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किलिमांजारो में बूम बूम रोबो डा.. रोबोट की हरकतों के साथ हाज़िर है रहमान, शंकर और रजनीकांत की तिकड़ी

ताज़ा सुर ताल ३३/२०१० सुजॊय - आज है ३१ अगस्त! यानी कि आज 'ताज़ा सुर ताल' इस साल का दो तिहाई सफ़र पूरा कर रहा है। पीछे मुड़ कर देखें तो इस साल बहुत ही कम फ़िल्में ऐसी हैं जिन्होंने बॊक्स ऒफ़िस पर कामयाबी के झंडे गाड़े हैं। विश्व दीपक - हाँ, लेकिन फ़िल्म संगीत की बात करें तो इन फ़िल्मों के अलावा भी कई फ़िल्मों का संगीत सुरीला रहा है। 'वीर', 'इश्क़िया', 'कार्तिक कॊलिंग‍ कार्तिक', 'आइ हेट लव स्टोरीज़', 'मिस्टर सिंह ऐण्ड मिसेस मेहता', 'वन्स अपॉन ए टाइम इन मुंबई' जैसे फ़िल्मों के गानें काफ़ी अच्छे हैं। अब देखते हैं कि २०१० का बेस्ट क्या अभी आना बाक़ी है! सुजॊय - अच्छा विश्व दीपक जी, क्या आप ने कोई ऐसा कम्प्युटर देखा है जिसका स्पीड १ टेरा हर्ट्ज़ हो, और मेमरी १ ज़ीटा बाइट, जिसका प्रोसेसर पेण्टियम अल्ट्रा कोर मिलेनिया वी-२, और एफ़. एच. पी-४५० मोटर हिराटा, जापान का लगा हो? विश्व दीपक - अरे अरे ये सब क्या पूछे जा रहे हैं आप? यह 'टी. एस. टी' है भई! सुजॊय - तभी तो! आज हम जिस फ़िल्म के गानें सुनने जा रहे हैं यह उसी से ताल्लुख़ रखत

क्या बताएँ कितनी हसरत दिल के अफ़साने में है...ज़ोहराबाई अम्बालेवाली की आवाज़ में एक और दमदार कव्वाली

ओल्ड इस गोल्ड शृंखला # 472/2010/172 र मज़ान के पाक़ अवसर पर आपके इफ़्तार की शामों को और भी ख़ुशनुमा बनाने के लिए 'आवाज़' की ख़ास पेशकश इन दिनों आप सुन रहे हैं 'ओल्ड इज़ गोल्ड' की लघु शृंखला 'मजलिस-ए-क़व्वाली' के तहत। कल हमने १९४५ की मशहूर फ़िल्म 'ज़ीनत' की क़व्वाली सुनी थी। आज भी हम ४० के ही दशक की एक और ख़ूबसूरत क़व्वाली सुनेंगे, लेकिन उसका ज़िक्र करने से पहले आइए आज आपको क़व्वाली के बारे में कुछ दिलचस्प बातें बतायी जाए। मूल रूप से क़व्वाली सूफ़ी मज़हबी संगीत को कहते हैं, लेकिन समय के साथ साथ क़व्वाली सामाजिक मुद्दों पर भी बनने लगे। क़व्वाली का इतिहास ७०० साल से भी पुराना है। जब क़व्वाली की शुरुआत हुई थी, तब ये दक्षिण एशिया के दरगाहों और मज़ारों पर गाई जाती थी। लेकिन जैसा कि हमने बताया कि धीरे धीरे ये क़व्वालियाँ आम ज़िंदगी में समाने लगी और संगीत की एक बेहद लोकप्रिय धारा बन गई। क़व्वाली की जड़ों की तरफ़ अगर हम पहुँचना चाहें, तो हम पाते हैं कि आठवी सदी के परशिया, जो अब ईरान और अफ़ग़ानिस्तान है, में इस तरह के गायन शैली की शुरुआत हुई थी। ११-वीं सदी में जब

आहें ना भरी शिकवे ना किए और ना ही ज़ुबाँ से काम लिया....इफ्तार की शामों में रंग भरती एक शानदार कव्वाली

ओल्ड इस गोल्ड शृंखला # 471/2010/171 'ओ ल्ड इज़ गोल्ड' के सभी दोस्तों का फिर एक बार स्वागत है इस सुरीली महफ़िल में। दोस्तों, माह-ए-रमज़ान चल रहा है। रमज़ान के इन पाक़ दिनों में इस्लाम धर्म के लोग रोज़ा रखते हैं, सूर्योदय से सूर्यास्त तक अन्न जल ग्रहण नहीं करते, और फिर शाम ढलने पर रोज़े की नमाज़ के बाद इफ़्तार आयोजित किया जाता हैं, जिसमें आस-पड़ोस, और रिश्तेदारों को दावत देकर सामूहिक भोजन कराया जाता है। तो दोस्तों, हमने सोचा कि इन इफ़्तार की शामों को थोड़ा सा और रंगीन किया जाए फ़िल्म संगीत के सुनहरे दौर की कुछ बेमिसाल क़व्वालियों की महफ़िल सजाकर। इसलिए 'ओल्ड इज़ गोल्ड' पर आज से लेकर अगले दस अंकों में सुनिए ऐसी ही कुछ नायाब फ़िल्मी क़व्वालियों से सजी हमारी नई लघु शृंखला 'मजलिस-ए-क़व्वाली'। इन क़व्वालियों को सुनते हुए आप महसूस कर पाएँगे कि किस तरह से ४० के दशक से लेकर ८० के दशक तक फ़िल्मी क़व्वालियों का चलन बदलता रहा है। इस शृंखला में क़व्वालियों को सुनवाते हुए हम आपको क़व्वालियों के बारे में भी बताएँगे, किस तरह से इसकी शुरुआत हुई, किस किस तरह से ये गाया जाता है, व

रविवार सुबह की कॉफी और एक और क्लास्सिक "अंदाज़" के दो अप्रदर्शित और दुर्लभ गीत

नौशाद अली की रूहानियत और मजरूह सुल्तानपुरी की कलम जब जब एक साथ मिलकर परदे पर चलीं तो एक नया ही इतिहास रचा गया. उस पर महबूब खान का निर्देशन और मिल जाए तो क्या बात हो, जैसे सोने पे सुहागा. राज कपूर और नर्गिस जिस जोड़ी ने कितनी ही नायाब फ़िल्में भारतीय सिनेमा को दीं हैं उस पर अगर दिलीप कुमार का अगर साथ और मिल जाए तो कहने की ज़रुरत नहीं कि एक साथ कितनी ही प्रतिभाओं को देखने का मौका मिलेगा......अब तक तो आप समझ गए होंगे के हमारी ये कलम किस तरफ जा रही है...जी हाँ सही अंदाजा लगाया आपने लेकिन यहाँ कुछ का अंदाजा गलत भी हो सकता है. साहब अंदाजा नहीं अंदाज़ कहिये. साथ में मुराद, कुक्कु वी एच देसाई, अनवरीबाई, अमीर बानो, जमशेदजी, अब्बास, वासकर और अब्दुल. सिनेमा के इतने लम्बे इतिहास में दिलीप कुमार और राज कपूर एक साथ इसी फिल्म में पहली और आखिरी बार नजर आये. फिल्म की कहानी प्यार के त्रिकोण पर आधारित थी जिस पर अब तक न जाने कितनी ही फिल्मे बन चुकी हैं. फिल्म में केवल दस गीत थे जिनमे आवाजें थीं लता मंगेशकर, मुकेश, शमशाद बेगम और मोहम्मद रफ़ी साब की. फिल्म को लिखा था शम्स लखनवी ने, जी बिलकुल वोही जिन्होंने

ओल्ड इस गोल्ड - ई मेल के बहाने यादों के खजाने - ०५...जब खानसाब ने सुनाई गज़ल

'ओल्ड इज़ गोल्ड' के साप्ताहिक अंक 'ईमेल के बहाने, यादों के ख़ज़ाने' में आप सभी का स्वागत है। पिछले हफ़्ते की प्रस्तुति के लिए हमें दो टिप्पणियाँ प्राप्त हुईं थीं। उसमें पहली टिप्पणी थी इंदु जी की जिन्होंने शरद तैलंग जी की आवाज़ में गानें सुनना चाहा हैं। तो शरद जी, इंदु जी ने जो ज़िम्मेदारी हमें सौंपी थीं, वह अब हम आपको सौंप रहे हैं। जल्द से जल्द आप अपने स्वरबद्ध किए हुए द्ष्यंत कुमार की ग़ज़ल अपनी आवाज़ में रेकॊर्ड कर हमारे ईमेल पते oig@hindyugm.com पर भेजें। और उस प्रस्तुति की दूसरी टिप्पणी थी महेन्द्र वर्मा जी का जिन्होंने हमसे ग़ैर फ़िल्मी रचनाओं को 'ओल्ड इज़ गोल्ड' में शामिल करने का अनुरोध किया है। तो महेन्द्र जी, इसके जवाब में हम यही कह सकते हैं कि 'ओल्ड इज़ गोल्ड' का जो स्वरूप है, उसमें हम केवल सुनहरे दौर के फ़िल्मी गीत ही सुनवाते हैं और उनसे जुड़ी बातें करते हैं। ग़ैर फ़िल्मी गीतों और ग़ज़लों के लिए 'आवाज़' का एक दूसरा स्तंभ है ' महफ़िल-ए-ग़ज़ल ' जो हर बुधवार को पेश होता है। उसमें आप अपनी पसंद पूरी कर सकते हैं और अपने सुझाव आप उस स

सुनो कहानी का सौवाँ अंक: सुधा अरोड़ा की "रहोगी तुम वही"

सुनो कहानी के शतकांक पर आवाज़ की टीम की ओर से सभी श्रोताओं का हार्दिक आभार! 'सुनो कहानी' इस स्तम्भ के अंतर्गत हम आपको सुनवा रहे हैं प्रसिद्ध कहानियाँ। पिछले सप्ताह आपने अनुराग शर्मा की आवाज़ में कृश्न चन्दर की कहानी "एक गधे की वापसी" का अंतिम भाग सुना था। आवाज़ की ओर से आज हम लेकर आये हैं शतकांक की विशेष प्रस्तुति - प्रसिद्ध लेखिका सुधा अरोड़ा की बहुचर्चित कहानी " रहोगी तुम वही ", जिसको स्वर दिया है रंगमंच, दूरदर्शन और सार्थक सिनेमा के प्रसिद्ध कलाकार राजेन्द्र गुप्ता ने। सुनें और बतायें कि हम अपने इस प्रयास में कितना सफल हुए हैं। कहानी का कुल प्रसारण समय है: 11 मिनट 9 सेकंड। सुधा अरोड़ा की कथा अन्नपूर्णा मंडल की आखिरी चिट्ठी को आप पहले ही प्रीति सागर की आवाज़ में सुन चुके हैं। रहोगी तुम वही में पति का एकालाप, ज़ाहिरा तौर पर पत्नी से मुखातिब है। पति के पास, पत्नी से शिक़ायतों का अन्तहीन भन्डार है, जिन्हें वह मुखर हो कर पत्नी पर ज़ाहिर कर रहा है। रोज़मर्रा की आम बातें हैं। उसे पत्नी के हर रूप से शिक़ायत है; और ये रूप अनेक है। वह उन्हें स्वीकारना नहीं चाहता;

हिंदी या उर्दू का उच्चारण ठीक करना चाहते है....आज ही इस मौके का लाभ उठायें

दोस्तों नए गीतों के सिलसिले को एक बार फिर रोक कर आज हम उपस्थित हुए हैं एक जरूरी सूचना आप तक पहुंचाने के लिए. यदि आप सफल समाचार वाचक, रिपोर्टर, आर. जे. या voice over आर्टिस्ट या गायक बनना चाहते हैं? या आप अपना हिंदी या उर्दू का उच्चारण ठीक करना चाहते है, तो आपके लिए एक सुनहरा मौका हम लेकर आये है. रेडियो और टीवी के जाने माने वरिष्ठ commentator, newsreader और आर. जे. प्रदीप शर्मा २५ घंटों की एक विशेष वर्कशॉप का आयोजन कर रहे हैं. आवाज़ की पहल पर प्रदीप जी इस वर्कशॉप के लिए तैयार हुए हैं. भाषा की शुद्धता और अदायगी दोनों ही सभी भाषा के सिपाहियों के लिए अति आवश्यक है, तो इस मौके को बिलकुल भी हाथ से न जाने दें. इस वर्कशॉप में practicals पर विशेष जोर दिया जाएगा. इच्छुक अपना पंजीकरण ५ सितम्बर २०१० तक pramadu@gmail.com पर या हिंद युग्म के मेल यानी hindyugm@gmail.com पर करवा सकते हैं. प्रदीप शर्मा प्रदीप शर्मा देश विदेश में क्रिकेट commentary तथा स्वतंत्रता दिवस और गणतंत्र दिवस की कई वर्षों से commentary कर रहे हैं. आपका तजुर्बा ऑडियो मीडिया में लगभग ३५ वर्षों का है. ढेरों टीवी कार्यक्रमों, धाराव