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झूमो रे, दरवेश...( भाग १ ), सूफी संगीत परम्परा पर एक विशेष श्रृंखला, अशोक पाण्डे की कलम से

सूफी संगीत यानी, स्वरलहरियों पर तैरकर जाना और ईश्वर रुपी समुंदर में विलीन हो जाना, सूफी संगीत यानी, "मै" का खो जाना और "तू" हो जाना, सदियों से रूह को सकून देते, सूफी संगीत पर "आवाज़" के संगीत विशेषज्ञ, और वरिष्ट ब्लॉगर, अशोक पाण्डे लेकर आए हैं, एक विशेष श्रृंखला, जिसका हर अंक हमें यकीं है, हमारे संगीत प्रेमियों के लिए, एक अनमोल धरोहर साबित होगा. प्रस्तुत है, इस श्रृंखला की पहली कड़ी आज, अशोक पाण्डे की कलम से.....

सूफ़ीवाद के प्रवर्तकों में अग्रणी गिने जाने वाले तेरहवीं सदी के महान फ़ारसी कवि जलालुद्दीन रूमी एक जगह लिखते हैं:

"मैंने चुपचाप आहें भरीं ताकि आने वाली कई सदियों तक दुनिया में मेरी 'हाय' प्रतिध्वनित होती रहे"

विशेषज्ञों ने सूफ़ीवाद को परिभाषित करते हुए उसे एक ऐसा विज्ञान बताया है जिसका उद्देश्य हृदय का परिष्कार करते हुए उसे ईश्वर के अलावा हर दूसरी चीज़ से विरत करना होता है. एक दूसरी परिभाषा के अनुसार सूफ़ीवाद वह विज्ञान है जिसके माध्यम से हम सीख सकते हैं कि किस तरह ईश्वर की उपस्थिति में जीवन बिताते हुए अपने आन्तरिक व्यक्तित्व की अशुद्धियों को परिष्कृत किया जाए और उसे लगातार सुन्दर बनाए जाने का उपक्रम किया जाए. मूलतः इस्लाम की रहस्यवादी शाखा के रूप में विकसित हुआ सूफ़ीवाद क़रीब एक हज़ार साल पुराना है. इस दौरान भाषा के रास्ते फ़ारसी, तुर्की और क़रीब बीस अन्य भाषाओं से हो कर गुज़रते हुए सूफ़ीवाद विश्व के तमाम देशों तक पहुंचा.

सूफ़ी दर्शन का संगीत से संबंध कैसे और कब क़ायम हुआ इस बारे में बहुत प्रामाणिक जानकारी तो नहीं मिलती लेकिन जलालुद्दीन रूमी की ही एक कविता से यह क़यास लगाया जा सकता है कि संभवतः तेरहवीं सदी तक आते आते संगीत सूफ़ीवाद का अभिन्न अंग बन चुका था. कविता यूं है -

"हर दिन की तरह आज भी
हम सब जागते हैं ख़ाली और डरे हुए.
अपने अध्ययनकक्ष का द्वार खोल कर कुछ पढ़ना मत शुरू कर दो.
बेहतर है,
कोई वाद्य यन्त्र ले लो.
उसके बाद बन लेने दो सौन्दर्य को वह
जिसे हम प्यार करते हैं
."

सूफ़ीवाद में संगीत से उपजने वाले उत्कृष्ट आध्यात्मिक सौन्दर्य को ईश्वर से एकाकार होने का सबसे उचित उपकरण माना जाता है. जहां पारम्परिक इस्लाम में संगीत को नीची निगाहों से देखे जाने की परम्परा रही थी, वहीं संगीत के माध्यम से ईश्वर के साथ संवाद स्थापित कर लेने पर ज़ोर देने वाले सूफ़ीवाद में इस प्रयोजन हेतु 'धिक्र' (या 'ज़िक्र') को सर्वोपरि माना गया. 'ज़िक्र' में ईश्वर के नाम का जाप, प्रार्थना, ध्यान, कविता, क़ुरान की आयतों और वाद्य यंत्रों इत्यादि सभी के लिए स्थान होता है. इस कार्य में रत रहने वाले को सूफ़ी भी कहा गया है और दरवेश भी.

ज़िक्र एक सामूहिक परम्परा मानी गई है जिसके अनुसार शेख़ या पीर के नाम से सम्बोधित किया जाने वाला कोई वरिष्ठ सूफ़ी बहुत सारे अन्य सूफ़ियों या दरवेशों की अगुवाई करता था. इस अनुष्ठान में मौके के हिसाब से पवित्र संगीत सुनना सबसे महत्वपूर्ण होता था. सुनने की इस प्रक्रिया में परमानन्द जैसी अनुभूति होने पर नैसर्गिक रूप से नृत्य करने लगना या आविष्ट हो जाना आम हुआ करता था. हमारे यहां दरगाहों पर क़व्वालियों के उरूज पर आने की स्थिति में ऐसे दृश्य देखे ही जाते रहे हैं. तुर्की की दरवेश नृत्य परंपरा इस का एक बेजोड़ नमूना है. भावावेश की अवस्था में सफ़ेद लहरदार पोशाकें पहने घूम-घूम कर नाचने की इस शैली में सूफ़ीगण सूर्य के गिर्द घूमती धरती को सांकेतिक तरीके से प्रदर्शित करते हैं.


सूफ़ी सम्प्रदायों की उपस्थिति समूचे मुस्लिम जगत में दर्ज़ है. दक्षिण और मध्य एशिया से लेकर तुर्की. ईरान और उत्तरी, पूर्वी और पश्चिमी अफ़्रीकी देशों में फैले हुए सूफ़ीवादी धाराओं की अपनी अपनी वैविध्यपूर्ण परम्पराएं हैं: इनमें भारत-पाकिस्तान की क़व्वाली, सेनेगल की वोलोफ़ भाषा के गीत और तुर्की के दरवेश नृत्य जैसी विधाएं लगातार विकसित होती गई हैं.

इस क्रम में आज सुनिये सिन्धु घाटी के बलूचिस्तानी इलाक़े के सूफ़ी संगीत की एक बानगी के तौर पर रहीमा साहबी की मुख्य आवाज़ में कलंदरी ज़िक्र और क़व्वाल बहाउद्दीन, क़ुतुबुद्दीन एंड पार्टी से हज़रत अमीर ख़ुसरो की एक क़व्वाली:






(जारी...)

Comments

behad hi khubsoorat kawwali prastut karne keliye ashok ji ka bahut bahut dhanyawaad. Saath hi saath ashok ji aapne jo behad rochak ewam upayogi jaankari di hai uske liye aapka tah-e-dil se shukriya.

-vishwa Deepak 'tanha'
अशोक भाई बेहद उन्दा प्रस्तुति है, आमिर खुसरो की कव्वाली सुन कर मज़ा आ गया, अगली कड़ी का बेसब्री से इन्तेज़ार रहेगा ...
सुन्दर कब्बाली... बहुत बढिया श्रंखला....
अशोक जी,

आवाज़ पर यह शृंखला शुरू करके आपने हम संगीत-प्रेमियों पर बहुत कृपा की है। प्रस्तुतिकरण बहुत बढ़िया है। और दोनों की दोनों पॉडकास्टें अनूठी हैं। अमर संगीत है।

साधुवाद।
Manish Kumar said…
इस जानकारी के लिए आभार...
बहुत ही बेहतरीन ..सूफी पर इतनी सुंदर जानकारी और कव्वाली भी बहुत मोह लेने वाली है
बहुत सी अच्छी जानकारी दी सूफी संगीत के बारे में
कव्वाली भी अच्छी है
itanee sundar jaankaree ke liyen....

aabhaar

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