स्वरगोष्ठी – 227 में आज
रंग मल्हार के – 4 : राग सूर मल्हार
‘बादरवा बरसन लागी...’ और ‘डर लागे गरजे बदरवा...’
‘रेडियो प्लेबैक इण्डिया’ के साप्ताहिक स्तम्भ ‘स्वरगोष्ठी’ के मंच पर जारी है, हमारी लघु श्रृंखला ‘रंग मल्हार के’। श्रृंखला की चौथी कड़ी में मैं कृष्णमोहन मिश्र, आप सब संगीत-प्रेमियों का हार्दिक स्वागत करता हूँ। यह श्रृंखला, वर्षा ऋतु के रस और गन्ध से पगे गीत-संगीत पर केन्द्रित है। इस श्रृंखला के अन्तर्गत हम आपसे वर्षा ऋतु में गाये-बजाए जाने वाले रागों और उनमें निबद्ध कुछ चुनी हुई रचनाओं पर चर्चा कर रहे हैं। इसके साथ ही सम्बन्धित राग के आधार पर रचे गए फिल्मी गीत भी प्रस्तुत कर रहे हैं। भारतीय संगीत के अन्तर्गत मल्हार अंग के सभी राग पावस ऋतु के परिवेश की सार्थक अनुभूति कराने में समर्थ हैं। आम तौर पर इन रागों का गायन-वादन वर्षा ऋतु में अधिक किया जाता है। इसके साथ ही कुछ ऐसे सार्वकालिक राग भी हैं जो स्वतंत्र रूप से अथवा मल्हार अंग के मेल से भी वर्षा ऋतु के अनुकूल परिवेश रचने में सक्षम होते हैं। श्रृंखला की इस चौथी कड़ी में आज हम आपसे राग सूर मल्हार के बारे में चर्चा करेंगे। आज के अंक में सुविख्यात गायक पण्डित भीमसेन जोशी के स्वर में हम इस राग में दो मोहक रचनाएँ प्रस्तुत करेंगे, जिनके बोल हैं- 'बादरवा गरजत आए...' और ‘बादरवा बरसन लागी...’। इसके साथ ही फिल्म संगीतकार वसन्त देसाई का स्वरबद्ध किया, राग सूर मल्हार पर आधारित फिल्म ‘रामराज्य’ का एक गीत भी सुनवाएँगे।
मल्हार अंग के रागों की श्रृंखला में कुछ राग अपने युग के महान संगीतज्ञों और कवियों के नाम पर प्रचलित है। ऐसा ही एक उल्लेखनीय राग है- सूर मल्हार। ऐसी मान्यता है कि इस राग की रचना हिन्दी के भक्त कवि सूरदास ने की थी। इस ऋतु प्रधान राग में निबद्ध रचनाओं में पावस के सजीव चित्रण का गुण तो होता ही है, नायिका के विरह के भाव को सम्प्रेषित करने की क्षमता भी होती है। राग सूर मल्हार काफी थाट का राग माना जाता है। इसकी जाति औडव-षाडव होती है, अर्थात आरोह में पाँच और अवरोह में छः स्वरों का प्रयोग किया जाता है। इसका वादी मध्यम और संवादी षडज होता है। यह उत्तरांग प्रधान राग है। राग सूर मल्हार में दोनों निषाद का प्रयोग किया जाता है। आरोह में गान्धार और धैवत स्वरों का तथा अवरोह में गान्धार स्वर का प्रयोग वर्जित होता है।
इस
राग की कुछ अन्य विशेषताओं को रेखांकित करते हुए जाने-माने इसराज और मयूर
वीणा वादक पण्डित श्रीकुमार मिश्र ने बताया कि सूर मल्हार का मुख्य अंग है-
सा [म]रे प म, नी(कोमल) म प, नी(कोमल)ध प, म रे सा होता है। राग के
गायन-वादन में यदि सारंग झलकने लगे तो नी(कोमल) ध s म प नी(कोमल) ध s प
स्वरों का प्रयोग करने से सारंग तिरोहित हो जाता है। श्री मिश्र के अनुसार
सारंग के भाव में मेघ मल्हारांश उद्वेग के चपल और गम्भीर ओज से युक्त भाव
में राग देस के अंश के विरह भाव के मिश्रण से कसक-युक्त उल्लास में वेदना
के मिश्रण से नये रस-भाव का सृजन होता है। अब आप पण्डित भीमसेन जोशी से
सुनिए, राग सूर मल्हार में निबद्ध दो मोहक खयाल रचनाएँ। मध्यलय की रचना
एकताल में है, जिसके बोल हैं- ‘बादरवा गरजत आए...’ और इसके बाद द्रुत
तीनताल की बन्दिश के बोल हैं- ‘बादरवा बरसन लागी...’।
राग सूर मल्हार : ‘बादरवा गरजत आए...’ और ‘बादरवा बरसन लागी...’ : पण्डित भीमसेन जोशी
फिल्मी
संगीतकारों ने वर्षा ऋतु के इस राग सूर मल्हार पर आधारित एकाध गीत ही रचे
हैं, जिसमें वर्षा ऋतु के अनुकूल भावों की अभिव्यक्ति हो। संगीतकार वसन्त
देसाई का संगीतबद्ध किया एक कर्णप्रिय गीत हमे अवश्य उपलब्ध हुआ। फिल्म
संगीतकारों में वसन्त देसाई एक ऐसे संगीतकार रहे हैं जिनकी रचनाओं में
रागदारी संगीत के प्रति लगाव और उनकी प्रतिबद्धता के स्पष्ट दर्शन होते
हैं। मल्हार अंग के रागों के प्रति उनका लगाव उनकी अन्तिम फिल्म ‘शक’ तक
निरन्तर बना रहा। इस श्रृंखला की दूसरी कड़ी में बसन्त देसाई द्वारा राग
मियाँ मल्हार में स्वरबद्ध ‘गुड्डी’ का आकर्षक गीत आप सुन चुके हैं। आज के
अंक में हम राग सूर मल्हार के स्वरों में पिरोया उनका एक गीत प्रस्तुत कर
रहे हैं। 1967 में प्रदर्शित फिल्म ‘रामराज्य’ का यह गीत है, जिसे भरत
व्यास ने लिखा, वसन्त देसाई ने संगीतबद्ध किया और लता मंगेशकर ने स्वर दिया
है। आप यह गीत सुनिए और मुझे इस अंक को यहीं विराम देने की अनुमति दीजिए।
राग सूर मल्हार : ‘डर लागे गरजे बदरवा..’ : लता मंगेशकर : फिल्म रामराज्य
संगीत पहेली
‘स्वरगोष्ठी’
के 227वें अंक की संगीत पहेली में आज हम आपको मल्हार अंग के ही एक राग का
अंश एक उस्ताद गायक की आवाज़ में सुनवा रहे हैं। इस राग का नाम एक
संगीत-नायक के नाम पर किया गया है। इसे सुन कर आपको निम्नलिखित तीन में से
किन्हीं दो प्रश्नों के उत्तर देने हैं। पहेली क्रमांक 230 के सम्पन्न होने
तक जिस प्रतिभागी के सर्वाधिक अंक होंगे, उन्हें इस वर्ष की तीसरी
श्रृंखला (सेगमेंट) का विजेता घोषित किया जाएगा।
1 – गीत के इस अंश को सुन कर किस राग का आभास हो रहा है? राग का नाम बताइए।
2 – प्रस्तुत रचना किस ताल में निबद्ध है? ताल का नाम बताइए।
3 – क्या आप गायक की आवाज़ को पहचान सकते हैं? यदि हाँ, तो उनका नाम बताइए।
आप इन तीन में से किन्हीं दो प्रश्नों के उत्तर केवल swargoshthi@gmail.com या radioplaybackindia@live.com
पर ही शनिवार, 18 जुलाई, 2015 की मध्यरात्रि से पूर्व तक भेजें। COMMENTS
में दिये गए उत्तर मान्य हो सकते है, किन्तु उसका प्रकाशन अन्तिम तिथि के
बाद किया जाएगा। विजेता का नाम हम ‘स्वरगोष्ठी’ के 229वें अंक में प्रकाशित
करेंगे। इस अंक में प्रस्तुत किये गए गीत-संगीत, राग अथवा कलासाधक के बारे
में यदि आप कोई जानकारी या अपने किसी अनुभव को हम सबके बीच बाँटना चाहते
हैं तो हम आपका इस मंच पर स्वागत करते हैं। आप पृष्ठ के नीचे दिये गए
COMMENTS के माध्यम से तथा swargoshthi@gmail.com अथवा radioplaybackindia@live.com पर भी अपनी प्रतिक्रिया व्यक्त कर सकते हैं।
पिछली पहेली के विजेता
‘स्वरगोष्ठी’
की 225वें अंक की संगीत पहेली में हमने आपको सुप्रसिद्ध पार्श्वगायिका लता
मंगेशकर के कण्ठ-स्वर में एक फिल्मी खयाल रचना का अंश सुनवाया था और आपसे
तीन में से किसी दो प्रश्न के उत्तर पूछा था। पहले प्रश्न का सही उत्तर है-
राग गौड़ मल्हार, दूसरे प्रश्न का सही उत्तर है- ताल तीनताल और तीसरे
प्रश्न का सही उत्तर है- गायिका लता मंगेशकर।
इस
बार की पहेली में रायपुर, छतीसगढ़ से राजश्री श्रीवास्तव, पेंसिवेनिया,
अमेरिका से विजया राजकोटिया और हैदराबाद से डी. हरिणा माधवी ने तीनों
प्रश्न का सही उत्तर दिया है। तीन में से दो प्रश्न का सही उत्तर दिया है-
वोरहीज़, न्यूजर्सी से डॉ. किरीट छाया और जबलपुर से क्षिति तिवारी ने। पाँचो
प्रतिभागियों को ‘रेडियो प्लेबैक इण्डिया’ की ओर से हार्दिक बधाई।
अपनी बात
मित्रो,
‘रेडियो प्लेबैक इण्डिया’ के साप्ताहिक स्तम्भ ‘स्वरगोष्ठी’ के मंच पर
हमारी लघु श्रृंखला ‘रंग मल्हार के’ जारी है। अगले अंक में हम वर्षा ऋतु के
एक अन्य राग के साथ उपस्थित होंगे। इस श्रृंखला के लिए आप अपने पसंद के
गीत, संगीत और राग की फरमाइश कर सकते हैं। ‘स्वरगोष्ठी’ के विभिन्न अंकों
के बारे में हमें पाठकों, श्रोताओं और पहेली के प्रतिभागियों के अनेक
प्रतिक्रियाएँ और सुझाव मिलते हैं। प्राप्त सुझाव और फरमार्इशों के अनुसार
ही हम अपनी आगामी प्रस्तुतियों का निर्धारण करते हैं। आप भी यदि कोई सुझाव
देना चाहते हैं तो आपका स्वागत है। अगले रविवार को प्रातः 9 बजे
‘स्वरगोष्ठी’ के नये अंक के साथ हम उपस्थित होंगे। हमें आपकी प्रतीक्षा
रहेगी।
प्रस्तुति : कृष्णमोहन मिश्र
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