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आज की महफ़िल में सुनिये क्या कहते हैं गुलज़ार साहब त्रिवेणियों के बारे में!

महफ़िल ए कहकशां   6 दो स्तों सुजोय और विश्व दीपक द्वारा संचालित "कहकशां" और "महफिले ग़ज़ल" का ऑडियो स्वरुप लेकर हम हाज़िर हैं, "महफिल ए कहकशां" के रूप में पूजा अनिल और रीतेश खरे  के साथ।  अदब और शायरी की इस महफ़िल में आज सुनिए गुलज़ार साहब की त्रिवेणी की व्याख्या  और जगजीत सिंह द्वारा उनकी त्रिवेणियों को आवाज़ देना. मुख्य स्वर - पूजा अनिल एवं रीतेश खरे  स्क्रिप्ट - विश्व दीपक एवं सुजॉय चटर्जी

इसी को प्यार कहते हैं.. प्यार की परिभाषा बता रहे हैं हसरत जयपुरी और हुसैन बंधु

कहकशाँ - 10 हसरत जयपुरी और हुसैन बंधु    "इसी को प्यार कहते हैं..." ’रेडियो प्लेबैक इण्डिया’ के सभी दोस्तों को हमारा सलाम! दोस्तों, शेर-ओ-शायरी, नज़्मों, नगमों, ग़ज़लों, क़व्वालियों की रवायत सदियों की है। हर दौर में शायरों ने, गुलुकारों ने, क़व्वालों ने इस अदबी रवायत को बरकरार रखने की पूरी कोशिशें की हैं। और यही वजह है कि आज हमारे पास एक बेश-कीमती ख़ज़ाना है इन सुरीले फ़नकारों के फ़न का। यह वह कहकशाँ है जिसके सितारों की चमक कभी फ़ीकी नहीं पड़ती और ता-उम्र इनकी रोशनी इस दुनिया के लोगों के दिल-ओ-दिमाग़ को सुकून पहुँचाती चली आ रही है। पर वक्त की रफ़्तार के साथ बहुत से ऐसे नगीने मिट्टी-तले दब जाते हैं। बेशक़ उनका हक़ बनता है कि हम उन्हें जानें, पहचानें और हमारा भी हक़ बनता है कि हम उन नगीनों से नावाकिफ़ नहीं रहें। बस इसी फ़ायदे के लिए इस ख़ज़ाने में से हम चुन कर लाएँगे आपके लिए कुछ कीमती नगीने हर हफ़्ते और बताएँगे कुछ दिलचस्प बातें इन फ़नकारों के बारे में। तो पेश-ए-ख़िदमत है नगमों, नज़्मों, ग़ज़लों और क़व्वालियों की एक अदबी महफ़िल, कहकशाँ।  आज पेश है गी

जब रफ़ी साहब अपनी आवाज़ के जादू में मिर्ज़ा ग़ालिब की ग़ज़ल सुनाते हैं

महफ़िल ए कहकशां   5 दो स्तों सुजोय और विश्व दीपक द्वारा संचालित "कहकशां" और "महफिले ग़ज़ल" का ऑडियो स्वरुप लेकर हम हाज़िर हैं, "महफिल ए कहकशां" के रूप में पूजा अनिल और रीतेश खरे  के साथ।  अदब और शायरी की इस महफ़िल में आज सुनिए रफ़ी साहब की दिलकश आवाज़ में मिर्ज़ा ग़ालिब की एक ग़ज़ल.  मुख्य स्वर - पूजा अनिल एवं रीतेश खरे  स्क्रिप्ट - विश्व दीपक एवं सुजॉय चटर्जी

अँखियाँ नूं चैन न आवे...बाबा नुसरत की रूहानी आवाज़ आज महफ़िल ए कहकशां में

महफ़िल ए कहकशां  4 नुसरत फ़तेह अली खान दो स्तों सुजोय और विश्व दीपक द्वारा संचालित "कहकशां" और "महफिले ग़ज़ल" का ऑडियो स्वरुप लेकर हम हाज़िर हैं, "महफिल ए कहकशां" के रूप में पूजा अनिल और रीतेश खरे  के साथ।  अदब और शायरी की इस महफ़िल में आज सुनिए नुसरत फ़तेह अली खान साहब के रूहानी स्वर में एक जुदाई गीत. मुख्य स्वर - पूजा अनिल एवं रीतेश खरे  स्क्रिप्ट - विश्व दीपक एवं सुजॉय चटर्जी

महफ़िल ए कहकशां - 3 - बम बम बम भोला..! रसन पिया अपनी रचना में गा कर सुनाते हैं शिव पार्वती विवाह वृत्तान्त के समय किस तरह नाग को देख पंडित तक काँप जाते हैं।

महफिले कहकशां (३) उस्ताद अब्दुल रशीद साहब  दो स्तों सुजोय और विश्व दीपक द्वारा संचालित "कहकशां" और "महफिले ग़ज़ल" का ऑडियो स्वरुप लेकर हम हाज़िर हैं, महफिले कहकशां के रूप में पूजा अनिल और रीतेश खरे  के साथ।  अदब और शायरी की इस महफ़िल में आज सुनिए उस्ताद अब्दुल रशीद खान उर्फ़ रसन पिया को श्रद्धांजलि उन्ही की गाई एक बंदिश से।   मुख्य स्वर - पूजा अनिल एवं रीतेश खरे  स्क्रिप्ट - विश्व दीपक एवं सुजॉय चटर्जी

महफ़िल ए कहकशां - 2 रंग वो जिसमे रंगी थी राधा, रंगी थी जिसमे मीरा...

मन्ना डे  महफिले कहकशां - 02 दोस्तों सुजोय और विश्व दीपक द्वारा संचालित "कहकशां" और "महफिले ग़ज़ल" का ऑडियो स्वरुप लेकर हम हाज़िर हैं, महफिले कहकशां के रूप में. पूजा अनिल के साथ अदब और शायरी की इस महफ़िल में आज सुनिए प्रबोध चन्द्र डे के प्राइवेट एल्बम से एक मन रंग देने वाला प्यारा सा गीत. मुख्य स्वर - पूजा अनिल स्क्रिप्ट - विश्व दीपक एवं सुजोई चट्टर्जी 

"रंग वो जिस में रंगी थी राधा, रंगी थी जिसमें मीरा...", होली में आज सराबोर हो जाइए प्रेम-रंग में

कहकशाँ - 5 मन्ना डे, योगेश, श्याम सागर की एक रंगरेज़ रचना "रंग वो जिस में रंगी थी राधा, रंगी थी जिसमें मीरा..." ’रेडियो प्लेबैक इण्डिया’ के सभी दोस्तों को हमारा सलाम! दोस्तों, शेर-ओ-शायरी, नज़्मों, नगमों, ग़ज़लों, क़व्वालियों की रवायत सदियों की है। हर दौर में शायरों ने, गुलुकारों ने, क़व्वालों ने इस अदबी रवायत को बरकरार रखने की पूरी कोशिशें की हैं। और यही वजह है कि आज हमारे पास एक बेश-कीमती ख़ज़ाना है इन सुरीले फ़नकारों के फ़न का। यह वह कहकशाँ है जिसके सितारों की चमक कभी फ़ीकी नहीं पड़ती और ता-उम्र इनकी रोशनी इस दुनिया के लोगों के दिल-ओ-दिमाग़ को सुकून पहुँचाती चली आ रही है। पर वक्त की रफ़्तार के साथ बहुत से ऐसे नगीने मिट्टी-तले दब जाते हैं। बेशक़ उनका हक़ बनता है कि हम उन्हें जानें, पहचानें और हमारा भी हक़ बनता है कि हम उन नगीनों से नावाकिफ़ नहीं रहें। बस इसी फ़ायदे के लिए इस ख़ज़ाने में से हम चुन कर लाएँगे आपके लिए कुछ कीमती नगीने हर हफ़्ते और बताएँगे कुछ दिलचस्प बातें इन फ़नकारों के बारे में। तो पेश-ए-ख़िदमत है नगमों, नज़्मों, ग़ज़लों और क़व्वाल

"ये खेल होगा नहीं दुबारा...", मरहूम निदा फ़ाज़ली को खिराज के साथ शुरुआत ’कहकशाँ' की

कहकशाँ - 1 मरहूम निदा फ़ाज़ली को खिराज   "ये खेल होगा नहीं दुबारा..." ’रेडियो प्लेबैक इण्डिया’ के सभी दोस्तों को हमारा सलाम! दोस्तों, शेर-ओ-शायरी, नज़्मों, नगमों, ग़ज़लों, क़व्वालियों की रवायत सदियों की है। हर दौर में शायरों ने, गुलुकारों ने, क़व्वालों ने इस अदबी रवायत को बरकरार रखने की पूरी कोशिशें की हैं। और यही वजह है कि आज हमारे पास एक बेश-कीमती ख़ज़ाना है इन सुरीले फ़नकारों के फ़न का। यह वह कहकशाँ है जिसके सितारों की चमक कभी फ़ीकी नहीं पड़ती और ता-उम्र इनकी रोशनी इस दुनिया के लोगों के दिल-ओ-दिमाग़ को सुकून पहुँचाती चली आ रही है। पर वक्त की रफ़्तार के साथ बहुत से ऐसे नगीने मिट्टी-तले दब जाते हैं। बेशक़ उनका हक़ बनता है कि हम उन्हें जानें, पहचानें और हमारा भी हक़ बनता है कि हम उन नगीनों से नावाकिफ़ नहीं रहें। बस इसी फ़ायदे के लिए इस ख़ज़ाने में से हम चुन कर लाएँगे आपके लिए कुछ कीमती नगीने हर हफ़्ते और बताएँगे कुछ दिलचस्प बातें इन फ़नकारों के बारे में। तो पेश-ए-ख़िदमत है नगमों, नज़्मों, ग़ज़लों और क़व्वालियों की एक अदबी महफ़िल, कहकशाँ। आज इसके

संगीत 2012 - कैसा था संगीत के लिहाज से बीता वर्ष -एक अवलोकन

वर्ष २०१२ में श्रोताओं ने क्या क्या सुना, किसे पसंद किया और किसे सिरे से नकार दिया, किन गीतों ने हमारी धडकनों को धड़कने के सबब दिया, किन शब्दों ने हमारे ह्रदय को झकझोरा, और किन किन फनकारों की सदाएं हमारी रूह में उतर कर अपनी जगह बनने में कामियाब रहीं, आईये इस पोडकास्ट में सुनें पूरे वर्ष के संगीत का एक मुक्कमल लेखा जोखा. साथ ही किन संगीत योद्धाओं को हमारे श्रोताओं ने दिया वर्ष-सर्वश्रेष्ठ का खिताब, ये भी जाने. कुछ कदम थिरकाने वाले गीतों के संग आईये अलविदा कहें वर्ष २०१२ को और स्वागत करें २०१३ का. नववर्ष आप सबके लिए मंगलमय हो. इसी कामना के साथ प्रस्तुत है रेडियो प्लेबैक का ये पोडकास्ट. 

शब्दों के चाक पर - अंक 22

जब तुम्हारे दिल में मेरे लिए प्यार उमड़ आये, और वो तुम्हारी आँखो से छलक सा जाए मुझसे अपनी दिल के बातें सुनने को यह दिल तुम्हारा मचल सा जाए तब एक आवाज़ दे कर मुझको बुलाना दिया है जो प्यार का वचन सजन, तुम अपनी इस प्रीत की रीत को निभाना ~ रंजु भाटिया दोस्तों, कविता पाठ के इस साप्ताहिक कार्यक्रम की आज की कड़ी में हमारा विषय है - "प्रीत की रीत निभाये" एवं "उस पार और एक आवाज़ "। हमने शुरूआत प्यार से की और सफर खत्म पर किया यादों पर। दोनों विषयों पर हमें एक से बढकर कविताएँ पढने को मिलीं और हमने पूरी कोशिश की कि उनमें से कुछ कविताएँ आपको सुनवा दें। उम्मीद करते हैं कि हम इस प्रयास में सफल हुए होंगे। कविताएं पिरोकर लाये हैं आज हमारे विशिष्ट कवि मित्र। पॉडकास्ट को स्वर दिया है शेफाली गुप्ता ओर अनुराग शर्मा ने, स्क्रिप्ट रची है विश्व दीपक ने, सम्पादन व संचालन है अनुराग शर्मा का। आइये सुनिए सुनाईये ओर छा जाईये ... (नीचे दिए गए किसी भी प्लेयेर से सुनें)  या फिर यहाँ से डाउनलोड करें (राईट क्लिक करके 'सेव ऐज़ चुनें') &

शब्दों के चाक पर - 21

कुछ मौसम मैंने संभाल रखे हैं मन की बगिया में उतार रखे हैं जो रंगीन तितलियों से उड़ते हैं टिटियाती चिड़ियों के सुरों में मधुर गीत भी बुन के रखे हैं जो दिन भर मंजीरों से बजते हैं रंगीन रिश्तो के आइनों के भी रंग किर्चों से निकाल रखें हैं बिखरे पंख यादों के पाखी के मन - किताबों में संभाल रखें हैं दोस्तों, आज की कड़ी में हमारा विषय है - " कुछ बचा लो " और " बेसूझ साया "। हमने शुरूआत यादों से की और सफर खत्म प्यार पर किया। इस तरह देखा और तौला जाए तो सफर का नाम कुछ और नहीं "ज़िंदगी" निकलता है। कविताएं पिरोकर लाये हैं आज हमारे विशिष्ट कवि मित्र। पॉडकास्ट को स्वर दिया है शेफाली गुप्ता ओर अनुराग शर्मा ने, स्क्रिप्ट रची है विश्व दीपक ने, सम्पादन व संचालन है अनुराग शर्मा का, व सहयोग है वन्दना गुप्ता का। आइये सुनिए सुनाईये ओर छा जाईये ... (नीचे दिए गए किसी भी प्लेयेर से सुनें)  या फिर यहाँ से डाउनलोड करें (राईट क्लिक करके 'सेव ऐज़ चुनें') "शब्दों के चाक पर" हमारे कवि मित्रों के लिए हर हफ्ते होती

शब्दों के चाक पर - २०

" ज्योति कलश छलके " साल की सबसे अंधेरी रात में दीप इक जलता हुआ बस हाथ में लेकर चलें करने धरा ज्योतिर्मयी। दीपावली का पर्व प्रकाश का उत्सव है। ज्ञान का प्रकाश, उपहार, उल्लास, और प्रेम के इस पावन पर्व पर "शब्दों के चाक पर" की एक ज्योतिर्मयी प्रस्तुति हमारे श्रोताओं की सेवा में समर्पित है। नई ज्योति के धर नए पंख झिलमिल, उड़े मर्त्य मिट्टी गगन स्वर्ग छू ले, लगे रोशनी की झड़ी झूम ऐसी, निशा की गली में तिमिर राह भूले, खुले मुक्ति का वह किरण द्वार जगमग, ऊषा जा न पाए, निशा आ ना पाए जलाओ दिए पर रहे ध्यान इतना अँधेरा धरा पर कहीं रह न जाए। दोस्तों, आज की कड़ी में हमारा विषय है - " ज्योति का पर्व "। जीवन में प्रकाश और तमस की निरंतर चल रही कशमकश की कविताएं पिरोकर लाये हैं आज हमारे विशिष्ट कवि मित्र। पॉडकास्ट को स्वर दिया है अभिषेक ओझा ओर अनुराग शर्मा ने, स्क्रिप्ट रची है विश्व दीपक ने, सम्पादन व संचालन है अनुराग शर्मा का, व सहयोग है वन्दना गुप्ता का। आइये सुनिए सुनाईये ओर छा जाईये ... (नीचे दिए गए किसी भी प्लेयेर से सुनें)

लौट चलें बचपन की ओर, बच्चों की आवाजों में कुछ दुर्लभ रचनाओं संग

शब्दों में संसार - एपिसोड 03 - बचपन      दोस्तों, शब्दों में संसार को आपका ढेर सारा प्यार मिल रहा है, यकीन मानिये इसके हर एपिसोड को तैयार करने में एक बड़ी टीम को जमकर मेहनत जोतनी पड़ती है, पर इसे अपलोड करने के बाद हम में हर किसी को एक गजब की आत्म संतुष्टी का अनुभव भी अवश्य होता है, और आपके स्नेह का प्रोत्साहन पाकर ये खुशी दुगनी हो जाती है. दो दिन पहले हमने 'बाल दिवस' मनाया था तो इस माह का ये विशेष एपिसोड बच्चों के नाम करना लाजमी ही था.  हमारी उम्र बढ गई, हम बड़े हो गए और इस तरह हमने अपने-आप को उन ख्यालों, सपनों और कोशिशों तक हीं सीमित कर लिया जहाँ हक़ीक़त का मुहर लगना अनिवार्य होता है। हम हरेक बात को संभव और असंभव के पलड़े पर तोलने लगे और जब भी कुछ असंभव की तरफ बढता दिखा तो हमने उससे कन्नी काट ली। हमने बस उसे हीं सच और सही कहा, जो हमारी नज़रों के सामने था या फिर जिसके होने से हमारे मस्तिष्क को बल मिला। बाकी बातों, घटनाओं एवं कल्पनाओं को हमने बचकानी घोषित कर दिया। ऐसा करके हमें लगा कि हमने कोई तीर मार दिया है, लेकिन सही मायने में हमने उसी दिन अपनी मासूमियत खो दी। हम बड़