Skip to main content

‘आयो प्रभात सब मिल गाओ...’ : SWARGOSHTHI – 199 : RAG BHATIYAR


स्वरगोष्ठी – 199 में आज

शास्त्रीय संगीतज्ञों के फिल्मी गीत – 8 : राग भटियार


पण्डित राजन मिश्र ने एस. जानकी के साथ भटियार के स्वरों में गाया- 'आयो प्रभात सब मिल गाओ...'



‘रेडियो प्लेबैक इण्डिया’ के साप्ताहिक स्तम्भ ‘स्वरगोष्ठी’ के मंच पर जारी है, हमारी लघु श्रृंखला, ‘शास्त्रीय संगीतज्ञों के फिल्मी गीत’। अब हम इस लघु श्रृंखला के समापन की ओर बढ़ रहे हैं। इस श्रृंखला में अभी तक आपने 1943 से 1960 के बीच में बनी कुछ फिल्मों के ऐसे गीत सुने जो रागों पर आधारित थे और इन्हें किसी फिल्मी पार्श्वगायक या गायिका ने नहीं बल्कि समर्थ शास्त्रीय गायक या गायिका ने गाया था। छठे दशक के बाद अब हम आपको सीधे नौवें दशक में ले चलते है। इस दशक में भी फिल्मी गीतों में रागदारी संगीत का हल्का-फुल्का प्रयास किया गया था। ऐसा ही एक प्रयास संगीतकार लक्ष्मीकान्त प्यारेलाल ने 1985 की फिल्म ‘सुर संगम’ में किया था। इस फिल्म के मुख्य चरित्र के लिए उन्होने सुविख्यात गायक पण्डित राजन मिश्र (युगल गायक पण्डित राजन और साजन मिश्र में से एक) से पार्श्वगायन कराया था। आज के अंक में हम आपको इसी फिल्म से पण्डित राजन मिश्र की आवाज़ में राग भटियार के स्वरों में पिरोया एक गीत सुनवा रहे हैं। राग भटियार का एक अलग प्रयोगधर्मी स्वरूप का अनुभव करने के लिए सुप्रसिद्ध गायक पण्डित कुमार गन्धर्व के स्वरों में इस राग की एक आकर्षक रचना भी हम सुनेंगे। 


पण्डित राजन मिश्र
ठवें दशक से ही फिल्म संगीत की प्रवृत्तियों में काफी बदलाव आ चुका था। नौवें दशक के फिल्म संगीत में रागदारी संगीत का समावेश एक उल्लेखनीय घटना मानी जाएगी। ऐसे ही माहौल में 1985 में ‘सुर संगम’ और ‘उत्सव’, दो फिल्में बनीं जिसके संगीत में रागों का सहारा लिया गया था। यह भी उल्लेखनीय है कि इन दोनों फिल्मों के संगीतकार लक्ष्मीकान्त प्यारेलाल थे। फिल्मों में लम्बे समय तक लोकप्रिय संगीत देने के लिए लक्ष्मीकान्त प्यारेलाल का योगदान सराहनीय रहा है। 1963 में फिल्म ‘पारसमणि’ से फिल्म संगीतकार के रूप में पदार्पण करने वाली इस संगीतकार जोड़ी ने शुरुआती दौर की निम्नस्तरीय स्टंट फिल्मों में भी राग आधारित धुनें बना कर अपनी पैठ बनाई थी। उस दौर में उनकी फिल्में भले ही न चली हो, किन्तु उसका संगीत खूब लोकप्रिय हुआ। उनकी फिल्मों में लोक संगीत और लोकप्रिय सुगम संगीत के साथ-साथ राग आधारित धुनों का भी सहारा लिया गया था। 1985 में प्रदर्शित फिल्म ‘सुर संगम’ में उन्होने तत्कालीन प्रचलित फिल्म संगीत की प्रवृत्तियों के विपरीत संगीत दिया था। इस फिल्म के प्रायः सभी गीत विभिन्न रागों का आधार लिये हुए थे। यही नहीं फिल्म में मुख्य चरित्र के लिए उन्होने किसी फिल्मी पार्श्वगायक को नहीं बल्कि सुप्रसिद्ध शास्त्रीय युगल गायक पण्डित राजन और साजन मिश्र बन्धुओं में से एक राजन मिश्र का सहयोग लिया।

विदुषी एस. जानकी 
फिल्म ‘सुर संगम’ में राग आधारित संगीत देना एक अनिवार्यता थी। दरअसल यह फिल्म दक्षिण भारतीय फिल्म ‘शंकराभरणम्’ का हिन्दी रूपान्तरण थी। फिल्म में मुख्य चरित्र संगीतज्ञ पण्डित शिवशंकर शास्त्री थे, जो संगीत की शुचिता और मर्यादा के प्रबल पक्षधर थे। अपने इस लक्ष्य की प्राप्ति के लिए शास्त्री जी मानव-मानव में कोई भेद नहीं मानता थे। ऐसे विषय के लिए राग आधारित संगीत की आवश्यकता थी। फिल्म में राग मालकौंस पर आधारित गीत- ‘आए सुर के पंछी आए...’, राग भूपाली और देशकार पर आधारित गीत- ‘जाऊँ तोरे चरणकमल पर वारी...’, राग भैरवी के सुरों में- ‘धन्यभाग सेवा का अवसर पाया...’ जैसे आकर्षक गीत पण्डित राजन मिश्र की आवाज़ में थे। परन्तु इस फिल्म का जो गीत लेकर आज हम उपस्थित हुए हैं, वह राग भटियार के सुरों में पिरोया गीत- ‘आयो प्रभात सब मिल गाओ...’ है। इस गीत में पण्डित राजन मिश्र के साथ दक्षिण भारत की सुप्रसिद्ध गायिका एस. जानकी के स्वर भी शामिल हैं। गीतकार बसन्त देव का लिखा यह गीत संगीतकार लक्ष्मीकान्त प्यारेलाल ने सितारखानी ताल में निबद्ध किया है। इस गीत के अन्य पक्ष पर चर्चा जारी रहेगी, आइए पहले यह गीत सुनते हैं।


राग भटियार : ‘आयो प्रभात सब मिल गाओ...’ : पण्डित राजन मिश्र  और एस. जानकी : फिल्म - सुर संगम : संगीत - लक्ष्मीकान्त प्यारेलाल : गीत - बसन्त देव



आरोही नी अल्प ले, मध्यम दोऊ सम्हार,
रे कोमल, संवाद म स, क़हत राग भटियार।

अर्थात, इस राग में कोमल ऋषभ और दोनों मध्यम स्वरों का प्रयोग किया जाता है। आरोह में निषाद स्वर का अल्प प्रयोग किया जाता है। यह मारवा थाट का सम्पूर्ण जाति का राग है। राग का वादी स्वर मध्यम और संवादी स्वर षडज होता है। यह रात्रि के अन्तिम प्रहर विशेष रूप से सन्धिप्रकाश काल में गाया-बजाया जाने वाला राग है। अवरोह के स्वर वक्रगति से लिये जाते हैं। ऐसी मान्यता है कि यह पाँचवीं शताब्दी के राजा भर्तृहरि की राग रचना है। उत्तरांग प्रधान यह राग भंखार के काफी निकट होता है। राग भंखार में पंचम स्वर प ठहराव दिया जाता है, जबकि राग भटियार में शुद्ध मध्यम पर। यह राग गम्भीर, दार्शनिक भाव और जीवन के उल्लास की अभिव्यक्ति देने में पूर्ण समर्थ है। फिल्म ‘सुर संगम’ का यह गीत इन्हीं भावों की अभिव्यक्ति करता है। राग भटियार का एक शास्त्रोक्त और प्रयोगधर्मी स्वरूप का अनुभव कराने के लिए अब हम आपको पण्डित कुमार गन्धर्व की आवाज़ में इसी राग में एक खयाल रचना भी सुनवाएँगे।

पण्डित कुमार गन्धर्व 
पण्डित कुमार गन्धर्व भारतीय संगीत की एक नई प्रवृत्ति और नई प्रक्रिया के पहले कलासाधक थे। घरानों की पारम्परिक गायकी की अनेक शताब्दी पुरानी जो प्रथा थी उसमें संगीत तो जीवित रहता था, किन्तु संगीतकार के व्यक्तित्व और प्रतिभा का विसर्जन हो जाता था। कुमार गन्धर्व ने पारम्परिक संगीत के कठोर अनुशासन के अन्तर्गत ही कलासाधक की सम्भावना को स्थापित किया। 8 अप्रैल 1924 को बेलगाम, कर्नाटक के पास सुलेभवी नामक स्थान में एक संगीत प्रेमी परिवार में उनका जन्म हुआ था। माता-पिता ने नाम तो रखा था शिवपुत्र सिद्धरामय्या कोमकलीमठ, किन्तु आगे चल कर संगीत जगत में उन्हें कुमार गन्धर्व के नाम से प्रसिद्धि मिली। जिन दिनों कुमार गन्धर्व ने संगीत जगत में पदार्पण किया, उन दिनों भारतीय संगीत दरबारी जड़ता से प्रभावित था। कुमार गन्धर्व, पूर्णनिष्ठा और स्वर संवेदना के साथ एकाकी ही सक्रिय हुए। उन्होने अपनी एक निजी गायन शैली विकसित की जो हमें भक्तिपदों के आत्मविस्मरणकारी गायकी का स्मरण कराती है। वे मात्र एक साधक ही नहीं अन्वेषक भी थे। उनकी अन्वेषण प्रतिभा ही उन्हें भारतीय संगीत का कबीर बनाती है। उनका संगीत इसलिए भी रेखांकित किया जाएगा कि वह लोकोन्मुख रहा है। आइए, अब हम आपको पण्डित कुमार गन्धर्व के स्वर में राग भटियार, तीनताल में निबद्ध एक खयाल सुनवाते हैं। आप इस कृति का रसास्वादन कीजिए और इसी के साथ आज के इस अंक से विराम लेने की हमें अनुमति दीजिए।


राग भटियार : ‘दिन गए बीत दुःख के...’ : पण्डित कुमार गन्धर्व : तीनताल





आज की पहेली


‘स्वरगोष्ठी’ के 199वें अंक की पहेली में आज हम आपको एक राग आधारित फिल्मी गीत का अंश सुनवा रहे हैं। फिल्म के इस गीतांश को सुन कर आपको निम्नलिखित दो प्रश्नों के उत्तर देने हैं।वर्ष 2014 की 200वें अंक की पहेली के सम्पन्न होने तक जिस प्रतिभागी के सर्वाधिक अंक होंगे, उन्हें इस श्रृंखला (सेगमेंट) का विजेता घोषित किया जाएगा।


1 – गीत के इस अंश को सुन कर बताइए कि आपको इसमें किस राग का अनुभव हो रहा है?

2 – यह रचना किस गायिका की आवाज़ में है?

आप अपने उत्तर केवल swargoshthi@gmail.com या radioplaybackindia@live.com पर ही शनिवार, 27 दिसम्बर, 2014 को मध्यरात्रि से पूर्व तक भेजें। COMMENTS में दिये गए उत्तर मान्य नहीं होंगे। विजेता का नाम हम ‘स्वरगोष्ठी’ के 201वें अंक में प्रकाशित करेंगे। इस अंक में प्रस्तुत किये गए गीत-संगीत, राग अथवा कलासाधक के बारे में यदि आप कोई जानकारी या अपने किसी अनुभव को हम सबके बीच बाँटना चाहते हैं तो हम आपका इस मंच पर स्वागत करते हैं। आप पृष्ठ के नीचे दिये गए COMMENTS के माध्यम से तथा swargoshthi@gmail.com अथवा radioplaybackindia@live.com पर भी अपनी प्रतिक्रिया व्यक्त कर सकते हैं।


पिछली पहेली के विजेता


‘स्वरगोष्ठी’ की 197वें अंक की संगीत पहेली में हमने आपको 1960 में प्रदर्शित बाँग्ला फिल्म ‘क्षुधित पाषाण’ के एक राग आधारित गीत अथवा खयाल का अंश सुनवा कर आपसे दो प्रश्न पूछे थे। पहले प्रश्न का सही उत्तर है- राग बागेश्री और पहेली के दूसरे प्रश्न का सही उत्तर है- ताल मध्य लय तीनताल। इस बार की पहेली में पूछे गए दोनों प्रश्नो के सही उत्तर पूर्व की भाँति जबलपुर से क्षिति तिवारी, हैदराबाद से डी. हरिणा माधवी और पेंसिलवानिया, अमेरिका से विजया राजकोटिया ने दिया है। तीनों प्रतिभागियों को ‘रेडियो प्लेबैक इण्डिया’ की ओर से हार्दिक बधाई।


अपनी बात


मित्रों, ‘रेडियो प्लेबैक इण्डिया’ के साप्ताहिक स्तम्भ ‘स्वरगोष्ठी’ के मंच पर इन दिनों हम भारतीय शास्त्रीय संगीत के विद्वानों द्वारा फिल्मों के लिए गाये गए गीतों पर चर्चा कर रहे हैं। अब हम इस लघु श्रृंखला के समापन की ओर बढ़ रहे हैं। वर्ष 2015 से ‘स्वरगोष्ठी’ की श्रृंखलाओं के बारे में हमे अनेक पाठकों और श्रोताओ के बहुमूल्य सुझाव प्राप्त हो रहे हैं। इन सभी सुझाव पर विचार-विमर्श कर हम नये वर्ष से अपनी प्रस्तुतियों में आवश्यक संशोधन करने जा रहे हैं। यदि आपने अभी तक अपने सुझाव और फरमाइश नहीं भेजी हैं तो आविलम्ब हमें भेज दें। अगले रविवार को प्रातः 9 बजे ‘स्वरगोष्ठी’ के नये अंक के साथ हम उपस्थित होंगे। अगले अंक भी हमें आपकी प्रतीक्षा रहेगी।


प्रस्तुति : कृष्णमोहन मिश्र 

Comments

बढ़िया रोचक व ज्ञानवर्धक प्रस्तुति
Smart Indian said…
आनंददायक प्रस्तुति। आभार!
Anonymous said…
kahin kahin par S Janaki ki jagah Kavita Krishnamurthy ka naam diya gaya hai. kya is geet ke do sanskaran hai?
फिल्म 'सुर संगम' का एक अन्य गीत है- 'धन्यभाग सेवा का अवसर पाया...', जिसमे पंडित राजन मिश्र के साथ कविता कृष्णमूर्ति के स्वर हैं।

Popular posts from this blog

सुर संगम में आज -भारतीय संगीताकाश का एक जगमगाता नक्षत्र अस्त हुआ -पंडित भीमसेन जोशी को आवाज़ की श्रद्धांजली

सुर संगम - 05 भारतीय संगीत की विविध विधाओं - ध्रुवपद, ख़याल, तराना, भजन, अभंग आदि प्रस्तुतियों के माध्यम से सात दशकों तक उन्होंने संगीत प्रेमियों को स्वर-सम्मोहन में बाँधे रखा. भीमसेन जोशी की खरज भरी आवाज का वैशिष्ट्य जादुई रहा है। बन्दिश को वे जिस माधुर्य के साथ बदल देते थे, वह अनुभव करने की चीज है। 'तान' को वे अपनी चेरी बनाकर अपने कंठ में नचाते रहे। भा रतीय संगीत-नभ के जगमगाते नक्षत्र, नादब्रह्म के अनन्य उपासक पण्डित भीमसेन गुरुराज जोशी का पार्थिव शरीर पञ्चतत्त्व में विलीन हो गया. अब उन्हें प्रत्यक्ष तो सुना नहीं जा सकता, हाँ, उनके स्वर सदियों तक अन्तरिक्ष में गूँजते रहेंगे. जिन्होंने पण्डित जी को प्रत्यक्ष सुना, उन्हें नादब्रह्म के प्रभाव का दिव्य अनुभव हुआ. भारतीय संगीत की विविध विधाओं - ध्रुवपद, ख़याल, तराना, भजन, अभंग आदि प्रस्तुतियों के माध्यम से सात दशकों तक उन्होंने संगीत प्रेमियों को स्वर-सम्मोहन में बाँधे रखा. भीमसेन जोशी की खरज भरी आवाज का वैशिष्ट्य जादुई रहा है। बन्दिश को वे जिस माधुर्य के साथ बदल देते थे, वह अनुभव करने की चीज है। 'तान' को वे अपनी चे

कल्याण थाट के राग : SWARGOSHTHI – 214 : KALYAN THAAT

स्वरगोष्ठी – 214 में आज दस थाट, दस राग और दस गीत – 1 : कल्याण थाट राग यमन की बन्दिश- ‘ऐसो सुघर सुघरवा बालम...’  ‘रेडियो प्लेबैक इण्डिया’ के साप्ताहिक स्तम्भ ‘स्वरगोष्ठी’ के मंच पर आज से आरम्भ एक नई लघु श्रृंखला ‘दस थाट, दस राग और दस गीत’ के प्रथम अंक में मैं कृष्णमोहन मिश्र, आप सब संगीत-प्रेमियों का हार्दिक स्वागत करता हूँ। आज से हम एक नई लघु श्रृंखला आरम्भ कर रहे हैं। भारतीय संगीत के अन्तर्गत आने वाले रागों का वर्गीकरण करने के लिए मेल अथवा थाट व्यवस्था है। भारतीय संगीत में 7 शुद्ध, 4 कोमल और 1 तीव्र, अर्थात कुल 12 स्वरों का प्रयोग होता है। एक राग की रचना के लिए उपरोक्त 12 स्वरों में से कम से कम 5 स्वरों का होना आवश्यक है। संगीत में थाट रागों के वर्गीकरण की पद्धति है। सप्तक के 12 स्वरों में से क्रमानुसार 7 मुख्य स्वरों के समुदाय को थाट कहते हैं। थाट को मेल भी कहा जाता है। दक्षिण भारतीय संगीत पद्धति में 72 मेल प्रचलित हैं, जबकि उत्तर भारतीय संगीत पद्धति में 10 थाट का प्रयोग किया जाता है। इसका प्रचलन पण्डित विष्णु नारायण भातखण्डे जी ने प्रारम्भ किया

‘बरसन लागी बदरिया रूमझूम के...’ : SWARGOSHTHI – 180 : KAJARI

स्वरगोष्ठी – 180 में आज वर्षा ऋतु के राग और रंग – 6 : कजरी गीतों का उपशास्त्रीय रूप   उपशास्त्रीय रंग में रँगी कजरी - ‘घिर आई है कारी बदरिया, राधे बिन लागे न मोरा जिया...’ ‘रेडियो प्लेबैक इण्डिया’ के साप्ताहिक स्तम्भ ‘स्वरगोष्ठी’ के मंच पर जारी लघु श्रृंखला ‘वर्षा ऋतु के राग और रंग’ की छठी कड़ी में मैं कृष्णमोहन मिश्र एक बार पुनः आप सभी संगीतानुरागियों का हार्दिक स्वागत और अभिनन्दन करता हूँ। इस श्रृंखला के अन्तर्गत हम वर्षा ऋतु के राग, रस और गन्ध से पगे गीत-संगीत का आनन्द प्राप्त कर रहे हैं। हम आपसे वर्षा ऋतु में गाये-बजाए जाने वाले गीत, संगीत, रागों और उनमें निबद्ध कुछ चुनी हुई रचनाओं का रसास्वादन कर रहे हैं। इसके साथ ही सम्बन्धित राग और धुन के आधार पर रचे गए फिल्मी गीत भी सुन रहे हैं। पावस ऋतु के परिवेश की सार्थक अनुभूति कराने में जहाँ मल्हार अंग के राग समर्थ हैं, वहीं लोक संगीत की रसपूर्ण विधा कजरी अथवा कजली भी पूर्ण समर्थ होती है। इस श्रृंखला की पिछली कड़ियों में हम आपसे मल्हार अंग के कुछ रागों पर चर्चा कर चुके हैं। आज के अंक से हम वर्षा ऋतु की