Skip to main content

Posts

होली के रंगों के साथ वापसी 'एक गीत सौ कहानियाँ' की...

एक गीत सौ कहानियाँ - 24   ‘मोहे पनघट पे नन्दलाल छेड़ गयो रे...’ हम रोज़ाना न जाने कितने ही गीत सुनते हैं, और उन्हें गुनगुनाते हैं। पर ऐसे बहुत कम ही गीत होंगे जिनके बनने की कहानी से हम अवगत होंगे। फ़िल्मी गीतों की रचना प्रक्रिया, उनसे जुड़ी दिलचस्प बातें, और कभी-कभी आश्चर्य में डाल देने वाले तथ्यों की जानकारियों को समेटता है 'रेडियो प्लेबैक इण्डिया' का साप्ताहिक स्तम्भ 'एक गीत सौ कहानियाँ'। एक लम्बे अन्तराल के बाद आज से इस स्तम्भ का पुन: शुभारम्भ हो रहा है। आज इसकी 24-वीं कड़ी में जानिये फ़िल्म 'मुग़ल-ए-आज़म' के गीत "मोहे पनघट पे नन्दलाल छेड़ गयो रे..." के बारे में...  'मु ग़ल-ए-आज़म', 1960 की सर्वाधिक चर्चित फ़िल्म। के. आसिफ़ निर्देशित इस महत्वाकांक्षी फ़िल्म की नीव सन् 1944 में रखी गयी थी। दरअसल बात ऐसी थी कि आसिफ़ साहब ने एक नाटक पढ़ा। उस नाटक की कहानी शाहंशाह अकबर के राजकाल की पृष्ठभूमि में लिखी गयी थी। कहानी उन्हें अच्छी लगी और उन्होंने इस पर एक बड़ी फ़िल्म बनाने की सोची। लेकिन उन्हें उस वक़्त यह अन्दाज़ा भी नहीं हुआ होगा कि उनके इस

जुगनी उडी गुलाबी पंख लेकर इस होली पर

ताज़ा सुर ताल - 2014 - 10 दोस्तों इस रविवार को दुनिया भर में मनाया गया महिला दिवस. आज जो दो गीत हम आपके लिए चुनकर लेकर आये हैं वो भी नारी शक्ति के दो मुक्तलिफ़ रूप दर्शाने वाले हैं. पहला गीत है गुलाब गैंग  का... कलगी हरी है, चोंच गुलाबी, पूँछ है उसकी पीली हाय, रंग से हुई रंगीली रे चिड़िया, रंग से हुई रंगीली  ... नेहा सरफ के लिखे इस खूबसूरत गीत में गौर कीजिये कि उन्होंने इस चिड़िया की चोंच गुलाबी  रंगी है, यही बदलते समय में नारी की हुंकार को दर्शाता है. वो अब दबी कुचली अबला बन कर नहीं बल्कि एक सबल और निर्भय पहचान के साथ अपनी जिंदगी संवारना चाहती है. शौमिक सेन के स्वरबद्ध इस गीत को आवाज़ दी है कौशकी चक्रवर्ति ने. गुलाब गैंग  में ९० के दशक की दो सुंदरियाँ, माधुरी दीक्षित और जूही चावला पहली बार एक साथ नज़र आयेगीं. फिल्म कैसी है ये आप देखकर बताएं, फिलहाल सुनिए ये गीत जो इस साल होली को एक नए रंग में रंगने वाली है.  ) कितने काफिले समय के/  धूल फांकते गुजरे हैं/  मेरी छाती से होकर/  मटमैली चुनर सी  / बिछी रही आसमां पे मैं... कोख में ही दबा दी गयी/  कितनी किलकारियां मेरी/  नरक का द्वार,

होली की उमंग : राग काफी के संग

स्वरगोष्ठी – 158 में आज फाल्गुनी परिवेश में राग काफी के विविध रंग   ‘लला तुमसे को खेले होली, तुम तो करत बरजोरी...’ फाल्गुनी परिवेश में ‘रेडियो प्लेबैक इण्डिया’ के मंच पर ‘स्वरगोष्ठी’ के एक नए अंक के साथ मैं कृष्णमोहन मिश्र, एक बार पुनः आप सब संगीत-प्रेमियों का हार्दिक स्वागत करता हूँ। मित्रों, पिछली पाँच कड़ियों से हम बसन्त ऋतु के मदमाते रागों पर चर्चा कर रहे हैं और फाल्गुनी परिवेश के अनुकूल गायन-वादन का आनन्द ले रहे हैं। फाल्गुन मास में शीत ऋतु का क्रमशः अवसान और ग्रीष्म ऋतु की आगमन होता है। यह परिवेश उल्लास और श्रृंगार भाव से परिपूर्ण होता है। प्रकृति में भी परिवर्तन परिलक्षित होने लगता है। रस-रंग से परिपूर्ण फाल्गुनी परिवेश का एक प्रमुख राग काफी होता है। स्वरों के माध्यम से फाल्गुनी परिवेश, विशेष रूप से श्रृंगार रस की अभिव्यक्ति के लिए राग काफी सबसे उपयुक्त राग है। पिछले अंकों में हमने इस राग में ठुमरी, टप्पा, खयाल, तराना और भजन प्रस्तुत किया था। राग, रस और रगों का पर्व होली अब मात्र एक सप्ताह की दूरी पर है, अतः आज के अंक में हम आपसे राग काफ

'सिने पहेली' प्रतियोगिता के महाविजेता बने हैं....

और 'सिने पहेली' प्रतियोगिता के महाविजेता हैं... वाह! क्या काँटे की टक्कर रही इस महामुकाबले में प्रकाश गोविन्द और विजय कुमार व्यास के बीच!  दूसरे और तीसरे स्थान पर पंकज मुकेश और चन्द्रकान्त दीक्षित रहे।  क्षिति तिवारी ने महामुकाबले में भाग नहीं लिया। आप सभी विजेताओं को हज़ारों शुभकामायें! आइये अब आपको बतायें कि महामुकाबले के सवालों के सही जवाब क्या हैं। महामुक़ाबले के सवालों का हल उत्‍तर 1. गीत - श्‍याम सुन्‍दर मदन मोहन, कुंबरी संग बात कीनो........ (फिल्‍म - ट्रैप्‍ड, 1931) *इस गीत के मुखडे में संगीतकार 'श्‍याम सुन्‍दर' तथा संगीतकार 'मदन मोहन' के नाम आते हैं अर्थात गीत के मुखडे के प्रारम्‍भ में दो संगीतकारों के नाम मौजूद हैं । उत्‍तर 2. फिल्‍म का नाम -  तमाशा (1952) उत्‍तर 3. चित्र में दिखाई गई चीजों के नाम फिल्‍म 'हम आपके हैं कौन' के गीत 'दीदी तेरा देवर दीवाना'  के अन्‍तरों में आती हैं और इस गाने की धुन नुसरत फ़तेह अली ख़ान की कव्‍वाली 'सारे नबियां दां नबी तूं इमाम सोणिया' से प्रे

सरहदों की दूरियां संगीत से पाटते अली ज़फर और अमित त्रिवेदी

ताज़ा सुर ताल - 09 -2014 ताज़ा सुर ताल के एक और नए एपिसोड में आप सब का स्वागत है. आज हम आपको मिलवा रहे हैं सरहद पार से आये एक जबरदस्त फनकार से जो बहुमुखी प्रतिभा के धनी हैं. पाकिस्तान के पॉप संशेशन अली ज़फर न सिर्फ एक बहतरीन गायक हैं बल्कि एक अच्छे अभिनेता, संगीतकार, और गीतकार भी हैं. आने वाली फिल्म टोटल सयापा  में अली इन सभी भूमिकाओं में नज़र आयेगें. बतौर गीतकार इस फिल्म में उन्होंने आशा  नाम का गीत लिखा है, फिल्म का काम पूरी तरह खत्म होने के बाद फिल्म के अपने साथी किरदार को जेहन में रख कर लिखा गया ये गीत, फिल्म का हिस्सा नहीं है पर एल्बम में अवश्य शामिल है. वैसे इस एल्बम में जिसे पूरी तरह से अली का ही एल्बम कहा जायेगा, मात्र एक ही युगल गीत है, जिसे आज हमने चुना है आपके लिए. अकील रूबी का लिखा ये गीत सदा लुभावन अरेबिक मिजाज़ का है, जिसमें रुबाब का सुन्दर इस्तेमाल हुआ है. फरिहा परवेज हैं अली के साथ इस गीत में. नहीं मालूम  निश्चित ही एक ऐसा गीत है जिसे आप बार बार सुनना चाहेगें.  आज के एपिसोड का दूसरा गीत है, मेरे बेहद पसंदीदा संगीतकार अमित त्रिवेदी का. दोस्तों अक्सर हम लोगों

सेंस्बल दुनिया के कुछ अन्सेंसेबल किरदार - हाईवे

फिल्म चर्चा - हाईवे   सालों पहले निर्देशक इम्तियाज़ अली ने छोटे परदे के लिए एक टेलीफिल्म बनायीं थी, जिसकी कहानी उनके दिलो दिमाग को रह रह कर झकझोरती रही, और अततः जब वी मेट, लव आजकल  जैसी सफल व्यावसायिक फ़िल्में बनाने के बाद आखिरकार वो साहस जुटा पाए अपनी उस कहानी को बिना लाग लपेट के परदे पर साकार करने का. फिल्म में इम्तियाज़ के साथ जुड़े देश के सबसे अव्वल छायाकार अशोक मेहता, ओस्कर विजेता ध्वनि संयोजक रसूल पुकुट्टी, संगीत गुरु ए आर रहमान, और संवेदनशील गीतकार इरशाद कामिल. यकीन मानिये हाइवे इम्तियाज़ की एक बहतरीन पेशकश है.  धुर्विया फासलों और एकदम विपरीत परिस्थियों से निकले दो किरदारों को हालात एक सफर में बाँध देता हैं, अपने अतीत के आघातों से मुहँ छुपाते, रूह के जख्मों को कहीं गहरे तहखानों में छुपाये ये किरदार इसी सफर के दौरान एक दूसरे को समझने की कोशिश में कहीं न कहीं खुद से ही आँख मिलाने के काबिल हो जाते हैं. वीरा के किरदार में अलिया अपनी पहली फिल्म ( स्टूडेंट ऑफ द ईयर ) की सामान्य भूमिका और 'प्लास्टिक फेस इमेज' से कहीं अधिक परिपक्व और बेहतर नज़र आई है, तो वहीँ महाबीर की भ

सभी शादी शुदा जोड़ों को अवश्य देखनी चाहिए 'शादी के साईड एफ्फेक्ट्स'

फिल्म चर्चा - शादी के साईड एफ्फेक्ट्स  साकेत चौधरी के निर्देशन में बनी इस फिल्म की सबसे बड़ी खासियत है फिल्म की कास्टिंग. राष्ट्रीय पुरस्कारों से सम्मानित फरहान अख्तर और विध्या बालन की केमिस्ट्री ही इस फिल्म की जान है. प्यार के साईड एफ्फेक्ट्स  के सिक्युअल के तौर पर बनी इस फिल्म की कहानी बेहद दिलचस्प अंदाज़ में एक के दौर के दाम्पत्य जीवन की मिठास और कड़वाहट को दर्शाती है. सिद्धार्थ रॉय के किरदार में फरहान का अभिनय कबीले तारीफ है. वास्तव में वो परदे पर इतने सहज लगते हैं कि दर्शक खुद बा खुद उनके किरदार से जुड जाते हैं, तो वहीँ त्रिशा के किरदार में विध्या बेहद सराहनीय उपस्तिथि दर्ज कराने में कामियाब रही है. पूरी फिल्म यूँ तो इन्हीं दोनों किरदारों के इर्द गिर्द ही घूमती है, पर राम कपूर और इला अरुण भी अपनी अपनी भूमिकाओं में खासे जचे हैं.  त्रिशा और सिद्धार्थ की शादी शुदा जिंदगी में सब कुछ बढ़िया चल रहा होता है कि अचानक एक नए मेहमान के आने की दस्तक से उथल पुथल मच जाती है. जहाँ त्रिचा अपनी प्रेगनेंसी और उसके बाद अपनी नन्हीं बच्ची के लिए नौकरी छोड़ देती है वहीँ सिद्धार्थ इस नई जिम्मेदार