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विविध संगीत शैलियों में राग-रस-रंग से परिपूर्ण होली

स्वरगोष्ठी – 113 में आज   होली अंक ‘चोरी चोरी मारत हो कुमकुम...’ : संगीत की विविध शैलियों में होली भारतीय पर्वों में होली एक ऐसा पर्व है, जिसमें संगीत-नृत्य की प्रमुख भूमिका होती है। जनसामान्य अपने उल्लास की अभिव्यक्ति के लिए मुख्य रूप से देशज संगीत का सहारा लेता है। इस अवसर पर विविध संगीत शैलियों के माध्यम से भी होली की उमंग को प्रस्तुत करने की परम्परा है। इन सभी भारतीय संगीत शैलियों में होली की रचनाएँ प्रमुख रूप से उपलब्ध हैं। आज के अंक में हम आपके लिए कुछ संगीत शैलियों में रंगोत्सव के कुछ चुने हुए गीतों पर चर्चा करेंगे।  इ न्द्रधनुषी रंगों में भींगे तन-मन लिये ‘स्वरगोष्ठी’ के अपने समस्त पाठकों-श्रोताओं का, मैं कृष्णमोहन मिश्र एक बार पुनः अबीर-गुलाल के साथ स्वागत और अभिनन्दन करता हूँ। होली, उल्लास, उत्साह और मस्ती का प्रतीक-पर्व होता है। इस अनूठे परिवेश का चित्रण भारतीय संगीत की सभी शैलियों में मिलता है। रंगोत्सव के उल्लासपूर्ण परिवेश में आज हम आपसे ध्रुवपद संगीत शैली के अभिन्न अंग ‘धमार’ की चर्चा करेंगे। इसके साथ ही खयाल शैली के अन्तर्गत राग का...

स्वाधीनता संग्राम और फ़िल्मी गीत (भाग-3)

विशेष अंक : भाग 3 भारतीय स्वतंत्रता संग्राम में फिल्म संगीत की भूमिका   'रेडियो प्लेबैक इण्डिया' के सभी पाठकों को सुजॉय चटर्जी का नमस्कार! मित्रों, इन दिनों हर शनिवार को आप हमारी विशेष श्रृंखला 'भारत के स्वाधीनता संग्राम में फ़िल्म-संगीत की भूमिका' पढ़ रहे हैं। पिछले सप्ताह हमने इस विशेष श्रृंखला का दूसरा भाग प्रस्तुत किया था। आज प्रस्तुत है, इस श्रृंखला का तीसरा भाग। गतांक से आगे... 1943 में ही नितिन बोस निर्देशित फ़िल्म ‘काशीनाथ’ में पंडित भूषण का लिखा, पंकज मल्लिक का स्वरबद्ध किया और असित बरन का गाया एक देशभक्ति गीत था “हम चले वतन की ओर, खेंच रहा है कोई हमको”। सन्‍1944 में मुमताज़ शान्ति, मोतीलाल, शेख मुख्तार, कन्हैयालाल अभिनीत ‘रणजीत मूवीटोन’ की फ़िल्म ‘पगली दुनिया’ में रामानन्द का लिखा और बुलो सी. रानी का स्वरबद्ध किया भोला का गाया एक देश भक्ति गीत था “सोए हुए भारत के मुकद्दर को जगा दे”। यह बुलो सी. रानी की पहली फ़िल्म थी बतौर संगीतकार। पहली फ़िल्म की बात करें तो संगीतकार जोड़ी हुस्नलाल-भगतराम की भी इसी वर्ष पहली फ़िल्म आई ‘चाँद’ जि...

सुधियों के गाँव में विचरते रोहित रूसिया और मनोज जैन मधुर से मिलें

दोस्तों रेडियो प्लेबैक पर हम निरंतर नए और उभरते हुए गायकों, गीतकारों और संगीतकारों को अपने श्रोताओं से जोड़ते चले आये हैं, आज इस सूची में हम जोड़ रहे हैं एक ऐसे अनूठे कलाकार का नाम भी जो एक अच्छे गायक होने के साथ साथ शब्दों के अच्छे पारखी भी है और किसी भी कविता /गीत को सहज धुन में पिरो लेने की महारत भी रखते हैं. ये हैं रोहित रूसिया जो मध्य प्रदेश के छिंदवाडा जिले से हैं, आज अपनी पहली प्रस्तुति के रूप में ये लाये हैं कवि मनोज जैन 'मधुर' की रचना. हालाँकि संगीत संयोजन रोहित नहीं कर पाए पर गीत अपनी मधुरता में किसी भी पूर्ण रूप से संयोजित गीत से कम नहीं है. आप भी सुनें और इस प्रतिभाशाली फनकार को अपनी प्रतिक्रिया देकर प्रोत्साहित करें-  # A Radio Playback Original  Man Paakhi Ud chal re   Lyrics - Manoj Jain Madhur  Music and Vocals - Rohit Rusia  

‘मेरा रंग दे बसन्ती चोला...’ शहीद-ए-आजम को नमन

भारतीय सिनेमा के सौ साल – 39 एक गीत सौ कहानियाँ – 23 बलिदानी भगत सिंह का सर्वप्रिय गीत : ‘मेरा रंग दे बसन्ती चोला...’ आपके प्रिय स्तम्भकार सुजॉय चटर्जी ने 'रेडियो प्लेबैक इण्डिया' पर गत वर्ष 'एक गीत सौ कहानियाँ' नामक स्तम्भ आरम्भ किया था, जिसके अन्तर्गत हर अंक में वे किसी फिल्मी या गैर-फिल्मी गीत की विशेषताओं और लोकप्रियता पर चर्चा करते थे। यह स्तम्भ 20 अंकों के बाद मई 2012 में स्थगित कर दिया गया था। गत जनवरी माह से हमने इस स्तम्भ का प्रकाशन ‘भारतीय सिनेमा के सौ साल’ श्रृंखला के अन्तर्गत पुनः शुरू किया है। आज 'एक गीत सौ कहानियाँ' स्तम्भ की 23वीं कड़ी में सुजॉय चटर्जी प्रस्तुत कर रहे हैं, भारतीय स्वतन्त्रता संग्राम का अत्यन्त चर्चित गीत- ‘मेरा रंग दे बसन्ती चोला...’ के बारे में कुछ विस्मृत विवरण। यह गीत सरदार भगत सिंह का सर्वप्रिय गीत था, जिसे गाते हुए उन्होने 23 मार्च, 1931 को देश की खातिर अपने दो अन्य साथियों के साथ स्वयं का बलिदान किया था। आज के इस अंक के माध्यम से हम इसी गीत के बहाने इन तीनों बलिदानियों को नमन करते हैं।  ...

फागुन के रंग, राग काफी के संग

प्लेबैक इंडिया ब्रोडकास्ट  राग काफ़ी स्वर एवं प्रस्तुति - संज्ञा टंडन  स्क्रिप्ट - कृष्णमोहन मिश्र 

सुधा ओम ढींगरा की कहानी लड़की थी वह

इस साप्ताहिक स्तम्भ "बोलती कहानियाँ" के अंतर्गत हम हर सप्ताह आपको सुनवा रहे हैं हिन्दी की रोचक कहानियाँ। पिछले सप्ताह आपने अर्चना चावजी की आवाज़ में मुंशी प्रेमचंद की कहानी " खून सफ़ेद " का पॉडकास्ट सुना था। आज हम आपकी सेवा में प्रस्तुत कर रहे हैं सुधा ओम ढींगरा की कहानी "लड़की थी वह" जिसे स्वर दिया है शेफाली गुप्ता ने। कहानी "लड़की थी वह" का गद्य रचना समय ब्लॉग पर उपलब्ध है। इस कहानी का कुल प्रसारण समय 8 मिनट 19 सेकंड है। सुनें और बतायें कि हम अपने इस प्रयास में कितना सफल हुए हैं। यहां तो बच्चे तीन-चार भाषाएं सीखते हैं, पर बोलते अपनी मातृभाषा हैं। इसके लिए मां-बाप को कोशिश करने की बहुत जरूरत है। हिंदी को लेकर कुंठित मत हों। ~ सुधा ओम ढींगरा हर सप्ताह यहीं पर सुनें एक नयी कहानी लगता है यम उन्हें लेने आयें हैं और कुत्तों ने यम को देख लिया है ( सुधा ओम ढींगरा की कहानी "लड़की थी वह" से एक अंश ) नीचे के प्लेयर से सुनें. (प्लेयर पर एक बार क्लिक करें, कंट्रोल सक्रिय करें फ़िर 'प्ले' पर क्लि...

‘रंगरेज’ की कूची में अपेक्षित रंगों का अभाव मगर सुर सटीक

प्लेबैक वाणी -37 - संगीत समीक्षा - रंगरेज निर्माता वाशु भगनानी अपने बेटे जैकी को फिल्म जगत में स्थापित करने में कोई कसर छोडना नहीं चाहते. तभी तो उन्होंने भी रिमेक के इस दौर में एक और हिट तमिल फिल्म नाडोडीगल का हिंदी संस्करण बनाने की ठानी और निर्देशन का भार सौंपा रिमेक एक्सपर्ट प्रियदर्शन के कंधों पर. फिल्म तेलुगु, मलयालम और कन्नडा संस्करण पहले ही बन चुके हैं. जैकी अभिनीत इस फिल्म को शीर्षक दिया गया है रंगरेज.   इस फिल्म की एक और खासियत ये है कि इस फिल्म के लिए निर्देशक प्रियदर्शन और छायाकार संतोष सिवन १५ साल के अंतराल के बाद फिर एक साथ टीमबद्ध हुए हैं. फिल्म का अधिकतर हिस्सा एशिया की सबसे बड़ी झुग्गी बस्ती के रूप में मशहूर मुंबई के धारावी इलाके में शूट हुआ है, इसी कारण फिल्म की टीम ने इसका संगीत भी जनता के समक्ष रखा इसी धारावी के दिल से. फिल्म में संगीत है साजिद वाजिद का जिन्हें साथ मिला है दक्षिण के संगीतकार सुन्दर सी बाबू का, जिन्होंने मूल तमिल संस्करण में भी संगीत दिया था. आईये देखें इस रंगरेज की कूची में कितने रंगों के गीत हैं श्रोताओं के लिए...