ओल्ड इस गोल्ड शृंखला # 651/2011/91 'ओ ल्ड इस गोल्ड' के दोस्तों, नमस्कार! मनुष्य मन अपनी हर अनुभूति को किसी न किसी तरह से व्यक्त करता है। दुख में आँसू, सुख में हँसी, और अशांत मन में कभी कभी क्रोध उत्पन्न होती है। इनमें से जो सब से हसीन अभिव्यक्ति है, वह है हमारी मुस्कान, हमारी हँसी। कहा जाता है कि एक छोटी सी मुस्कान दो दिलों के बीच पनप रही दूरी को पलक झपकते ही ख़त्म देने की शक्ति रखता है। सच में बड़ा ही संक्रामक होता है यह हास्य रस। हास्य रस, यानी कि ख़ुशी के भाव जो अंदर से हम महसूस करते हैं। बनावटी हँसी को हास्य रस नहीं कहा जा सकता। हास्य रस इतना संक्रामक होता है कि आप इस रस को अपने आसपास के लोगों में भी पल में आग की तरह फैला सकते हैं। सीधे सरल शब्दों में हास्य का अर्थ तो यही होता है कि ख़ुश होना, जो चेहरे पर हँसी या मुस्कुराहट के ज़रिए खिलती है, लेकिन जो शुद्ध हास्य होता है वह हम अपने अंदर बिना किसी कारण के ही महसूस करते हैं। और यह भाव तब उत्पन्न होती है जब हम यह समझ या अनुभूति कर लेते हैं कि ईश्वर या जीवन हम पर मेहरबान है। इस तरह का हास्य एक दैवीय रस होता है, जिसे एक दैवीय त