ये चार गीत हैं - "धीरे धीरे से मेरी ज़िन्दगी में आना...", "तू मेरी ज़िन्दगी है, तू मेरी हर ख़ुशी है...", "अब तेरे बिन जी लेंगे हम, ज़हर ज़िन्दगी का पी लेंगे हम", और "मैं दुनिया भुला दूंगा तेरी चाहत में..."। अपनी पहली ही फ़िल्म में इस ज़बरदस्त कामयाबी के चलते रानी मलिक को फिर पीछे मुड़ कर नहीं देखना पड़ा। पुरुष-प्रधान इस क्षेत्र में वो अपनी गीत लेखन का लोहा मनवाती चली गईं। अगले एक दशक तक रानी मलिक के कलम से बहुत से सुपरहिट गीत निकले - "छुपाना भी नहीं आता, बताना भी नहीं आता" (बाज़ीगर), "तेरे चेहरे पे मुझे प्यार नज़र आता है" (बाज़ीगर), "चुरा के दिल मेरा गोरिया चली" (मैं खिलाड़ी तू अनाड़ी), "दिल में है तू, धड़कन में तू" (दावा), "चोरी चोरी दिल तेरा चुराएंगे" (फूल और अंगार), "तुमसे मिलने को दिल करता है रे बाबा" (फूल और कांटे), "हम लाख छुपाएँ प्यार मगर दुनिया को पता चल जाएगा" (जान तेरे नाम), "मैंने ये दिल तुमको दिया" (जान तेरे नाम), "एक नया आसमाँ, आ गए दो दिल जहाँ" (छोटे सरकार), "उतरा ना दिल में कोई उस दिलरुबा के बाद" (उफ़ ये मोहब्बत), "मेले लगे हुए हैं हसीनों के शहर में" (हक़ीक़त)। बाबुल बोस के संगीत में 1998 की फ़िल्म ’मेहन्दी’ के सभी गीत रानी मलिक ने लिखे। नायिका प्रधान इस फ़िल्म के लिए महिला गीतकार का चुनाव अर्थपूर्ण था। फ़िल्म के ना चलने से इसके गीतों की तरफ़ ज़्यादा ध्यान लोगों का नहीं गया, लेकिन अनुराधा पौडवाल की आवाज़ में "बाबा की बिटिया हुई परायी" को सुनते हुए आँखों में पानी ज़रूर आ जाते हैं। परवीन सुलताना की आवाज़ में 1993 की फ़िल्म ’अनमोल’ का गीत "कोई इश्क़ का रोग लगाये ना" भी रानी मलिक की एक उल्लेखनीय रचना मानी जाएगी। फ़िल्मी गीतों की बढ़ती व्यावसायिक्ता के चलते रानी मलिक को भी कई चल्ताऊ क़िस्म के गाने लिखने पड़े। "एक चुम्मा तू मुझको उधार देइ दे" (छोटे सरकार), "तु रु रु तु रु रु, कहाँ से करूँ मैं प्यार शुरू" (ऐलान), "मेरी पैंट भी सेक्सी" (दुलारा) जैसे गीत इसके कुछ उदाहरण हैं। रानी मलिक अब भी सक्रीय हैं, और इसी वर्ष 2018 में ’उड़न छू’ नामक फ़िल्म में गीत लिख रही हैं।

Ila Arun
इला अरुण एक ऐसी कलाकार हैं जो बहुमुखी प्रतिभा की धनी हैं। राजस्थानी लोक-संगीत को आधुनिक रूप देकर देश-विदेश में लोकप्रिय बनाने का श्रेय उन्हें तो जाता ही है, साथ ही अपने अभिनय, गायन, संगीत और लेखनी से उन्होंने अपने लिए एक अलग मुकाम हासिल किया है। हालाँकि उनके अधिकतर गीत प्राइवेट ऐल्बमों के लिए ही लिखे हुए हैं, कुछ हिन्दी फ़िल्मों में भी उनके लिखे गीत सुनाई पड़े हैं। 1986 में महेश भट्ट निर्देशित एक कलात्मक फ़िल्म आई थी ’आशियाना’। मार्क ज़ुबेर, दीप्ति नवल, सोनी राज़दान अभिनीत इस फ़िल्म में जगजीत सिंह - चित्रा सिंह ने संगीत दिया था। फ़िल्म के कुल चार गीतों में से एक गीत इला अरुण का लिखा था। इला अरुण की ही आवाज़ में यह गीत "याद क्यों तेरी मुझे सतावे" रिकॉर्ड हुआ। वैसे इसी फ़िल्म में मदन पाल का लिखा एक गीत भी था "जवानी रे" जिसे इला अरुण और आनन्द कुमार ने गाया था। 1999 में आई थी फ़िल्म ’भोपाल एक्सप्रेस’ जिसमें नसीरुद्दीन शाह, के के मेनन और ज़ीनत अमान जैसे कलाकार थे। शंकर-अहसान-लॉय के संगीत में फ़िल्म के छह गीत छह अलग अलग गीतकारों ने लिखे - फ़ैयाज़ हाशमी, नासिर काज़मी, पीयूष झा, प्रसून जोशी, सागरिका और इला अरुण। इला अरुण का लिखा व उन्हीं का गाया "उड़न खटोलना" एक राजस्थानी लोक संगीत आधारित रचना है। "तेरा उड़न खटोलना रे बालमा, तेरा लाल सा बंगला देख के दौड़त चली आई रे बालमा" दरसल ऋतुओं पर आधारित लोक गीत है, ठीक वैसे ही जैसे उत्तर प्रदेश में ’बारामासा’ गाया जाता है। इस गीत के तीन अन्तरों में गर्मी, वर्षा और सर्दी का वर्णन है। गीत के अन्त में शास्त्रीय संगीत का ताल गायन भी है। शास्त्रीयता की छाया लिए यह लोक गीत यकीनन लीक से हट कर गीत है जिसे सुनने का अपना अलग मज़ा है। 2010 में श्याम बेनेगल की फ़िल्म आई थी ’वेल डन अब्बा’। शान्तनु मोइत्र के संगीत में फ़िल्म के कुल पाँच गीतों में से तीन गीत लिखे अशोक मिश्र ने, और एक-एक गीत स्वानन्द किरकिरे और इला अरुण ने लिखे। डैनिएल बी. जॉर्ज और इला अरुण की आवाज़ में वह गीत है "ओ मेरी बन्नो होशियार, साइकिल पे सवार, चली जाती सिनेमा देखने को..."। बड़ा ही मज़ेदार गीत है जो शादी के मौके पर गाया जा रहा है, और ख़ास बात यह कि फ़िल्म के परदे पर भी चश्मा पहनी इला अरुण ही नज़र आती हैं। इला अरुण के गीतों की यह ख़ासियत रही है कि उनके गीत हमेशा रंगीन और असरदार होते हैं, जिन्हें सुन कर हमेशा एक "feel good" और एक "positive feeling" का अहसास होता है। अपनी ख़ास आवाज़ और अभिनय का अपना अलग अंदाज़ इला अरुण को भीड़ से अलग करती है।

Anvita Dutt Guptan
वर्तमान दशक में महिला गीतकारों की संख्या में अभूतपूर्व वृद्धि हुई है, जो अच्छा ख़ासा काम कर रही हैं पुरुष गीतकारों के साथ कंधे से कंधा मिलाते हुए। 20 फ़रवरी 1972 को जन्मीं अनविता दत्त गुप्तन एक गीतकार होने के साथ-साथ फ़िल्मों के संवाद, पटकथा, और कहानी लेखन में भी सक्रीय हैं। आदित्य चोपड़ा के ’यश राज फ़िल्म्स’ और करण जोहर के ’धर्मा प्रोडक्शन्स’ की अग्रणी लेखकों में एक हैं अनविता। पिता भारतीय वायु सेना में कार्यरत होने की वजह से अनविता देश के कई हिस्सों में रहीं जैसे कि हिंडन, गुवाहाटी, जोधपुर, सहारनपुर आदि। विज्ञापन जगत में चौदह वर्ष काम करने के बाद जानीमानी संवाद लेखिका रेखा निगम ने अनविता का परिचय आदित्य चोपड़ा से करवाया, और इस तरह से आदित्य ने उन्हें पहला मौका दिया 2005 की फ़िल्म ’नील ऐन्ड निक्की’ में संवाद और गीत लिखने का। इस फ़िल्म में उनका लिखा "मैं शायद चार साल का था" उनका लिखा पहला फ़िल्मी गीत है जिसे काफ़ी लोकप्रियता मिली थी। 2008 में ’बचना ऐ हसीनों’ फ़िल्म में उनका लिखा "ख़ुदा जाने के मैं फ़िदा हूँ" ज़बरदस्त कामयाब गीत रहा और साल के शीर्ष के गीतों में शामिल हुआ। 2012 में करण जोहर की ब्लॉकबस्टर फ़िल्म ’Student of the Year’ में गीत लिख कर अनविता एक नए मुकाम पर पहुँचे। वरुण धवन और सिद्धार्थ मल्होत्रा की पहली फ़िल्म के रूप में यह फ़िल्म ज़बरदस्त हिट रही और फ़िल्म के गीतों ने भी ख़ूब धूम मचाई। "इश्क़ वाला लव", "राधा ऑन दि डान्स फ़्लोर", "रट्टा मार", "अस्सी वेले सब वेले" जैसे नए ज़माने के गीतों ने युवा पीढ़ी पर राज किया। फ़िल्म ’क्वीन’ का "लंदन ठुमकदा" हो या ’पटियाला हाउस’ का "लौंग दा लश्कारा" हो, या फिर ’दोस्ताना’ का "जाने क्यों", अनविता के ये तमाम गीत लोगों की ज़बान पर ऐसे चढ़े कि देर तक बने रहे। अनविता दत्त गुप्तन के लिखे गीत कई फ़िल्मों में आ चुके हैं जिनमें शामिल हैं ’अनजाना अनजानी’, ’मुझसे फ़्रेन्डशिप करोगे’, ’तीस मार खान’, ’प्यार इम्पॉसिबल’, ’कहानी’, ’लक’, ’टशन’, ’बुड्ढ़ा होगा तेरा बाप’, ’कमबख़्त इश्क़’, ’बदमाश कंपनी’, ’एक था टाइगर’, ’गोरी तेरे प्यार में’, ’शानदार’, ’I Hate Luv Storys’, और ’Bang Bang'। वर्ष 2017 में फ़िल्म ’फिल्लौरी’ में उनका लिखा "साहिबा" गीत काफ़ी चर्चित हुआ और इस गीत के लिए उन्हें ’मिर्ची म्युज़िक अवार्ड्स’ के तहत ’सर्वश्रेष्ठ गीतकार’ के पुरस्कार के लिए नामांकित किया गया था। 2014 में भी ’मिर्ची म्युज़िक अवार्ड्स’ के तहत फ़िल्म ’क्वीन’ के गीतों को ’ऐल्बम ऑफ़ दि यीअर’ के लिए नामांकन मिला था। फ़िल्मफ़ेअर पुरस्कारों में 2015 में फ़िल्म ’क्वीन’ के संवाद के लिए और 2016 में फ़िल्म ’गुलाबो’ के गीत के लिए उन्हें नामांकन मिला था। अनविता दत्त गुप्तन गीत लेखन के साथ-साथ संवाद और पटकथा भी लिख रही हैं, और इस तरह से इस दौर की फ़िल्मों में महत्वपूर्ण योगदान दे रही हैं। आने वाले समय में उनसे और अर्थपूर्ण फ़िल्मों और गीतों की उम्मीदें की जा सकती हैं।

Kausar Munir
वर्तमान फ़िल्म गीतकारों में एक जानामाना नाम है कौसर मुनीर। मुंबई में जन्मीं कौसर ने अंग्रेज़ी साहित्य में स्नातक करने के बाद वो मीडिया से जुड़ीं और कुछ शोध कार्य करने लगीं। गीत-संगीत से उन्हें बचपन से ही लगाव था। बतौर लेखिका, उनका सफ़र टेलीविज़न से शुरू हुआ था धारावाहिक ’जस्सी जैसी कोई नहीं’ से। इसके बाद फ़िल्म ’टशन’ में उनका लिखा गीत "फ़लक तक चल साथ मेरे" की सफलता ने उन्हें कई और फ़िल्मों में गीत लिखने के मौके हासिल करवाए। ’इशकज़ादे’, ’एक था टाइगर’, ’धूम 3’, ’बजरंगी भाईजान’ और ’डियर ज़िन्दगी’ जैसी फ़िल्मों में गीत लिखते हुए कौसर मुनीर ने हर बार अपने आप को सिद्ध किया है। उनकी अंग्रेज़ी क्षमता को देखते हुए फ़िल्म ’इंगलिश विंगलिश’ के लिए उन्हें ’language consultant’ के रूप में लिया गया था। फ़िल्म ’यंगिस्तान’ में उनका लिखा "सुनो ना संगेमरमर" ख़ूब लोकप्रिय हुआ था। कौसर मुनीर का मानना है कि वो कभी भी गीतकार बनने नहीं आई थीं, इसलिए इस विधा में उनका कोई प्रेरणास्रोत नहीं हैं, लेकिन वो गुलज़ार साहब की बहुत बड़ी फ़ैन हैं। चाहे "इशकज़ादे" हो या "तेरा ध्यान किधर है", "परेशान" हो या "संगेमरमर", "भर दो झोली मेरी या मुहम्मद" हो या "माशा-अल्लाह", कौसर मुनीर के गीत लगातार चार्टबस्टर्स रहे हैं। एक साक्षात्कार में कौसर मुनीर साफ़ बताती हैं कि वो कभी भी सस्ते आइटम गीत नहीं लिखेंगी, फिर चाहे उन्हें काम मिले या ना मिले। साथ ही वो बताती हैं कि हमारे फ़िल्म जगत में आज के दौर में गीत लेखन के क्षेत्र में पुरुष और महिला में कोई भेदभाव नहीं है, और उन्हें उनके काम के लिए पूरा पूरा क्रेडिट मिलता है। कौसर मुनीर के गीतों से सजी कुछ और फ़िल्में हैं ’हीरोपन्ती’, ’चश्म-ए-बद्दूर’, ’बुलेट राजा’, ’मैं तेरा हीरो’, ’जय हो’, ’गोरी तेरे प्यार में’, ’दावत-ए-इश्क़’, ’तेवर’, ’राज़ रीबूट’, और ’नौटंकी साला’। आने वाले समय में कौसर मुनीर से और भी बहुत से अच्छे गीतों की उम्मीदें की जा सकती हैं।


Priya Saraiya, Jasleen Royal, Sneha Khanwalkar, Sangeeta Pant, Hard Kaur

प्रिया सरैया ना केवल आज के दौर की एक जानीमानी पार्श्वगायिका हैं, बल्कि वो एक गीतकार भी हैं। पलक शाह के नाम से जन्मीं प्रिया छह वर्ष की आयु से गाना सीखना शुरू किया और गंधर्व महाविद्यालय मुंबई से शास्त्रीय गायन की तालीम हासिल की। उन्होंने प्रिया पांचाल के नाम से अपने करीअर की शुरुआत की, आगे चल कर संगीतकार जिगर सरैया (सचिन-जिगर जोड़ी वाले) से विवाह के पश्चात वो बन गईं प्रिया सरैया। प्रिया ने अपना प्रशिक्षण Trinity College of London से पूरा किया। बतौर पार्श्वगायिका, उन्हें पहला ब्रेक मिला 2011 में। इस साल उनका लिखा ’Shor in the City' फ़िल्म का "साइबो" गीत बहुत लोकप्रिय हुआ था। इसी साल फ़िल्म ’ये दूरियाँ’ में उनका लिखा शीर्षक गीत भी मशहूर हुआ था। इस सफलता के चलते उन्हें 2012 की दो फ़िल्मों - ’अजब ग़ज़ब लव’ और ’तेरे नाल लव हो गया’ में गीत लिखने के मौके मिले। 'ABCD 2' फ़िल्म में उन्होंने दो गीत लिखे और गाए - "सुन साथिया" और "बेज़ुबान फिर से"। इन गीतों की ख़ूब प्रशंसा हुई थी। हाल में उन्होंने संजय दत्त अभिनीत फ़िल्म ’भूमि’ और कंगना रनौत अभिनीत फ़िल्म ’सिमरन’ में गीत लिखे हैं। अपनी आवाज़ और कलम के जादू से प्रिया सरैया लगातार अपने करिअर में ऊपर चढ़ रही हैं। उनके लिखे गीतों से सजी कुछ और उल्लेखनीय फ़िल्मों के नाम हैं - ’रमैया वस्तावैया’, ’बदलापुर’, ’हैप्पी एन्डिंग्’, ’ए फ़्लाइंग् जट’, ’जयन्तभाई की लवस्टोरी’, ’जीना जीना’, ’गो गोवा, गॉन’, ’मुंबई दिल्ली मुंबई’, आदि। जसलीन कौर रॉयल (जसलीन रॉयल) एक स्वतंत्र गायिका, गीतकार और संगीतकार हैं जो पंजाबी, हिन्दी और अंग्रेज़ी में गाती हैं। 2013 में पंजाबी के जानेमाने कवि शिव कुमार बटालवी की कविता "पंछी हो जावा" को कम्पोज़ कर और गा कर जसलीन ने MTV Video Music Awards India 2013 में Best Indie Song का पुरस्कार जीता था। लुधियाना के Sacred Heart Convent School से स्कूली शिक्षा पूरी कर जसलीन दिल्ली चली गईं आगे की पढ़ाई के लिए। हिन्दी कॉलेज से B.Com पूरी करने के बाद वो 2009 में India's Got Talent में भाग लिया और सेमी-फ़ाइनल तक पहुँची। एक साथ कई वाद्य यंत्र बजाने की क्षमता पूरे देश ने देखा इस शो के माध्यम से। उस शो के जज सोनाली बेन्द्रे, किरन खेर और शेखर कपूर ने उन्हें 'one woman band' कह कर संबोधित किया था। जसलीन एक साथ गिटार, माउथ ऑरगन और टैम्बुरिन बजा लेती हैं गाते हुए। की-बोर्ड पर भी उन्हें महारथ हासिल है। कई और टीवी शोज़ में कामयाबी हासिल करने के बाद 2014 जसलीन को सोनम कपूर - फ़वाद ख़ान अभिनीत फ़िल्म ’ख़ूबसूरत’ में "प्रीत" गाने का मौका मिला, जिसे लिखा अमिताभ वर्मा ने और स्वरबद्ध किया स्नेहा खनवलकर ने। जसलीन के लिखे गीत जिन फ़िल्मों में सुनाई दिए हैं, उनमें शामिल हैं ’बार बार देखो’, ’हरामखोर’, ’शिवाय’, ’फिल्लौरी’, ’फ़ुकरे रिटर्न्स’ और ’हिचकी’। स्नेहा खनवलकर आज के दौर की एक जानीमानी महिला संगीतकार हैं। लेकिन अपनी कुछ फ़िल्मों में संगीत के साथ-साथ उन्होंने गीत लेखन में भी हाथ आज़माया है। ’ख़ूबसूरत’ फ़िल्म में ही उनका लिखा "माँ का फ़ोन" को काफ़ी सराहा गया है। इसके अलावा ’सिंह इज़ ब्लिंग्’, ’लव सेक्स और धोखा’, और ’डिटेक्टिव ब्योमकेश बक्शी’ में उन्होंने कुछ गीत लिखे हैं। इसी तरह से पंजाबी हिप-हॉप गायिका और रैपर हार्ड कौर ने भी कुछ गीतों के लिए बोल लिखे हैं। पहली बार उन्हें यह मौका 2009 की फ़िल्म ’अजब प्रेम की ग़ज़ब कहानी’ में मिला। प्रीतम के संगीत में उन्होंने "फ़ॉलो मी, लक नु हिला दे" लिखा और ख़ुद गाया। 2012 की फ़िल्म ’रश’ में आशिष पंडित और ऐश किंग् के साथ मिल कर हार्ड कौर ने एक गीत लिखा "होते होते जाने क्या हो गया" जिसे ऐश किंग् और हार्ड कौर ने गाया। 2015 में ’कागज़ के फ़ूल्स’ नामक फ़िल्म की संगीतकार थीं संगीता पंत। इस फ़िल्म के कुल तीन गीतों में से दो गीत उन्हीं के लिखे हुए थे - तोचि रैना की आवाज़ में "लफ़ड़ा पड़ गया" और उनकी ख़ुद की आवाज़ में "नशा है जाम का"। संगीता भी बहुमुखी प्रतिभा की धनी हैं। 2012 की फ़िल्म ’गांधी की ज़मीन पर’ में उन्होंने ना केवल संगीत दिया बल्कि अभिनय भी किया। 2011 की फ़िल्म ’रेडी’ में वो बतौर पार्शगायिका गीत गा चुकी हैं। महिला गीतकारों की यह जो नई पौध फ़िल्म जगत में धीरे धीरे नया मुकाम हासिल कर रही है, इससे यही लगता है कि आने वाले समय में और भी महिलाएँ फ़िल्मी गीतकारिता के क्षेत्र में क़दम रखेंगी, और जो रवायत जद्दनबाई जैसी फ़िल्म इतिहास के पहले दौर की महिलाओं ने शुरू की थी, उसे आज के दौर की महिलाएँ आगे बढ़ाएंगी।


आख़िरी बात

’चित्रकथा’ स्तंभ का आज का अंक आपको कैसा लगा, हमें ज़रूर बताएँ नीचे टिप्पणी में या soojoi_india@yahoo.co.in के ईमेल पते पर पत्र लिख कर। इस स्तंभ में आप किस तरह के लेख पढ़ना चाहते हैं, यह हम आपसे जानना चाहेंगे। आप अपने विचार, सुझाव और शिकायतें हमें निस्संकोच लिख भेज सकते हैं। साथ ही अगर आप अपना लेख इस स्तंभ में प्रकाशित करवाना चाहें तो इसी ईमेल पते पर हमसे सम्पर्क कर सकते हैं। सिनेमा और सिनेमा-संगीत से जुड़े किसी भी विषय पर लेख हम प्रकाशित करेंगे। आज बस इतना ही, अगले सप्ताह एक नए अंक के साथ इसी मंच पर आपकी और मेरी मुलाक़ात होगी। तब तक के लिए अपने इस दोस्त सुजॉय चटर्जी को अनुमति दीजिए, नमस्कार, आपका आज का दिन और आने वाला सप्ताह शुभ हो!




शोध,आलेख व प्रस्तुति : सुजॉय चटर्जी 



रेडियो प्लेबैक इण्डिया 

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