एक गीत सौ कहानियाँ - 34
‘आज की रात मेरे दिल की सलामी ले ले...’
जावेद बदायूंनी |
हिन्दी सिने संगीत जगत में गीतकार-संगीतकार जोड़ियों की परम्परा कोई नई बात नहीं है। शुरुआती दौर से लेकर आज तक यह परम्परा जारी है, पर व्यावसायिक सम्बन्ध के साथ-साथ पारिवारिक सम्बन्ध भी इन जोड़ियों में हो, ऐसा हर जोड़ी में नहीं देखा गया। गीतकार शक़ील बदायूंनी और संगीतकार नौशाद की जोड़ी एक ऐसी जोड़ी थी जो केवल गीतों के बनने तक ही सीमित नहीं रही, बल्कि एक दूसरे के सुख-दुख में, एक दूसरे के परिवार की सहायता के लिए हमेशा तत्पर रही। शक़ील और नौशाद की दोस्ती की मिसाल सच्ची दोस्ती की मिसाल है, जिसे शक़ील के इन्तकाल के बाद भी नौशाद ने निभाया। शक़ील साहब के बेटे जावेद बदायूंनी ने फ़ेसबुक के माध्यम से मुझे एक बार बताया था कि किस प्रकार शक़ील साहब की मौत के बाद भी नौशाद साहब उनके घर पर समय-समय पर आया करते और उनके परिवार के सभी सदस्यों का हालचाल पूछते। उन्हीं के शब्दों में- “शक़ील साहब और नौशाद साहब वेयर ग्रेटेस्ट फ़्रेण्ड्स! यह हक़ीक़त है कि शक़ील साहब नौशाद साहब के साथ अपने परिवार से भी ज़्यादा वक़्त बिताया करते थे। दोनों की आपस की ट्यूनिंग ग़ज़ब की थी और यह ट्यूनिंग इनके गीतों से साफ़ झलकती है। शक़ील साहब के गुज़र जाने के बाद भी नौशाद साहब हमारे घर आते रहते थे और हमारी हौसला अफ़ज़ाई करते थे। यहाँ तक कि नौशाद साहब हमें बताते थे कि ग़ज़ल और नज़्म किस तरह से पढ़ी जाती है और मैं जो कुछ भी लिखता था, वो उन्हें सुधार दिया करते थे।” मजरूह सुल्तानपुरी और ख़ुमार बाराबंकवी की ही तरह नौशाद और ए.आर. कारदार ने किसी मुशायरे में शक़ील बदायूनी को कलाम पढ़ते सुना और उन्हें भी अपने साथ कर लिया। शक़ील – नौशाद की जोड़ी फ़िल्म जगत की एक प्रसिद्ध गीतकार – संगीतकार जोड़ी रही है। फ़िल्म ‘दर्द’ के सभी 10 गीत लिखते हुए शक़ील ने अपने फ़िल्मी गीत लेखन के पारी की शुरुआत की। शक़ील के आने के बाद और शक़ील की मृत्यु से पहले नौशाद ने अपने फ़िल्मी सफ़र में केवल एक फ़िल्म ऐसी की जिसके गानें शक़ील ने नहीं लिखे। बड़े ही वफ़ादारी के साथ नौशाद ने शक़ील का साथ निभाया।
नौशाद, रफ़ी और शक़ील |
फ़िल्म 'राम और श्याम' के इस गीत "आज की रात मेरे दिल की सलामी ले ले" को अगर करीब से महसूस करना हो तो शक़ील साहब के जीवन के अन्तिम समय की तरफ़ झाँकना होगा कि किन हालातों में उन्होंने यह गीत लिखा था। यह बात है सन् 1967-68 की। शक़ील बदायूंनी की उम्र केवल 50 वर्ष की थी कि टी.बी जैसी भयानक बीमारी ने उन्हें जकड़ लिया। उनकी वित्तीय अवस्था उतनी मज़बूत नहीं थी कि वो अपना इलाज किसी बेहतरीन अस्पताल में करवाते। टी.बी. की संक्रामकता के चलते उन्हें पंचगनी स्थित एक सैनिटोरियम में भेज दिया गया इलाज के लिए। नौशाद साहब को जैसे ही इस बात का पता चला कि शक़ील साहब बीमार हैं और उनके पास इलाज के लिए पर्याप्त धन नहीं है, उन्हें बहुत ज़्यादा तकलीफ़ हुई, दुख हुआ। नौशाद साहब को पता था कि शक़ील साहब इतने ख़ुद्दार इंसान हैं कि किसी से पैसे वो नहीं लेंगे, यहाँ तक कि नौशाद से भी नहीं। इसलिए नौशाद साहब ने एक दूसरा रास्ता इख़्तियार किया। वो पहुँच गये कुछ फ़िल्म निर्माताओं के पास और शक़ील साहब की हालत का ब्योरा देते हुए उनके लिए हासिल कर लिए तीन फ़िल्मों में गीत लिखने का कॉण्ट्रैक्ट। यही नहीं, उस समय शक़ील किसी फ़िल्म के लिए जितने रकम लिया करते थे, उससे दस गुना ज़्यादा रकम पर नौशाद ने उन फ़िल्म निर्माताओं को राज़ी करवाया। उसके बाद नौशाद ख़ुद जा पहुँचे पंचगनी जहाँ शक़ील का इलाज चल रहा था। जैसे ही उन्होंने शक़ील को उन तीन फ़िल्मों में गाने लिखने और पेमेण्ट की रकम के बारे में बताया तो शक़ील समझ गये कि उन पर अहसान किया जा रहा है। और उन्होंने नौशाद साहब से वो फ़िल्में वापस कर आने को कहा। पर नौशाद साहब ने भी अब ज़िद पकड़ ली और शक़ील साहब को गाने लिखने पर मजबूर किया। जानते हैं ये तीन फ़िल्में कौन सी थीं? 'राम और श्याम', 'आदमी', और 'संघर्ष'। फ़िल्म 'राम और श्याम' के इस ख़ास गीत "आज की रात मेरे" शक़ील बदायूंनी ने पंचगनी के अस्पताल के बेड पर बैठे-बैठे लिखा था। अपनी दिन-ब-दिन ढलती जा रही ज़िन्दगी को देख कर उन्हें शायद यह अहसास हो चला था कि अब वो ज़्यादा दिन ज़िन्दा नहीं रहेंगे, कि उनका अन्तिम समय अब आ चला है, शायद इसीलिए उन्होंने इस गीत में लिखा कि "कल तेरी बज़्म से दीवाना चला जायेगा, शम्मा रह जायेगी परवाना चला जायेगा, आज की रात मेरे दिल की सलामी ले ले"।
नौशाद साहब अपने जीवन के अन्त तक जब भी इस गीत को सुनते थे, उनकी आँखों में आँसू आ जाते थे शक़ील को याद करके। उन्हें ऐसा लगता था, उन्हें यह महसूस होता था कि शक़ील ने यह गीत उन्हीं को ही लिखा है नायिका की आड़ लेकर। नौशाद साहब ने बड़े मन से इस गीत को राग पहाड़ी, कहरवा ताल में बाँधा था। जिस तरह से शक़ील ने नौशाद साहब को अपनी ग़रीबी के बारे में नहीं बताया, अपना अन्तिम समय आने के बारे में नहीं बताया और चुपचाप पंचगनी के अस्पताल में चले गये, और जिस तरह से नौशाद उन पर तरस खाकर उनके लिए दस गुना ज़्यादा फ़ीस का इन्तज़ाम कर लाये, और शक़ील साहब के मना करने के बावजूद ज़बरदस्ती इन तीन फ़िल्मों को दस गुना ज़्यादा रकम में करने का ज़िद किया, ये सब बातें शक़ील को अन्दर ही अन्दर खाये जा रहा था, और उनके दिल की यही कश्मकश इस गीत के एक अन्तरे में फूट पड़ी- "मैंने चाहा कि बता दूँ मेरी हक़ीक़त अपनी, तू ने लेकिन न मेरा राज़-ए-मोहब्बत समझा, मेरी उलझन मेरी हालात यहाँ तक पहुँचे, तेरी आँखों ने मेरे प्यार को नफ़रत समझा, अब तेरी राह से बेगाना चला जायेगा, शम्मा रह जायेगी परवाना चला जायेगा..."। और अपने दिल की सलामी दे कर यह परवाना 20 अप्रैल 1970 को सचमुच दुनिया के इस बज़्म से हमेशा हमेशा के लिए चला गया, और नौशाद साहब के दिल में गूंजने लगे ये बोल-
तू मेरा साथ न दे राह-ए-मोहब्बत में सनम,
चलते चलते मैं किसी राह पे मुड़ जाऊँगा।
कहकशां चाँद सितारे तेरे चूमेंगे क़दम,
तेरे रस्ते की मैं एक धूल हूँ उड़ जाऊँगा।
साथ मेरे मेरा अफ़साना चला जायेगा,
कल तेरी बज़्म से दीवाना चला जायेगा,
शम्मा रह जायेगी परवाना चला जायेगा।
फिल्म - राम और श्याम : 'आज की रात मेरे दिल की सलामी ले ले...' : गायक - मुहम्मद रफी : संगीत - नौशाद : गीत - शकील बदायूँनी
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खोज, आलेख व प्रस्तुति : सुजॉय चटर्जी
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