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राग मियाँ की मल्हार में "करो सब निछावर" : SWARGOSHTHI – 501 : RAG MIAN KI MALHAR

     




स्वरगोष्ठी – 501 में आज 

देशभक्ति गीतों में शास्त्रीय राग – 5 

"करो सब निछावर, बनो सब फ़कीर...", राग मियाँ मल्हार में देशभक्ति की वर्षा




“रेडियो प्लेबैक इण्डिया” के साप्ताहिक स्तम्भ "स्वरगोष्ठी" के मंच पर मैं सुजॉय चटर्जी, आप सब संगीत प्रेमियों का हार्दिक स्वागत करता हूँ। मित्रों, पिछले सप्ताह ’स्वरगोष्ठी’ के 500 अंक पूरे हुए। ’स्वरगोष्ठी’ का एक पड़ाव पार हुआ जहाँ तक इसे स्वर्गीय कृष्णमोहन मिश्र जी ने पहुँचाया। उनके इस प्रिय स्तम्भ को उनके जाने के बाद भी जीवित रखने के उद्देश्य से हम इसे तब तक आगे बढ़ाना चाहेंगे जब तक हमारे लिए यह सम्भव है। इसलिए आज इसकी 501-वीं कड़ी से हम इसे आगे बढ़ा रहे हैं। इस सफ़र में हमारा हमसफ़र बने रहने के लिए आप सभी संगीत रसिकों का बहुत-बहुत धन्यवाद!

उन्नीसवीं सदी में देशभक्ति गीतों के लिखने-गाने का रिवाज हमारे देश में काफ़ी ज़ोर पकड़ चुका था। पराधीनता की बेड़ियों में जकड़ा देश गीतों, कविताओं, लेखों के माध्यम से जनता में राष्ट्रीयता की भावना जगाने का काम करने लगा। जहाँ एक तरफ़ कवियों और शाइरों ने देशप्रेम की भावना से ओतप्रोत रचनाएँ लिखे, वहीं उन कविताओं और गीतों को अर्थपूर्ण संगीत में ढाल कर हमारे संगीतकारों ने उन्हें और भी अधिक प्रभावशाली बनाया। ये देशभक्ति की धुनें ऐसी हैं कि जो कभी हमें जोश से भर देती हैं तो कभी इनके करुण स्वर हमारी आँखें नम कर जाते हैं। कभी ये हमारा सर गर्व से ऊँचा कर देते हैं तो कभी इन्हें सुनते हुए हमारे रोंगटे खड़े हो जाते हैं। इन देशभक्ति की रचनाओं में बहुत सी रचनाएँ ऐसी हैं जो शास्त्रीय रागों पर आधारित हैं। और इन्हीं रागाधारित देशभक्ति रचनाओं से सुसज्जित है ’स्वरगोष्ठी’ की वर्तमान श्रृंखला ’देशभक्ति गीतों में शास्त्रीय राग’। अब तक प्रकाशित इस श्रृंखला की चार कड़ियों में हमने राग आसावरी, गुजरी तोड़ी, पहाड़ी और भैरवी पर आधारित चार फ़िल्मी देशभक्ति गीतों की चर्चा की और इन रागों की शास्त्रीय रचनाएँ भी प्रस्तुत की गईं। आज प्रस्तुत है इस श्रृंखला की पाँचवीं कड़ी में राग मियाँ की मल्हार पर आधारित फ़िल्म ’लड़की सह्याद्री की’ से आशा भोसले का गाया एक कमचर्चितपर अत्यन्त कर्णप्रिय देशभक्ति गीत, और साथ ही राग मियाँ की मल्हार से जुड़ी कुछ बातें व शास्त्रीय वाद्य रचना।


वसन्त देसाई व आशा भोसले (सूत्र: hamaraphotos.com)
व्ही. शान्ताराम 
ने वर्ष 1966 में राजकमल कलामन्दिर के बैनर तले ’लड़की सह्याद्री की’ शीर्षक से फ़िल्म बनायी और स्वयम् इसे निर्देशित भी किया। यह एक हिन्दी-मराठी द्वैभाषी फ़िल्म थी जिसमें मुख्यत: मराठी सिनेमा व रंगमंच के कलाकारों ने काम किया। संध्या, शालिनी अभ्यंकर, वत्सला देशमुख, कुमार दिघे, केशवराव दाते और बाबूराव पेंढरकर द्वारा अभिनीत इस फ़िल्म के गीत-संगीत का पक्ष भी काफ़ी उच्चस्तरीय था। उच्चस्तरीय क्यों ना हो जब पंडित जसराज जैसे शास्त्रीय संगीत के दिग्गज कलाकार फ़िल्म के लिए गीत गाने को तैयार हों! उनका गाया राग अहिरभैरव में भजन "वन्दना करो, अर्चना करो" फ़िल्म संगीत के धरोहर का एक मूल्यवान हीरा है। और यह और भी अधिक महत्वपूर्ण बन जाता है जब हमें यह पता चलता है कि पंडित जी ने इस गीत के अलावा केवल तीन और फ़िल्मों में ही गीत गाये। ये तीन फ़िल्में हैं ’बीरबल माइ ब्रदर’, ’1920’ और ’गौड़ हरि दर्शन’। हाँ, उन्होंने मीरा नायर की फ़िल्म ’सलाम बॉम्बे’ का संगीत भी तैयार किया था। फ़िल्म ’लड़की सह्याद्री की’ के गाने लिखे पंडित भरत व्यास ने और फ़िल्म के संगीतकार थे वसन्त देसाई। 1959 की फ़िल्म ’नवरंग’ में वसन्त देसाई ने पार्श्व-संगीत तैयार किया था, पर ’नवरंग’ के बाद आपसी मतभेद की वजह से वसन्त देसाई ने व्ही. शान्ताराम से किनारा कर लिया था। शान्ताराम जी के अनुरोध पर वसन्त देसाई फिर एक बार शान्ताराम कैम्प में वापस लौटे और ’गीत गाया पत्थरों ने’ तथा ’लड़की सह्याद्री की’ फ़िल्मों में संगीत दिया। यह जानकारी नीलू गव्हाणकर लिखित 2011 की पुस्तक ’The Desai Trio and the Movie Industry of India’ में दी गई है। ’लड़की सह्याद्री की’ फ़िल्म के कुल 9 गीतों में से 6 गीतों में आशा भोसले की आवाज़ है और इन 6 गीतों में से 4 गीत देशभक्ति रचनाएँ हैं। "मेरी झांसी नहीं दूंगी", "तुम मुझे ख़ून दो", "अंग्रेज़ों ने जीत ली झांसी" और चौथा देशभक्ति गीत है "करो सब निछावर, बनो सब फ़कीर, वक़्त मांगे रे तेरा धन कबीर"। राग मियाँ की मल्हार पर आधारित इसी चौथे गीत की चर्चा आज हम कर रहे हैं।

राग मियाँ मल्हार में वर्षा ऋतु के प्राकृतिक सौन्दर्य को स्वरों के माध्यम से अभिव्यक्त करने की अनूठी क्षमता होती है। इसके साथ ही इस राग का स्वर-संयोजन, पावस के उमड़ते-घुमड़ते मेघ द्वारा विरहिणी नायिका के हृदय में मिलन की आशा जागृत होने की अनुभूति भी कराते हैं। यह काफी थाट का और सम्पूर्ण-षाड़व जाति का राग है। अर्थात; आरोह में सात और अवरोह में छः स्वर प्रयोग किये जाते हैं। आरोह में शुद्ध गान्धार का त्याग, अवरोह में कोमल गान्धार का प्रयोग तथा आरोह और अवरोह दोनों में शुद्ध और कोमल दोनों निषाद का प्रयोग किया जाता है। आरोह में शुद्ध निषाद से पहले कोमल निषाद तथा अवरोह में शुद्ध निषाद के बाद कोमल निषाद का प्रयोग होता है। राग के स्वरों में प्रकृति के मनमोहक चित्रण की और विरह की पीड़ा को हर लेने की अनूठी क्षमता होती है।कई फिल्म संगीतकारों ने इस राग पर आधारित यादगार गीतों की रचना की है। ऐसे ही संगीतकारों में एक अग्रणी नाम वसन्त देसाई का है। हिन्दी और मराठी फिल्मों में राग आधारित गीत तैयार करने में इस संगीतकार का कोई विकल्प नहीं था। महाराष्ट्र के एक कीर्तनकार परिवार में जन्में वसन्त देसाई को राजकमल कलामन्दिर की चर्चित फिल्म "शकुन्तला" ने उन्हें फिल्म जगत में स्थापित कर दिया। इस फिल्म के गीतों में उनका रागों के प्रति अनुराग स्पष्ट रूप से परिलक्षित होता है। रागदारी संगीत के प्रति उनका लगाव उनकी अन्तिम फिल्म "शक" तक निरन्तर बना रहा। विशेष रूप से मल्हार अंग के रागों से उन्हें खूब लगाव था। फिल्म "गुड्डी" में राग मियाँ की मल्हार के स्वरों की चाशनी में लिपटा गीत ‘बोले रे पपीहरा...’ तो कालजयी गीतों की सूची में शीर्षस्थ है। पर आश्चर्य की बात यह है कि फ़िल्म ’लड़की सह्याद्री की’ के इस देशभक्ति गीत को भी उन्होंने मियाँ की मल्हार के स्वरों में पिरोया जो अपने आप में एक अनोखा प्रयोग था। तो आइए, झपताल में निबद्ध इस रचना का आनन्द लेते हैं।




गीत : “करो सब निछावर, बनो सब फ़कीर...” : फ़िल्म: लड़की सह्याद्री की, गायिका: आशा भोसले



सरोद सम्राट उस्ताद अमजद अली ख़ाँ
राग मियाँ की मल्हार काफी थाट का राग है। मल्हार अंग के रागों में राग मेघ मल्हार, मेघों का आह्वान करने, मेघाच्छन्न आकाश का चित्रण करने और वर्षा ऋतु के आगमन की आहट देने में सक्षम राग माना जाता है। वहीं दूसरी ओर राग मियाँ मल्हार, वर्षा ऋतु की चरम अवस्था के सौन्दर्य की अनुभूति कराने पूर्ण समर्थ है। यह राग वर्तमान में वर्षा ऋतु के रागों में सर्वाधिक प्रचलित और लोकप्रिय है। सुप्रसिद्ध इसराज और मयूरी वीणा वादक पण्डित श्रीकुमार मिश्र के अनुसार; राग मियाँ मल्हार की सशक्त स्वरात्मक परमाणु शक्ति, बादलों के परमाणुओं को झकझोरने में समर्थ है। राग मियाँ की मल्हार के स्वरों का ढाँचा कुछ इस प्रकार बनता है कि कोमल निषाद एक श्रुति ऊपर लगने लगता है। इसी प्रकार कोमल गान्धार, ऋषभ से लगभग ढाई श्रुति ऊपर की अनुभूति कराता है। इस राग में गान्धार स्वर का प्रयोग अत्यन्त सावधानी से करना पड़ता है। राग मियाँ की मल्हार को गाते-बजाते समय राग बहार से बचाना पड़ता है। परन्तु कोमल गान्धार का सही प्रयोग किया जाए तो इस दुविधा से मुक्त हुआ जा सकता है। इन दोनों रागों को एक के बाद दूसरे का गायन-वादन कठिन होता है, किन्तु उस्ताद बिस्मिल्लाह खाँ ने एक बार यह प्रयोग कर श्रोताओं को चमत्कृत कर दिया था। इस राग में गमक की तानें बहुत अच्छी लगती है। राग मियाँ की मल्हार तानसेन के प्रिय रागों में से एक है। कुछ विद्वानों का मत है कि तानसेन ने कोमल गान्धार तथा शुद्ध और कोमल निषाद का प्रयोग कर इस राग का सृजन किया था। अकबर के दरबार में तानसेन को सम्मान देने के लिए उन्हें ‘मियाँ तानसेन’ नाम से सम्बोधित किया जाता था। इस राग से उनके जुड़ाव के कारण ही मल्हार के इस प्रकार को ‘मियाँ मल्हार’ कहा जाने लगा। आइए राग मियाँ की मल्हार का आनन्द लिया जाए 1968 में रिकॉर्ड की हुई उस्ताद अमजद अली ख़ाँ के सरोद पर बजायी हुई रचना के माध्यम से।



राग मियाँ की मल्हार : सरोद : कलाकार - उस्ताद अमजद अली ख़ाँ


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कृष्णमोहन मिश्र जी की पुण्य स्मृति को समर्पित
प्रस्तुति : सुजॉय चटर्जी   

रेडियो प्लेबैक इण्डिया 
राग मियाँ की मल्हार में "करो सब निछावर" : SWARGOSHTHI – 501 : RAG MIAN KI MALHAR: 14 फरवरी, 2021



Comments

Anonymous said…
नवरंग का संगीत सी. रामचन्द्र ने दिया था। उससे पहले 'दो आँखें बारह हाथ' का संगीत वसंत देसाई ने दिया था। ये दोनों संगीतकार बारी-बारी से वी. शांताराम जी की फिल्मों में संगीत देते रहे, ऐसे में झगड़े की घटना का क्या प्रामाणिकता है?
Anonymous said…
This comment has been removed by a blog administrator.
Sujoy Chatterjee said…
Vasant Desai ne Navrang ka background music taiyar kiya tha. Desai aur Shantaram ke beech ka matbhed Nilu Gavhankar ki kitaab 'The Desai Trio and the Movie Industry'naamak 2011 ki pustak mein milta hai.
हरि said…
मैं आपके इस ब्लॉग का प्रशंसक पुराना हूँ और एक गीत सौ कहानियाँ मेरा सबसे प्रिय खंड है। आपका धन्यवाद कि आपने न केवल मेरी पिछली टिप्पणी को प्रकाशित किया बल्कि उसका उत्तर भी दिया। इतना उदार ह्रदय बहुत कम लोगों का होता है। मैंने देखा कि आपने ऊपर दी गई जानकारी को संशोधित भी कर दिया है। लेकिन एक अन्य त्रुटि हो गई है। 'गीत गाया पत्थरों ने' का संगीत वसंत देसाई ने नहीं बल्कि रामलाल (सेहरा वाले) ने दिया था।

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