ऐ दिल है मुश्किल जीना यहाँ.....बॉम्बे माफ़ कीजियेगा मुंबई मेरी जान का नारा लगते गीता दत्त और रफी साहब
ओल्ड इस गोल्ड शृंखला # 240 'ओ ल्ड इज़ गोल्ड' में आज बारी है गीता दत्त और मोहम्मद रफ़ी साहब के गाये एक युगल गीत की। जो श्रोता व पाठक हमसे हाल में जुड़े हैं, उनकी सहूलीयत के लिए हम यहाँ बता दें कि इससे पहले इस महफ़िल में दो रफ़ी-गीता डुएट्स् बज चुके हैं, पहला गीत था फ़िल्म 'मिस्टर ऐंड मिसेस ५५' का "जाने कहाँ मेरा जिगर गया जी", और दूसरा गीत था फ़िल्म 'मिलाप' का "बचना ज़रा ये ज़माना है बुरा"। और आज तीसरी बार हम किसी रफ़ी-गीता डुएट लेकर हाज़िर हुए हैं। युं तो रफ़ी साहब और गीता जी ने एक साथ कई रोमांटिक गीत गाए हैं, लेकिन उनमें एक हल्की फुल्की कॉमेडी का अंग भी हमेशा रहा है जिसकी चुलबुलाहट हमें गुदगुदा जाती है, फिर चाहे संगीतकार सचिन देव बर्मन हो या फिर हमारे नय्यर साहब। आज सुनिए ओ. पी. नय्यर के संगीत में मजरूह साहब की एक और सुप्रसिद्ध रचना फ़िल्म 'सी. आइ. डी' से। इस फ़िल्म से शम्शाद बेग़म का गाया "बूझ मेरा क्या नाव रे" आप सुन चुके हैं इस महफ़िल में और इस फ़िल्म के बारे में हम आपको बता भी चुके हैं। आज के इस प्रस्तुत गीत के बारे मे