स्वरगोष्ठी – 310 में आज
फागुन के रंग – 2 : राग काफी में कुछ और गीत
पण्डित जसराज से सुनिए -“परमानन्द प्रभु चतुर ग्वालिनी तज रज तक मोरी जाए बलाए...”
‘रेडियो
प्लेबैक इण्डिया’ के मंच पर ‘स्वरगोष्ठी’ की श्रृंखला “फागुन के रंग” की
दूसरी कड़ी के साथ मैं कृष्णमोहन मिश्र, आप सब संगीत-प्रेमियों का हार्दिक
स्वागत करता हूँ। मित्रों, इस श्रृंखला में हम आपसे फाल्गुनी संगीत पर
चर्चा कर रहे हैं। भारतीय पंचांग के अनुसार बसन्त ऋतु की आहट माघ मास के
शुक्ल पक्ष की पंचमी को ही मिल जाती है। बसन्त ऋतु के आगमन के साथ ऋतु के
अनुकूल गायन-वादन का सिलसिला आरम्भ हो जाता है। इस ऋतु में राग बसन्त और
राग बहार आदि का गायन-वादन किया जाता है। होलिका दहन के साथ ही रंग-रँगीले
फाल्गुन मास का आगमन होता है। दो सप्ताह पूर्व ही हमने हर्षोल्लास से
होलिका दहन और उसके अगले दिन रंगों का पर्व मनाया था। इस परिवेश का एक
प्रमुख राग काफी होता है। स्वरों के माध्यम से फाल्गुनी परिवेश, विशेष रूप
से श्रृंगार रस की अभिव्यक्ति के लिए राग काफी सबसे उपयुक्त राग है। पिछले
अंक में हमने इस राग में ठुमरी और टप्पा प्रस्तुत किया था। आज के अंक में
हम राग काफी में खयाल, तराना और भजन प्रस्तुत करेंगे। पहले विदुषी अश्विनी
भिड़े देशपाण्डे के मनमोहक स्वर में एक द्रुत खयाल, उसके बाद राग काफी का एक
तराना पण्डित कुमार गन्धर्व के दिव्य स्वरों में और अन्त में पण्डित जसराज
की आवाज़ में राग काफी में पिरोया एक भक्तिगीत भी प्रस्तुत करेंगे।
अश्विनी भिड़े देशपाण्डे |
डॉ.
अश्विनी भिड़े जयपुर अतरौली खयाल गायकी परम्परा की एक सर्वप्रिय गायिका
हैं। मुख्यतः खयाल गायिका के रूप में विख्यात अश्विनी जी ठुमरी, दादरा, भजन
और अभंग गायन में भी समान रूप से दक्ष हैं। उनकी प्रारम्भिक संगीत शिक्षा
गन्धर्व महाविद्यालय से और पारम्परिक संगीत की शिक्षा पण्डित नारायण राव
दातार से पलुस्कर परम्परा में हुई। बाद में उन्हें अपनी माँ श्रीमती माणिक
भिड़े और गुरु पण्डित रत्नाकर पै से जयपुर अतरौली परम्परा में मार्गदर्शन भी
प्राप्त हुआ। अश्विनी जी ने भारतीय संगीत के व्यावहारिक पक्ष के साथ-साथ
सैद्धान्तिक पक्ष को भी आत्मसात किया है। एक कुशल गायिका होने के साथ ही
उन्होने ‘रागरचनांजलि’ नामक पुस्तक की रचना भी की है। इस पुस्तक के पहले
भाग का प्रकाशन वर्ष 2004 में और दूसरे भाग का प्रकाशन वर्ष 2010 में किया
गया था। वर्तमान में अश्विनी जी संगीत के मंचों पर जितनी लोकप्रिय हैं उतनी
ही निष्ठा से नई पीढ़ी को पारम्परिक संगीत की दीक्षा भी दे रही हैं। आज की
कड़ी में हम उनकी आवाज़ में राग काफी कान्हड़ा का एक द्रुत खयाल प्रस्तुत कर
रहे हैं। यह तीनताल की मोहक रचना है।
राग काफी कान्हड़ा : ‘कान्ह कुँवर के कर-पल्लव पर मानो गोवर्धन नृत्य करे...’ : विदुषी अश्विनी भिड़े देशपाण्डे
पण्डित कुमार गन्धर्व |
राग काफी : तीनताल में निबद्ध तराना : पण्डित कुमार गन्धर्व
पण्डित जसराज |
राग काफी : भजन : ‘कहा करूँ वैकुण्ठ ही जाए...’ : पण्डित जसराज
संगीत पहेली
‘स्वरगोष्ठी’
के 310वें अंक की पहेली में आज हम आपको कण्ठ संगीत की एक रचना का अंश
सुनवा रहे है। इसे सुन कर आपको तीन में से कम से कम दो प्रश्नों के उत्तर
देने हैं। इस अंक की पहेली के सम्पन्न होने तक जिस प्रतिभागी के सर्वाधिक
अंक होंगे, उन्हें इस वर्ष के पहले सत्र का विजेता घोषित किया जाएगा।
1 – संगीत के इस अंश को सुन कर राग पहचानिए और हमें राग का नाम लिख भेजिए।
2 – रचना के इस अंश में किस ताल का प्रयोग किया गया है? ताल का नाम लिख भेजिए।
3 – यह किस महान गायक की आवाज़ है?
आप उपरोक्त तीन मे से किन्हीं दो प्रश्नों के उत्तर केवल swargoshthi@gmail.com या radioplaybackindia@live.com पर ही शनिवार 1 अप्रैल, 2017 की मध्यरात्रि से पूर्व तक भेजें। COMMENTS
में दिये गए उत्तर मान्य हो सकते हैं, किन्तु उसका प्रकाशन पहेली का उत्तर
देने की अन्तिम तिथि के बाद किया जाएगा। विजेता का नाम हम उनके शहर,
प्रदेश और देश के नाम के साथ ‘स्वरगोष्ठी’ के 312वें अंक में प्रकाशित
करेंगे। इस अंक में प्रस्तुत गीत-संगीत, राग, अथवा कलासाधक के बारे में यदि
आप कोई जानकारी या अपने किसी अनुभव को हम सबके बीच बाँटना चाहते हैं तो हम
आपका इस संगोष्ठी में स्वागत करते हैं। आप पृष्ठ के नीचे दिये गए COMMENTS के माध्यम से तथा swargoshthi@gmail.com अथवा radioplaybackindia@live.com पर भी अपनी प्रतिक्रिया व्यक्त कर सकते हैं।
पिछली पहेली के विजेता
‘‘स्वरगोष्ठी’
की 308वीं कड़ी की पहेली में हमने आपको वाद्य संगीत की राग आधारित रचना का
एक अंश सुनवा कर आपसे तीन में से दो प्रश्नों का उत्तर पूछा था। पहले
प्रश्न का सही उत्तर है, राग – काफी, दूसरे प्रश्न का सही उत्तर है, ताल – दीपचन्दी और तीसरे प्रश्न का सही उत्तर है, वाद्य – गिटार।
इस अंक के तीनों प्रश्नो के सही उत्तर जबलपुर से क्षिति तिवारी और पेंसिलवेनिया, अमेरिका से विजया राजकोटिया ने दिया है। तीन में से दो प्रश्न का सही उत्तर देने वाले प्रतिभागी है; हैदराबाद से डी. हरिणा माधवी और चेरीहिल न्यूजर्सी से प्रफुल्ल पटेल। इन सभी चार प्रतिभागियों को 2-2 अंक मिलते हैं। वोरहीज़, न्यूजर्सी से डॉ. किरीट छाया
ने एक प्रश्न का ही सही उत्तर दिया है; अतः इन्हें एक अंक ही मिलेगा।
उपरोक्त सभी पाँच प्रतिभागियों को ‘रेडियो प्लेबैक इण्डिया’ की ओर से
हार्दिक बधाई।
अपनी बात
मित्रों,
‘रेडियो प्लेबैक इण्डिया’ के साप्ताहिक स्तम्भ ‘स्वरगोष्ठी’ पर हमारी
श्रृंखला ‘फागुन के रंग’ का यह दूसरा अंक था। इस अंक में भी हमने राग काफी
में प्रयोग खयाल, तराना और भजन की रचनाओं की चर्चा की है। इस श्रृंखला में
हम बसन्त ऋतु के फाल्गुनी परिवेश में गाये-बजाए वाले रागों पर चर्चा कर रहे
हैं, जो अगले अंक में भी जारी रहेगा। आगामी अंक में हम इस लघु श्रृंखला के
अन्तर्गत एक और ऋतु प्रधान राग पर चर्चा करेंगे। इस लघु श्रृंखला के बाद
हम शीघ्र ही एक नई श्रृंखला के साथ उपस्थित होंगे। आगामे श्रृंखला के विषय,
राग, रचना और कलाकार के बारे में यदि आपकी कोई फरमाइश हो तो हमें अवश्य
लिखिए। आपको हमारी यह श्रृंखला कैसी लगी? हमें ई-मेल swargoshthi@gmail.com
पर अवश्य लिखिए। अगले रविवार को एक नए अंक के साथ प्रातः 8 बजे
‘स्वरगोष्ठी’ के इसी मंच पर आप सभी संगीतानुरागियों का हम स्वागत करेंगे।
प्रस्तुति : कृष्णमोहन मिश्र
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