स्वरगोष्ठी – 395 में आज
पूर्वांग और उत्तरांग राग – 10 : राग दरबारी कान्हड़ा
आशा भोसले से फिल्म का एक गीत और पण्डित जसराज से राग दरबारी कान्हड़ा सुनिए
पण्डित जसराज |
आशा भोसले |
राग दरबारी
कान्हड़ा का यह नामकरण अकबर के काल से प्रचलित हुआ। मध्यकालीन ग्रन्थों में
राग का नाम दरबारी कान्हड़ा नहीं मिलता। इसके स्थान पर कर्नाट या शुद्ध
कर्नाट नाम से यह राग प्रचलित था। तानसेन दरबार में अकबर के सम्मुख राग
कर्नाट गाते थे, जो बादशाह और अन्य गुणी संगीत-प्रेमियों को खूब पसन्द आता
था। राज दरबार का पसंदीदा राग होने से धीरे-धीरे राग का नाम दरबारी कान्हड़ा
हो गया। प्राचीन नाम ‘कर्नाट’ परिवर्तित होकर ‘कान्हड़ा’ प्रचलित हो गया।
वर्तमान में राग दरबारी कान्हड़ा आसावरी थाट का राग माना जाता है। इस राग
में गान्धार, धैवत और निषाद स्वर सदा कोमल प्रयोग किया जाता है। शेष स्वर
शुद्ध लगते हैं। राग की जाति वक्र सम्पूर्ण होती है। अर्थात इस राग में सभी
सात स्वर प्रयोग होते हैं। राग का वादी स्वर ऋषभ और संवादी स्वर पंचम होता
है। मध्यरात्रि के समय यह राग अधिक प्रभावी लगता है। गान्धार स्वर आरोह और
अवरोह दोनों में तथा धैवत स्वर केवल अवरोह में वक्र प्रयोग किया जाता है।
कुछ विद्वान अवरोह में धैवत को वर्जित करते हैं। तब राग की जाति
सम्पूर्ण-षाडव हो जाती है। राग दरबारी का कोमल गान्धार अन्य सभी रागों के
कोमल गान्धार से भिन्न होता है। राग का कोमल गान्धार स्वर अति कोमल होता है
और आन्दोलित भी होता है। इस राग का चलन अधिकतर मन्द्र और मध्य सप्तक में
किया जाता है। यह आलाप प्रधान राग है। इसमें विलम्बित आलाप और विलम्बित
खयाल अत्यन्त प्रभावी लगते हैं। राग दरबारी कान्हड़ा को आधार बना कर फिल्मों
के अनेक गीतों की रचना हुई है। इन्हीं में से एक गीत का चयन हमने आपके लिए
किया है। आइए, आशा जी का गाया, फिल्म “काजल” का भक्तिगीत - “तोरा मन दर्पण कहलाए...”
सुनते हैं। 1965 में प्रदर्शित इस फिल्म के संगीतकार रवि ने राग दरबारी
कान्हड़ा पर आधारित स्वरों में गीत को पिरोया है। कहरवा ताल में निबद्ध इस
गीत के भक्तिरस का आप आस्वादन कीजिए।
राग दरबारी कान्हड़ा : ‘तोरा मन दर्पण कहलाए...’ : आशा भोसले : फिल्म – काजल
मध्यरात्रि
के परिवेश को संवेदनशील बनाने और विनयपूर्ण पुकार की अभिव्यक्ति के लिए
दरबारी कान्हड़ा एक उपयुक्त राग है। प्राचीन काल में कर्णाट नामक एक राग
प्रचलित था। 1550 की राजस्थानी पेंटिंग में इस राग का नाम आया है। बाद में
यह राग कानडा या कान्हड़ा नाम से प्रचलित हुआ। यह मान्यता है कि अकबर के
दरबारी संगीतज्ञ तानसेन ने कान्हड़ा के स्वरों में आंशिक परिवर्तन कर दरबार
में गुणिजनों के बीच प्रस्तुत किया था, जो बादशाह अकबर को बहुत पसन्द आया
और उन्होने ही इसका नाम दरबारी रख दिया था। आसावरी थाट के अन्तर्गत माना
जाने वाला यह राग मध्यरात्रि और उसके बाद की अवधि में ही गाया-बजाया जाता
है। इस राग का वादी स्वर ऋषभ और संवादी स्वर पंचम होता है। अति कोमल
गान्धार स्वर का आन्दोलन करते हुए प्रयोग इस राग की प्रमुख विशेषता होती
है। यह अतिकोमल गान्धार अन्य रागों के गान्धार से भिन्न है। यह पूर्वांग
प्रधान राग है। अवरोह के स्वर वक्रगति से लगाए जाते हैं। राग के यथार्थ
स्वरूप को समझने के लिए अब हम आपको राग दरबारी के भक्तिरस के पक्ष को
रेखांकित करने के लिए अब हम आपको विश्वविख्यात संगीतज्ञ पण्डित जसराज के
स्वरों में शक्ति और बुद्धि की प्रतीक देवी दुर्गा की स्तुति सुनवाते हैं।
आप यह रचना सुनिए और हमें आज के इस अंक को यहीं विराम देने की अनुमति
दीजिए।
राग दरबारी : ‘जय जय श्री दुर्गे...’ : पण्डित जसराज
संगीत पहेली
“स्वरगोष्ठी”
के 395वें अंक की संगीत पहेली में आज हम आपको वर्ष 1964 में प्रदर्शित एक
फिल्म से रागबद्ध गीत का अंश सुनवा रहे हैं। गीत के इस अंश को सुन कर आपको
दो अंक अर्जित करने के लिए निम्नलिखित तीन में से कम से कम दो प्रश्नों के
उत्तर देने आवश्यक हैं। यदि आपको तीन में से केवल एक अथवा तीनों प्रश्नों
का उत्तर ज्ञात हो तो भी आप प्रतियोगिता में भाग ले सकते हैं। इस वर्ष की
अन्तिम पहेली तक जिस प्रतिभागी के सर्वाधिक अंक होंगे, उन्हें वर्ष 2018 के
पाँचवें सत्र का विजेता घोषित किया जाएगा। इसके साथ ही पूरे वर्ष के
प्राप्तांकों की गणना के बाद वर्ष के अन्त में महाविजेताओं की घोषणा की
जाएगी और उन्हें सम्मानित भी किया जाएगा।
1 – इस गीतांश को सुन कर बताइए कि इसमें किस राग का आधार है?
2 – इस गीत में प्रयोग किये गए ताल को पहचानिए और उसका नाम बताइए।
3 – इस गीत में किस पार्श्वगायक के स्वर हैं?
आप उपरोक्त तीन मे से किन्हीं दो प्रश्नों के उत्तर केवल swargoshthi@gmail.com या radioplaybackindia@live.com
पर ही शनिवार, 1 दिसम्बर, 2018 की मध्यरात्रि से पूर्व तक भेजें। आपको यदि
उपरोक्त तीन में से केवल एक प्रश्न का सही उत्तर ज्ञात हो तो भी आप पहेली
प्रतियोगिता में भाग ले सकते हैं। COMMENTS
में दिये गए उत्तर मान्य हो सकते हैं, किन्तु उसका प्रकाशन पहेली का उत्तर
देने की अन्तिम तिथि के बाद किया जाएगा। “फेसबुक” पर पहेली का उत्तर
स्वीकार नहीं किया जाएगा। विजेता का नाम हम उनके शहर, प्रदेश और देश के नाम
के साथ ‘स्वरगोष्ठी’ के 397वें अंक में प्रकाशित करेंगे। इस अंक में
प्रस्तुत गीत-संगीत, राग, अथवा कलासाधक के बारे में यदि आप कोई जानकारी या
अपने किसी अनुभव को हम सबके बीच बाँटना चाहते हैं तो हम आपका इस संगोष्ठी
में स्वागत करते हैं। आप पृष्ठ के नीचे दिये गए COMMENTS के माध्यम से तथा swargoshthi@gmail.com अथवा radioplaybackindia@live.com पर भी अपनी प्रतिक्रिया व्यक्त कर सकते हैं।
पिछली पहेली के विजेता
‘स्वरगोष्ठी’
की 393वें अंक की संगीत पहेली में हमने आपको वर्ष 1977 में प्रदर्शित
फिल्म “भूमिका” के एक रागबद्ध गीत का अंश सुनवा कर आपसे तीन में से किसी दो
प्रश्न के उत्तर पूछा था। पहले प्रश्न का सही उत्तर है; राग – तिलक कामोद, दूसरे प्रश्न का सही उत्तर है; ताल – सितारखानी अथवा पंजाबी ठेका और तीसरे प्रश्न का सही उत्तर है; स्वर – प्रीति सागर।
“स्वरगोष्ठी”
की इस पहेली प्रतियोगिता में तीनों अथवा तीन में से दो प्रश्नो के सही
उत्तर देकर विजेता बने हैं; वोरहीज, न्यूजर्सी से डॉ. किरीट छाया, कल्याण, महाराष्ट्र से शुभा खाण्डेकर, चेरीहिल न्यूजर्सी से प्रफुल्ल पटेल, जबलपुर, मध्यप्रदेश से क्षिति तिवारी, मेरिलैण्ड, अमेरिका से विजया राजकोटिया, फीनिक्स, अमेरिका से मुकेश लाडिया और हैदराबाद से डी. हरिणा माधवी।
उपरोक्त सभी प्रतिभागियों को ‘रेडियो प्लेबैक इण्डिया’ की ओर से हार्दिक
बधाई। सभी प्रतिभागियों से अनुरोध है कि अपने पते के साथ कृपया अपना उत्तर
ई-मेल से ही भेजा करें। इस पहेली प्रतियोगिता में हमारे नये प्रतिभागी भी
हिस्सा ले सकते हैं। यह आवश्यक नहीं है कि आपको पहेली के तीनों प्रश्नों के
सही उत्तर ज्ञात हो। यदि आपको पहेली का कोई एक भी उत्तर ज्ञात हो तो भी आप
इसमें भाग ले सकते हैं।
अपनी बात
प्रस्तुति : कृष्णमोहन मिश्र
राग दरबारी कान्हड़ा : SWARGOSHTHI – 395 : RAG DARBARI KANHADA : 25 नवम्बर, 2018
Comments