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सुनो ज़िंदगी गाती है...जाने कितने रंगों में डूबकर

इस भाव पर कई गीत बने हैं समय समय पर, कुछ के नाम गिनाते हैं - "ज़िन्दगी प्यार का गीत है, जिसे हर दिल को गाना पड़ेगा", "एक प्यार का नग़मा है, मौजों की रवानी है", "गीत है यह ज़िन्दगी, गुनगुनाते और गाते चले चलो", "ज़िन्दगी गीत है, अपने होठों पे इसको सजा लो", "ज़िन्दगी एक गीत है इसे होठों पे सजा ले", "जीवन को संगीत बना लो, एक जोगी का मीत बना लो", और भी न जाने कितने ऐसे गीत होंगे।

इस दुनिया में जीना हो तो...क्या करें सुने इस गीत में

फ़िल्म की कहानी कुछ इस तरह की थी कि एक नाइट क्लब में साथ-साथ नृत्य कर सात युवाओं की एक टीम (जिसमे पाँच पुरुष और दो महिलाएँ थीं) नें उस डान्स कम्पीटिशन को जीता, और इनाम के रूप में उन्हें एक प्राइवेट विमान से 'प्राइज़ हॉलिडे' में भेजे जाने का ऐलान हुआ। लेकिन नियति को कुछ और ही मंज़ूर था।।

स्वर-सम्राट उस्ताद अब्दुल करीम खाँ : जिनका कुत्ता भी सुरीला था

उस्ताद अब्दुल करीम खाँ सम्पूर्ण भारतीय संगीत का प्रतिनिधित्व करते थे। वे उत्तर और दक्षिण भारतीय संगीत के बीच एक सेतु थे। दक्षिण के कर्नाटक संगीत के कई रागों को उत्तर भारतीय संगीत में शामिल किया और सरगम के विशिष्ट अन्दाज को उत्तर भारत में प्रचलित किया। उनकी कल्पना विस्तृत और अनूठी थी, जिसके बल पर उन्होने भारतीय संगीत को एक नया आयाम और क्षितिज प्रदान किया।

बड़ी बेटी संगीता गुप्ता की यादों में पिता संगीतकार मदन मोहन

संगीता गुप्ता  मुझसे मेरे पिता के बारे में कुछ लिखने को कहा गया था। हालाँकि वो मेरे ख़यालों में और मेरे दिल में हमेशा रहते हैं, मैं उस बीते हुए ज़माने को याद करते हुए यादों की उन गलियारों से आज आपको ले चलती हूँ....

सुनो कहानी: एक विचित्र कहानी

'सुनो कहानी' इस स्तम्भ के अंतर्गत हम आपको सुनवा रहे हैं प्रसिद्ध कहानियाँ। पिछले सप्ताह आपने अनुराग शर्मा की आवाज़ में अनुराग शर्मा उन्हीं की सम-सामयिक कहानी "क़ौमी एकता" का पॉडकास्ट सुना था। आज हम आपकी सेवा में प्रस्तुत कर रहे हैं प्रसिद्ध अमेरिकी कथाकार ओ हेनरी की "अ स्ट्रेंज स्टोरी" का हिन्दी अनुवाद " एक विचित्र कहानी ", जिसको स्वर दिया है अनुराग शर्मा ने।

वो सुबह कभी तो आएगी...उम्मीद के दीयों को जला के रखें, खय्याम के सुरों में

लता मंगेशकर ने एक बार राज कपूर को एक तानपूरा भेंट किया था। ख़ैयाम के साथ हुई बैठक में राज कपूर ने वही तानपूरा ख़ैयाम की ओर बढ़ाते हुए कुछ सुनाने का आग्रह किया। ख़ैयाम ने उस नये तानपूरा के तारों को छेड़ते हुए राग पूरिया धनाश्री की एक बन्दिश सुनाई। राज कपूर ख़ैयाम की गायकी से प्रभावित हुए और उन्हें फिल्म के शीर्षक गीत की धुन बनाने को कहा। ख़ैयाम इस फिल्म का संगीत तैयार करने के लिए अत्यन्त उत्सुक थे। राज कपूर की सहमति मिल जाने के बाद उन्होने फिल्म के शीर्षक गीत की पाँच अलग- अलग धुनें बनाईं।

ये चमन हमारा अपना है....राज कपूर की जयंती पर सुनें शैलेन्द्र -दत्ताराम रचित ये गीत

इस कथानक पर फिल्म बनवाने के पीछे नेहरू जी के दो उद्देश्य थे। मात्र एक दशक पहले स्वतंत्र देश के सरकार की न्याय व्यवस्था पर विश्वास जगाना और नेहरू जी का बच्चों के प्रति अनुराग को अभव्यक्ति देना। फिल्म के अन्तिम दृश्यों में नेहरू जी ने स्वयं काम करने की सहमति भी राज कपूर को दी थी। पूरी फिल्म बन जाने के बाद जब नेहरू जी की बारी आई तो मोरार जी देसाई ने उन्हें फिल्म में काम करने से रोका। नेहरू जी की राजनैतिक छवि के कारण अन्य लोगों ने भी उन्हें मना किया।