सिने-पहेली # 38 (22 सितंबर, 2012) 'रेडियो प्लेबैक इण्डिया' के सभी पाठकों और श्रोताओं को सुजॉय चटर्जी का सप्रेम नमस्कार, और स्वागत है आप सभी का आपके मनपसंद स्तंभ 'सिने पहेली' में। एक आवाज़ है जो पिछले सात दशकों से दुनिया की फ़िज़ाओं में गूंज रही है। यह वह स्वरगंगा है जिसमें जिसने भी डुबकी लगाई, उसने ही तृप्ति पायी। नाद की इस अधिष्ठात्री की आवाज़ में संगम की पवित्रता है जो हर मन को पवित्र कर देती है। इस स्वरधारा में कभी नदिया का अल्हड़पन है तो कभी झरने की चंचलता, और कभी उन्मुक्त व्योम में मन को लीन कर देने वाली शक्ति है इस आवाज़ में। यह स्वर एक ऐसा अतिथि है जिसे दुनिया के किसी भी घर में प्रवेश करने के लिए किसी के अनुमति की ज़रूरत नहीं पड़ती। यह स्वर एक साथ करोड़ों घरों में गूंजती है, हर रोज़। हम कितने ख़ुशनसीब हैं कि हमने अपने जीवन काल में इस आवाज़ का रस पान किया। अफ़सोस तो उन लोगों के लिए होता है जो इस आवाज़ के आने से पहले ही इस दुनिया को छोड़ चुके थे। अमृत पर तो केवल देवताओं का अधिकार है, पर इस स्वर का अमृत सभी के लिए है। जिसने भी इसका रस पान किया, मुग्ध हो