Skip to main content

चित्रकथा - 68: इस दशक के नवोदित नायक (भाग - 10)

अंक - 68

इस दशक के नवोदित नायक (भाग - 10)

"नहीं समझे हैं वो हमें, तो क्या जाता है..." 




हर रोज़ देश के कोने कोने से न जाने कितने युवक युवतियाँ आँखों में सपने लिए माया नगरी मुंबई के रेल्वे स्टेशन पर उतरते हैं। फ़िल्मी दुनिया की चमक-दमक से प्रभावित होकर स्टार बनने का सपना लिए छोटे बड़े शहरों, कसबों और गाँवों से मुंबई की धरती पर क़दम रखते हैं। और फिर शुरु होता है संघर्ष। मेहनत, बुद्धि, प्रतिभा और क़िस्मत, इन सभी के सही मेल-जोल से इन लाखों युवक युवतियों में से कुछ गिने चुने लोग ही ग्लैमर की इस दुनिया में मुकाम बना पाते हैं। और कुछ फ़िल्मी घरानों से ताल्लुख रखते हैं जिनके लिए फ़िल्मों में क़दम रखना तो कुछ आसान होता है लेकिन आगे वही बढ़ता है जिसमें कुछ बात होती है। हर दशक की तरह वर्तमान दशक में भी ऐसे कई युवक फ़िल्मी दुनिया में क़दम जमाए हैं जिनमें से कुछ बेहद कामयाब हुए तो कुछ कामयाबी की दिशा में अग्रसर हो रहे हैं। कुल मिला कर फ़िल्मी दुनिया में आने के बाद भी उनका संघर्ष जारी है यहाँ टिके रहने के लिए। ’चित्रकथा’ के अन्तर्गत पिछले कुछ समय से हम चला रहे हैं इस दशक के नवोदित नायकों पर केन्द्रित यह लघु श्रॄंखला जिसमें हम बातें करते हैं वर्तमान दशक में अपना करीअर शुरु करने वाले नायकों की। प्रस्तुत है ’इस दशक के नवोदित नायक’ श्रॄंखला की दसवीं कड़ी।



Johny Baweja, Kanan Gill
छोटे-बड़े शहरों से नवयुवकों का मायानगरी मुंबई आ कर फ़िल्म जगत में नायक बनने का सपना कोई नई बात नहीं है। यह सिलसिला शुरू से ही चली आ रही है। लेकिन वर्तमान दशक में नवागंतुकों की संख्या में बहुत बड़ी वृद्धि हुई है। इस श्रॄंखला में अब तक इस दशक के नवोदित कुल 97 अभिनेता नायकों की बात हम कर चुके हैं और सूची अभी भी काफ़ी लम्बी है। आज शुरू करते हैं जॉनी बवेजा से। पंजाब के लुधियाना में जन्में जॉनी बवेजा फ़िल्म निर्माता व वितरक तरलोचन (त्रिलोचन) एस. बवेजा के सुपुत्र हैं और जानेमाने अभिनेता हरमन बवेजा के चचेरे भाई भी। उनका असली नाम है गुरजोत सिंह बवेजा। लुधियाना के गुरु नानक पब्लिक स्कूल से पढ़ाई करने के बाद गुरजोत जलंधर जा कर Apeejay Institute of Management से BCA की डिग्री ली। बचपन से ही ग्लैमर जगत में नाम कमाने की तमन्ना रखने वाले गुरजोत चंडीगढ़ जा कर दो साल तक थिएटर में अभिनय किया और इस तरह से अपने अभिनय क्षमता का आंकलन किया। गुरजोत ने अपना नाम बदल कर जॉनी रख लिया और मुंबई का रुख़ किया। सुन्दर चेहरे और सुडौल कदकाठी के चलते उन्हें मॉडलिंग् के काम मिलने लगे। साथ ही उन्होंने रोशन तनेजा स्कूल ऑफ़ ऐक्टिंग् में अभिनय की बारीकियाँ सीखने के लिए भर्ती हो गए। वर्ष 2006 में जॉनी बवेजा ने 'Grasim Mr. India' प्रतियोगिता में भाग लिया और फ़ाइन राउण्ड तक पहुँचे। इससे उनका आत्मविश्वास बहुत बढ़ गया। लेकिन फ़िल्मों में ब्रेक के लिए उन्हें और छह साल का इन्तज़ार करना पड़ा। 2012 में जॉनी बवेजा और उनकी दोस्त रीत मजुमदार ने मिल कर एक फ़िल्म में पैसा लगाया और इन दोनों के लिए यह फ़िल्म एक तरह से लौंच पैड बनी। ’SWEN’ (short form of South West East North) नामक इस फ़िल्म की कहानी चार अलग तरह की लड़कियों और उन चारों का एक लड़के अभय से रिश्ते की कहानी थी। अभय की भूमिका में जॉनी ने अच्छा काम तो किया, लेकिन लो बजट की इस फ़िल्म में वह बात नहीं थी जो दर्शकों को अपनी ओर आकर्षित करती। चार साल बाद जॉनी और रीत ने मिल कर फिर एक बार एक फ़िल्म का निर्माण किया। ’A Scandall' नामक यह फ़िल्म चर्चा में रही विवादों की वजह से। इस फ़िल्म में जॉनी और रीत के कुछ ऐसे अन्तरंग दृश्य दिखाए गए जो इससे पहले कभी किसी हिन्दी फ़िल्म में नहीं देखा गया था। साथ ही फ़िल्म के निर्माण के दौरान उन दोनों का एक आपत्तिजनक MMS लीक हो जाने पर विवाद खड़ा हो गया था क्योंकि कुछ लोगों का यह मानना था कि उस MMS को जान बूझ कर फ़िल्म की पब्लिसिटी के लिए लीक किया गया था। लेकिन ये तमाम स्कैन्डल ’A Scandall' को डूबने से बचा ना सके। जॉनी बवेजा ने हार नहीं मानी और अपनी तीसरी फ़िल्म ’अमीरा’ का निर्माण शुरू कर दिया। 2017 में आई इस फ़िल्म में जॉनी ने रीत को अपने से अलग करते हुए अमरीकी अभिनेत्री Candace McAdams के साथ मिल कर इस फ़िल्म का निर्माण किया और उन्हें फ़िल्म की नायिका के रूप में भी कास्ट किया। जॉनी बवेजा की ख़ास बात यह है कि वो अपने तीनों फ़िल्मों में अलग अलग भूमिकाओं में नज़र आए और हर बार कुछ नया करने की कोशिश की है। हम उम्मीद करते हैं कि भविष्य में कामयाबी उनके क़दम चूमे। अगर यह पूछा जाए कि एक ऐसे हास्य कलाकार का नाम बताएँ जो आगे चल कर फ़िल्मी नायक बने हैं, तो शायद सबसे पहले कपिल शर्मा का नाम याद आए। लेकिन इस सवाल का एक जवाब कानन गिल भी है। कानन गिल भी एक स्टैंड-अप कमीडियन हैं जिन्होंने हाल ही में फ़िल्म जगत में पदार्पण किया है। बरेली में जन्में कानन के पिता एक आर्मी अफ़सर रहे। कानन की शिक्षा Ahlcon Public School और Frank Anthony Public School में हुई। Computer Science में B.E. करने के बाद वो software engineer की नौकरी तीन सालों तक करते रहे। इसी दौरान उन्होंने Punchline Bangalore नामक हास्य प्रतियोगिता में भाग लेकर प्रथम स्थान प्राप्त किया। फिर मुंबई में Comedy Store प्रतियोगिता भी जीता। इसके बाद उन्होंने कॉमेडी में अपना करीअर बनाने की सोची। उन्होंने एक म्युज़िक बैण्ड बनाई जिसके वो मुख्य गायक बने और मज़ेदार गीतों की रचना करने लगे। Youtube पर उनकी सीरीज़ Pretentious Movie Reviews को काफ़ी प्रसिद्धी मिली। 2017 में सुनील सिप्पी की हास्य-ड्रामा फ़िल्म ’नूर’ में उन्हें कास्ट किया गया। फ़िल्म की नायिका और शीर्षक चरित्र की भूमिका में सोनाक्षी सिंहा थीं। साद सहगल की भूमिका में कानन गिल ने अपने अभिनय से दर्शकों को गुदगुदाया। फ़िल्म की कहानी आम फ़िल्मी कहानियों से अलग हट कर होने के बावजूद कुछ ख़ास नहीं चली। अब देखना यह है कि क्या कानन फ़िल्मों में बने रहते हैं या फिर वो केवल हास्य कार्यक्रमों का ही हिस्सा बनते हैं। 

Kashyap, Ankur Verma
2017 में ’लव यू फ़ैमिली’ और ’सल्लु की शादी’ जैसी फ़िल्मों के ज़रिए फ़िल्म जगत में पदार्पण करने वाले नवोदित नायक हैं कश्यप। सुन्दर चेहरा, प्रतिभा और मेहनत करने की क्षमता व इच्छा के धनी कश्यप ने 2017 में इन दो फ़िल्मों के माध्यम से अपनी उपस्थिति दर्ज कराई। ख़ास तौर से ’लव यू फ़मिली’ में उनके अभिनय की प्रशंसा फ़िल्म समालोचकों ने की है। महानगरों में भले ये दोनों फ़िल्में ख़ास ना चली हों, लेकिन मध्यम और छोटे शहरों में प्रदर्शन अच्छा रहा। कश्यप बताते हैं कि वो अभिनेता सलमान ख़ान के बहुत बड़े फ़ैन हैं, और इसी वजह से ’सल्लु की शादी’ फ़िल्म में उनके द्वारा निभाए चरित्र में पूरी तरह से ढल गए, और इसी वजह से उनकी तारीफ़ें हुईं। कश्यप फ़िल्म जगत के जाने-माने टेक्निकल स्पेशलिस्ट व फ़ैशन फ़ोटोग्राफ़र महेश जॉली के सुपुत्र हैं। बचपन से अपने पिता को फ़िल्म जगत से जुड़ा देख कर बड़े होने वाले कश्यप के मन में भी बचपन से ही फ़िल्मी क्षेत्र में कुछ करने का मन था। युवावस्था में उनकी रुचि अभिनय में हुई और इस तरह से वो अपने सपनों और इच्छाओं को रूप प्रदान करने इस क्षेत्र में कूद पड़े हैं। जॉनी बवेजा की तरह कश्यप ने भी रोशन तनेजा से अभिनय की बारीकियाँ सीखी और ऐनिमेशन में डिग्री कोर्स भी किया। मार्शल आर्ट्स और नृत्य में भी उनकी गहरी रुचि है, जो उन्हें बहुमुखी प्रतिभा के धनी बनाते हैं। उनकी शुरुआती दो फ़िल्मों में उनके अभिनय से प्रभावित होकर कई फ़िल्मकारों ने उन्हें आनेवाली फ़िल्मों के लिए न्योता दिया है, जिनमें वरिष्ठ अभिनेता अनुपम खेर के साथ एक फ़िल्म भी शामिल है। कुल मिला कर यह कहा जा सकता है कि युवा अभिनेता कश्यप फ़िल्म जगत में अपने क़दम जमाने शुरु कर दिए हैं और यकीनन वो एक लम्बी रेस दौड़ने वाले हैं। 2018 में अपना फ़िल्मी सफ़र शुरू करने वाले
Arpit Soni
अभिनेताओं में एक नाम है
मोहित अरोड़ा का। फ़िल्म थी ’हसीना’। इस फ़िल्म में उन्होंने राजन का किरदार निभाया था। विक्की राणावत द्वारा निर्मित व निर्देशित यह फ़िल्म युवाओं की फ़िल्म है जिसमें तीन युवक हैं जो एक सुन्दर हसीना को पाने के लिए अपने अपने तरीके इख़्तियार करते हैं। ये तीन युवक हैं रोहित, राहुल और राजन। रोहित की भूमिका में अर्पित सोनी, राहुल की भूमिका में अंकुर वर्मा और राजन की भूमिका में मोहित अरोड़ा हसीना (लीना कपूर) को रिझाने की कोशिश करते हैं। 5 जनवरी 2018 को प्रदर्शित यह फ़िल्म अपनी कमज़ोर कहानी की वजह से असफल सिद्ध हुई, और मोहित अरोड़ा के साथ-साथ अन्य दो अभिनेता भी नज़रंदाज़ हो गए। 28-वर्षीय अंकुर वर्मा रोहतक, हरियाणा से ताल्लुख रखते हैं। उन्होंने टेलीविज़न से अपना करिअर शुरू किया, धारावाहिक का नाम - ’जमुना पार’। उन्हें प्रसिद्धी मिली ’सुहानी सी एक लड़की’ में कृष्णा के किरदार से। उनके सुन्दर मुखमंडल और सुन्दर आँखों की वजह से उन्हें पौराणिक धारावाहिक ’संकटमोचन महाबली हनुमान’ में लक्ष्मण का चरित्र निभाने का अवसर मिला। 2016 में ’हमको तुमसे हो गया है प्यार क्या करें’ धारावाहिक में भी वो लोकप्रिय रहे। फ़िल्मों में उनका आगमन ’हसीना’ में हुआ, और अब आने वाले समय में उनके अभिनय से सजी और भी फ़िल्मों का इन्तज़ार उनके चाहनेवालों को रहेगा। इसी फ़िल्म से अपना फ़िल्मी शुरू करने वाले तीसरे अभिनेता अर्पित सोनी भी अपने कॉलेज के दिनों से ही तरह तरह के सांस्कृतिक कार्यक्रमों व प्रतियोगिताओं में भाग लिया करते थे, जिनमें स्टेज ड्रामा भी शामिल थे। पढ़ाई के दौरान ही अर्पित थिएटर से जुड़े और दो सालों तक पूरी शिद्दत के साथ नाटकों में हिस्सा लिया। पढ़ाई ख़त्म होते ही उन्होंने मुंबई का रुख़ किया और अभिनय के कोर्स में भर्ती हो गए। टेलीविज़न पर उन्हें मौका मिला ’लव बाइ चान्स’ और ’गुमराह’ जैसे शोज़ में। फ़िल्म ’हसीना’ के लिए जब विक्की राणावत नए चेहरों की तलाश कर रहे थे तब बहुत से नए युवाओं के साथ साथ इन तीनों ने भी ऑडिशन दिया, और फ़िल्म के तीनों चरित्रों के लिए इन तीनों का नाम आख़िर में फ़ाइनल किया गया। फ़िल्म के निर्माण के संबंध में लिए गए साक्षात्कार में अर्पित, अंकुर और मोहित बताते हैं कि साथ में अभिनय करते हुए उनकी आपस में बहुत अच्छी दोस्ती हो गई है और फ़िल्म पूरी हो जाने के बाद भी वो तीनों एक दूसरे के सम्पर्क में हैं और जब भी मौका मिलता है, वो एक दूसरे से मिलते हैं या फ़ोन पर बातें करते हैं। एक ही फ़िल्म से शुरुआत करने वाले इन तीनों अभिनेताओं के भविष्य में क्या लिखा है, यह कोई नहीं बता सकता। इस वक़्त तीनों एक ही पायदान पर खड़े हैं, और यह तो आने वाला समय ही बताएगा कि अर्पित, अंकुर और मोहित में कौन कितना कामयाब हो पाता है।


Mohit Marwah, Namit Khanna, Nishant Dahiya
फ़िल्मी परिवार से ताल्लुख़ रखने वाले नवोदित नायकों में एक नाम मोहित मारवाह का है। 1984 में जन्में 34-वर्षीय मोहित मारवाह नोएडा फ़िल्म सिटी के संस्थापक संदीप मारवाह के सुपुत्र हैं। उनकी माँ रीना मारवाह सुरिन्दर कपूर की सुपुत्री अर्थात् बोनी कपूर, अनिल कपूर और संजय कपूर की बहन हैं। मोहित का विवाह टिना मुनीम की भांजी अन्तरा मोतीवाला से हाल ही में सम्पन्न हुई। इसी समारोह में सम्मिलित होने के लिए मोहित की मामी श्रीदेवी दुब‍ई गईं थीं जहाँ उनका निधन हुआ। Don Bosco School और दिल्ली विश्वविद्यालय से पढ़ाई करने के बाद मोहित Asian Academy of Film & Television में दाख़िल हुए जहाँ उन्होंने फ़िल्म निर्माण के विभिन्न पक्षों के बारे में जाना, सीखा। इसके बाद वो विक्रम भट्ट के सहायक निर्देशक बने और फ़िल्म निर्माण के वास्तविक रूप को क़रीब से देखा। फ़िल्म निर्माण से जुड़े तमाम अनुभवों को अपने में समा कर मोहित मारवाह अपने अभिनय क्षमता को और भी ज़्यादा निखारने के लिए अमरीका के न्यु यॉर्क स्थित Lee Strasberg Acting School में भर्ती हो गए। उनके इस रुझान और मेहनत करने की चाह से उनके परिवार के सभी सदस्य प्रभावित हुए। विक्रम भट्ट के साथ काम करते समय उन्होंने वर्ष 2005 की कई फ़िल्मों की निर्माण प्रक्रिया को क़रीब से देखा जिनमें शामिल हैं ’ऐलान’, 'जुर्म’, और ’दीवाने हुए पागल’। मोहित के छोटे भाई अक्षय मारवाह द्वारा निर्मित लघु फ़िल्म ’The Audition’ में अभिनय से उनका अभिनय सफ़र शुरु हुआ। आगे चल कर करण जोहर की एक लघु फ़िल्म ’Strangers in the Night’ में भी उन्होंने अभिनय किया। बॉलीवूड में उन्हें पहला ब्रेक मिला 2014 में जब अक्ष्य कुमार ने अपनी फ़िल्म ’फ़गली’ के लिए उन्हें चुना। इस फ़िल्म के बाद मोहित मारवाह को लोग पहचानने लगे और 2014 में ही GQ India ने उन्हें Best Dressed Men in Bollywood के ख़िताब से सम्मानित किया। कई बड़े फ़ैशन डिज़ाइनरों की पहली पसंद रह चुके मोहित मारवाह कई कंपनियों और उत्पादों के ब्रैंड ऐम्बासैडर भी रहे हैं। 2017 में टिग्मांशु धुलिया निर्देशित उल्लेखनीय फ़िल्म आई थी ’राग देश’। यह पीरियड फ़िल्म भारतीय सेना के तीन अफ़सरों के कोर्ट मार्शल की कहानी थी। ये आर्मी अफ़सर थे कर्नल प्रेम सहगल, कर्नल गुरबख्श सिंह ढिल्लों और मेजर शाह अनाव ख़ाँ। क्रम से इन तीन चरित्रों को निभाया मोहित मारवाह, अमित साध और कुणाल कपूर ने। यह फ़िल्म व्यावसायिक फ़िल्म नहीं थी, इसलिए आम जनता में ख़ास चर्चित नहीं हुई, लेकिन ’राज्य सभा टीवी’ द्वारा निर्मित इस फ़िल्म को "क्रिटिकल अक्लेम" मिला। मोहित मारवाह का सफ़र जारी है, उनके अगले फ़िल्म की प्रतीक्षा सभी को है। लंदन में जन्में नमित खन्ना मॉडलिंग् की दुनिया का एक जानामाना नाम रहे हैं। 24-वर्षीय नमित के पसंदीदा नायक रहे हैं शाहरुख़ ख़ान, इरफ़ान ख़ान और आमिर ख़ान। निर्देशकों में वो मीरा नायर और ज़ोया अख़्तर की फ़िल्मों से प्रभावित हुए हैं। फ़ैशन जगत में अपना मुकाम बना चुके नमित खन्ना वर्ष 2013 में फ़िल्म जगत के मैदान में उतरे फ़िल्म ’बैंग् बैंग् बैंकॉक’ से। इस फ़िल्म में उनके अभिनय को काफ़ी सराहा गया था, लेकिन फ़िल्म के ना चलने से उनकी तरफ़ दर्शकों का ध्यान कम ही गया। इस फ़िल्म के बाद अभी तक वो किसी अन्य फ़िल्म में नज़र तो नहीं आए, लेकिन एक वेब-सीरीज़ में उनका काफ़ी नाम हुआ। ’ट्विस्टेड’ नामक इस कामुक व रहस्य आधारित वेब सीरीज़ के लिए इसके निर्देशकों को एक ऐसे नायक की तलाश थी जो अपने शरीर, चेहरे, आँखों और अभिनय से इस सीरीज़ में जान फूंक सके। ये तमाम बातें उन्हें नमित में दिखीं। यह सीरीज़ हिट साबित हुई। इन दिनों नमित खन्ना छोटे परदे पर नज़र आ रहे हैं नई धारावाहिक ’ये प्यार नहीं तो क्या है’ में। सिद्धांत के चरित्र में नमित अपने आप को बख़ूबी ढाल लिया है, जिस वजह से बहुत ही कम समय में इस धारावाहिक की TRP काफ़ी उपर जा चुकी है। जहाँ तक फ़िल्मों की बात है, यह वक़्त ही बताएगा कि नमित कितने सफल हो पाते हैं। मध्यप्रदेश के मऊ में जन्में निशान्त दहिया आर्मी अफ़सर राजेन्द्र दहिया के सुपुत्र हैं। मूलत: सोनीपत हरियाणा के, पर बचपन में कई जगहों पर रह चुके निशान्त अन्त में दिल्ली आकर बसे। हाइ स्कूल के बाद मेधावी छात्र निशान्त हरियाणा के कुरुक्षेत्र विश्वविद्यालय से कम्प्युटर साइन्स में इंजिनीयरिंग् (B.Tech) की। लेकिन इसके तुरन्त बाद उन्होंने यूंही Grasim Mr. India प्रतियोगिता में हिस्सा लिया और दूसरे स्थान पर विराजमान हुए। उनकी मुस्कान को श्रेष्ठ मुस्कान का पुरस्कार भी मिला। यह 2006 की बात थी। कई और ग्लैमर पुरस्कारों के विजेता रह चुके निशान्त दहिया के लिए मॉडलिंग् का द्वार खुल गया। बहुत से विज्ञापनों में नज़र आने के बाद ’यश राज फ़िल्म्स’ की नज़र उन पर पड़ी और 2011 में उन्हें कास्ट किया गया ’मुझसे फ़्रेन्डशिप करोगे’ फ़िल्म में। इस फ़िल्म में निशान्त के अभिनय की प्रशंसा हुई। दो नायकों वाली इस फ़िल्म से शुरुआत करने की वजह से निशान्त को फ़िल्म के मुख्य नायक साक़ीब सलीम से अभिनय का टक्कर लेना पड़ा, जिसमें वो खरे उतरे।  इसके बाद 2014 में ’टिटू एम.बी.ए’ में वो फिर एक बार नज़र आए और इस बार वो एकल नायक के रूप में फ़िल्म की बागडोर संभाली। फ़िल्म में उनका चरित्र मिला-जुला था। फ़िल्म के शीर्षक में MBA को MBA की डिग्री ना समझा जाए, MBA का अर्थ है ’married but available'। इससे आप टिटू के चरित्र की कल्पना कर सकते हैं। इस तरह के चरित्र के साथ निशान्त ने पूरा-पूरा न्याय किया जो इस फ़िल्म को देख कर पता चलता है। निशान्त दहिया की तीसरी फ़िल्म 2017 में प्रदर्शित हुई - ’मेरी प्यारी बिंदू’ जिसमें आयुष्मान खुराना और परिनीति चोपड़ा मुख्य किरदारों में दिखे। इस फ़िल्म में निशान्त की एक छोटी सी भूमिका रही। निशान्त की कदकाठी, शख्सियत और अभिनय क्षमता को देखते हुए लगता है कि आने वाले समय में वो और भी कई फ़िल्मों में नज़र आएंगे, बाक़ी क़िस्मत की बात क़िस्मत ही जाने!

Chirag Malhotra, Pranay Pachauri
वर्ष 2015 में समलैंगिक्ता पर रिखिल बहादुर ने एक फ़िल्म बनाई थी - ’टाइम आउट’। जिस तरह से युवराज पराशर और कपिल शर्मा ने ’Dunno Y...' जैसी समलैंगिक फ़िल्म से अपनी पारी की शुरुआत की थी, वैसे ही ’टाइम आउट’ में दो नवयुवक मुख्य भूमिकाओं में नज़र आए - प्रणय पचौरी और चिराग मल्होत्रा। इस तरह की ऑफ़बीट फ़िल्म से अपना करिअर शुरू करना ख़तरे से ख़ाली नहीं, यह जानते हुए भी ये दोनों अभिनेता ने इस चुनौती को स्वीकारा। प्रणय पचौरी ने एक साक्षात्कार में बताया कि उनके माता-पिता इस फ़िल्म को करने के उनके फ़ैसले से ख़ुश नहीं थे, पर प्रणय का यह मानना था कि एक अभिनेता के लिए यह कोई मायने नहीं रखता कि वो कौन सा किरदार निभा रहा है। अलग अलग तरह के किरदार निभाने की लालसा के चलते उन्होंने यह फ़िल्म साइन कर ली। आमतौर पर फ़िल्मों में समलैंगिक चरित्र को हास्य का पात्र बना दिया जाता है, लेकिन कुछ फ़िल्मकार हैं जो समलैंगिकता को बहुत समझदारी से चित्रित करते हैं। ’टाइम आउट’ एक ऐसी ही फ़िल्म है जिसमें प्रणय द्वारा निभाया चरित्र अपनी समलैंगिक्ता को दुनिया के सामने बताने में झिझकता है। दिल्ली में पले बढ़े प्रणय 2014 में मुंबई स्थानान्तरित हुए थे। दिल्ली के ’शहीद भगत सिंह कॉलेज’ से स्नातक करने के बाद उनके पिता चाहते थे कि वो CA बने, लेकिन अभिनय में गहरी दिलचस्पी रखने वाले प्रणय ने मुंबई का रास्ता इख़्तियार किया। कुछ दिन रहने के बाद पंकज की एक दोस्त ने उन्हें बताया कि रिखिल बहादुर एक नए चेहरे की तलाश कर रहे हैं अपनी समलैंगिक्ता विषय की फ़िल्म के लिए जिसे बास्केटबॉल खेलना आता हो। प्रणय ने ऑडिशन दिया, पास हुए पर इस शर्त से कि वो एक महीने के अन्दर 13 किलो वज़न घटा लेंगे। प्रणय ने चुनौती स्वीकारा और कर दिखाया। प्रणय पचौरी कहानियाँ भी लिखते हैं और उनकी मनोकामना है कि एक दिन उनकी लिखी कहानी पर फ़िल्म बने। शाहरुख़ ख़ान और रॉबर्ट डी नीरो से प्रेरणा लेने वाले प्रणय पचौरी आने वाले समय में अयन मुखर्जी, आशुतोष गोवारिकर, राकेश ओमप्रकाश मेहरा और यश राज फ़िल्म के साथ काम करना चाहते हैं। 2015 में ही प्रणय ’अलिशा’ और 2018 में ’पी.एम. सेल्फ़ीवाले’ जैसे टीवी शोज़ में नज़र आए हैं। फ़िल्मों में उनके क़िस्मत का सितारा कितना बुलंद रहता है, यह आने वाला समय ही बताएगा। ’टाइम आउट’ के दूसरे नायक चिराग मल्होत्रा की भी यह पहली फ़िल्म थी। बचपन से चिराग अपने स्कूल के नाटकों में हिस्सा लिया करते थे और वहीं पर अभिनय की बीज उनके अन्दर अंकुरित हुई। आगे चल कर जब उन्होंने अभिनय को अपना करिअर बनाने का निर्णय लिया, तब मुंबई आ कर ऐक्टिंग् की कोर्स में भर्ती हो गए। बास्केटबॉल खेल पाने की काबिलियत की वजह से उन्हें भी इस फ़िल्म के लिए रिखिल ने चुन लिया। फ़िल्म की व्यावसायिक तौर पर ना चलने की वजह से चिराग के अभिनय की तरफ़ लोगों का ध्यान नहीं गया और वो आज अपनी दूसरी फ़िल्म का इन्तज़ार कर रहे हैं। फ़िल्म जगत एक ऐसी जगह है जहाँ कई युवक बड़े-बड़े सपने लेकर तो आए, लेकिन सफलता के लिए न जाने कितने सालों तक के संघर्ष का सफ़र तय करना पड़ा। एक ऐसे ही युवक हैं राहुल शर्मा जो पहली बार 2015 में रिखिल बहादुर की फ़िल्म ’टाइम आउट’ में ही एक छोटी सी भूमिका में नज़र आए थे। पंकज और चिराग तो फ़िल्म के नायक थे, बास्केटबॉल के कोच पी.के की भूमिका में नज़र आए राहुल शर्मा। इस फ़िल्म के बाद 2016 में ’मिस टीचर’ फ़िल्म में वो बतौर नायक नज़र आए। उनके एक साक्षात्कार में उन्होंने बताया कि इस फ़िल्म में अभिनय करने के लिए उन्हें बहुत अफ़सोस है। फ़िल्म जगत में नए नए आने की वजह से उन्हें इस बात का अहसास नहीं था कि वो किस तरह की फ़िल्म में काम करने जा रहे हैं। जब तक उन्हें पता चला कि ’मिस टीचर’ दरसल एक सी-ग्रेड घटिया कामुक फ़िल्म है, तब तक बहुत देर हो चुकी थी। अनिच्छा के बावजूद आउटडोर शूटिंग् पर पहुँच जाने के बाद उन्हें पता चला कि किस तरह के सीन उन्हें करने हैं। उस समय ना कहने की कोई गुंजाइश नहीं थी। इस फ़िल्म को वो एक बुरा सपना समझ कर भूल जाना चाहते हैं और आने वाले समय में एक दायित्वशील अभिनेता के रूप में उभरना चाहते हैं। राहुल शर्मा की तरह हर संघर्षरत अभिनेता को ’रेडियो प्लेबैक इंडिया’ की तरफ़ से ढेरों शुभकामनाएँ।



आख़िरी बात

’चित्रकथा’ स्तंभ का आज का अंक आपको कैसा लगा, हमें ज़रूर बताएँ नीचे टिप्पणी में या soojoi_india@yahoo.co.in के ईमेल पते पर पत्र लिख कर। इस स्तंभ में आप किस तरह के लेख पढ़ना चाहते हैं, यह हम आपसे जानना चाहेंगे। आप अपने विचार, सुझाव और शिकायतें हमें निस्संकोच लिख भेज सकते हैं। साथ ही अगर आप अपना लेख इस स्तंभ में प्रकाशित करवाना चाहें तो इसी ईमेल पते पर हमसे सम्पर्क कर सकते हैं। सिनेमा और सिनेमा-संगीत से जुड़े किसी भी विषय पर लेख हम प्रकाशित करेंगे। आज बस इतना ही, अगले सप्ताह एक नए अंक के साथ इसी मंच पर आपकी और मेरी मुलाक़ात होगी। तब तक के लिए अपने इस दोस्त सुजॉय चटर्जी को अनुमति दीजिए, नमस्कार, आपका आज का दिन और आने वाला सप्ताह शुभ हो!





शोध,आलेख व प्रस्तुति : सुजॉय चटर्जी 



रेडियो प्लेबैक इण्डिया 

Comments

Popular posts from this blog

सुर संगम में आज -भारतीय संगीताकाश का एक जगमगाता नक्षत्र अस्त हुआ -पंडित भीमसेन जोशी को आवाज़ की श्रद्धांजली

सुर संगम - 05 भारतीय संगीत की विविध विधाओं - ध्रुवपद, ख़याल, तराना, भजन, अभंग आदि प्रस्तुतियों के माध्यम से सात दशकों तक उन्होंने संगीत प्रेमियों को स्वर-सम्मोहन में बाँधे रखा. भीमसेन जोशी की खरज भरी आवाज का वैशिष्ट्य जादुई रहा है। बन्दिश को वे जिस माधुर्य के साथ बदल देते थे, वह अनुभव करने की चीज है। 'तान' को वे अपनी चेरी बनाकर अपने कंठ में नचाते रहे। भा रतीय संगीत-नभ के जगमगाते नक्षत्र, नादब्रह्म के अनन्य उपासक पण्डित भीमसेन गुरुराज जोशी का पार्थिव शरीर पञ्चतत्त्व में विलीन हो गया. अब उन्हें प्रत्यक्ष तो सुना नहीं जा सकता, हाँ, उनके स्वर सदियों तक अन्तरिक्ष में गूँजते रहेंगे. जिन्होंने पण्डित जी को प्रत्यक्ष सुना, उन्हें नादब्रह्म के प्रभाव का दिव्य अनुभव हुआ. भारतीय संगीत की विविध विधाओं - ध्रुवपद, ख़याल, तराना, भजन, अभंग आदि प्रस्तुतियों के माध्यम से सात दशकों तक उन्होंने संगीत प्रेमियों को स्वर-सम्मोहन में बाँधे रखा. भीमसेन जोशी की खरज भरी आवाज का वैशिष्ट्य जादुई रहा है। बन्दिश को वे जिस माधुर्य के साथ बदल देते थे, वह अनुभव करने की चीज है। 'तान' को वे अपनी चे

‘बरसन लागी बदरिया रूमझूम के...’ : SWARGOSHTHI – 180 : KAJARI

स्वरगोष्ठी – 180 में आज वर्षा ऋतु के राग और रंग – 6 : कजरी गीतों का उपशास्त्रीय रूप   उपशास्त्रीय रंग में रँगी कजरी - ‘घिर आई है कारी बदरिया, राधे बिन लागे न मोरा जिया...’ ‘रेडियो प्लेबैक इण्डिया’ के साप्ताहिक स्तम्भ ‘स्वरगोष्ठी’ के मंच पर जारी लघु श्रृंखला ‘वर्षा ऋतु के राग और रंग’ की छठी कड़ी में मैं कृष्णमोहन मिश्र एक बार पुनः आप सभी संगीतानुरागियों का हार्दिक स्वागत और अभिनन्दन करता हूँ। इस श्रृंखला के अन्तर्गत हम वर्षा ऋतु के राग, रस और गन्ध से पगे गीत-संगीत का आनन्द प्राप्त कर रहे हैं। हम आपसे वर्षा ऋतु में गाये-बजाए जाने वाले गीत, संगीत, रागों और उनमें निबद्ध कुछ चुनी हुई रचनाओं का रसास्वादन कर रहे हैं। इसके साथ ही सम्बन्धित राग और धुन के आधार पर रचे गए फिल्मी गीत भी सुन रहे हैं। पावस ऋतु के परिवेश की सार्थक अनुभूति कराने में जहाँ मल्हार अंग के राग समर्थ हैं, वहीं लोक संगीत की रसपूर्ण विधा कजरी अथवा कजली भी पूर्ण समर्थ होती है। इस श्रृंखला की पिछली कड़ियों में हम आपसे मल्हार अंग के कुछ रागों पर चर्चा कर चुके हैं। आज के अंक से हम वर्षा ऋतु की

काफी थाट के राग : SWARGOSHTHI – 220 : KAFI THAAT

स्वरगोष्ठी – 220 में आज दस थाट, दस राग और दस गीत – 7 : काफी थाट राग काफी में ‘बाँवरे गम दे गयो री...’  और  बागेश्री में ‘कैसे कटे रजनी अब सजनी...’ ‘रेडियो प्लेबैक इण्डिया’ के साप्ताहिक स्तम्भ ‘स्वरगोष्ठी’ के मंच पर जारी नई लघु श्रृंखला ‘दस थाट, दस राग और दस गीत’ की सातवीं कड़ी में मैं कृष्णमोहन मिश्र, आप सब संगीत-प्रेमियों का हार्दिक अभिनन्दन करता हूँ। इस लघु श्रृंखला में हम आपसे भारतीय संगीत के रागों का वर्गीकरण करने में समर्थ मेल अथवा थाट व्यवस्था पर चर्चा कर रहे हैं। भारतीय संगीत में सात शुद्ध, चार कोमल और एक तीव्र, अर्थात कुल 12 स्वरों का प्रयोग किया जाता है। एक राग की रचना के लिए उपरोक्त 12 में से कम से कम पाँच स्वरों की उपस्थिति आवश्यक होती है। भारतीय संगीत में ‘थाट’, रागों के वर्गीकरण करने की एक व्यवस्था है। सप्तक के 12 स्वरों में से क्रमानुसार सात मुख्य स्वरों के समुदाय को थाट कहते है। थाट को मेल भी कहा जाता है। दक्षिण भारतीय संगीत पद्धति में 72 मेल का प्रचलन है, जबकि उत्तर भारतीय संगीत में दस थाट का प्रयोग किया जाता है। इन दस थाट