स्वरगोष्ठी – 229 में आज
रंग मल्हार के – 6 : राग जयन्त मल्हार और देस मल्हार
‘ऋतु आई सावन की...’ और ‘सावन की रातों में...’


राग जयन्त मल्हार : ‘ऋतु आई सावन की...’ : पण्डित विनायक राव पटवर्धन

राग जयन्त मल्हार : ‘मेहा बरसने लगा है आज...’ : आशा भोसले : फिल्म – शक
आज का दूसरा राग देस मल्हार है। राग देस, भारतीय संगीत का अत्यन्त मनोरम और प्रचलित राग है। प्रकृति का सजीव चित्र उपस्थित करने में यह पूर्ण सक्षम राग है। यदि इस राग में मल्हार अंग का मेल हो जाए तो फिर 'सोने पर सुहागा' हो जाता है। आज हम आपको राग देस मल्हार का संक्षिप्त परिचय देते हुए इस राग पर आधारित फिल्म ‘प्रेमपत्र’ का एक गीत लता मंगेशकर और तलत महमूद की आवाज़ में प्रस्तुत करेंगे। राग देस मल्हार के नाम से ही स्पष्ट हो जाता है कि यह स्वतंत्र राग देस और मल्हार अंग के मेल से निर्मित राग है। राग देस अत्यन्त प्रचलित और सार्वकालिक होते हुए भी स्वतंत्र रूप से वर्षा ऋतु के परिवेश का चित्रण करने में समर्थ है। एक तो इस राग के स्वर संयोजन ऋतु के अनुकूल है, दूसरे इस राग में वर्षा ऋतु का चित्रण करने वाली रचनाएँ बहुत अधिक संख्या में मिलती हैं। राग देस औड़व-सम्पूर्ण जाति का राग है, जिसमें कोमल निषाद के साथ सभी शुद्ध स्वरों का प्रयोग होता है। राग देस मल्हार में देस का प्रभाव अधिक होता है। दोनों का आरोह-अवरोह एक जैसा होता है। इसमे दोनों गान्धार और दोनों निषाद का प्रयोग किया जाता है। रें नी(कोमल) ध प, ध म ग रे स्वरों से देस की झलक मिलती है। इसके बाद जब रे प ग(कोमल) ग(कोमल) म रे सा और उत्तरांग में म प नी(कोमल) (ध) नी सां के प्रयोग से राग मियाँ मल्हार की झलक मिलती है। मल्हार अंग के चलन और म रे प, रे म, स रे स्वरों के अनेक विविधता के साथ किये जाने वाले प्रयोग से राग विशिष्ट हो जाता है। राग देस की तरह राग देस मल्हार में भी कोमल गान्धार का अल्प प्रयोग किया जाता है। राग का यह स्वरुप पावस के परिवेश को जीवन्त कर देता है। परिवेश की सार्थकता के साथ यह मानव के अन्तर्मन में मिलन की आतुरता को यह राग बढ़ा देता है।

राग देस मल्हार : ‘सावन की रातों में...’ : लता मंगेशकर और तलत महमूद : फिल्म - प्रेमपत्र
संगीत पहेली
‘स्वरगोष्ठी’ के 229वें अंक की संगीत पहेली में आज हम आपको वर्षा ऋतु में ही गाये जाने वाले एक विशेष शैली के गीत का अंश सुनवा रहे हैं। इस गीतांश को सुन कर आपको निम्नलिखित तीन में से किन्हीं दो प्रश्नों के उत्तर देने हैं। पहेली क्रमांक 230 के सम्पन्न होने तक जिस प्रतिभागी के सर्वाधिक अंक होंगे, उन्हें इस वर्ष की तीसरी श्रृंखला (सेगमेंट) का विजेता घोषित किया जाएगा।
1 – गीत के इस अंश को सुन कर बताइए कि यह भारतीय संगीत की कौन सी शैली है?
2 – प्रस्तुत रचना किस ताल में निबद्ध है? ताल का नाम बताइए।
3 – क्या आप गायिका की आवाज़ को पहचान सकते हैं? यदि हाँ, तो उनका नाम बताइए।
आप इन तीन में से किन्हीं दो प्रश्नों के उत्तर केवल swargoshthi@gmail.com या radioplaybackindia@live.com पर ही शनिवार, 1 अगस्त, 2015 की मध्यरात्रि से पूर्व तक भेजें। COMMENTS में दिये गए उत्तर मान्य हो सकते है, किन्तु उसका प्रकाशन अन्तिम तिथि के बाद किया जाएगा। विजेता का नाम हम ‘स्वरगोष्ठी’ के 231वें अंक में प्रकाशित करेंगे। इस अंक में प्रस्तुत किये गए गीत-संगीत, राग अथवा कलासाधक के बारे में यदि आप कोई जानकारी या अपने किसी अनुभव को हम सबके बीच बाँटना चाहते हैं तो हम आपका इस मंच पर स्वागत करते हैं। आप पृष्ठ के नीचे दिये गए COMMENTS के माध्यम से तथा swargoshthi@gmail.com अथवा radioplaybackindia@live.com पर भी अपनी प्रतिक्रिया व्यक्त कर सकते हैं।
पिछली पहेली के विजेता
‘स्वरगोष्ठी’ की 227वें अंक की संगीत पहेली में हमने आपको भारतीय संगीत के यशस्वी गायक उस्ताद अमीर खाँ के कण्ठ-स्वर में राग रामदासी मल्हार के खयाल का एक अंश सुनवाया था और आपसे तीन में से किसी दो प्रश्न के उत्तर पूछा था। पहले प्रश्न का सही उत्तर है- राग रामदासी मल्हार, दूसरे प्रश्न का सही उत्तर है- ताल द्रुत तीनताल और तीसरे प्रश्न का सही उत्तर है- गायक उस्ताद अमीर खाँ।
इस बार की पहेली में आपको राग रामदासी मल्हार का अंश सुनवाया गया था। राग रामदासी और मीरा मल्हार में बहुत समानता होती है। दोनों रागों के थाट, जाति, वादी और संवादी स्वर समान होते हैं। राग मीरा मल्हार में दोनों गान्धार, दोनों धैवत और दोनों निषाद का प्रयोग किया जाता है, जबकि रामदासी मल्हार में दोनों गान्धार और दोनों निषाद के साथ केवल शुद्ध धैवत स्वर का प्रयोग किया जाता है, शेष सभी स्वर दोनों रागों में समान होते हैं। इस कारण पहेली के जिस प्रतिभागी ने राग की पहचान मीरा मल्हार के रूप में की है, उस उत्तर को भी हमने सही माना है। सही उत्तर देने वाले प्रतिभागी हैं, पेंसिवेनिया, अमेरिका से विजया राजकोटिया, हैदराबाद से डी. हरिणा माधवी, वोरहीज़, न्यूजर्सी से डॉ. किरीट छाया और जबलपुर से क्षिति तिवारी। चारो प्रतिभागियों को ‘रेडियो प्लेबैक इण्डिया’ की ओर से हार्दिक बधाई।
अपनी बात
मित्रो, ‘रेडियो प्लेबैक इण्डिया’ के साप्ताहिक स्तम्भ ‘स्वरगोष्ठी’ के मंच पर हमारी लघु श्रृंखला ‘रंग मल्हार के’ जारी है। अगले अंक में हम वर्षा ऋतु में गायी जाने वाली एक विशेष शैली का परिचय और गीत प्रस्तुत करेंगे। इस श्रृंखला के लिए आप अपने पसन्द के गीत, संगीत और राग की फरमाइश कर सकते हैं। ‘स्वरगोष्ठी’ के विभिन्न अंकों के बारे में हमें पाठकों, श्रोताओं और पहेली के प्रतिभागियों की अनेक प्रतिक्रियाएँ और सुझाव मिलते हैं। प्राप्त सुझाव और फरमार्इशों के अनुसार ही हम अपनी आगामी प्रस्तुतियों का निर्धारण करते हैं। आप भी यदि कोई सुझाव देना चाहते हैं तो आपका स्वागत है। अगले रविवार को प्रातः 9 बजे ‘स्वरगोष्ठी’ के नये अंक के साथ हम उपस्थित होंगे। हमें आपकी प्रतीक्षा रहेगी।
प्रस्तुति : कृष्णमोहन मिश्र
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