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गाँव से लायी एक सुरीला सपना रश्मि प्रभा और जिसे मिलकर संवार रहे हैं ऋषि, कुहू, श्रीराम और सुमन सिन्हा

दोस्तों, आपने गौर किया होगा कि एक दो शुक्रवारों से हम कोई नया गीत अपलोड नहीं कर रहे हैं. दरअसल बहुत से गीत हैं जिन पर काम चल रहा है, पर ऑनलाइन गठबंधन की कुछ अपनी मजबूरियां भी होती है, जिनके चलते बहुत से गीत अधर में फंस जाते हैं. पर हम आपको बता दें कि आवाज़ महोत्सव का तीसरा सत्र जारी है और अगला नया गीत आप जल्द ही सुनेंगें. इन सब नए गीतों के निर्माण के अलावा भी कुछ प्रोजेक्ट्स हैं जिन पर आवाज़ की टीम पूरी तन्मयता से काम कर रही है. ऐसे ही एक प्रोजेक्ट् से आईये आपका परिचय कराएँ आज. युग्म से जुड़े सबसे पहले संगीतकार ऋषि एस एक बेहद प्रतिभाशाली संगीतकार हैं, इस बात का अंदाजा, हर सत्र में प्रकाशित उनके गीतों को सुनकर अब तक हमारे सभी श्रोताओं को भी हो गया होगा. आमतौर पर आजकल संगीतकार धुन पहले रचते हैं, ऐसे में दिए हुए शब्दों को धुन पर बिठाना और उसमें जरूरी भाव भरना एक दुर्लभ गुण ही है, और उससे भी दुर्लभ है गुण, शुद्ध कविताओं को स्वरबद्ध करने का. अमूमन गीत एक खास खांचे में लिखे जाते हैं ताकि धुन आसानी से बिठाई जा सके, पर जब कवि कविता लिखता है तो वह इन सब बंधनों से दूर रहकर अपने मन को शब्दों में

एक प्यार का नगमा है.....संगीतकार जोड़ी एल पी के विशाल संगीत खजाने को, दशकों दशकों तक फैले संगीत सफर को सलाम करता एक गीत

ओल्ड इस गोल्ड शृंखला # 510/2010/210 "मैं एक गाना बोलता हूँ आपको जो मुझे बहुत पसंद है, और सब से बड़ी ख़ुशी मुझे इसलिए है कि वह ट्युन लक्ष्मी जी ने ख़ुद बनायी हुई है। मतलब कम्प्लीट सोच उनकी है, वह गीत है "एक प्यार का नग़मा है"। 'ओल्ड इज़ गोल्ड' के दोस्तों नमस्कार, 'एक प्यार का नग़मा है' शृंखला की अंतिम कड़ी में आपका बहुत बहुत स्वागत है। प्यारेलाल जी के कहे इन शब्दों को हम आगे बढ़ाएँगे, लेकिन उससे पहले हमारे तमाम नये दोस्तों के लिए यह बता दें कि इन दिनों आप 'ओल्ड इज़ गोल्ड' पर सुन रहे हैं सगीतकार जोड़ी लक्ष्मीकांत-प्यारेलाल के स्वरबद्ध गीतों से सजी यह लघु शृंखला और आज इस शृंखला को हम अंजाम दे रहे हैं इस दिल को छू लेने वाले युगल गीत के ज़रिये। फ़िल्म 'शोर' का यह सदाबहार गीत है लता और मुकेश की आवाज़ों में जिसमें है यमन और बिलावल का स्पर्श। इस गीत को मनोज कुमार और नंदा पर बड़ी ही कलात्मक्ता से फ़िल्मांकन किया गया है। आनंद बक्शी, राजेन्द्र कृष्ण, भरत व्यास, राजा मेहंदी अली ख़ान, और मजरूह सुल्तानपुरी के बाद आज बारी गीतकार संतोष आनंद की। मनोज कुम

खुशी की वो रात आ गयी..... और माहौल में गम की सदा भी घुल गयी, एल पी और मुकेश का गठबंधन

ओल्ड इस गोल्ड शृंखला # 509/2010/209 'ओ ल्ड इज़ गोल्ड' के दोस्तों, नमस्कार! इन दिनों इस स्तंभ में आप सुन रहे हैं फ़िल्म जगत के सुप्रसिद्ध संगीतकार जोड़ी लक्ष्मीकांत-प्यारेलाल के स्वरबद्ध गीतों से सजी लघु शृंखला 'एक प्यार का नग़मा है'। आज इस शृंखला की नौवी कड़ी में हम चुन लाये हैं मुकेश की आवाज़ में फ़िल्म 'धरती कहे पुकार के' का एक ऐसा गीत जिसमें है विरोधाभास। विरोधाभास इसलिए कि गीत के बोलों में तो ख़ुशी की बात की जा रही है, लेकिन गायकी के अदाज़ में करुण रस का संचार हो रहा है। "ख़ुशी की वह रात आ गयी, कोई गीत जगने दो, गाओ रे झूम झूम"। इस तरह के गीतों का हिंदी फ़िल्मों में कई कई बार प्रयोग हुआ है। सिचुएशन कुछ इस तरह की होती है कि नायिका की शादी नायक के बजाय किसी और से हो रही होती है, और शादी के उस जलसे में नायक नायिका को शुभकामनाएँ देते हुए गीत गाता तो है, लेकिन उस गीत में छुपा होता है उसके दिल का दर्द। कुछ ऐसे ही गीतों की याद दिलाएँ आपको? फ़िल्म 'पारसमणि' का गीत "सलामत रहो, सलामत रहो", फ़िल्म 'मिलन' में मुकेश का ही गाया हुआ कुछ

लगता नहीं है जी मेरा उजड़े दयार में.. मादर-ए-वतन से दूर होने के ज़फ़र के दर्द को हबीब की आवाज़ ने कुछ यूँ उभारा

महफ़िल-ए-ग़ज़ल #१०१ पू रे एक महीने की छुट्टी के बाद मैं वापस आ गया हूँ महफ़िल-ए-ग़ज़ल की अगली कड़ी लेकर। यह छुट्टी वैसे तो एक हफ़्ते की हीं होनी थी, लेकिन कुछ ज्यादा हीं लंबी खींच गई। दर-असल मेरे साथ वही हुआ जो इन महाशय के साथ हुआ था जिन्होंने "कल करे सो आज कर" का नवीनीकरण किया है कुछ इस तरह से: आज करे सो कल कर, कल करे सो परसो, इतनी जल्दी क्या है भाई, जीना है अभी बरसों। तो आप समझ गए ना? हर बुधवार को मैं यही सोचता था कि भाई पूरे सौ अंकों के बाद जाकर मुझे आराम करने का यह मौका नसीब हुआ है, तो इसे ज़ाया क्यों गंवाया जाए, चलो आज भी महफ़िल से नदारद हो लेता हूँ। यही सोचते-सोचते ४ हफ़्ते निकल गए। फिर जब इस बार बुधवार नजदीक आया तो विश्राम करने के विचार के साथ-साथ अपराध-बोध भी अपना सर उठाने लगा। अपराधबोध का मंतव्य था कि भाई तुमने तो सभी पाठकों से यह वादा किया था कि एक हफ़्ते में वापस आ जाओगे, फिर ये वादाखिलाफ़ी क्यों? अपराधबोध कम होता, अगर मेरे सामने सुजॉय जी का उदाहरण न होता। एक मैं हूँ जो सप्ताह में एक आलेख लिखता हूँ और अभी तक उन आलेखों की संख्या १०० तक हीं पहुँची है और एक ये हुज़ूर

रोज शाम आती थी, मगर ऐसी न थी.....जब शाम के रंग में हो एल पी के मधुर धुनों की मिठास, तो क्यों न बने हर शाम खास

ओल्ड इस गोल्ड शृंखला # 508/2010/208 ल क्ष्मीकांत-प्यारेलाल के धुनों से सजी लघु शंखला 'एक प्यार का नग़मा है' में आज एक और आकर्षक गीत की बारी। लेकिन इस गीत का ज़िक्र करने से पहले आइए आज आपको एल.पी के बतौर स्वतंत्र संगीतकार शुरु शुरु के फ़िल्मों के बारे में बताया जाए। स्वतंत्र रूप से पहली बार 'तुमसे प्यार हो गया', 'पिया लोग क्या कहेंगे', और 'छैला बाबू' में संगीत देने का उन्हें मौका मिला था। 'तुमसे प्यार हो गया' और 'छैला बाबू' दोनों के लिए चार-चार गाने भी रेकॊर्ड हो गये पर 'तुमसे प्यार हो गया' के निर्माता ही भाग निकले और 'छैला बाबू' रुक गई, जो कुछ वर्षों बाद जाकर पूरी हुई। 'सिंदबाद' के लिए भी रेकॊर्डिंग् हुई पर फ़िल्म पूरी न हो सकी। 'तुमसे प्यार हो गया' के लिए उनकी पहली रेकॊर्डिंग् "कल रात एक सपना देखा" (लता, सुबीर सेन) तो आज तक विलुप्त ही है, पर 'पिया लोग क्या कहेंगे' के इसी मुखड़े के लता के गाये शीर्षक गीत की धुन उन्होंने आगे जाकर 'दोस्ती' के "चाहूँगा मैं तुझे साँझ सवेरे"

संगीत समीक्षा : गुजारिश - संगीत निर्देशन में भी अव्वल साबित हुए संजय लीला भंसाली...तुराज़ के शब्दों ने रचा एक अनूठा संसार

दोस्तों आज टी एस टी मैं आप मुझे देखकर हैरान हो रहे होंगें, दरअसल सुजॉय छुट्टी पर हैं, और मैंने वी डी को पटा कर ये मौका ढूंढ लिया कि मैं आपको उस अल्बम के संगीत के बारे में बता सकूँ जिसने मेरे दिलो जेहन पर इन दिनों जादू सा कर दिया है. जब बात संगीत की चलती है, और जब कोई मुझसे पूछता है कि मुझे किस तरह का संगीत पसंद है तो मैं बड़ी उलझन में फंस जाता हूँ, क्योंकि मुझे लगभग हर तरह का संगीत पसंद आता है, पुराने, नए, शास्त्रीय, हिप होप, ग़ज़ल सभी कुछ तो सुनता हूँ मैं, फिर किसे कहूँ कि ये मुझे नापसंद नहीं....खैर पसंद भी कई तरह की होती है, कुछ गीतों के शब्द हमें भा जाते हैं (मसलन गुलाल) तो कुछ उसके खालिस संगीत संयोजन की वजह से मन को लुभा जाते (जैसे रोबोट और अजब प्रेम की गजब कहानी) हैं....हाँ पर ऐसी अल्बम्स तो मैं उँगलियों पे गिन सकता हूँ जिसने मुझे संगीत की सम्पूर्ण संतुष्ठी दी है. ऐसा संगीत जिसे सुन तन मन और आत्मा भी संतुष्ट हो जाए.....संजय लीला बंसाली एक ऐसे निर्देशक हैं, जिनकी फ़िल्में रुपहले पर्दे पर कविता लिखती है, वो शुद्ध भारतीय सोच के निर्देशक हैं जो बिना गीत संगीत के फिल्मों की कल्पना नहीं

खिजां के फूल पे आती कभी बहार नहीं...जब दर्द में डूबी किशोर की आवाज़ को साथ मिला एल पी के सुरों का

ओल्ड इस गोल्ड शृंखला # 507/2010/207 'ओ ल्ड इज़ गोल्ड' पर इन दिनों आप सुन रहे हैं फ़िल्म जगत के सुप्रसिद्ध संगीतकार जोड़ी लक्ष्मीकांत-प्यारेलाल के संगीत से सजी फ़िल्मों के गानें उन्ही पर केन्द्रित लघु शृंखला 'एक प्यार का नग़मा है' के अंतर्गत। आज के अंक में आवाज़ किशोर कुमार की। सन् १९६९ में एक हिट फ़िल्म आयी थी 'दो रास्ते', जिसके गीतों ने भी ख़ूब धूम मचाये, और आज भी अक्सर कहीं ना कहीं से सुनाई दे जाते हैं। फ़िल्म के सभी गानें अलग अलग मूड के थे और हर गीत लोकप्रिय हुआ था। लता का गाया "बिंदिया चमकेगी" और "अपनी अपनी बीवी पे सबको ग़ुरूर है", लता-रफ़ी का "दिल ने दिल को पुकारा मुलाक़ात हो गई", रफ़ी का "ये रेश्मी ज़ुल्फ़ें", मुकेश का "दो रंग दुनिया के और दो रास्ते" जैसे गानों के साथ साथ एक ग़मज़दा नग़मा भी था किशोर दा का गाया हुआ। उन दिनों रफ़ी और मुकेश ही पार्श्वगायकों का प्रतिनिधित्व कर रहे थे। लेकिन किशोर कुमार तेज़ी से लोकप्रियता के पायदान चढ़ते जा रहे थे और ७० के दशक में जाकर पूरी तरह से छा गए और लगभग सभी समकालीन ना

राम जी की निकली सवारी....आईये आज दशहरे के दिन श्रीराम महिमा गायें बख्शी साहब और एल पी के सुरों में डूबकर

ओल्ड इस गोल्ड शृंखला # 506/2010/206 'आ वाज़' के सभी दोस्तों को विजयदशमी और दशहरा की हार्दिक शुभकामनाएँ देते हुए हम शुरु कर रह रहे हैं इस सप्ताह के 'ओल्ड इज़ गोल्ड' का सफ़र। यह त्योहार अच्छाई का बुराई पर जीत का प्रतीक है। आज ही के दिन भगवान राम ने रावण का वध कर सीता को मुक्त करवाया था। नवरात्री का समापन और दुर्गा प्रतिमाओं के विसर्जन से आज दुर्गा पूजा का भी समापन होता है। नवरात्रों में गली गली राम लीला का आयोजन किया जाता है और ख़ास आज के दिन तो रावण-मेघनाद-कुंभकर्ण के बड़े बड़े पुतले बनाकर उन्हें जलाया जाता है। वही बुराई पर अच्छाई की जीत का प्रतीक! दोस्तों, आज जब इस वक़्त चारों तरफ़ इस बेहद महत्वपूर्ण त्योहार की धूम मची हुई है, तो ऐसे में 'ओल्ड इज़ गोल्ड' का भी कर्तव्य हो जाता है कि इसी त्योहार और हर्षोल्लास के वातावरण को ध्यान में रखते हुए कोई सटीक गीत चुनें। जैसा कि इन दिनों आप सुन रहे हैं कि हम सुप्रसिद्ध संगीतकार जोड़ी लक्ष्मीकांत-प्यारेलाल के स्वरबद्ध गीतों की लघु शृंखला प्रस्तुत कर रहे हैं, तो ऐसे में आज के दिन फ़िल्म 'सरगम' के उस गीत के अलावा और क

ई मेल के बहाने यादों के खजाने - जब माँ दुर्गा के विविध रूपों से मिलवाया लावण्या जी ने

'ओल्ड इज़ गोल्ड शनिवार विशेष - ईमेल के बहाने यादों के ख़ज़ाने' के साथ हम हाज़िर हैं। जैसा कि नवरात्री और दुर्गा पूजा की धूम मची हुई है चारों तरफ़, और आज है महानवमी। यानी कि नवरात्री की अंतिम रात्री और दुर्गा पूजा का भी अंतिम दिन। कल विजयादशमी के दिन दुर्गा प्रतिमाओं के विसर्जन से यह उत्सव सम्पन्न होता है। तो क्यों ना आज इस अंक में हम माता रानी की आराधना करें। दोस्तों, हमने महान कवि, दार्शनिक और गीतकार पंडित नरेन्द्र शर्मा जी की सुपुत्री श्रीमती लावण्या शाह जी से सम्पर्क किया कि वो अपने पिताजी के बारे में हमें कुछ बताएँ जिन्हें हम अपने पाठकों के साथ बाँट सकें। तब लावण्या जी ने ही यह सुझाव दिया कि क्यों ना नवरात्री के पावन उपलक्ष्य पर पंडित जी द्वारा संयोजित देवी माँ के कुछ भजन प्रस्तुत किए जाएँ। लावण्या जी के हम आभारी हैं कि उन्होंने हमारे इस निवेदन को स्वीकारा और ईमेल के माध्यम से हमें माँ दुर्गा के विविध रूपों के बारे में लिख भेजा और साथ ही पंडित जी के भजनों के बारे में बताया। तो आइए अब पढ़ते हैं लावण्या जी का ईमेल। ********************** ॐ सर्वमंगल मांगल्ये शिवे सर्वार्थसाधिक

सुनो कहानी: विभाजित - अहमद सगीर सिद्दीकी

'सुनो कहानी' इस स्तम्भ के अंतर्गत हम आपको सुनवा रहे हैं प्रसिद्ध कहानियाँ। पिछले सप्ताह आपने अनुराग शर्मा की कहानी " तरह तरह के बिच्छू " का पॉडकास्ट उन्ही की आवाज़ में सुना था। आज हम आपकी सेवा में प्रस्तुत कर रहे हैं पाकिस्तानी लेखक अहमद सगीर सिद्दीकी की एक सामयिक कहानी " विभाजित ", जिसको स्वर दिया है अनुराग शर्मा ने। कहानी "विभाजित" का कुल प्रसारण समय 8 मिनट 25 सेकंड है। सुनें और बतायें कि हम अपने इस प्रयास में कितना सफल हुए हैं। यदि आप भी अपनी मनपसंद कहानियों, उपन्यासों, नाटकों, धारावाहिको, प्रहसनों, झलकियों, एकांकियों, लघुकथाओं को अपनी आवाज़ देना चाहते हैं हमसे संपर्क करें। अधिक जानकारी के लिए कृपया यहाँ देखें। लेखक का चित्र अनुपलब्ध है हमारे यहाँ की न्याय व्यवस्था किसी काम की नहीं है। ~ पाकिस्तानी लेखक अहमद सगीर सिद्दीकी हर शनिवार को आवाज़ पर सुनें एक नयी कहानी पुलिस का काम है मरम्मत आपकी। ( अहमद सगीर सिद्दीकी "विभाजित" से एक अंश ) नीचे के प्लेयर से सुनें. (प्लेयर पर एक बार क्लिक करें, कंट्रोल सक्रिय करें फ़िर 'प्ले' पर क

गोरे गोरे चाँद से मुख पर काली काली ऑंखें हैं ....कवितामय शब्द और सुंदर संगीत संयोजन का उत्कृष्ट मेल

ओल्ड इस गोल्ड शृंखला # 505/2010/205 'ए क प्यार का नग़मा है', दोस्तों, सुप्रसिद्ध संगीतकार जोड़ी लक्ष्मीकांत-प्यारेलाल के स्वरबद्ध गीतों से सजी यह लघु शृंखला इन दिनों आप सुन और पढ़ रहे हैं 'आवाज़' के सांध्य-स्तंभ 'ओल्ड इज़ गोल्ड' में। एल.पी एक ऐसे संगीतकार जोड़ी हुए जिन्होंने इतने ज़्यादा फ़िल्मों में संगीत दिया है कि शायद ही कोई ऐसा समकालीन गायक होगा या होंगी जिन्होंने एल.पी के लिए गीत ना गाये होंगे। लता मंगेशकर, मोहम्मद रफ़ी, मन्ना डे और आशा भोसले को सुनने के बाद आज बारी है गायक मुकेश की। उधर गीतकारों की बात करें तो आनंद बक्शी साहब ने लक्ष्मी-प्यारे के लिए सब से ज़्यादा गीत लिखे हैं, इसलिए ज़ाहिर है कि इस शृंखला में बक्शी साहब के लिखे कई गीत शामिल होंगे, लेकिन हमने इस बात को भी ध्यान रखा है कि कुछ दूसरे गीतकारों को भी शामिल करें जिन्होंने कम ही सही लेकिन बहुत उम्दा काम किया है एल.पी के साथ। हमनें दो ऐसे गीतकारों की रचनाएँ आपको सुनवाई हैं - राजेन्द्र कृष्ण और भरत व्यास। आज हम लेकर आये हैं राजा मेहन्दी अली ख़ान का लिखा एक गीत फ़िल्म 'अनीता' से। आपको याद

खत लिख दे संवरिया के नाम बाबू....आशा की मासूम गुहार एल पी के सुरों में ढलकर जैसे और भी मधुर हो गयी

ओल्ड इस गोल्ड शृंखला # 504/2010/204 ल क्ष्मीकांत प्यारेलाल के संगीतबद्ध गीतों की शृंखला 'एक प्यार का नग़मा है' की चौथी कड़ी में आज आवाज़ आशा भोसले की। युं तो लक्ष्मी-प्यारे के ज़्यादातर गानें लता जी ने गाए हैं, आशा जी के इनके लिए गीत थोड़े कम हैं। लेकिन जितने भी गानें हैं, उनमें आज जो गीत हम आपको सुनवाने के लिए लाए हैं, वह एक ख़ास मुकाम रखता है। यह है फ़िल्म 'आये दिन बहार के' का गीत "ख़त लिख दे सांवरिया के नाम बाबू, वो जान जाएँगे, पहचान जाएँगे"। दोस्तों, एक ज़माना ऐसा था कि जब फ़िल्मों में चिट्ठी और ख़त पर गानें बना करते हैं। बहुत से गानें हैं इस श्रेणी के। यहाँ तक कि ९० के दशक में भी ख़त लिखने पर कई गीत बनें हैं, मसलन, फ़िल्म 'खेल' का गीत "ख़त लिखना है पर सोचती हूँ", फ़िल्म 'दुलारा' में "ख़त लिखना बाबा ख़त लिखना", फ़िल्म 'बेख़ुदी' में "ख़त मैंने तेरे नाम लिखा, हाल-ए-दिल तमाम लिखा", फ़िल्म 'जीना तेरी गली में' का "जाते हो परदेस पिया, जाते ही ख़त लिखना" आदि। लेकिन २००० के दशक के आते ही ईमेल

तुम गगन के चन्द्रमा हो.....प्रेम और समर्पण की अद्भुत शब्दावली को स्वरबद्ध किया एल पी ने उसी पवित्रता के साथ

ओल्ड इस गोल्ड शृंखला # 503/2010/203 'ए क प्यार का नग़मा है' - फ़िल्म संगीत जगत की सुप्रसिद्ध संगीतकार जोड़ी लक्ष्मीकांत-प्यारेलाल के स्वरबद्ध गीतों से सजी इस लघु शृंखला की तीसरी कड़ी में हम आप सब का स्वागत करते हैं। आनंद बक्शी और राजेन्द्र कृष्ण के बाद आज जिस गीतकार के शब्दों को एल.पी अपने धुनों से सजाने वाले हैं, उस महान गीतकार का नाम है भरत व्यास, जो एक गीतकार ही नहीं एक बेहतरीन हिंदी के कवि भी हैं और उनका काव्य फ़िल्मी गीतों में भी साफ़ दिखाई देता है। व्यास जी ने शुद्ध हिंदी का बहुत अच्छा इस्तेमाल फ़िल्मी गीतों में भी किया और इस तरह से बहुत सारे स्तरीय गीत फ़िल्म जगत को दिए। लक्ष्मीकांत-प्यारेलाल के साथ जब उनकी बात चलती है तो एक दम से हमारे दिमाग़ में जिस फ़िल्म का नाम आता है, वह है 'सती सावित्री'। इस फ़िल्म के गानें तो भरत व्यास जी के गीतों की कड़ियों में बहुत बाद में दर्ज हुआ; सन् १९४९ में वे मिले संगीतकार खेमचंद प्रकाश से और इन दोनों ने लुभाना शुरु कर दिया अपने श्रोताओं को। 'ज़िद्दी', 'सावन आया रे', 'तमाशा' आदि फ़िल्मों में इन दोनों ने साथ