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तुझसे नाराज़ नहीं ज़िन्दगी - 01 (रवीन्द्र जैन)


तुझसे नाराज़ नहीं ज़िन्दगी - 01
 

मन की आँखें हज़ार होती हैं...!’
रवीन्द्र जैन




’रेडियो प्लेबैक इण्डिया’ के सभी दोस्तों को सुजॉय चटर्जी का सप्रेम नमस्कार! दोस्तों, किसी ने सच ही कहा है कि यह ज़िन्दगी एक पहेली है जिसे समझ पाना नामुमकिन है। कब किसकी ज़िन्दगी में क्या घट जाए कोई नहीं कह सकता। लेकिन कभी-कभी कुछ लोगों के जीवन में ऐसी दुर्घटना घट जाती है या कोई ऐसी विपदा आन पड़ती है कि एक पल के लिए ऐसा लगता है कि जैसे सब कुछ ख़त्म हो गया। पर निरन्तर चलते रहना ही जीवन-धर्म का निचोड़ है। और जिसने इस बात को समझ लिया, उसी ने ज़िन्दगी का सही अर्थ समझा, और उसी के लिए ज़िन्दगी ख़ुद कहती है कि तुझसे नाराज़ नहीं ज़िन्दगी। आज से हम इसी शीर्षक से एक नई शृंखला शुरू कर रहे हैं जिसमें हम ज़िक्र करेंगे उन फ़नकारों का जिन्होंने ज़िन्दगी के क्रूर प्रहारों को झेलते हुए जीवन में सफलता प्राप्त किए हैं, और हर किसी के लिए मिसाल बन गए हैं। आज का यह अंक समर्पित है गीतकार, संगीतकार, कवि और गायक रवीन्द्र जैन को।


28 फ़रवरी 1944 के दिन पंडित इन्द्रमणि ज्ञान प्रसाद जी के घर एक बच्चे का जन्म हुआ। परिवार में ख़ुशी का ठिकाना ना रहा। पर जल्द ही यह पता चला कि उस बच्चे की आँखें बन्द हैं। डॉ. मोहनलाल ने जन्म के अगले दिन एक ऑपरेशन किया, उन्होंने उस बच्चे की आँखें खोली। पर जाँच करने के बाद उन्होंने ज्ञान प्रसाद जी को यह कठोर सत्य बता ही दिया कि भले आँखों की रोशनी धीरे धीरे आ सकती है, पर पढ़ना मुनासिब नहीं रहेगा क्योंकि ऐसा करने पर नुकसान होगा। परिवार में जैसे अन्धेरा छा गया। इस नवजात शिशु का नाम रखा गया रवीन्द्र। उनके पिता ने दूरदर्शिता का परिचय देते हुए यह निर्णय लिया था कि अपने पुत्र के जीवन का लक्ष्य संगीत ही होगा और संगीत में ही उसकी पहचान बनेगी। और यही हुआ। अपनी इस कमी को रवीन्द्र जैन ने भी कभी अपने उपर हावी नहीं होने दिया और अपनी लगन और बुद्धि के सहारे वो ना केवल एक गायक-संगीतकार बने बल्कि काव्य और साहित्य के भी विद्‍वान बने। 80 के व्यावसायिक दशक में भी उन्होंने अर्थपूर्ण गीत लिखे और कभी पैसे के पीछे भाग कर सस्ते गीत नहीं लिखे। रवीन्द्र जैन का नाम सुनते ही दिल श्रद्धा से भर जाता है, उन्हें प्रणाम करने को जी चाहता है।

रवीन्द्र जैन ने एक साक्षात्कार में बताया था कि उन्हें कभी भी अपने नेत्रहीनता पर अफ़सोस नहीं हुआ। उन्हीं के शब्दों में, "मैं जानता हूँ कि दुनिया में हर आदमी किसी ना किसी पहलू से विकलांग है, चाहे वो शरीर से हो, मानसिक रूप से हो या कोई अभाव जीवन में हो। विकलांगता का मतलब यह नहीं कि शारीरिक असुविधा है, कहीं ना कहीं लोग मोहताज हैं, अपाहिज हैं, और उसी पर विजय पाना है। उससे निराश होने की ज़रूरत नहीं है। disability can be your ability also, उससे आपकी क्षमता दुगुनी हो जाती है।"

और यही संदेश उन्होंने एक बार अंध-विद्यालय के छात्रों को भी दिया। उन्हें एक बार एक ब्लाइन्ड स्कूल में मुख्य अतिथि के रूप में आमन्त्रित किया गया। जब उन्हें बच्चों को संबोधित करने को कहा गया, तो उन्होंने संदेश के रूप में यह कविता पढ़ी...

तन की आँखें तो दो ही होती हैं
मन की आँखें हज़ार होती हैं
तन की आँखें तो सो ही जाती हैं
मन की आँखें कभी ना सोती हैं।

चाँद सूरज के हैं जो मोहताज
भीख ना माँगो उन उजालों से,
बन्द आँखों से तुम वो काम करो
आँख खुल जाए आँख वालों की।

हैं अन्धेरे बहुत सितारे बनो
दूसरों के लिए किनारे बनो,
है ज़माने में बेसहारे बहुत
तुम सहारे ना लो, सहारे बनो।

’रेडियो प्लेबैक इण्डिया’ रवीन्द्र जैन जी को दिल से करती है सलाम!




खोज, आलेख व प्रस्तुति : सुजॉय चटर्जी

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